चिक चॉकलेट

चिक चॉकलेट भारत के जैज़ लेजेंड थे, एक कमाल के ट्रम्पेट प्लेयर जिन्होंने हिंदी फ़िल्मों में म्यूज़िक असिस्टेंट और म्यूज़िक अरेंजर के तौर पर भी काम किया। होटल बैंड्स से लेकर म्यूज़िक डायरेक्टर तक का उनका सफ़र बहुत ही रोचक है। 

1950-1960 की फ़िल्मों में जब भी होटल या क्लब डांस सीक्वेंस दिखाई देता है तो उसमें पियानो, ड्रमर और ट्रम्पेट प्लेयर भी दिखाई देते हैं। ट्रम्पेट एक ऐसा वेस्टर्न इंस्ट्रूमेंट है जो गानों में एक अलग तरह का प्रभाव ले आता है। इस इंस्ट्रूमेंट को बजाने में माहिर थे एंटोनियो ज़ेवियर वाज़ जो फ़िल्मों में मशहूर हुए चिक चॉकलेट के नाम से।

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चिक चॉकलेट कहलाए ‘भारत के लुईस आर्मस्ट्रांग’ 

एक बेहतरीन ट्रम्पेट प्लेयर होने के साथ साथ चिक चॉकलेट को वॉयलिन, सेक्सोफ़ोन, पियानो बजाने में भी महारत हासिल थी। अगर आपने 2015 की फ़िल्म ‘बॉम्बे वेलवेट’ देखी हो तो उसमें मशहूर जैज़ म्यूजिशियन के तौर पर चिक चॉकलेट का ज़िक्र आता है। कहते हैं कि चिक चॉकलेट ने भारत में जैज़ की शुरुआत करने और उसे मशहूर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चिक चॉकलेट जैज़ लेजेंड लुईस आर्मस्ट्रांग से काफ़ी प्रभावित थे, और ये प्रभाव इतना ज़्यादा था कि उन्होंने जानकर अपनी शख़्सियत को उन्हीं की तरह ढाला।

चिक चॉकलेट

जैसे लुईस ट्रम्पेट बजाते समय एक घुटने के बल नीचे मुड़ते थे, चिक चॉकलेट ने भी लगभग उसी स्टाइल को कॉपी किया। जैसे वो सफ़ेद रुमाल से अपना पसीना पौंछते थे, वो भी करते थे। कहते हैं कि लाइव परफॉरमेंस से पहले जो सामान पैक होकर जाता था उसमें ४-५ सफ़ेद रुमाल ज़रुर होते थे। रोचक बात ये है कि चिक चॉकलेट काफी हद तक अपने म्यूजिकल हीरो जैसे ही दिखते भी थे। शायद ये उसी प्रभाव का नतीजा था कि उन्होंने जैज़ में वो मक़ाम हासिल किया कि उन्हें ‘बॉम्बे का लुईस आर्मस्ट्रांग’ कहा गया।

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लुईस आर्मस्ट्रांग को लेकर उनकी दीवानगी इस हद तक थी कि जब लुइस आर्मस्ट्रांग 1964 में मुंबई आए और जितने दिन यहाँ रहे वो उनका परफॉरमेंस देखने गए। उनकी सेक्रेटरी ने चिक चॉकलेट को आर्मस्ट्रांग का साइन किया हुआ फ़ोटो दिया और जिस दिन वो जाने वाले थे तो चिक चॉकलेट सुबह-सुबह अपने बच्चों के साथ होटल पहुँच गए मगर आर्मस्ट्रांग उस भीड़-भाड़ में सेलिब्रिटी की तरह अभिवादन करते हुए एयरपोर्ट चले गए। शायद चिक चॉकलेट की उनसे मुलाक़ात भी नहीं हो सकी मगर उस वक़्त वो सिर्फ़ एक फैन थे जो अपने आइडियल की झलक पाना चाहते थे और उसी में ख़ुश थे।

चिक चॉकलेट की माँ उन्हें मैकेनिक बनाना चाहती थीं

चिक चॉकलेट का जन्म गोवा के एल्डोना गाँव में हुआ और वहीं स्थानीय स्कूल से ही उन्होंने संगीत सीखा। उन का असल नाम था एंटोनियो ज़ेवियर वाज़ लेकिन फ़िल्मों में हमेशा उनका नाम चिक चॉकलेट ही आया इस नाम की पूरी कहानी तो नहीं पता लेकिन उनकी माँ उन्हें प्यार से चिको बुलाती थीं शायद वहीं से चिक चॉकलेट की प्रेरणा मिली हो।

