एंथनी गोंसाल्विस

एंथनी गोंसाल्विस (12 June 1927 – 18 January 2012) बॉम्बे फ़िल्म इंडस्ट्री के बेहतरीन म्यूज़िक अरेंजर थे।

एंथनी गोंसाल्विस : माय नेम इज़ एंथोनी

ये गाना तो हम सब ने सुना है “माय नेम इस एंथनी गोंसाल्विस” ये अपने वक़्त का ही फेमस सांग नहीं है, बल्कि आज भी बहुत मशहूर है। इस गाने का संगीत दिया था संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने। फ़िल्म की कहानी से सब ही वाक़िफ़ हैं तीन भाई जो बचपन में बिछड़ते हैं और अलग-अलग धर्म में परवरिश पाते हैं। टिपिकल मनमोहन देसाई स्टाइल फ़िल्म थी और तीनों किरदारों का नाम फ़ाइनल था – अमर अकबर एंथनी।

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मगर जब इस गाने की योजना बन रही थी जिसमें अमिताभ बच्चन ईस्टर एग में से निकलते हैं एक लंबा सा सेंटेंस बोलते हैं (You see, the whole country of the system is juxtaposition by the haemoglobin in the atmosphere because you are a sophisticated rhetorician intoxicated by the exuberance of your own verbosity) और फिर अपना पूरा नाम बोलते हैं। तो शुरुआत में उस किरदार का सरनेम रखा गया था ‘फ़र्नांडिस’। मगर फ़र्नांडिस न तो मीटर में फिट हो रहा था न ही बोलते हुए क्लिक कर रहा था। तो गाना बनने के दौरान क्रू में से किसी को भी ये सरनेम अपीलिंग नहीं लगा।

एंथनी गोंसाल्विस

जब सरनेम को लेकर माथापच्ची चल रही थी तभी अचानक संगीतकार प्यारेलाल को अपने गुरु का नाम याद आया जिनसे उन्होंने वॉयलिन बजाना सीखा था – The Anthony Gonsalves. उन्हें इंडस्ट्री का बेहतरीन म्यूजिक अरेंजर कहा जाता है, कुछ तो पहला म्यूजिक अरेंजर भी कहते हैं। आज एंथनी गोंसाल्विस का नाम बहुत लोग जानते हैं मगर तब तक ये नाम फ़िल्मी गलियारों से भी ग़ायब हो चुका था क्योंकि जब ‘अमर अकबर एंथनी’ बनी उससे क़रीब 10-12 साल पहले ही एंथनी गोंसाल्विस मुंबई और फ़िल्म इंडस्ट्री को छोड़कर जा चुके थे।

एंथनी गोंसाल्विस जब फ़िल्मों में सक्रिय तौर पर काम करते भी थे, तब भी फ़िल्मी गलियारे से बाहर उनके नाम को कोई नहीं जानता था क्योंकि फ़िल्मों में नाम आता है संगीतकार का, जो धुन बनाते हैं और बाक़ी का काम करते हैं उनके असिस्टेंट, म्यूजिक अरेंजर्स और टेक्निशियन्स। हम गाना गुनगुनाते हैं, उसके संगीत पर झूमते हैं, उनकी तारीफ़ करते हैं, पर किसी भी गीत को बेहतर बनाने में बाक़ी सब ने जो भी मेहनत की, उनकी तरफ़ हमारा ध्यान ही नहीं जाता।

ये वाक़ई घोर विडम्बना है कि जो वादक किसी भी ऑर्केस्ट्रा की जान होते हैं, कमाल के एक्सपर्ट होते हैं, पूरा म्यूजिक अरेंज करते हैं, यूँ कहिए कि जिनके बिना किसी फ़िल्म का म्यूजिक बनाना लगभग असंभव है, उनके बारे में आम लोगों को कोई जानकारी ही नहीं है। ऐसे ही बेहतरीन वॉयलिन प्लेयर, और म्यूजिक अरेंजर थे एंथनी गोंसाल्विस। जिन्होंने S D बर्मन, मदन मोहन, श्याम सुन्दर जैसे बहुत से संगीतकारों के लिए म्यूजिक अरेंज किया और वॉयलिन भी बजाया।

