बर्जर लॉर्ड (Burjor Lord ) संगीत जगत का एक ऐसा जाना माना नाम हैं जो भारत में ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी बहुत मशहूर हैं। उन्होंने अपने छोटे से करियर में क़रीब १२००० गाने रिकॉर्ड किये।
लॉर्ड परिवार परकशन इंस्ट्रूमेंट्लिस्ट के तौर पर जाना जाता है। उनके पिता, कावस लॉर्ड तो तब से फ़िल्म इंडस्ट्री का हिस्सा थे जब पहली बोलती फ़िल्म आलमआरा बनी थी और भारतीय फ़िल्म संगीत में परकशन इंस्ट्रूमेंट्स लाने का श्रेय भी उन्हीं को दिया जाता है। भाई केर्सी लॉर्ड भारतीय फ़िल्म संगीत में डिजिटल इक्विपमेंट्स लेकर आए।
बर्जर लॉर्ड को क़िस्मत संगीत की दुनिया में ले आई
बर्जर लॉर्ड जो बुजी लॉर्ड के नाम से मशहूर हैं उन का जन्म 19 जुलाई 1941 को मुंबई में हुआ। और क्योंकि उनके पिता और भाई पहले से ही मुंबई फ़िल्म इंडस्ट्री से जुड़े हुए थे और घर में भी हमेशा संगीत की ही बातें होती थीं। ऐसे माहौल में आमतौर पर बच्चे बड़ों के नक़्शे-क़दम पर ही चलते हैं पर बर्जर लॉर्ड के साथ ऐसा नहीं था। वो मर्चेंट नेवी में जाना चाहते थे, दुनिया भर में घूमना चाहते थे। मगर क़िस्मत ऐसा नहीं चाहती थी में तो था संगीत से जुड़ना इसीलिए वैसे ही हालात बनते चले गए।
एक तो उनका मैट्रिक का रिजल्ट उतना अच्छा नहीं रहा और फिर उन्हें चश्मा भी लग गया। अब बर्जर लॉर्ड के पास सिर्फ़ एक ही विकल्प था संगीत, क्योंकि बचपन से वो भी कई इंस्ट्रूमेंट्स प्ले कर रहे थे। 7 साल की उम्र से ही उन्होंने ऑर्गन, पियानो, अकॉर्डियन जैसे इंस्ट्रूमेंट्स सीखना शुरू कर दिया था। फिर एक बार जब म्यूजिक की राह पकड़ी तो उसे बहुत गंभीरता से लिया, उस दौर में वो सुबह से शाम तक कड़ा रियाज़ करते थे। वैसे इसके पीछे उनके पिता की सख़्ती भी थी उन्होंने ज़ोर देकर ये सिखाया कि ड्रमस्टिक्स पर पकड़ मज़बूत होनी चाहिए वर्ना तेज़ी से बजाते हुए वो हाथ से छूट भी सकती थीं।
उनकी इसी कड़ी प्रैक्टिस ने बर्जर लॉर्ड को एक मशहूर और टैलंटेड ड्रमर बनाया। और जैसा कि एक ड्रमर को अपने दोनों हाथों और पैरों का उपयोग करने की ज़रुरत होती है, इसलिए उनके पिता जोर देते थे वो अपने दोनों हाथों का एक समान उपयोग करें। इसीलिए वो दोनों भाई (केर्सी लॉर्ड और बर्जर लॉर्ड) अपने जूते के फीते बांधने, शर्ट के बटन लगाने, दरवाजे, ताला खोलने और बंद करने जैसे काम उलटे हाथ से करते थे ताकि दोनों हाथ काम करने के आदी हो जाएँ।
बर्जर लॉर्ड क़रीब 25 सालों तक मुंबई फ़िल्म संगीत में बतौर परकशनिस्ट छाये रहे
फ़िल्मों में बर्जर लॉर्ड की एंट्री भी अपने भाई केर्सी लॉर्ड की तरह और उन्हीं की वजह से हुई। जब एक बार कावस लार्ड बीमार पड़े थे तो उनकी जगह केर्सी लॉर्ड रिकॉर्डिंग पर गए थे इसी तरह जब एक बार केर्सी लॉर्ड बीमार हुए तो उस दिन शंकर जयकिशन की रिकॉर्डिंग होनी थी। तब दत्ताराम ने बुजी लॉर्ड का नाम सुझाया और इस तरह वो अपनी पहली फ़िल्म रिकॉर्डिंग पर गए।