चिक चॉकलेट

चिक चॉकलेट की माँ उन्हें मैकेनिक बनाना चाहती थीं, क्योंकि वो मैकेनिक के काम को ज़्यादा सम्मानजनक मानती थीं। पर उन्हें अपनी मंज़िल पता थी, इसीलिए माँ की ख़्वाहिश से अलग वो डूबे रहे संगीत की दुनिया में। उन्होंने म्यूज़िकल सफर की शुरुआत की “स्पॉटलाइट” नाम के जैज़ ग्रुप में ट्रम्पेट बजाने से। गोवा के ही एक और मशहूर म्यूजिशियन थे क्रिस पेरी जो कोंकणी पॉप म्यूज़िक को रिइन्वेन्ट करने की कोशिश कर रहे थे, उनके साथ भी चिक चॉकलेट ने ट्रम्पेट बजाया।

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पर 1945 में चिक चॉकलेट ने अपना एक बैंड बनाया “Chic and the Music Makers”। उस दौर में भी किसी जगह काम पाना आसान नहीं होता था, कॉम्पीटीशन तब भी काफ़ी ज़्यादा था। कहते हैं कि ग्रीन होटल के कॉन्ट्रैक्ट को हासिल करने के लिए उनके बैंड ने 12 शहरों के बैंड्स को हराया था। उस समय के एक अखबार में उनके बैंड को “बॉम्बे का टॉपफ़्लाइट बैंड” बताया गया था। उनकी इस जीत ने उनके लिए फ़िल्म इंडस्ट्री के रास्ते खोले।

चिक चॉकलेट ने मुख्य रूप से सी रामचंद्र के साथ काम किया

एक दिन जब उनका बैंड लाइव परफॉर्म कर रहा था तब वहाँ बैठे थे म्यूज़िक डायरेक्टर C. रामचंद्र। उस लाइव परफॉरमेंस को देखने के बाद वो musicians सी रामचंद्र की टीम का हिस्सा बन गए। वो दौर ऐसा था कि सिर्फ़ फ़िल्म म्यूजिक नहीं बदल रहा था, बल्कि कल्चर बदल रहा था, आर्थिक हालात बदल रहे थे। ऐसे में जहाँ टैलेंट को तलाश थी मौक़ों की वहीं इंडस्ट्री भी बाहें फैलाकर नए-नए म्यूजिशियंस का, टैलेंट का स्वागत कर रही थी।

चिक चॉकलेट

उस समय गोवा के बहुत से म्यूजिशियंस ने म्यूजिक अरेंजर्स का काम संभाला। अरेंजर्स के आने से शुद्ध क्लासिकल हिंदी फ़िल्म म्यूजिक में वेस्टर्न इंस्ट्रूमेंट्स और म्यूजिक का पदार्पण हुआ और फ़िल्म- संगीत में विविधता आई, ताज़गी आई। चिक चॉकलेट भी सी रामचंद्र के लिए बतौर अरेंजर काम करने लगे। जब आप सी रामचंद्र का संगीत सुनते हैं तो उसमें वेस्टर्न इंस्ट्रूमेंट्स का प्रभाव साफ़-साफ़ सुनाई देता है।

हिंदी फ़िल्म ‘अलबेला’ जिससे सी रामचंद्र को बहुत शोहरत मिली उसके गानों में गोवा के लोक संगीत का प्रभाव साफ़ तौर पर मिलता है। उस समय के गोवा से आये ज़्यादातर म्यूजिशियन होटल बैंड्स से फ़िल्मों में आये थे, पर उन्होंने लाइव परफॉरमेंस नहीं छोड़ा था। तो चिक चॉकलेट भी रात में लाइव शोज किया करते थे और दिन में फ़िल्मों के लिए म्यूजिक अरेंज करते थे।

