नजमुल हसन

नजमुल हसन उस अभिनेता का नाम है जिन्हें फ़िल्मों में लेकर आए बॉम्बे टॉकीज़ के फाउंडर हिमांशु राय। वो लखनऊ में लॉ पढ़ रहे थे लेकिन जब बॉम्बे आये तो उनकी चार्मिंग पर्सनेलिटी, ख़ूबसूरत चेहरे और लम्बे क़द ने हिमांशु राय का ध्यान खींचा और उन्होंने नजमुल हसन को अभिनय करने के लिए राज़ी कर लिया। साथ ही जिस स्टूडियो बॉम्बे टॉकीज़ की नींव उन्होंने रखी थी उस की कई फ़िल्मों के लिए साइन कर लिया। नजमुल हसन की क़ानून की पढ़ाई वहीं छूट गई।

नजमुल हसन 

नजमुल हसन देविका रानी के साथ बम्बई छोड़कर भाग गए थे

बॉम्बे टॉकीज़ की पहली फ़िल्म थी “जवानी की हवा” जिसमें हीरो थे नजमुल हसन और हेरोइन थीं देविका रानी। ये वो दौर था जब हिमांशु राय स्टूडियो को खड़ा करने में लगे थे जिसमें देविका रानी का भी बहुत बड़ा योगदान था उन्होंने अपना सब कुछ हिमांशु राय को दे दिया था पर ऐसा कहा जाता है कि उनका व्यवहार देविका रानी के साथ बेहद ख़राब था। ऐसे में फ़िल्म की शूटिंग के दौरान देविका रानी नजमुल हसन के क़रीब आती चली गईं। 

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फ़िल्म “जवानी की हवा” की कहानी में हेरोइन अपने बचपन के प्यार के साथ भाग जाती है और फिर ये सिर्फ़ फ़िल्म की कहानी नहीं रही हक़ीक़त बन गई। पहली फ़िल्म के बाद हिमांशु राय ने इसी जोड़ी को साथ लेकर शुरु की “जीवन नैया” लेकिन फ़िल्म की शूटिंग के बीच में ही देविका रानी और नजमुल हसन बॉम्बे से भाग कर कलकत्ता चले गए। शशधर मुखर्जी जो हिमांशु राय के सहायक भी थे और स्टूडियो के वेल-विशर भी, उन्होंने बिना हिमांशु राय को बताय अपनी तरफ से दोनों को तलाश करना शुरु कर दिया और जैसे ही पता चला दोनों कलकत्ता के ग्रैंड होटल में हैं वो कलकत्ता पहुँच गए।

नजमुल हसन

 

ये वो दौर था जब एक अकेली स्त्री का कोई भविष्य नहीं समझा जाता था। समाज एक ऐसी स्त्री को कभी भी इज़्ज़त नहीं देता जो अपने पति के होते हुए किसी और मर्द के साथ रह रही हो, उस ज़माने में तलाक़ तो हुआ नहीं करते थे इसलिए वो दोनों शादी भी नहीं कर सकते थे, करते भी तो उस शादी को मान्यता नहीं मिलती। क्योंकि दोनों के धर्म भी अलग थे।

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देविका रानी वापस आने के लिए राज़ी ही नहीं थीं पर जब दुनिया की यही ऊँच-नीच शशधर मुख़र्जी ने देविका रानी को समझाई और उन्हें वापस आने के लिए मनाया। दरअस्ल देविका रानी शशधर मुखर्जी को भाई जैसा मानती थीं, इसीलिए उनकी बातें सुनकर देविका रानी को हकीकत का एहसास हुआ और वो अपनी शर्तों पर वापस बॉम्बे आ गईं। और ये कहना बेमानी होगा कि इतनी बड़ी घटना के बाद नजमुल हसन को बॉम्बे टॉकीज़ से निकाल दिया गया और वो कलकत्ता  में ही रह गए। 

उनका नाम तो फिल्म इतिहास में लिया जाता है मगर उनके टैलेंट की वजह से नहीं

कलकत्ता में नजमुल हसन ने न्यू थिएटर्स ज्वाइन कर लिया मगर बड़े और नामी स्टार्स के बीच उन्हें कभी भी मेन लीड ऑफ़र नहीं हुई। वो ज़्यादातर फ़िल्मों में साइड हीरो ही नज़र आए हाँलाकि कपाल कुण्डला, और नर्तकी जैसी फ़िल्मों में वो पृथ्वीराज कपूर और के एल सहगल जैसे बड़े कलाकारों के साथ सेकंड लीड में भी दिखे मगर इससे भी उनके करियर को कोई फ़ायदा नहीं पहुँचा। कलकत्ता में भी उनका नाम चर्चा में आया तो उसी वजह से जिस वजह से पहली बार आया था।

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लव अफेयर—- इस बार नजमुल हसन का नाम जुड़ा मदन थिएटर्स की मशहूर अभिनेत्री और उस समय की स्टार जहाँआरा कज्जन के साथ। जो कहा जाता है बला की ख़ूबसूरत तो थीं हीं और उनका उठना बैठना भी हाई सोसाइटी में था। कहते हैं वो सिंगर होने के साथ साथ कविता भी लिखती थीं। हाँलाकि वो बेहद कम उम्र में चल बसी मगर नजमुल हसन का नाम अगर फ़िल्म इतिहास में किसी वजह से लिया जाता है तो वो इन दो अभिनेत्रियों के कारण ही लिया जाता है।

नजमुल हसन
देविका रानी, नजमुल हसन और जहाँआरा कज्जन

फ़िल्मों में उनका ऐसा कोई बड़ा योगदान नहीं माना जाता। हाँ कुछ इतिहासकार नजमुल हसन को बदक़िस्मत कहकर उनके भाग्य पर तरस ज़रूर खाते हैं, उन्हें सिनेमा पॉलिटिक्स का शिकार भी मानते हैं मगर किसी ने भी उन्हें बहुत टैलंटेड नहीं कहा। उन की आख़िरी फ़िल्म थी 1942 में आई मीनाक्षी।

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पार्टीशन के बाद नजमुल हसन पाकिस्तान चले गए वहाँ उन्होंने कुछ फ़िल्मों में काम किया मगर वो सहायक भूमिकाएं ही रहीं। 1980 में लाहौर में उनकी मौत हो गई। यूँ तो ज़िन्दगी में जब जो होना होता है तब ही होता है मगर एक पल के लिए ये सोच लिया जाए कि अगर देविका रानी के साथ नजमुल हसन का ज़बरदस्त अफेयर न रहा होता न ही वो दोनों भागे होते तो शायद नजमुल हसन की कहानी कुछ और होती! पर ऐसा सिर्फ सोच ही सकते हैं कि – यूँ होता तो क्या होता ? 

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