केर्सी लॉर्ड (Kersi Lord – 14 Feb 1935 – 16 Oct 2016) ने इलेक्ट्रॉनिक गेजेट्स और इक्विपमेंट्स से भारतीय फ़िल्म संगीत का परिदृश्य ही बदल दिया।
फ़िल्म संगीत में जब भी इंस्ट्रूमेंटलिस्ट या म्यूजिक अरेंजर्स की बात आती है तो ज़्यादातर लोग अरेंजर टर्म से ही वाक़िफ़ नहीं होते तो उन फ़नकारों के नाम जानना तो बहुत दूर की बात है। आज ऑटोट्यून हर मर्ज़ की दवा बन गया है मगर कुछ वक़्त पहले तक अनगिनत वादक, अरेंजर और कंडक्टर्स ही थे जिनकी मेहनत से फ़िल्मी गाने बनते रहे हैं और पॉपुलर होते रहे हैं। इनमें बड़ा नाम है लॉर्ड परिवार का, कावस लॉर्ड और उनके बेटे केर्सी लॉर्ड और बर्जर लॉर्ड।
इस पोस्ट में याद करेंगे केर्सी लॉर्ड को जिनका बचपन अपने पिता के साथ स्टूडियोज़ में ही बीता। और उन्होंने भी अपने पिता की तरह बहुत से इनोवेशन किए और अपना एक ख़ास मक़ाम बनाया। केर्सी लॉर्ड का जन्म 14 फ़रवरी 1935 को मुंबई में हुआ और ज़ाहिर है उनके पिता कावस लॉर्ड उनके पहले मेंटोर बने। उनके साथ रहते हुए उन्होंने लेटिन अमेरिकी परकशन इंस्ट्रूमेंट्स बजाने में महारत हासिल कर ली थी। उनके बचपन का ज़्यादातर हिस्सा स्टुडिओज़ में ही गुज़रा इसलिए वो माहौल और म्यूजिक जैसे उनके रोम-रोम में बस गया था।
केर्सी लॉर्ड की प्रतिभा को पहचाना संगीतकार नौशाद ने
उस समय उनके पिता संगीतकार नौशाद के साथ काम कर रहे थे, इसलिए कई बार तो ऐसा होता कि वो अपने पिता के साथ स्टूडियो पहुँचते वहां से संगीतकार नौशाद की कार उन्हें रेलवे स्टेशन छोड़ती ताकि वो सही समय पर स्कूल पहुँच सकें। कहते हैं कि एंथोनी गोंसाल्विस उनके गुरु थे जो कि एक बेहद हार्ड टास्क मास्टर थे। उन्हीं के ज़ोर देने पर केर्सी लॉर्ड लगातार रियाज़ करते थे। उनकी सख़्ती की वजह से वो कई बार रोए भी, लेकिन उसी का नतीजा था कि वो उस मक़ाम पहुँचे कि पूरी इंडस्ट्री उनके हुनर को appreciate करती थी।
उनकी इस प्रतिभा पर पहली नज़र संगीतकार नौशाद की ही पड़ी, उस समय उनकी उम्र मात्र 14 साल थी जब नौशाद के संगीत निर्देशन में बन रही फ़िल्म “जादू” के इस गाने में केर्सी लॉर्ड ने बोंगो बजाया और फिर वो जल्दी ही एक परकशन इंस्ट्रूमेंटलिस्ट के तौर पर उनके ऑर्केस्ट्रा में शामिल हो गए जहाँ उन्होंने डिफरेंट लेटिन अमेरिकी इंस्ट्रूमेंट्स बजाए। उन दिनों उन्हें एक बहुत अच्छा जैज़ ड्रमर माना जाता था, जिसके वादन में एक ताज़गी, एक नयापन था जिसमें वेस्टर्न शैली के साथ साथ भारतीय ऋदम भी सुनाई देती थी। उनकी इसी ख़ासियत ने उन्हें औरों से अलग जगह दिलाई।