16 साल की उम्र में गोवा से भाग कर बॉम्बे आ गए थे

एंथनी गोंसाल्विस का जन्म 1927 में गोवा के एक गाँव मजोर्डा में हुआ। उनका पूरा नाम था एंथनी प्रभु गोंसाल्विस, उनके पिता जॉस ऐंटॉनियो चर्च में choirmaster थे, और उन्होंने अपना सारा जीवन गाँव के युवा उत्साही लोगों को संगीत सिखाने में बिताया। अपने पिता से ही उन्होंने म्यूजिक की बारीक़ियाँ सीखीं। जब वो 3 साल के थे तभी से उन्होंने वॉयलिन बजाना शुरु कर दिया था और बाद में यही साज़ उनका फ़ेवरेट बन गया।

गाँव में एंथनी गोंसाल्विस का संगीत एक सीमित दायरे में ही रह पाता इसीलिए वो बंबई जाना चाहते थे मगर उनके पिता को उनका ये विचार बिलकुल पसंद नहीं आया पर उनके भाई-बहनों ने उनका साथ दिया। 1943 में वो गोवा से भागकर बंबई पहुंच गए, उस वक़्त उनकी उम्र कोई 16 साल थी, मगर संगीत में वो पूरी तरह परिपक्व थे। उन्होंने पहली बार संगीतकार नौशाद के साथ बतौर वॉयलिन वादक काम शुरु किया और वहीं भारतीय शास्त्रीय संगीत से उनका परिचय हुआ।

एंथनी गोंसाल्विस

गोवा के दूसरे म्यूजिशियन की तरह एंथनी गोंसाल्विस के संगीत पर भी पश्चिमी संगीत का प्रभाव ज़्यादा था। लेकिन बम्बई में उनका झुकाव हुआ भारतीय रागों की तरफ और उन्होंने भारतीय वाद्यों को सीखना शुरु किया। उन्होंने देवनागरी स्क्रिप्ट लिखना भी सीखा, उनकी कामयाबी का राज़ शायद यही था कि उन्हें जब जहाँ मौक़ा मिला, वो सीखते रहे, पढ़ते रहे। तभी तो बम्बई के फ़िल्मी गलियारों में उनके काम की चर्चा बहुत हुई। उन्होंने अपने करियर में क़रीब 1000 से ज़्यादा गानों पर काम किया।

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एंथोनी गोंसाल्वेस ने उस दौर के लगभग सभी संगीतकारों के लिए या तो वॉयलिन बजाया या संगीत अरेंज किया। इनमें नौशाद, एस. डी. बर्मन, मदन मोहन जैसे संगीतकारों के अलावा एन दत्ता, ज्ञान दत्त, हंसराज बहल और पं. गोविंद राम जैसे संगीतकार भी शामिल हैं। शंकर जयकिशन भी उनकी प्रतिभा के क़ायल थे। आवारा के मशहूर ड्रीम- सीक्वेंस सांग “घर आया मेरा परदेसी” की शुरूआत में जो वॉयलिन पीस सुनाई देता है वो एंथोनी गोंसाल्विस और पीटर डोरडो ने बजाया है।

जब इस गाने की रिहर्सल हो रही थी तो राजकपूर को वो वॉयलिन पीस पसंद नहीं आया था। और उन्होंने एकदम चिल्ला कर कहा था – ये क्या शोर है, बंद करो। ये सुनते ही दोनों प्लेयर्स तुरंत वहाँ से उठकर चले गए। ये उन दोनों वादकों के लिए बेहद अपमानजनक था क्योंकि दोनों ही उस समय इंडस्ट्री के बेस्ट वॉयलिन प्लयेर्स में से थे। और शंकर जयकिशन ये बात जानते थे इसीलिए उन्होंने दोनों को मना कर वापस बुलाया और रिकॉर्डिंग पूरी की।

कुछ ऐसे गानों की सूची जिनमें एंथनी गोंसाल्विस के वॉयलिन और अरेंजमेंट का कमाल दिखता है।

