देवानंद और सुरैया

देवानंद और सुरैया अपने-अपने ज़माने के दो सुपरस्टार, क़िस्मत ने उन्हें मिलाया भी और अलग भी कर दिया। लेकिन उनकी प्रेम-कहानी आज भी लोगों के दिलों में ज़िंदा है।

फ़िल्में किसी हसीन सपने की तरह होती हैं, उनमें काम करने वाले, हमें तो वो सपने दिखाते ही हैं, कभी कभी उन सपनों में ख़ुद भी गुम हो जाते हैं और तब रील लाइफ की कहानी रियल लाइफ की दास्ताँ में बदल जाती है।फ़िल्मों की तरह ही कभी उस कहानी की हैप्पी एंडिंग होती है तो कभी वो एक ट्रैजिक मोड़ पर जाकर ख़त्म हो जाती है।लेकिन इश्क़ अधूरा हो या कामयाब उसके अफ़साने तो बनते हैं। इस पोस्ट में पेश है – नोज़ी और स्टीव की कहानी, जो सात जन्म नहीं सिर्फ़ सात फ़िल्मों तक रही।अपने ज़माने की बेहद मशहूर गायिका और अभिनेत्री सुरैया और बेहद हैंडसम स्टाइलिश हीरो देवानंद के अधूरे इश्क़ की दास्ताँ।

देवानंद और सुरैया का शुरूआती सफ़र

एक 12 साल की बच्ची अपने एक अंकल की फ़िल्म की शूटिंग देखने गई थी, इस बात से बेख़बर कि लाइट कैमरा साउंड की ये दुनिया जल्दी ही उसकी अपनी ज़िंदगी बन जाएगी। शूट पर फ़िल्मकार नानूभाई वक़ील की नज़र उस बच्ची पर पड़ी और फिर उसे फ़िल्म “ताजमहल” में मुमताज़ महल के बचपन के रोल के लिए चुन लिया गया। हाँलाकि इससे पहले भी सुरैया ने बतौर बाल-कलाकार एक फ़िल्म की थी पर ये एक बड़ा ब्रेक था। उनकी आवाज़ अच्छी थी तो रेडियो पर गाना भी शुरु कर दिया।

देवानंद और सुरैया
सुरैया

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सुरैया की सुरीली आवाज़ को सुनकर संगीतकार नौशाद इतने प्रभावित हुए कि “शारदा” फ़िल्म में उनसे काफ़ी बड़ी अभिनेत्री मेहताब के लिए उनसे गाना गवाया गया। 1947 की फ़िल्म “परवाना” आई तो सुरैया जमाल शेख़ “सिंगर स्टार सुरैया” बन गईं। अपने नाम के मुताबिक़ फ़िल्मी दुनिया के आसमान में रोशन हो गईं। सुरैया की आँखों में अपनी ज़िंदगी के लिए जाने और क्या सपने रहे होंगे लेकिन उन्हें क़िस्मत ने कुछ और सोचने का मौक़ा ही नहीं दिया।

उधर पंजाब के ही एक दूसरे शहर गुरदास पुर के एक युवक की आँखों में एक ही सपना था, फ़िल्मों में हीरो बनने का। और जब 1946 की फ़िल्म “हम एक हैं” से ये सपना पूरा हुआ, तो धर्मदेव पिशोरीमल आनंद, देवानंद बनकर फ़िल्मी परदे पर नज़र आए। 1948 में ज़िद्दी फिल्म आई जिसमें उन पर फ़िल्माया गाना किशोर कुमार ने गाया था। इस फ़िल्म से पहचान तो मिली, मगर इस पहचान और असल शोहरत के बीच एक कहानी बनना बाक़ी थी जिसकी क़िस्मत में अधूरा रह जाना लिखा था।

देवानंद और सुरैया
देवानंद

देवानंद और सुरैया के इश्क़ की दास्तान पूरी फ़िल्मी है

सुरैया हॉलीवुड स्टार ग्रेगरी पैक की दीवानी थीं और देवानंद आगे चलकर भारत के ग्रेगरी पैक कहलाए। सुरैया आलरेडी एक स्टार बन चुकी थीं और देवानंद स्टार बनने से चंद क़दम दूर थे। इन दोनों को पहली बार साथ काम करने का मौक़ा मिला फ़िल्म “विद्या” में। सुरैया का जो स्टेटस था उसकी वजह से शूटिंग के पहले दिन देवानंद थोड़े घबराए हुए थे, डायरेक्टर साहब इंट्रोडक्शन कराते इससे पहले ही देवानंद ने ख़ुद पहल कर दी और सुरैया पर अपनी बातों का ऐसा जादू डाला कि सारी झिझक दूर हो गई। और फिर देवानंद और सुरैया की क़िस्मत ने भी ठीक समय पर अपना काम किया।