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चिक चॉकलेट के स्टाइल के कारण होटल्स में भी उनका परफॉरमेंस बहुत पसंद किया जाता था। और शायद इसीलिए वो कई बार फ़िल्मों में भी स्क्रीन पर ट्रम्पेट बजाते हुए नज़र आये। ‘अलबेला’ फिल्म का एक गाना है “दीवाना परवाना” इस गाने में चिक चॉकलेट अपने पूरे बैंड के साथ दिखाई देते हैं। जिस तरह की ड्रेस उन्होंने इस गाने में पहनी है बाद में अपनी लाइव परफॉरमेंस में उन्होंने इसी को ड्रेस कोड बना लिया था।

चिक चॉकलेट

अलबेला के अलावा पतंगा, समाधि, पतंगा, सगाई और आशा जैसी कई फ़िल्मों में चिक चॉकलेट ने सी रामचंद्र के साथ सफलतापूर्वक काम किया। इन गीतों में आप उनका प्रभाव महसूस कर सकते हैं  – “शोला जो भड़के दिल मेरा धड़के’ – अलबेला, “गोरे-गोरे ओ बाँके छोरे” – समाधि, “मेरे पिया गए रंगून” – पतंगा, “ईना मीना डीका” – आशा

चिक चॉकलेट के लिए संगीत एक जूनून था

सी रामचंद्र के अलावा चिक चॉकलेट ने कई संगीतकारों के साथ बतौर म्यूजिक असिस्टेंट और म्यूजिक अरेंजर काम किया इनमें मदन मोहन जैसे संगीतकार भी शामिल हैं। जिनके साथ उन्होंने चाचा ज़िंदाबाद, भाई-भाई, गेटवे ऑफ़ इंडिया जैसी कई फ़िल्मों में ट्रम्पेट बजाया और म्यूज़िक अरेंज किया। अपने छोटे से करियर में उन्होंने बहुत से गाने बनाये, और अपने समय में काफ़ी मशहूर रहे। फ़िल्मों में उनका सफ़र बेहद शानदार रहा।

चिक चॉकलेट ने 1951 की नादान जिसमें मधुबाला और देवानंद मुख्य भूमिकाओं में थे, 1952 की रँगीली, 1956 की कर भला में संगीत भी दिया। उनकी आख़िरी रिलीज़ फिल्म थी चेतन आनंद की “आख़िरी ख़त” इस के एक गाने में भी वो स्क्रीन पर नज़र आए, इसमें उनके कुछ क्लोज़ अप्स भी हैं। आख़िरी ख़त के गीत “रुत जवां-जवां” में गिटार के साथ स्क्रीन पर भूपिंदर सिंह हैं और उनके पीछे ट्रम्पेट बजाते हुए दिखाई देते हैं चिक चॉकलेट।

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एक वक़्त था जब चिक चॉकलेट के बाक़ायदा 78 RPM रिकॉर्ड भी निकले। जिनके बारे में कहा जाता है कि वो भारत में रिकॉर्ड की गईं पहली मूल जैज़ ट्यून्स थीं। संगीत उनके लिए काम नहीं बल्कि पैशन था। संगीत के प्रति  उनकी दीवानगी का आलम ये था कि वो अपनी पत्नी मार्था और पांच बच्चों के साथ कोलाबा मुंबई के एक छोटे से अपार्टमेंट में रहते थे, जिसमें एक बेडरूम था, पर उनके घर में पिआनो दो-दो थे। कहा जाता है कि चिक चॉकलेट की शादी से पहले एक प्रेमिका थीं, और उन दोनों का एक बेटा भी था।

चिक चॉकलेट  को शराब का बेहद शौक़ था और कहा जाता है कि इसी शौक़ ने कम उम्र में उनकी जान ले ली। 1967 में चिक चॉकलेट का ट्रम्पेट हमेशा के लिए खामोश हो गया। उनका अंतिम संस्कार गोवा में किया गया जहाँ अकॉर्डियन प्लेयर गुडी सर्वई और ड्रमर फ्रांसिस वाज़ भी शामिल थे। उनके सेल्मा ट्रम्पेट को उनके ताबूत में उनके साथ रखा गया था। उनकी मौत के एक साल बाद उनकी याद में एक LP रिकॉर्ड जारी किया गया “A Remembrance” जिसमें आख़िरी ख़त के बैकग्राउंड म्यूज़िक के चुनिंदा  वेस्टर्न पीसिज़ को शामिल किया गया था।

 

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