राकेश रोशन आज एक प्रोडूसर डायरेक्टर के तौर पर लोकप्रिय हैं मगर अपने वक़्त में उन्होंने बतौर हीरो भी अच्छा ख़ासा नाम कमाया था। लेकिन इन सबसे भी ज़्यादा वो अपने गंजे सिर की वजह से एकदम अलग से पहचान में आ जाते हैं पर इस मुंडे हुए सिर की भी एक अलग कहानी है। तो आज उनके जन्मदिन पर जानते हैं उनकी ज़िन्दगी से जुड़ी कुछ ऐसी ही बातें, जिनमें अंग्रेज़ी के K एल्फाबेट के प्रति उनका लगाव या अन्धविश्वास भी शामिल है।
आमतौर पर फ़िल्म इंडस्ट्री में ऐसा देखा गया है कि अमूमन गीतकार का बेटा गीतकार, गायक के बच्चे गायक, संगीतकार के संगीतकार, और अभिनेता के अभिनेता ही बनते हैं। पर कुछेक एक्सेप्शन्स भी होते हैं यानी अपवाद, और राकेश रोशन उन्हीं में से हैं। उनके पिता रोशन अपने समय के मशहूर संगीतकार थे, जिनकी कंपोज़ की गई क़व्वालियाँ लाजवाब हैं। लेकिन राकेश रोशन ने अभिनय से शुरुआत की, वहाँ अपनी पहचान बनाई और फिर फ़िल्म निर्माण और निर्देशन की तरफ़ मुड़ गए और वहाँ अभिनय से भी ज़्यादा पुख़्ता पहचान बनाई। हाँलाकि उनके छोटे भाई राजेश रोशन अपने पिता की राह पर ही चले।
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अभिनेता, निर्माता-निर्देशक,स्क्रीन-राइटर और एडिटर राकेश रोशन का जन्म हुआ 6 सितम्बर 1949 को, प्यार से उन्हें गुडडू भी कहते हैं ये उनका निकनेम है। उनके पिता जब घर में म्यूजिक कंपोज़ किया करते थे बहुत से कलाकार भी वहाँ आया करते थे यानी बचपन से ही घर में फ़िल्मी माहौल था जिसका असर उन पर भी पड़ा। उस समय वो शम्मी कपूर के फैन थे और उनका स्टाइल कॉपी किया करते थे। जब राकेश रोशन 16 साल के थे तभी उनके पिता मशहूर संगीतकार रोशन लाल नागरथ गुज़र गए इसके बाद उन्होंने अपने पिता का नाम बतौर सरनेम अपना लिया। और इसी के साथ उन्हें पढाई छोड़नी पड़ी।
राकेश रोशन का फ़िल्मी सफ़र बतौर सहायक शुरू हुआ था
पिता की मौत के बाद राकेश रोशन मशहूर डायरेक्टर H S रवैल के असिस्टेंट के तौर पर काम करने लगे। फिर कई डायरेक्टर्स के असिस्टेंट रहे पर तमन्ना थी एक्टर बनने की जो पूरी हुई राजेंद्र कुमार की वजह से। जिन दिनों राकेश रोशन मोहन कुमार के असिस्टेंट थे, उन दिनों जो फ़िल्म बन रही थी उसके हीरो थे राजेंद्र कुमार जो उनके पारिवारिक दोस्त भी थे।एक दिन राजेंद्र कुमार ने राकेश रोशन से पूछा कि वो करना क्या चाहते हैं एक्टर बनना चाहते हैं या डायरेक्शन में जाना चाहते हैं। और तब उन्होंने राजेंद्र कुमार से अपने एक्टर बनने की ख़्वाहिश ज़ाहिर कर दी।