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नए लोगों को चांस देना थोड़ा रिस्की काम है लेकिन काम नहीं करेंगे तो एक्सपीरियंस कहाँ से मिलेगा ? और शायद इसीलिए फिल्म इंडस्ट्री हमेशा नए लोगों का स्वागत करती है। और नौशाद तो उन्हें बचपन से देख रहे थे इसीलिए ‘राम और श्याम’ के एक दृश्य के बैकग्राउंड म्यूजिक के लिए उन्होंने केर्सी लॉर्ड को मौक़ा दिया। और इसी के तुरंत बाद केर्सी लॉर्ड ने फ़िल्म ‘साथी’ में उनके लिए म्यूजिक अरेंज किया।
केर्सी लॉर्ड सभी तरह के वाद्य बजाने में माहिर थे
केर्सी लॉर्ड को भारतीय फ़िल्म संगीत में उनके इंनोवेशन्स के लिए जाना जाता है। अपने पिता के लगातार encourage करने पर उन्होंने मिस रोडा खोदियाजी के मार्गदर्शन में पियानो बजाना शुरू किया हाँलाकि उन्होंने प्रोफेशनली पियानो की कोई ट्रेनिंग नहीं ली। फिर उन्होंने बहुत से अलग-अलग वाद्य यंत्र बजाए, उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में कहा भी था कि उन्होंने कोई भी इंस्ट्रूमेंट 5 साल से ज़्यादा नहीं बजाया और इसी वजह से नए-नए इंस्ट्रूमेंट्स की तरफ उनका झुकाव बढ़ता गया।
पियानो से वो अकॉर्डियन की तरफ़ मुड़े और फिर उसमें इतने माहिर हो गए कि वही उनकी पहचान बन गया, जिसमें उन्होंने अपनी अलग शैली विकसित की। फिल्म आराधना का ये गाना उनकी क़ाबिलियत की मिसाल है। लगभग चार घंटे में रिकॉर्ड हुए इस गाने के लिए पहली बार ऐसा हुआ कि केर्सी लॉर्ड को एक एम्प्लीफायर और अकॉर्डियन के लिए एक कॉन्टैक्ट माइक दिया गया।
केर्सी लार्ड में नया सीखने की ललक ही थी कि जहाँ उन्होंने मिस्टर हैल ग्रीन, मिस्टर डिज़ी सेल के अलावा कुछ और मेंटोर्स से जैज़ हार्मनी सीखी, वहीं उन्होंने कुछ समय तक प्रसिद्ध हारमोनियम प्लेयर पी. मधुकर और तबलावादक इनाम अली खान से भारतीय शास्त्रीय संगीत भी सीखा। लेकिन Dr. Coelwriter, जर्मनी के Prof. Bueller और USA के Prof. Herbert Haslam से पारंपरिक हार्मनी, काउंटरपॉइंट, कंपोजिशन, ऑर्केस्ट्रेशन जैसे वेस्टर्न क्लासिकल म्यूजिक के थियोरिटिकल पहलुओं को भी सीखते रहे।
केर्सी लॉर्ड ही थे जिन्होंने पहला मूग सिंथसाइज़र इम्पोर्ट किया
‘हम दोनों’ फ़िल्म के गाने “मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया” में सिगरेट-लाइटर का प्रभाव लाने के लिए केर्सी लार्ड ने भारतीय सिनेमा को दिया ‘ग्लॉकेंसपील’ ‘glockenspiel’ जैसा इंस्ट्रूमेंट। पहला programable कीबोर्ड एन्सोनिक ESQ-1 भी वही लेकर आए। सत्तर के दशक की शुरुआत से ही केर्सी लॉर्ड का झुकाव बहुत गहराई से इलेक्ट्रॉनिक इंस्ट्रूमेंट्स की तरफ़ बढ़ा। वो केर्सी लॉर्ड ही थे जिन्होंने 1973 में भारत में पहला मूग सिंथेसाइज़र इम्पोर्ट किया। इसके अलावा वॉव-वॉव पेडल, फेज़र्स, LFO, फ़्लैंगर्स, SFX यूनिट्स , टेप इकोज़ जैसे कई इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का उपयोग करना शुरु किया।
