Ishwar Jo Karta Hai Accha hi Karta Hai
“ईश्वर जो करता है अच्छा ही करता है” ये कहानी मैंने स्कूल में संस्कृत की किताब में पढ़ी थी। जिसमें एक राज्य का मंत्री इस बात पर आँख बंद करके यक़ीन रखता है और बड़े से बड़े दुःख में भी इसी बात को दोहराता था।
एक बार उस मंत्री के पुत्र की मृत्यु हो गई और जब उसे ये समाचार दिया गया तब भी उसने यही कहा कि “ईश्वर जो करता है अच्छा ही करता है”। बेटे की मौत पर भी उसके मुँह से ये बात सुनकर राजा को भी बड़ा अचरज हुआ उन्होंने मंत्री से पूछा इसमें तुम्हें क्या अच्छाई दिखाई देती है ? तो मंत्री ने कहा राजन आज जो भी हो रहा है हम उसके पीछे छुपे कारण को भले ही न जान पाएं लेकिन वक़्त के साथ आगे चलकर हर बात में छुपी अच्छाई दिखने लगती है। राजा उसकी इस बात से बिकुल कन्विंस नहीं हुआ मगर उस दुःख की घडी में उसने मंत्री से कोई और तर्क करना ठीक नहीं समझा।
ईश्वर के खेल
समय बीता और एक बार राजा अपने उसी मंत्री और लाव-लश्कर के साथ शिकार के लिए गया। उस ज़माने शिकार लीगल हुआ करता था, और राजा के लिए तो यूँ भी सब जायज़ होता है चाहे ज़माना कोई भी हो। शिकार खेलते हुए राजा की ऊँगली कट गई, सब अफ़सोस ज़ाहिर करने लगे लेकिन उस मंत्री ने कहा – “ईश्वर जो करता है अच्छा ही करता है”। ये सुनकर राजा को बहुत गुस्सा आया वो दर्द से कराह रहा था और वो मंत्री कह रहा था कि जो हुआ अच्छा हुआ। और गुस्से में उसने मंत्री को जेल में डालने का हुक्म दे दिया।
उसके कुछ दिनों बाद ही राजा फिर से शिकार पर गया और घने जंगलों में अपने साथियों से बिछड़ गया। भटकता हुआ वो काफी दूर निकल गया और अचानक उसे कुछ जंगली डाकुओं ने घेर लिया। डाकू उसे पकड़ कर अपने अड्डे पर ले गए और उसे नहला-धुला कर देवी के मंदिर के सामने बाँध दिया गया। वो उसकी बलि चढाने की तैयारी कर रहे थे। तभी उनका सरदार आया और जैसे ही राजा का सर क़लम होने वाला था सरदार की नज़र राजा के हाथों की तरफ़ गई, उसने चिल्ला कर तुरंत बलि रोकने का हुक्म दिया साथ ही अपने आदमियों को ख़ूब डांटा।
उसने ये कहकर राजा को छोड़ दिया कि किसी भी ऐसे व्यक्ति की बलि नहीं चढ़ाई जा सकती, जिसका अंग-भंग हो यानी जिसके शरीर पर कोई चोट लगी हो या जिसका कोई अंग कटा हुआ हो। ये चमत्कार हुआ उसी ऊँगली की वजह से जिसके कट जाने पर मंत्री ने कहा था कि “ईश्वर जो करता है अच्छा ही करता है”। ये बात जानकर राजा की जान में जान आई और वो तुरंत वहाँ से निकल गया। कुछ दूर जाने पर उसे उसके बिछड़े साथी भी मिल गए। मगर रास्ते भर उसे अपने मंत्री की बात याद आती रही कि “ईश्वर जो करता है अच्छा ही करता है” अब उसे अपने किए पर बहुत पछतावा होने लगा।
राजा की शंका
राजमहल पहुँचते ही उसने सबसे पहले अपने मंत्री को रिहा कर दिया और उससे माफ़ी मांगते हुए जंगल में अपने साथ हुए हादसे के बारे में बताया। मंत्री ने फिर कहा “ईश्वर जो करता है अच्छा ही करता है”। राजा इस बात को मान तो रहा था मगर उसके ज़हन में अभी भी कुछ सवाल थे। तो उसने मंत्री के सामने अपनी शंका ज़ाहिर की, उसने कहा कि चलो मेरी ऊँगली कटी इसमें तो अच्छाई हुई लेकिन तुम्हें जेल में रहना पड़ा उसमें क्या अच्छाई थी ?
मंत्री ने कहा राजन जब भी आप शिकार पर जाते हैं या कहीं भी बाहर जाते हैं तो मैं हमेशा साये की तरह आपके साथ रहता हूँ। अगर मैं जेल में नहीं होता तो यक़ीनन आपके साथ होता और वो डाकू मुझे भी आपके साथ पकड़ कर ले जाते। आप तो अपनी कटी हुई ऊँगली के कारण बच जाते मगर मैं तो बिलकुल स्वस्थ हूँ इसलिए वो मेरी बलि चढ़ाते हुए ज़रा भी नहीं झिझकते। और इस समय आप और मैं इस तरह बात नहीं कर रहे होते। इसीलिए मैं मानता हूँ कि “ईश्वर जो करता है अच्छा ही करता है”।
हर बुराई में कोई न कोई अच्छाई छुपी होती है
मानते हम सब भी हैं कि “ईश्वर जो करता है अच्छा ही करता है” मगर बुरे वक़्त में हमारा ये विश्वास अक्सर डगमगा जाता है। हम सोचने लगते हैं कि बुराई में अच्छाई कैसे हो सकती है… हमारे साथ जो बुरा हुआ उसमें क्या अच्छा था… ऐसे हज़ार प्रश्न, हज़ार शंकायें हमारे मन में पैदा होने लगती हैं और हमारा विश्वास डगमगा जाता है। लेकिन उस मंत्री का विश्वास नहीं डगमगाया अंत तक वो यही मानता रहा कि जो भी ईश्वर ने किया उसमें ज़रूर कोई न कोई अच्छाई होगी और वैसा ही हुआ भी। राजा को भी ये बात समझ आई मगर अनुभव करने के बाद।
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