राजेंद्र कुमार के कारण ही 21 साल की उम्र में उन्हें अपनी पहली दो फिल्में मिलीं। पहले उन्होंने साइन की थी फ़िल्म “मनमंदिर”, उसकी शूटिंग भी पहले शुरू हुई थी पर पहले प्रदर्शित हुई “घर-घर की कहानी”। इन फिल्मों के बाद आई हेमा मालिनी के साथ सोलो हीरो वाली “पराया धन ” जो बेहद सफल रही। पराया धन के बाद आँखों-आँखों में, ज़ख़्मी, खेल खेल में, आक्रमण, आनंद आश्रम, प्रियतमा, खट्टा-मीठा, देवता, झूठा कहीं का, आख़िर क्यों और ख़ूबसूरत जैसी हिट फिल्मों का हिस्सा रहे वो। पर ज़्यादातर में वो या तो सेकंड लीड में थे या वो फिल्में महिला प्रधान थीं।
उस दौरान एक वक़्त ऐसा भी आया जब उनकी फिल्में नहीं चल रही थी तब उन्होंने कुछ नकारात्मक भूमिकाएं भी स्वीकार कीं। जिन फिल्मों में उन्हें हीरो लिया जाता उनमें ज़्यादातर बड़ी हीरोइन्स काम नहीं करना चाहती थीं। पर कुछ लोगों ने ऐसे वक़्त में भी उनका साथ दिया और ऐसे लोगों की वो आज भी इज़्ज़त करते हैं। उन्हीं में से हैं अभिनेत्री रेखा जिनके साथ उन्होंने कई फिल्में कीं , पर सबसे यादगार है हृषिकेश मुखर्जी की ख़ूबसूरत। एक अभिनेता के तौर पर राकेश रोशन ने क़रीब 70-80 फ़िल्मों में काम किया जिनमें कई बेहद कामयाब रहीं।
लेकिन जब राकेश रोशन को ये महसूस हुआ कि अभिनय के क्षेत्र में उन्हें वो संतुष्टि नहीं मिल रही है, अच्छी भूमिकाएँ नहीं मिल रही हैं तब उन्होंने फिल्मों के निर्माण का फ़ैसला किया और उनमें अभिनय भी किया। प्रोडूसर के तौर पर उनकी पहली फ़िल्म आई “आपके दीवाने” जो चली नहीं। फिर “कामचोर”, “जाग उठा इंसान” और “भगवान दादा” आई। लेकिन इन फ़िल्मों में सिर्फ़ “कामचोर” ही सफल रही।
अभिनेता और निर्माता के तौर पर जब राकेश रोशन वो मक़ाम नहीं पा सके जो वो चाहते थे तो उन्होंने ग़ौर किया कि कमी आख़िर है कहाँ? क्योंकि जब फ़िल्म बनाने का फ़ैसला लिया जाता है, पूरी टीम के साथ सारे डिस्कशन्स होते हैं तब तक तो सब ठीक होता है पर परदे पर आते आते सब बदल जाता है। और तब उन्होंने पाया कि आपकी सोच को कोई दूसरा उस तरह अंजाम नहीं दे पाता जैसा आपने प्लान किया होता है।.इसके बाद उन्होंने फ़िल्म के निर्देशन का फैसला किया। और उस फिल्म पर सब कुछ दाँव पर लगा दिया। उनका खुद का कहना है कि वो पहली फिल्म नहीं चलती तो शायद सारे रास्ते बंद हो जाते।
सालों की नाकामयाबी के बाद निर्देशन की कामयाब पारी
और राकेश रोशन की बतौर निर्देशक वो पहली फिल्म थी 1987 में आई “ख़ुदग़र्ज़” जो बेहद कामयाब हुई और यहीं से उनका “K” अक्षर के प्रति लगाव पैदा हुआ। “ख़ुदग़र्ज़” की सफलता राकेश रोशन के लिए इतनी महत्वपूर्ण थी कि इसके लिए उन्होंने मन्नत माँगी थी कि अगर ये फिल्म कामयाब होती है तो वो अपना सिर मुंडा देंगे, और मन्नत पूरी होने पर उन्होंने अपना सिर मुंडवा लिया। आज भी वो इसी लुक में नज़र आते हैं, हाँलाकि जब उन्होंने सिर नहीं मुंडवाया था तब भी फ़िल्मों में ज़्यादातर वो विग का इस्तेमाल करते थे, क्यूँकि उनके बाल बहुत हलके थे।