  • सावन के बदलो – रतन – संगीतकार – नौशाद
  • आएगा आने वाला – महल – संगीतकार – खेमचंद प्रकाश
  • तरारी तरारी तरारी – दास्तान – संगीतकार – नौशाद
  • सैयां दिल में आना रे – बहार – संगीतकार – एस डी बर्मन
  • शाम-ए-ग़म की क़सम – फुटपाथ – संगीतकार – ख़ैयाम
  • हम प्यार में जलने वालों को – जेलर – संगीतकार – मदन मोहन
दरअस्ल शुरुआत में फ़िल्म म्यूजिक में ऑर्केस्ट्रा का ज़्यादा इस्तेमाल नहीं होता था लेकिन जैसे-जैसे ऑर्केस्टा का रोल बढ़ता गया इंस्ट्रूमेंटलिस्ट और म्यूजिक अरेंजर्स की ज़रूरत महसूस होने लगी। शुरुआत में सिर्फ़ भारतीय वाद्यों से काम चल जाता था मगर धीरे-धीरे पश्चिमी वाद्यों का प्रवेश फ़िल्म म्यूजिक में हुआ। पर दिक्कत ये थी कि उस समय मुंबई में वेस्टर्न इंस्ट्रूमेंट्स बजाने वाले साज़िंदे बहुत कम थे। तब फ़िल्म आर्केस्ट्रा में गोवा के वादकों की संख्या बढ़ती गई क्योंकि वहाँ के संगीत में शुरू से ही वॉयलिन, गिटार, सेक्सोफोन जैसे पश्चिमी वाद्यों का दख़ल रहा।

शुरूआती कुछ हिंदी फिल्म संगीतकार हिंदुस्तानी शास्त्रीय परंपरा में प्रशिक्षित थे ऐसे में म्यूजिक अरेंजमेंट का बहुत सा काम संभाला गोवा के musicians ने। हांलाकि 40 के दशक से ही गोवा के म्यूजिशियंस का प्रवेश शुरु हो गया था, उस समय A B अलबर्क और पीटर डोरेडो ने राम सिंह नाम के एक सिख सेक्ससोफ़ोन वादक के साथ मिलकर ARP पार्टी बनाई थी। गोवा के संगीतज्ञों ने बॉलीवुड संगीत में पुर्तगाली फैडोस, चा चा चा, मोजार्ट को शामिल करके एक नया फ्लेवर डाला और जिस फ्यूज़न को आज बहुत पसंद किया जाता है उसका एक्सपेरिमेंट शुरु किया।

एंथनी गोंसाल्विस के इंडियन सिम्फनी ऑर्केस्ट्रा ने बहुत शोहरत पाई

फ़िल्मों में तो एंथोनी गोंसाल्विस की एक ख़ास जगह बन चुकी थी मगर फ़िल्मों से अलग वो राग-आधारित सिम्फनी की रचना करना चाहते थे जिन्हें दुनिया के प्रमुख कॉन्सर्ट हॉल में प्रस्तुत किया जा सके। उनका ये सपना साकार हुआ 1958 में, जब उन्होंने 110 संगीतकारों के साथ ‘इंडियन सिम्फनी ऑर्केस्ट्रा’ की स्थापना की, और सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज में इस ऑर्केस्ट्रा ने लता मंगेशकर और मन्ना डे के साथ कामयाब प्रस्तुति दी। ये सब उन्होंने अपने ख़र्च पर किया, ताकि वो सबको दिखा सकें कि भारतीय संगीत कितना विविध और समृद्ध है।

एंथनी गोंसाल्विस

एंथनी गोंसाल्विस की भारतीय और पश्चिमी शैलियों के मिश्रण में इतनी रूचि थी कि उसके कारण बहुत से ऐसे प्रयोग हुए जिनके बारे में शायद पहले सोचा भी न गया हो ! सोनाटीना इंडियाना, राग सारंग में कॉन्सर्टो, वायलिन के लिए कॉन्सर्टो और तोड़ी थाट में ऑर्केस्ट्रा जैसी रचनाएँ हुईं। हाँलाकि ये गोवा की धुनों के साथ हिंदुस्तानी संगीत का एक सुन्दर मिश्रण था, मगर अपने एक इंटरव्यू में उन्होंने ये भी कहा कि वो फ्यूज़न नहीं था बल्कि सिंगर्स और ऑर्केस्ट्रा के साथ रागों की प्रस्तुति थी।