बर्जर लॉर्ड ने अपना पहला फुल फ्लेजेड फ़िल्म स्कोर इक़बाल क़ुरेशी के लिए प्ले किया था लेकिन जहाँ तक इंस्ट्रूमेंट्स प्ले करने की बात है तो उन्होंने हुस्नलाल भगतराम, नौशाद, ख़ैयाम, एस डी बर्मन, शंकर जयकिशन से लेकर उषा खन्ना, ओपी नैय्यर, रोशन, मदन मोहन, जयदेव, रवि, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, कल्याणजी-आनंदजी, आर डी बर्मन, सपन-जगमोहन, अविनाश व्यास, सलिल चौधरी, सरदार मलिक और उनके बेटे अनु मलिक तक लगभग सभी के लिए इंस्ट्रूमेंट्स बजाए। पर बहुत सी बारीक़ियाँ उन्होंने सीखीं संगीतकार O P नैयर से।
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बर्जर लॉर्ड ने 1958 में 17 साल की उम्र में शुरु हुए अपने लगभग 30 सालों के करियर में ड्रम, कांगो, बोंगो, कैस्टनेट, घुंघरू, चीनी लकड़ी के ब्लॉक, वाइब्राफोन, जाइलोफोन, ग्लॉकेंसपील के साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक कीबोर्ड, ऑक्टापैड और रोलैंड ड्रम मशीनें भी बेहद कुशलता से बजाईं। भारतीय ताल का ज्ञान प्राप्त करने के लिए बर्जर लॉर्ड ने दिल्ली घराने के इनाम खान साहब से तबला और किशन महाराज से नगाड़ा सीखा। भारतीय रागों के लिए बाबू सिंह से हारमोनियम सीखा।
भारतीय तालों के इसी गहन अध्धयन के कारण उन्होंने जैज़ और लेटिन इंस्ट्रूमेंट्स के साथ मैलेट इंस्ट्रूमेंट्स को मिलाकर इंडियन स्टाइल की मेलोडीज के साथ अपनी एक अलग शैली बनाई। जिसकी वजह से बर्जर लॉर्ड क़रीब 25 सालों तक मुंबई फ़िल्म संगीत में बतौर परकशनिस्ट छाये रहे। बर्जर लॉर्ड का कहना है कि भारतीय गानों में सिंगर ज़्यादा महत्वपूर्ण होता है इसलिए ड्रम बजाते हुए वो हमेशा ध्यान रखते थे कि वो ख़ाली स्पेस में इंस्ट्रूमेंट प्ले करें ताकि सिंगर डिस्टर्ब न हो।
ये कहने की बात नहीं है कि कई संगीतकारों से सीखने, कइयों को admire करने के बावजूद बर्जर लॉर्ड के भी पसंदीदा रहे RD बर्मन। हाँलाकि अपने शुरूआती दिनों में पंचम की रिकॉर्डिंग से पहली रात को वो चैन से सो नहीं पाते थे, ये सोचकर कि कल न जाने क्या चुनौती उनके सामने रख दी जाएगी, क्योंकि RD बर्मन ऐसे ही थे, क्रिएटिव और स्पॉन्टेनियस और वो अपने म्युज़ीशियन्स को भी हमेशा प्रयोग करने की आज़ादी देते थे।
घुँघरु सिंक्रनाइज़ेशन में भी वो माहिर थे
आमतौर पर जब हम कोई क्लासिकल डांस सीक्वेंस देखते हैं, जिसमें घुँघरू का प्रयोग किया गया हो तो हमें लगता है कि घुँघरू की वो आवाज़ नर्तकी/नर्तक के पैरों से ही आ रही है। लेकिन बाक़ी सभी इंस्ट्रूमेंट्स के अलावा घुँघरु की आवाज़ भी अलग से डाली जाती है। इसमें माहिर था लॉर्ड परिवार, क्लासिकल डाँसर गोपी कृष्ण हों या डांस डायरेक्टर हीरालाल, सोहनलाल, सरोज ख़ान घुँघरु के मामले में सबकी पहली पसंद होता था लॉर्ड परिवार।