केर्सी लार्ड ने eco chamber, अलग-अलग सिंथेसाइज़र्स और रिदम कम्पोज़र्स के साथ फ़िल्म म्यूज़िक में प्रयोग करना शुरु किया। और उनके इन सभी एक्सपेरिमेंट्स में उनका साथ दिया संगीतकार RD बर्मन ने जो एक तरह से उनके बचपन के साथी भी थे। दोनों का टेस्ट सेम था, म्यूजिक को लेकर दीवानगी भी एक जैसी थी और नया कुछ करने की भूख भी एक सी ही थी। इन्हीं वजहों से दोनों ने लम्बे समय तक एक दूसरे के साथ काम किया। और उस दौरान केर्सी लार्ड ने बहुत से इनोवेशन और एक्सपेरिमेंट्स किये। छोटे नवाब से लेकर परिंदा तक केर्सी लॉर्ड पंचम की टीम का हिस्सा रहे।
पंचम और केर्सी ने फ़िल्म संगीत को एक नयापन दिया
जब RD बर्मन ‘तीसरी मंजिल’ के गाने “ओ मेरे सोना रे” पहली बार इलेक्ट्रॉनिक ऑर्गन लेकर आये तो उसे केर्सी लार्ड ने ही बजाया था। एक पियानो अकॉर्डियन वादक के रूप में उनकी प्रतिभा की झलक ‘परिचय’ फ़िल्म के इस गीत में भी मिलती है – “सा रे के सारे गा मा को लेकर गाते चले”, निजी तौर पर केर्सी लॉर्ड को पश्चिमी संगीत बहुत पसंद था और उनके पास वेस्टर्न क्लासिकल, जैज़ और पॉपुलर म्यूजिक के LPs का एक बड़ा कलेक्शन था। लेकिन उन्होंने बाद में हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत और तबला बजाना भी सीखा।
केर्सी लार्ड के अरेंज किये गानों में कुछ न कुछ ऐसा होता है जो गानों को स्पेशल बनाता है। ऐसे कई गाने हैं मगर ख़ासतौर पर बात करें फ़िल्म ‘हँसते ज़ख़्म’ के इस मशहूर रोमेंटिक गाने की “तुम जो मिल गए हो” तो इसके हर पैराग्राफ में इसका म्यूजिक डिफरेंट है और मूड के हिसाब से बदलता है। कितने गाने हैं जिनमें आपको ऐसी संगीत संरचना सुनाई देती है ! ‘आराधना’ और ‘कटी पतंग’ जैसी फिल्मों में, केर्सी लॉर्ड ने गानों और बैकग्राउंड म्यूज़िक में शानदार प्रभाव डालने के लिए अपनी रोलैंड इको मशीन का उपयोग किया।
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केर्सी लॉर्ड ने बहुत सी फ़िल्मों में बैकग्राउंड म्यूजिक भी दिया। संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के प्यारेलाल ने उन्हें एक बुक दी थी “कम्पोज़िंग फ़ॉर फ़िल्म्स” उस किताब को पढ़कर उन्हें अपने बैकग्राउंड म्यूजिक के स्किल्स को निखारने में बहुत मदद मिली। उन्होंने बहुत सी मशहूर फ़िल्मों के लिए म्यूजिक अरेंज करने के साथ-साथ बैकग्राउंड म्यूजिक भी दिया। मगर ये बात उन्हें हमेशा सालती थी कि जिस तरह संगीतकारों का नाम फ़िल्म क्रेडिट्स में दिया जाता है म्यूजिक अरेंजर्स का नाम क्यों नहीं दिया जाता?