इसके बाद उन्होंने ऐसी और भी प्रस्तुतियाँ दीं जिन्हें उनकी उम्मीद के मुताबिक़ पॉजिटिव रिस्पांस नहीं मिला। लेकिन इन प्रस्तुतियों ने उनकी प्रतिष्ठा को बढ़ाया और उनके नाम की चर्चा मुंबई और देश से बाहर भी हुई। जिसकी वजह से उन्हें विदेश में भी अपनी प्रतिभा दिखाने का मौक़ा मिला। शायद वो ये मौक़ा गवाँ देते मगर उसी दौरान उनके साथ कुछ ऐसे वाक़्यात हुए कि उन्होंने बाहर जाने का फ़ैसला ले लिया।

सरकारी विभाग के रवैये से निराश होकर उन्होंने देश छोड़ा

एंथनी गोंसाल्विस का नाम आज इज़्ज़त के साथ लिया जाता है क्योंकि उन्होंने संगीत को अपना जीवन दे दिया। वो एक अच्छे इंसान भी थे, हमेशा दूसरों की मदद के लिए आगे रहने वालों में से थे। जब गोवा में लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के साथ उन्होंने एक म्यूजिकल शो किया था तो उससे मिली 7 लाख की पूरी रक़म उन्होंने गोवा सरकार को दान कर दी थी। ये 1962 की बात है, उस समय 7 लाख बहुत बड़ी रक़म हुआ करती थी। मगर सरकारी, आधिकारिक स्तर पर उनके अनुभव बहुत कड़वे रहे।

उनकी बेटी लक्ष्मी गोंसाल्विस के मुताबिक़ – “वॉल्ट डिज़नी एक एनिमिटेड फ़िल्म बना रहे थे जिसमें संगीत देने के लिए एंथोनी गोंसाल्विस से संपर्क किया गया, मगर इसके लिए उन्हें सरकारी अप्रूवल लेना ज़रुरी था, जो उन्हें कभी नहीं मिला। उस समय के केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने उन्हें काफी अपमानित किया। और उस समय तक फ़िल्म इंडस्ट्री का रूप रंग भी बदल रहा था और ये सब हालात उन्हें रास नहीं आ रहे थे।

एंथनी गोंसाल्विस
बेटी लक्ष्मी के साथ और पत्नी के साथ
“When he got an opportunity from Walt Disney for providing music in their animation film the offer was supposed to come from the Government of India for the music and my father worked on it and wrote the script and also wrote the entire music that took six months. After that, he was supposed to take an approval of Indian government and the same was to be done through the Information and Broadcasting Ministry of India. So finally my father went to Delhi to meet the Information and Broadcasting Minister, who insulted my father saying that how a Christian music composer can create the Indian Music and told him to get lost,” – Lakshmi Gonsalves.
“जब उन्हें अपनी एनीमेशन फिल्म में संगीत प्रदान करने के लिए वॉल्ट डिज़नी से मौका मिला, तो संगीत के लिए भारत सरकार से प्रस्ताव आना था और मेरे पिता ने इस पर काम किया और पटकथा लिखी और पूरा संगीत भी लिखा, जिसमें छह महीने लगे। . उसके बाद, उन्हें भारत सरकार की मंजूरी लेनी थी और यह काम भारत के सूचना और प्रसारण मंत्रालय के माध्यम से किया जाना था। इसलिए मेरे पिता सूचना एवं प्रसारण मंत्री से मिलने दिल्ली गए, जिन्होंने यह कहकर मेरे पिता का अपमान किया कहा कि एक ईसाई संगीतकार भारतीय संगीत कैसे बना सकता है और उन्हें दफा हो जाने के लिए कहा,’ – लक्ष्मी गोंसाल्विस

