राजेश खन्ना The Superstar, Most Romantic Hero Of 70s. जिसने रोमांस की एक नई परिभाषा गढ़ी। उनका ऐसा जलवा था कि लड़कियां अपने ख़ून से उन्हें ख़त लिखती थीं। जब वो किसी समारोह में जाते थे तो अक्सर ऐसा होता था कि वापसी में उनकी पूरी गाड़ी लिपस्टिक के निशानों से भरी होती थी। वो उस समय की हर जवान लड़की के प्रिंस चार्मिंग थे और हर लड़के के आइडल।
हिंदी सिनेमा के अलग अलग दौर में अलग अलग अभिनेताओं ने अपने अभिनय और अंदाज़ से लोगों के दिलों पर राज किया। और फिर आया वो हीरो जिसकी लोकप्रियता ने हिंदी सिनेमा को दिया पहला सुपरस्टार। हिंदी फ़िल्मों की कामयाबी में उनके गीत-संगीत और कलाकारों की डांसिंग एबिलिटी का भी एक बहुत बड़ा हाथ होता है। लेकिन ये भी एक सच है कि राजेश खन्ना बहुत अच्छे डाँसर न होते हुए भी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के सुपरस्टार बने। उनके सर झुकाने की अदा, मुस्कराहट और हाथों का अनोखा अंदाज़। उनमें एक मास अपील थी, जिसने उन्हें इतना लोकप्रिय बनाया।
कुछ उन पर फिल्माए गानों का भी जादू था। वैसे मुझे लगता है कि किसी हीरो को सुपरस्टार बनाने में सिर्फ़ उसका अपना स्टाइल नहीं होता बल्कि म्यूज़िक, सिंगर और अच्छे निर्देशकों की मेहनत भी होती है। कौन भूल सकता है उन पर फिल्माए हुए सुपरहिट गाने जो उनके साथ-साथ किशोर कुमार और R D बर्मन समेत उन संगीतकारों की भी याद दिलाते हैं जिन्होंने उन गानों की धुनों को तराशा।
- मेरे सपनों की रानी – आराधना (69) – किशोर – S D बर्मन – आनंद बख्शी
- ये रेशमी ज़ुल्फ़ें – दो रास्ते (69) – रफ़ी – लक्ष्मीकांत प्यारेलाल – आनंद बख्शी
- दिल को देखो – सच्चा झूठा (70) – किशोर – कल्याणजी आनंद जी – इंदीवर
- ये जो मोहब्बत है – कटी पतंग (71) – किशोर – R D बर्मन – आनंद बख्शी
- ज़िंदगी एक सफ़र है सुहाना – अंदाज़ (71) – किशोर – शंकर जयकिशन – हसरत
- ज़िंदगी कैसी है पहेली – आनंद (71) – मन्ना – सलिल चौधरी – योगेश
- ये क्या हुआ – अमर प्रेम (72) – किशोर – R D बर्मन – आनंद बख्शी
- हमें तुमसे प्यार कितना – क़ुदरत (81) – किशोर – R D बर्मन – मजरुह
राजेश खन्ना का असली नाम क्या है ?
19 दिसम्बर 1942 को अमृतसर में जन्म हुआ जतिन खन्ना का। उनके पिता के एक रिश्तेदार ने उन्हें गोद लिया और उनकी परवरिश की। ये परिवार बाद में मुंबई आकर बस गया। जतिन खन्ना की रूचि स्कूल कॉलेज से ही अभिनय में रही, इस दौरान उन्होंने कई नाटक किए। जब उन्होंने थिएटर शुरु किया था तो उन्हें जूनियर आर्टिस्ट का रोल मिला। उस नाटक में उनकी भूमिका इंस्पेक्टर की थी और उन्हें बस एक लाइन बोलनी थी, पर उसे भी वो नाटक के दौरान भूल गए।
उस वक़्त उन्हें ख़ुद पर बहुत ग़ुस्सा आया, शर्मिंदगी भी हुई और उन्होंने अभिनय छोड़ने तक का फ़ैसला ले लिया। मगर ये वक़्ती फ़ैसला था जिसे उनकी ज़िद और हौसले ने बदला और बाद में तो उन्होंने थिएटर में काफ़ी काम किया। और जब फ़िल्मों में आने का निर्णय लिया तो उनके एक रिश्तेदार ने उन्हें जतिन से राजेश खन्ना नाम दे दिया। जिस दौरान राजेश खन्ना फ़िल्मों में भाग्य आज़माने की कोशिश कर रहे थे, उन्हीं दिनों एक टैलेंट हंट कांटेस्ट हो रहा था जिसमें उन्होंने भी भाग लिया। इंटरव्यू के दौरान वहाँ बड़े-बड़े निर्माता-निर्देशकों को देखकर राजेश खन्ना काफी नर्वस हो रहे थे।