उन्होंने हमेशा अपने काम के लिए अलग क्रेडिट की माँग की, कुछ फिल्मों में उन्हें उनके काम का श्रेय दिया भी गया मगर ज़्यादातर मौक़ों पर ऐसा नहीं हुआ। जबकि इनमें से कई फ़िल्मों में केर्सी लॉर्ड ने बैकग्राउंड स्कोर भी तैयार किया था, पर उन्हें उसका श्रेय नहीं दिया गया। इनमें ‘पाकीज़ा’ और ‘धर्मात्मा’ जैसी फ़िल्में भी शामिल हैं जिनके बैकग्राउंड के लिए उन्होंने म्यूज़िक अरेंज किया था, मगर उन्हें श्रेय नहीं दिया गया। तब निराश होकर उन्होंने फ़ैसला किया कि वो सिर्फ़ बतौर इंस्ट्रूमेंटलिस्ट ही काम करेंगे।
पर वो RD बर्मन ही थे जिन्होंने केर्सी लार्ड को ‘शालीमार’ फ़िल्म का बैकग्राउंड स्कोर अरेंज करने के लिए राज़ी किया। इसीलिए पंचम हमेशा उनके लिए न सिर्फ़ ख़ास रहे, बल्कि सर्वश्रेष्ठ रहे। पंचम के अलावा केर्सी लॉर्ड ने सी. रामचन्द्र, ओपी नैय्यर, नौशाद, SD बर्मन, मदन मोहन, कल्याणजी आनंदजी, वनराज भाटिया जैसे कई प्रसिद्ध संगीत निर्देशकों के साथ काम किया था, लेकिन वो उषा खन्ना थीं जिन्होंने उन्हें encourage किया।
केर्सी लॉर्ड के लाए इलेक्ट्रॉनिक्स इंस्ट्रूमेंट्स ने हलचल मचा दी थी
एक दिन रिकॉर्डिंग के वक़्त उषा खन्ना ने उनसे कहा कि तुम्हें इलेक्ट्रॉनिक्स में इतना इंटरेस्ट है तो तुम इलेक्ट्रिक ऑर्गन क्यों नहीं बजाते ? और उन्होंने उसी वक़्त सभी इंस्ट्रूमेंट्स को साथ में रख लिया और ऑर्गन को एम्प्लीफायर से जोड़ा और कुछ ऐसी कम्पोज़ीशन बना डाली जो अलग थी। उनके मुताबिक़ वो कोई बहुत बढ़िया कम्पोज़ीशन नहीं बनी थी, मगर उनकी प्रतिभा के चर्चे हर तरफ़ होने लगे। कमर्शियल सिनेमा के अलावा, केर्सी लॉर्ड ने ‘सात हिंदुस्तानी’, ‘अनुभव’, ‘आविष्कार’, ’36 चौरंगी लेन’ जैसी कई ऑफबीट फ़िल्मों के लिए भी म्यूजिक अरेन्जमेन्ट किया।
70 के दशक में जिन इलैक्ट्रोनिक इंस्ट्रूमेंट्स की शुरुआत केर्सी लार्ड ने की थी 1990 के दशक तक आते-आते, उन इंस्ट्रूमेंट्स ने फ़िल्म म्यूजिक का परिदृश्य ही बदल दिया। सिंथेसाइज़र ने ऑर्केस्ट्रा की जगह लेना शुरू कर दिया था। उस समय उन्हें इसके लिए ज़िम्मेदार भी ठहराया गया। मगर उन्होंने उस इंस्ट्रूमेंट्स का प्रयोग साउंड को बेहतर बनाने के लिए किया था। और उस वक़्त किसी ने नहीं सोचा था कि एक अकेला सिंथेसाइज़र सभी ऑर्केस्ट्रा इंस्ट्रूमेंट्स को रिप्लेस कर देगा।
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तकनीक के फ़ायदे और नुकसान दोनों ही हैं, निर्भर करता है कि आप उसका इस्तेमाल किसलिए और कैसे करते हैं। आज वही संगीतकार एक्टिव हैं जो तकनीक के साथ घुल-मिल पाए हैं और हम कितना भी कह लें कि तकनीक या मशीनें वो संगीत नहीं दे सकतीं जो कलाकार दे पाते हैं। इस बात में सच्चाई तो है मगर ये भी सच है कि आज ज़माना बदल गया है, ख़ाली प्रतिभा किसी काम की नहीं है उसके साथ साथ तकनीक का ज्ञान लाज़मी हो गया है। और इस आने वाले बदलाव को शायद RD बर्मन, केर्सी लॉर्ड जैसे लोगों ने बहुत पहले भाँप लिया था। तभी तो हर पल कुछ न कुछ नया करते रहे नया सीखते रहे और नया देते रहे।
केर्सी लॉर्ड का दायरा फ़िल्मों से बाहर भी फैला हुआ था