ख़ून भरी माँग, किशन- कन्हैया, करण-अर्जुन जैसी सुपरहिट फ़िल्में बनाकर राकेश रोशन ने अपनी वो पहचान बनाई जिसका सपना उन्होंने देखा था। और फिर साल 2000 में उन्होंने अपने बेटे ऋतिक रोशन को लॉन्च करने के लिए बनाई -“कहो न प्यार है” जिससे एक नए सुपरस्टार का आगमन तो हुआ ही इस फ़िल्म ने कामयाबी के नए रिकार्ड्स बनाए और ढेरों अवार्ड मिले इस फिल्म को। इसके बाद कोई मिल गया” और फिर “कृष” सीरीज़ की फिल्में जिन्होंने भारत को अपना देसी सुपरमैन दिया। निर्माता-निर्देशक के रूप में राकेश रोशन का वो मक़ाम है की लोग उनकी आने वाली फिल्मों का इंतज़ार करते हैं।
सम्मान और पुरस्कार
अभिनेता के तौर पर भले ही राकेश रोशन को वो कामयाबी या पहचान नहीं मिली हो पर निर्माता-निर्देशक के तौर पर कामयाबी ने हमेशा उनके क़दम चूमे और ढेरों अवार्ड्स भी दिलाए। इन अवार्ड्स में “कोई मिल गया” के लिए सामाजिक मुद्दों पर बनी सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार और “कहो ना प्यार है” के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक और सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म के फिल्मफेयर पुरस्कार के अलावा आइफा अवार्ड्स भी शामिल है और लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड्स भी। 2006 में इंटरनेशनल फ़िल्म फ़ेस्टिवल ऑफ इंडिया के दौरान, मेनस्ट्रीम सिनेमा में उनके योगदान के लिए उन्हें सम्मानित किया गया। और 2006 में ही उन्हें ग्लोबल इंडियन फ़िल्म अवार्ड्स में भी सम्मानित किया गया।
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उनकी निजी ज़िंदगी की बात करें तो उनका विवाह हुआ निर्माता J ओमप्रकाश की बेटी पिंकी से और इसके पीछे भी बड़ा दिलचस्प क़िस्सा है। हुआ ये कि जिन दिनों राकेश रोशन असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर काम कर रहे थे और फिल्मों में हीरो बनने के लिए संघर्ष कर रहे थे उसी दौरान एक दिन J ओमप्रकाश ने उन्हें अपने घर बुलाया। राकेश जी को लगा की शायद किसी फ़िल्म में रोल देना चाहते होंगे। लेकिन जब वहां पहुंचे तो उन्होंने अपनी बेटी से शादी की बात सामने रख दी। और इस तरह पिंकी उनके जीवन में आईं फिर एक बेटी हुई सुनयना और बेटा ऋतिक रोशन।
साल 2000 में जब उनकी फ़िल्म कहो ना प्यार में को अपार सफलता मिली तो उनसे एक गैंग ने फ़िरौती मांगी थी और जब उन्होंने उनकी मांग पूरी नहीं की तो 21 जनवरी को उन पर गोलियों से हमला किया गया। उन्हें एक गोली सीने में और एक बाँह पर लगी पर क़िस्मत अच्छी थी इसलिए जान बच गई। साल 2019 में राकेश रोशन को गले के कैंसर का पता चला था मगर उन्होंने इसका ख़ुद पर ज़्यादा असर नहीं पड़ने दिया। राकेश रोशन के जीवन में बहुत से उतार चढ़ाव आए पर उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उनके इसी जज़्बे ने उन्हें वो कामयाबी दिलाई जिसके लिए लोग तरसते हैं।
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