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ऐसे ही वक़्त में एंथनी गोंसाल्विस को न्यूयॉर्क की फ़ेलोशिप मिली और वो 1965 में मुंबई छोड़कर अमेरिका चले गए। वो ‘अमेरिकन सोसाइटी ऑफ कम्पोज़र्स, पब्लिशर्स एंड ऑथर्स’ के सदस्य भी रहे। अमेरिका में ही उनकी मुलाक़ात अपनी होने वाली पत्नी से हुई जो वहाँ फाइन आर्ट की स्टूडेंट थीं। शायद ये उन्हीं कड़वे अनुभवों का असर था कि जब एंथनी गोंसाल्विस क़रीब 10 साल अमेरिका में बिताने के बाद वापस लौटे तो उन्होंने किसी को अपनी वापसी की ख़बर नहीं दी और न ही किसी ने जानने की कोशिश की कि वो कहाँ हैं।

अमेरिका से लौटने के बाद एंथनी गोंसाल्विस अपने गाँव में रहकर ही संगीत सेवा करते रहे। 2012 में उन्हें न्यूमोनिया हुआ जो उनकी जान लेकर ही गया। पर सुखद ये है कि अपनी ज़िन्दगी में उन्होंने अपने काम को छोटी ही सही पहचान मिलते देखा। 2010 के इंडियन इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल के दौरान, उनके जीवन और कार्यों पर एक  डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग की गई थी। जिसका नाम था “एंथनी गोंसाल्विस: द म्यूजिक लेजेंड” इस डॉक्यूमेंट्री को स्पेशल जूरी पुरस्कार भी दिया गया।

एंथनी गोंसाल्विस ने बहुत सी मशहूर हस्तियों को संगीत की शिक्षा दी

एंथनी गोंसाल्विस उनमें से थे जिन्हें संगीत से प्यार था और वो उसे दूसरों में बाँटना भी चाहते थे। उन्हें संगीत सिखाना बहुत पसंद था, इसीलिए जब वो बम्बई में थे तो पहले अपने फ्लैट पर संगीत सिखाया करते थे फिर लता मंगेशकर ने बांद्रा में उनके लिए एक हॉल की व्यवस्था कर दी थी, जहाँ वो अपने स्टूडेंट्स को सिखाते थे कि फ़िल्मों के लिए वॉयलिन कैसे प्ले किया जाता है। R D बर्मन और प्यारेलाल जैसे संगीतकार भी उनके स्टूडेंट रहे।

एंथनी गोंसाल्विस

संगीतकार प्यारेलाल के पिताजी ने उन्हें एंथनी गोंसाल्विस के पास वॉयलिन सीखने के लिए भेजा था। उस समय प्यारेलाल किशोरवस्था में थे, उस समय उनकी बहुत इच्छा नहीं थी। मगर जब उन्होंने एंथोनी गोंसाल्विस को वॉयलिन बजाते देखा तो उन्हें बहुत पसंद आया। एंथनी गोंसाल्विस ने उन्हें जिस तरह राइट हैंड और लेफ़्ट हैंड टेक्नीक सिखाईं उसकी उन्होंने हमेशा तारीफ़ की। तभी तो प्यारेलाल ने अमर अकबर एंथनी के किरदार को उनसे जोड़ दिया।

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एक और इंटरेस्टिंग बात जो रिसर्च के दौरान मेरी नज़रों से गुज़री वो ये कि राज कॉमिक्स की एक कॉमिक बुक के करैक्टर का नाम भी एंथनी गोंसाल्विस था, अब इस किरदार की प्रेरणा कहाँ से मिली कहा नहीं जा सकता क्योंकि एंथोनी नाम तो बहुत कॉमन है। हो सकता है फ़िल्म ‘अमर अकबर एंथनी’ के बाद शायद एंथनी गोंसाल्विस की शोहरत ज़्यादा बढ़ी और इस नाम के किरदार पर कहानी लिखी गई।

एंथनी गोंसाल्विस इन मायनों में भाग्यशाली रहे कि देर-सवेर ही सही उनके नाम और काम को सराहा गया। इंटरनेट की बदौलत, कुछ पुराने वीडियो और प्रिंट इंटरव्यू के कारण, कुछ बुक researchers और लेखकों की वजह से लोग उन्हें जानते हैं। मगर उनके जैसे ख़ुशक़िस्मत गिनती के हैं। ऐसे अनगिनत फ़नकार हैं जिनका योगदान किसी गिनती में नहीं आता क्योंकि हम उनके नाम तक से वाक़िफ़ नहीं हैं।