केर्सी लॉर्ड मानते थे कि उनके दिमाग़ में एक डिलीट बटन है अगर ये बटन नहीं होता तो शायद वो इतना कुछ नहीं सीख पाते। क्योंकि कुछ नया करने के लिए पहले किए गए काम को भूलना पड़ता है तभी आप ग्रो कर सकते हो। अगर आप अपनी एक उपलब्धि को लेकर इतराते रहेंगे तो कभी तरक़्क़ी नहीं कर पाएँगे। इसीलिए जहाँ उन्होंने फिल्में कीं, वहीं एड फ़िल्म्स, जिंगल्स, डाक्यूमेंट्री, टीवी सीरियल्स में भी संगीत दिया। 1977 से 1982 तक केर्सी लॉर्ड ने यूके, हॉलैंड, यूएसए, कनाडा, मॉरीशस और दुबई के कॉन्सर्ट टूर पर गए। रॉयल अल्बर्ट हॉल, कार्नेगी हॉल, फिशर हॉल, रेडियो सिटी हॉल जैसे बेहद प्रतिष्ठित हॉल में परफॉर्म किया।
जब एलिक पदमसी ने गिरीश कर्नाड के नाटक तुग़लक़ का इंग्लिश वर्ज़न बनाया जो कि थोड़ा बहुत controversial भी रहा था तो उस प्ले का संगीत भी केर्सी लॉर्ड ने ही तैयार किया, जिसकी बहुत तारीफ़ हुई। पाँच दशकों के अपने करियर में पीक पर रहते हुए साल 2000 में केर्सी लॉर्ड ने फ़िल्मों को बाय-बाय कह दिया लेकिन फिर 2007 में आई एक अमेरिकी प्रोडक्शन “The Pool” इस फिल्म में म्यूजिक दिया था डिडियर लापले और जो वोंग ने लेकिन फ़िल्म के बैकग्राउंड स्कोर का अरेंजमेंट किया केर्सी लॉर्ड ने। इसका म्यूजिक मुंबई के आख़िरी एनालॉग स्टूडियो में केर्सी लार्ड के निर्देशन में लाइव मुसिशन्स के साथ रिकॉर्ड किया गया था।
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‘The Pool’ फ़िल्म ने सनडांस फ़िल्म फ़ेस्टिवल में ऑडियंस अवॉर्ड भी जीता था। इसके अलावा उन्होंने दो फ्रांसीसी सिंगर्स के लिए स्ट्रिंग अरेंजमेंट भी की थी, जिसे फ्रांस में बहुत सराहा गया था। केर्सी लार्ड लगभग तीन दशकों तक बॉम्बे चैंबर ऑर्केस्ट्रा और बॉम्बे फिलहारमोनिक के प्रमुख परकशनिस्ट थे। वो कई सालों तक बॉम्बे स्कूल ऑफ म्यूजिक और सिने म्यूजिशियन एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रहे। रुद्रदीप भट्टाचारजी ने 2012 में फ़िल्म म्यूजिशियनंस पर एक फ़िल्म बनाई थी “The Human Factor” जिसमें उन्होंने लॉर्ड परिवार के तीनों लॉर्ड्स को कवर किया था, पिता कावस लॉर्ड, केर्सी लॉर्ड और उनके छोटे भाई बुर्जोर लॉर्ड।
केर्सी लॉर्ड को 2009 में मिर्ची म्यूजिक अवॉर्ड से सम्मानित किया गया और 2010 में उन्हें दादा साहब फालके अकादमी पुरस्कार से नवाज़ा गया। इन अवॉर्ड्स से ज़्यादा ख़ुशी की बात ये थी कि जिस फनकार को उसके फ़न का क्रेडिट नहीं दिया गया उसी के सम्मान में खड़े होकर लोग तालियाँ बजा रहे थे। एक कलाकार, फ़नकार को यही तो चाहिए कि उसकी कला को पहचान मिले, सम्मान मिले। वर्ना ज़िंदगी तो किसी को नहीं बख़्शती, आम-ओ-ख़ास सब को ज़िंदगी के उतार चढाव देखने और झेलने पड़ते हैं।
केर्सी लॉर्ड ने भी अपने निजी जीवन में बहुत कुछ सहा पर अपने पिता की तरह उनके चेहरे पर हमेशा एक मुस्कान बनी रहती थी। उम्र के साथ कुछ बिमारियों ने उन्हें घेरा और फिर 16 अक्टूबर 2016 को उन्होंने भी ये दुनिया छोड़ दी। क़रीब 52 साल के करियर में 5000 से ज़्यादा गाने और अनगिनत बैकग्राउंड स्कोर के साथ उन्होंने फ़िल्म म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट्स को लेकर नए नए प्रयोग जिन्होंने फ़िल्म म्यूजिक को बेहतर बनाया। पर कितने लोग हैं जो केर्सी लॉर्ड के बारे में जानते हैं, उनके नाम उनकी प्रतिभा से वाक़िफ़ हैं ?