क्योंकि वो डांस मूवमेंट को देखकर नोटेशन लिखते थे और उसके हिसाब से घुँघरु बजाते थे जो कि डांस मूवमेंट के साथ पूरी तरह मेल खाता था। इसीलिए जब वैजन्तीमाला ने डेढ़ घंटे का इंडियन बेले बनाया जिसमें संगीत पं रविशंकर ने दिया था तो उसमें घुँघरु सिंक्रनाइज़ेशन की ज़िम्मेदारी बर्जर लॉर्ड को सौंपी गई। इसके अलावा भी बर्जर लॉर्ड ने कई मशहूर फ़िल्मी गानों में घुँघरु बजाये ।
- नदी नारे ना जाओ
- दिल चीज़ क्या है
- पिया बावरी
- मोसे छल किए जाए
- कजरा मोहब्बत वाला
रामसे ब्रदर्स उन्हें बैकग्राउंड म्यूजिक के लिए बुलाया करते थे क्योंकि उनकी फिल्में भूतिया हुआ करती थीं तो उनमें बर्जर लॉर्ड ड्रम से कुछ डरवाने इफ़ेक्ट देते थे। बुजी लार्ड ने कुछ कॉम्बिनेशंस से एक बहुत अलग सा सीक्वेंस बना कर एक म्यूजिक पीस क्रिएट किया था जिसे बाद में बहुत सी फ़िल्मों में सस्पेंसफुल म्यूजिक देने में इस्तेमाल किया गया। उस म्यूजिक पीस को बर्जर लॉर्ड के इन्वेंशन के तौर पर जाना जाता है।
burjor lord – Gene Krupa Of India
फ़िल्मों के अलावा बर्जर लॉर्ड ने बहुत से फॉरेन टूर्स भी किये। उनका पहला टूर था वेस्टइंडीज़ का जो 1966 में आयोजित किया गया था। 45 दिन के उस टूर के बारे में पूरी चर्चा के दौरान आयोजक ने उन्हें 50 रुपए ‘पर-शो’ ऑफर किये। बुजी लॉर्ड ने उन्हें समझाने की कोशिश की कि वो अपने व्यस्त कार्यक्रम में से 45 दिन उन्हें दे रहे हैं जो कि बिलकुल आसान नहीं है इसलिए कम से कम 100 रुपए ‘पर-शो’ तो होना ही चाहिए।
आख़िरकार ये नेगोसिएशन 75 रुपए पर आकर डन हुआ लेकिन साथ में आयोजक ने जो कहा उसे सुनकर उन्हें बहुत बुरा लगा। उसने कहा कि ‘तुम मुंबई में या भारत में लोकप्रिय हो सकते हो पर वेस्टइंडीज में कोई तुम्हें नहीं जानता, इसलिए तुम्हारे आने या न आने से शो पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता’। उसी पल बुजी लार्ड ने मन ही मन ये तय किया कि आज भले ही वेस्ट इंडीज़ में कोई उन्हें नहीं जानता मगर जब वो वापस आएंगे तो वेस्टइंडीज में सब उन्हें जानेंगे।
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फिर वही हुआ, पहले ही दिन के परफॉरमेंस के बाद वहाँ के अख़बार उनकी तारीफों से अटे पड़े थे, फर्स्ट पेज पर उनकी फ़ोटो के साथ आर्टिकल छपा था जिस में बर्जर लॉर्ड को भारत का ‘जीन क्रुपा’ कहकर उनकी तारीफ़ की गई। इतना ही नहीं परफॉरमेंस के बाद, उनकी बॉडी को चेक किया गया यह देखने के लिए कि कहीं उन्होंने ड्रम बजाने के लिए किसी इलेक्ट्रिक गैजेट का उपयोग तो नहीं किया है, क्योंकि उनके हाथ बहुत तेजी से चल रहे थे।
