हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय

हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय के चेहरे में संजीदगी के साथ-साथ एक शरारत भी झलकती थी और एक पागलपन भी। वो एक ऐसी हस्ती थे, जिनके व्यक्तित्व के कई पहलू थे और हर रंग में उन्हें महारत हासिल थी। एक प्रसिद्ध कवि, नाटककार, गायक, गीतकार, चित्रकार, संसद सदस्य और अभिनेता थे। हिंदी में बच्चों के लिए नर्सरी rhymes लिखने की शुरुआत उन्होंने ही की थी, उनकी लिखी कुछ कवितायें फ़िल्मों में भी इस्तेमाल की गईं। आज लोगों को सिर्फ उस बुज़ुर्ग की छवि याद है जिसने फ़िल्मों में छोटी-छोटी भूमिकाएँ निभाईं। लेकिन हास्य भूमिकाओं में दिखाई देने वाले इस अभिनेता का साहित्य में एक गंभीर करियर था।

हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय

हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय की पारिवारिक पृष्ठभूमि

हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय का जन्म 2 अप्रैल 1898 को को हैदराबाद में हुआ। उनके पिता देश के पहले D Sc थे यानी डॉक्ट्रेट ऑफ़ साइंस होने के साथ-साथ फिलॉसफर, लेखक और शिक्षाविद (EDUCATIONIST) भी थे, उन्होंने ही हैदराबाद कॉलेज की नींव रखी। उनकी माँ कवयित्री और गायिका थीं। उनकी तीन बहनें थीं और एक भाई वीरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय।

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक सरोजिनी नायडू जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष बनी। वो हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय की बड़ी बहन थीं और एक उच्च स्तर की कवयित्री भी थीं। उनकी एक और बहन मृणाली सर गंगाराम गर्ल्स हाई स्कूल की प्रिंसिपल थीं, जो अब लाहौर कॉलेज फॉर वीमेन के नाम से जाना जाता है। उनकी तीसरी बहन सुहासिनी पहली भारतीय महिला कम्युनिस्टों में से एक थीं। इस तरह देखा जाए तो उन्हें बचपन से ही एक समृद्ध माहौल मिला जिसमें कला-संस्कृति, साहित्य, देशभक्ति और विज्ञान की हवा बहती थी। इस माहौल ने उनके व्यक्तित्व को कुछ इस तरह निखारा कि दुनिया भर में उनके गुणों को सराहा गया।

हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय

हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय की साहित्यिक यात्रा

कामयाब कवि और नाटककार

हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय ने बचपन से ही कविताएं लिखना शुरू कर दिया था। 1918 में उनकी अंग्रेज़ी की कविताओं का पहला संग्रह छपा जिसका नाम था – The Feast of Youth, इसकी बहुत सराहना हुई। उनकी रूचि अभिनय में भी थी, वो नाटक भी लिखते थे। वो लगभग 20 साल के रहे होंगे जब उनका नाटक ‘अबू हसन’ दर्शकों में एक क्रेज़ बन गया था। इस ज़बरदस्त हिट नाटक के शोज़ अलग-अलग शहरों में हुए, मुंबई में तो भीड़ उमड़ पड़ी थी। कहा जाता है कि मद्रास में जब उसका शो रखा गया तो दर्शकों की सुविधा के लिए उस टाइम पर स्पेशल ट्रैन चलाई गई थीं।

उनके नाटक और कविताएँ देश में प्रकाशित हो चुके थे फिर उन्होंने अपनी कविताएँ कैंब्रिज भेजीं क्योंकि वो वहाँ रिसर्च स्कॉलर के तौर पर दाख़िला लेना चाहते थे और उनकी ये तमन्ना पूरी भी हुई। उन्होंने “विलियम ब्लेक एंड द सूफ़ीज़ पर अपनी रिसर्च शुरू की। पढाई के दौरान उनकी इंग्लिश पोयम्स वहाँ की इंडियन मैगज़ीन्स में छपने लगीं थी। लंदन में ‘फाइव प्लेज़’ नाम से एक पब्लिकेशन आया जिसमें उनके लेखन को बहुत सराहा गया। उनकी तुलना पोलिश ब्रिटिश लेखक जोसेफ़ कोनराड से की गई। इंग्लैंड के साहित्यिक हलकों में उन्होंने काफ़ी नाम कमाया।

हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय एक कामयाब नाटककार थे। उनके लिखे नाटक “तुकाराम” का मंचन लंदन के लिटल थिएटर में किया गया जो बहुत ही मशहूर हुआ इसमें उन्होंने मराठी में लाइव गाना गाया था। नाटकों के स्तर पर उन्होंने कई ऐसे प्रयोग किए जो पहले नहीं किये गए थे। पर उसी दौरान भारत में सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरुआत हुई और वो भारत लौट आए। हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय एक बेहतरीन गायक और संगीतकार भी थे। इप्टा के समय उनके गाये कुछ गाने बहुत मशहूर हुए जिन्हें बाद में दूसरे मशहूर गायकों ने भी गाया।

हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय

हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय को साहित्य जगत में बहुत मान-सम्मान प्राप्त हुआ, उनकी कविताओं की तुलना अंग्रेजी के बड़े बड़े कवियों से की गई। उनकी कविताओं में दर्शन और अध्यात्म का पुट भी मिलता है, इसकी वजह ये भी हो सकती है कि उन्होंने काफ़ी समय श्री अरबिंदो आश्रम में बिताया। कहते हैं कि वो अपनी कविताओं को श्री अरबिंदो के पास भेजा करते थे और वो भी उन पर अपनी राय देते थे। उनकी कविताओं के बड़े प्रशंसकों में ख़ुद गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर थे। उन्होंने उनकी एक कविता The Flute का बांग्ला में अनुवाद भी किया था।

“I am kneeling at the feet of the Supreme, ‬ ‪I have ceased to be the dreamer‬ ‪And have learned to be the dream.”‬- Harindranath Chattopadhyay

बच्चों के लिए लेखन

बच्चों के लिए हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय ने काफी कुछ लिखा। जब एक इंटरव्यू में उनसे इस बारे में पूछा गया तो उनका कहना था- कि मेरे अंदर जो बच्चा है वो हमेशा ज़िंदा रहता है और शायद यही वजह थी को वो बच्चों के जैसा सोच पाते थे और उनके इंटरेस्ट की कविताएँ लिख पाते थे। और शायद यही वो वजह भी थी की उनकी शख़्सियत में हमेशा एक ज़िंदादिली नज़र आती थी। परदे पर भी और असल ज़िंदगी में भी। और जैसा मैंने पहले ज़िक्र किया था कि हिंदी में बच्चों के लिए नर्सरी rhymes लिखने की शुरुआत हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय ने ही की थी। उनकी एक कविता “ताती ताती तोता” उस समय बहुत ही मशहूर हुई थी।

1 – ताती ताती तोता, पिंजरे में सोता

पंख जो हरे थे, उड़न से भरे थे

हो गये हैं पीले, पड़ गये हैं ढीले

ताती ताती तोता।

ताती ताती तोता, पिंजरो में रोता

झांखते हैं प्यारे, नन्हें नन्हें तारे

कहते है तोता, काहे को तू रोता

अंधकार छोड़ दे, पिंजरो को तोड़ दे

उड़ते उड़ते सारी रात, आके मिल जा अपने साथ

छोटे भाई तोता प्यारा, तू भी बन जा एक सितारा

 

2 – तेरी मेरी आज लड़ाई, आसमान तक हम दो भाई,

अपने अपने धागे पर आज जड़ेंगे और लड़ेंगे

हार जीत तो है निर्भर अपने अपने भागों पर

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हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय का फ़िल्मी सफ़र

हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय की फिल्मों में अभिनय की शुरुआत हुई गुरुदत्त की 1962 में आई फ़िल्म “साहिब बीबी और ग़ुलाम” से। जिसमें उन्होंने घड़ी बाबू का किरदार निभाया था जो हवेली की सभी घड़ियों में चाबी भरता है और हीरो को हवेलियों से दूर रहने की सलाह देता है। उसी साल आई देवानंद नूतन के अभिनय से सजी “तेरे घर के सामने”, जिन्होंने ये फ़िल्म देखी है उन्हें याद होगा कि फ़िल्म में हीरो-हेरोइन के पिता की भूमिका बहुत दिलचस्प और अहम् है। इस फ़िल्म में नूतन के पिता सेठ करम चंद की भूमिका उन्होंने निभाई थी और देवानंद के पिता लाला जगन्नाथ के रोल में थे ओम प्रकाश। जब-जब दोनों स्क्रीन पर आते है फ़िल्म बेहद मज़ेदार हो जाती है।

हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय ने 60-70 के दशक की बहुत सी फिल्मों में बेहतरीन कॉमिक रोल किये, छोटी-छोटी मगर रोचक भूमिकाएँ निभाईं। इनमें “साँझ और सवेरा” “तीन देवियाँ”, “प्यार मोहब्बत”, “पिंजरे के पंछी”, “रात और दिन”, “नौनिहाल”, “अभिलाषा” जैसी कई फिल्में हैं। पर उनके करियर की दो हिंदी फिल्में बहुत महत्वपूर्ण कही जा सकती हैं। एक तो बावर्ची जिसमें उन्होंने एक ऐसे बुजुर्ग की भूमिका निभाई थी जो अपने संयुक्त परिवार को जोड़े रखने की हर संभव कोशिश करता है।

हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय

उन की दूसरी महत्वपूर्ण फ़िल्म में हम नाम ले सकते हैं-“आशीर्वाद” का। इस फ़िल्म में उन्होंने ग़रीब बैजू ढोलकिया की भूमिका निभाई थी जो लोकगीत-संगीत में निपुण है और इसी वजह से ज़मींदार से उसकी दोस्ती हो जाती है। इस भूमिका में गीत-संगीत से उनका जुड़ाव और महारत साफ़-साफ़ नज़र आई। परदे पर जब -जब अशोक कुमार और हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय की जुगलबंदी के दृश्य आते तो एक अलग ही समां बंध जाता। ‘आशीर्वाद’ फ़िल्म में उन्होंने एक गाना भी गाया था “कानों की एक नगरी देखी” ये एक तरह का प्रतियोगिता वाला गाना था जिसमें दो पक्ष एक दूसरे से पहेली पूछते हैं। ‘आशीर्वाद’ फ़िल्म का ये गाना तो आपने सुना होगा “रेलगाड़ी छुक-छुक छुक-छुक बीच वाले स्टेशन बोली रुक-रुक रुक-रुक” ये उन्हीं की लिखी हिंदी कविता है, जिसे शुरूआती दौर में वो आल इंडिया रेडियो पर अक्सर गाया करते थे। फ़िल्म में इसे आवाज़ दी थी अशोक कुमार ने और उन्हीं पर ये गाना फ़िल्माया गाया था। इसे हिंदी फ़िल्मों का पहला रैप सांग माना जाता है। ‘आशीर्वाद’ के सभी गीत उन्होंने ही लिखे थे। ‘जूली’ फ़िल्म का गाना “My Heart Is Beating” भी उन्हीं की क़लम से निकला है।

हिंदी के अलावा हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय ने सत्यजीत रे की तीन बांगला फिल्में भी की – गूपी ज्ञाने बाघा ब्याने (Goopi Gyne Bagha Byne) में जादूगर बोर्फी, सीमाबद्ध में सर बारेन रॉय और सोनार केला में अंकल सिध्दू। इन तीनों ही फिल्मों में उनके किरदार किंवदंती बन गए। हिंदी फ़िल्मों में वो लगभग आखिर तक अभिनय करते रहे। बाद के दौर की उनकी फ़िल्मों के नाम लें तो उनमें महबूबा, अँखियों के झरोखों से, घुंघरु की आवाज़, चलती का नाम ज़िंदगी और 1988 में आई उनकी आख़िरी प्रदर्शित फ़िल्म “मालामाल”। पर 1984 में वो एक टीवी सीरियल में नज़र आए।

हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय

निजी जीवन

हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय ने अपनी युवावस्था में एक ऐसा क़दम उठाया जो उस समय के लिहाज़ से बेहद क्रन्तिकारी था। उन्होंने एक विधवा कमला देवी से शादी की। कमला देवी एक सिविल सर्वेंट की बेटी थीं जिनकी शादी 15 साल की उम्र में हुई थी और कम उम्र में ही विधवा हो गई थीं। जब बंगाली हरिंद्रनाथ और दक्षिण भारतीय कमलादेवी एक दूसरे से मिले तो दोनों ने शादी का फैसला कर लिया। शादी के बाद ही हरिंद्रनाथ अपनी पत्नी के साथ इंग्लैंड गए थे। उनके दो बच्चे हुए, पर बाद में उनका तलाक़ हो गया और ये देश का पहला लीगल सेपरेशन था जो हरिंद्रनाथ और उनकी पत्नी की आपसी सहमति से हुआ था।

राजनीतिक यात्रा

हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय भारत की पहली लोकसभा के चुने हुए प्रतिनिधि थे। उन्होंने विजयवाड़ा से निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ा और जीते। वो 1952 से 1957 तक लोकसभा के सदस्य रहे पर राजनीति उन्हें ज़्यादा देर तक बाँध कर नहीं रख सकी।1973 में हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।

मृत्यु

23 जून 1990 को दिल का दौरा पड़ने से इतनी खूबियों के मालिक हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय इस दुनिया को अलविदा कह गए। उनके जैसे सर्वगुण संपन्न लोग रोज़-रोज़ पैदा नहीं होते और न ही आसानी से भुलाए जा सकते हैं। आज भले ही हम उनकी ख़ूबियों से अनजान हो पर कला और साहित्य और अभिनय के क्षेत्र में योगदान अद्भुत और अविस्मरणीय है।