देवानंद और सुरैया
ग्रेगरी पैक और सुरैया

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1948 की फ़िल्म “विद्या” देवानंद और सुरैया पर फ़िल्माया हुआ एक गाना है “किनारे-किनारे चले जाएंगे”, इस गाने की शूटिंग हो रही थी, तभी अचानक नाव पलट गई तब देवानंद ने सुरैया को डूबने से बचाया। इसके बाद दूरियाँ और कम हुईं, घर आना-जाना शुरु हो गया। वादों-मुलाकातों का दौर शुरु हुआ। सुरैया को फूल पसंद थे तो देवानंद हर मुलाक़ात पर एक बुके ले जाते। जब मुलाक़ातें नहीं होतीं तो ख़त लिखे जाते और हाल-ए-दिल बयां किया जाता। लेकिन कोई था जिसकी तीखी नज़र सब कुछ भाँप रही थी।

वो थीं सुरैया की नानी जो देवानंद और सुरैया के इस रिश्ते से बिलकुल ख़ुश नहीं थीं, क्योंकि दोनों का धर्म अलग था, इसीलिए दोनों के मिलने पर पाबन्दी लगा दी गई। सुरैया पर पहरे लगा दिए गए, नानी शूटिंग पर साथ जातीं और उन्हें साथ लेकर वापस आतीं। किसी तरह दोनों को अकेले मिलने का मौक़ा मिला तो कहते हैं कि देवानंद ने हीरे की अँगूठी देकर सुरैया को शादी के लिए प्रपोज़ किया और सुरैया ने वो प्रपोज़ल ख़ुशी-ख़ुशी एक्सेप्ट किया।

देवानंद और सुरैया

एक फ़िल्म के सेट पर देवानंद और सुरैया ने चुपचाप शादी करने का प्लान भी बनाया गया लेकिन नानी को पता चल गया। ऐसे में बड़ों के पास जो हथियार होता है, उन्होंने उसी का इस्तेमाल किया – “इमोशनल ब्लैकमेलिंग” नानी ने ख़ुद को मार डालने की धमकी दी तो सुरैया टूट गईं। हीरे की अँगूठी समंदर की गहराइयों में समा गई और देवानंद की मोहब्बत दिल के अँधेरे कुँए में। देवानंद को उम्मीद थी कि अगर सुरैया से एक मुलाक़ात हो जाए तो वो बिगड़ी बात बना लेंगे। लेकिन सुरैया न तो फ़ोन पर आती थीं न ही मुलाक़ात हो पाती थी।

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ऐसे में सुरैया की माँ देवानंद और सुरैया की मददगार बनी, एक दिन जब देवानंद ने फ़ोन किया तो सुरैया की माँ ने उठाया और उन्हें चुपचाप घर बुला लिया मिलने की जगह घर की छत तय की गई। रात के 11:30 बजे देवानंद वहाँ पहुंचे तो सुरैया उन्हें देखते ही उनके गले लग कर ख़ूब रोईं। जितनी देर दोनों साथ रहे, दोनों रोते रहे और फिर अपना अपना प्यार दिल में छुपा कर हमेशा के लिए एक दूसरे से अलग हो गए।

देवानंद और सुरैया

देवानंद ज़िंदगी के सफ़र में आगे बढ़ गए, उनकी ज़िन्दगी में दोबारा प्यार आया उन्होंने कल्पना कार्तिक से शादी की। लेकिन सुरैया ने फिर किसी और को अपने दिल में जगह नहीं दी। ताउम्र अकेली रहीं और अकेले ही इस दुनिया को छोड़ गईं। जब दो लोगों के नसीब में एक दूसरे से जुदा होना ही लिखा है तो वो मिलते ही क्यों है ? क्यों लोग उन रास्तों पर चलते हैं जिनकी कोई मंज़िल नहीं होती ? ऐसे सवाल सभी के ज़हन में उठते हैं मगर जवाब किसी के पास नहीं है। और देवानंद और सुरैया का क़िस्सा कोई अकेला नहीं है जिस दिल में झाँकेंगे कोई न कोई टूटी तस्वीर नज़र आ जाएगी।

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