ये कमाल यूँ ही नहीं हुआ था बल्कि उस बातचीत के बाद से शो शुरु होने तक 2-3 महीने तक उन्होंने ख़ुद को ड्रम प्रैक्टिस में डूबा दिया था। जब भी उन्हें थोड़ा वक़्त मिलता वो ड्रम की प्रैक्टिस करते, अलग अलग तरह से हाथों को घुमाकर कभी-कभी तो तकिए को ही ड्रम बना लेते। इसी का नतीजा था कि मोहम्मद रफ़ी जैसे सिंगर्स के साथ साथ उनका नाम भी वेस्टइंडीज़ के संगीत प्रेमियों में बेहद लोकप्रिय हो गया था।
इस टूर के बाद 1967 में उन्होंने सी रामचंद्र के साथ ईस्ट अफ़्रीका का शो organize किया। 1969 और 1972 में वो फिर से वेस्टइंडीज़ के टूर पर गए, इस बार किशोर कुमार के साथ। किशोर दा के साथ उन्होंने कई टूर किये जिनमें नैरोबी, केन्या के अलावा UK, यूरोप, USA, कनाडा, और त्रिनिदाद के शोज भी शामिल हैं। 1981 में उन्होंने Memories of Mukesh and Md Rafi नाम से एक शो का आयोजन किया।
बर्जर लॉर्ड टॉप पर रहते हुए फ़िल्मों से रिटायर हो गए
1988 में जब वो अपने करियर में टॉप पर थे तभी बर्जर लॉर्ड ने फ़िल्मी दुनिया छोड़ दी और मुंबई से दूर गुजरात के नारगोल में एक बहुत ही नॉन-क्रिएटिव सा बिज़नेस शुरू किया, रियल एस्टेट का बिज़नेस। उनका कहना है कि एक तो वो उस समय फ़िल्म संगीत जगत की पॉलिटिक्स से तंग आ चुके थे, दूसरा उसी समय डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की एंट्री हुई थी, उन्हें लगता था जिन चीज़ों को सीखने में उन्होंने बरसों बिताए आज वो एक बटन दबाकर हो रही हैं, ये बात उन्हें पसंद नहीं आ रही थी।
उन्होंने ये भी कहा कि वो मुंबई के शोर और प्रदूषण से तंग आ गए थे, वो एक शांत जीवन जीना चाहते थे। और उन्होंने सुनील गावस्कर के एक बयान से बहुत प्रभावित होने की बात भी कही जिसमें उन्होंने कहा था कि खेल और रचनात्मक क्षेत्रों में, किसी को ऐसे सवाल पूछने से पहले रिटायर हो जाना चाहिए कि ‘आप कब रिटायर हो रहे हैं?’ क्योंकि तब लोग आपसे ये पूछेंगे कि ‘आप क्यों रिटायर हो रहे हैं? बुजी लॉर्ड का मानना है कि उन्होंने सही समय पर सही निर्णय लिया।
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2009 में स्वर अलाप संस्था ने बुजी लॉर्ड को लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से नवाज़ा। 2014 में उन्हें OP नैयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड दिया गया। 2015 में मिर्ची म्यूजिक अवॉर्ड के अलावा बहुत से अवॉर्ड्स से बुजी लार्ड को सम्मानित किया जा चुका है इनमें सबसे प्रतिष्ठित दादा साहेब फालके फ़िल्म फाउंडेशन अवॉर्ड भी शामिल है जो उन्हें 2019 में दिया गया। बेहद कम बोलने वाले बुजी यानी बर्जर लॉर्ड आजकल अपनी रिटारमेंट लाइफ को एन्जॉय कर रहे हैं।
कहा जाता है कि 1947 से 1987 तक के सालों में जो गाने हिंदी फ़िल्मों में रिकॉर्ड किए गए उनमें हर तीसरे गाने में लॉर्ड परिवार के किसी न किसी सदस्य ने कोई न कोई इंस्ट्रूमेंट ज़रुर प्ले किया है। पर क्या आप उनके बारे में पहले से जानते थे ?