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उन्हें एक डायलॉग पहले ही दे दिया गया था और जब वो अंदर पहुंचे तो उनसे पूछा गया कि संवाद याद किया या नहीं। नर्वस होने के बावजूद उन्होंने कहा कि आपने ये तो बताया ही नहीं कि इस डायलॉग का करेक्टराइज़ेशन क्या है। ये सुनकर वहाँ बैठे लोगों को ये समझ आ गया कि थिएटर से आये इस लड़के को अभिनय की समझ है। और फिर 10,000 से ज़्यादा प्रतियोगियों को हरा कर राजेश खन्ना ने वो प्रतियोगिता जीत ली।
उन्हें जो पहला प्रस्ताव मिला वो फिल्म थी “राज़” लेकिन उनकी पहली रिलिज़्ड फ़िल्म रही “आख़िरी ख़त” और फिर “डोली”, “इत्तफ़ाक़” जैसी फ़िल्में आईं पर जिस फ़िल्म ने उन्हें रातों-रात देश में मशहूर कर दिया वो थी 1969 में आई “आराधना”
आराधना में किशोर कुमार ने राजेश खन्ना के लिए तीन गाने गाए थे और इसके बाद तो जैसे किशोर कुमार उनकी आवाज़ बन गए। हाँलाकि मुकेश जी, रफ़ी साहब, मन्ना दा ने भी उनके लिए गाया पर राजेश खन्ना के ज़्यादातर सुपरहिट गाने किशोर कुमार की ही आवाज़ में हैं। ख़ुद राजेश खन्ना उनकी आवाज़ को बहुत पसंद करते थे।
सुपर स्टारडम पाने वाला हीरो
“आराधना” ने किशोर कुमार, राजेश खन्ना दोनों के ही करियर को एक नई दिशा दी। आराधना से ही आलोचकों ने राजेश खन्ना को पहला सुपरस्टार घोषित कर दिया था, जिसे उनकी आने वाली फिल्मों ने सही साबित कर दिया। अपने शुरुआती दौर में ही राजेश खन्ना ने लगातार 15 सुपरहिट फ़िल्में दीं, जो एक ऐसा रिकॉर्ड है जिसे कोई और अभिनेता छू भी नहीं पाया। और ऐसा भी नहीं है कि उन्होंने सिर्फ़ रोमेंटिक किरदारों को ही तरजीह दी हो। आनंद जैसी फ़िल्म 1971 में ही आई थी जिसमें रोमांस का ये बादशाह ट्रेजिक हीरो के रूप में नज़र आया।
“आनंद” उनका सबसे यादगार रोल कहा जा सकता है, जिसने युवाओं से लेकर बुज़ुर्गों तक के दिल में अपनी जगह बनाई थी। और ऐसी जगह कि लोग उन्हें आनंद के नाम से ही पुकारने लगे थे। मुझे याद है मेरी नानी जो ज़्यादा फिल्में नहीं देखती थीं पर उन्होंने आनंद देखी थी। जब भी वो टीवी पर राजेश खन्ना की कोई भी फ़िल्म देखतीं तो तुरंत कहती अरे ये तो आनंद है न !
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राजेश खन्ना ने “सफ़र”, ‘दुश्मन”, “बावर्ची”, “अमर प्रेम” जैसी अलग हट कर फिल्में कीं। पर एक ख़ास बात उनकी हर फ़िल्म से जुड़ी रही, वो था फ़िल्म का संगीत जो किसी भी फ़िल्म का महत्वपूर्ण पक्ष होता है। उनकी ज़्यादातर हर फ़िल्म का संगीत R D बर्मन, S D बर्मन, या लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने दिया। कहते हैं राजेश खन्ना ख़ुद अपनी फ़िल्मों की म्यूज़िक सिटिंग्स में बराबर हिस्सा लेते थे, उन्हें संगीत में रुचि भी थी और समझ भी शायद यही वजह थी कि उनकी ज़्यादातर फ़िल्मों का म्यूज़िक सुपरहिट रहा।
1973 में “ज़ंजीर” से एक नए युग और नए नायक का उदय हुआ जिसे एंग्री यंग मैन कहा गया। ये हीरो थे अमिताभ बच्चन जो “आनंद” में राजेश खन्ना के साथ काम कर चुके थे और 1973 में ही इन दोनों की एक फ़िल्म और आई थी-“नमकहराम” और जैसा कि अक्सर होता है, लाज़मी था दोनों के बीच मुक़ाबला होना। लोगों ने ये कहना शुरू कर दिया कि राजेश खन्ना का युग जाने वाला है पर अगले ही साल राजेश खन्ना ने “आपकी क़सम”, “प्रेम नगर”, “रोटी”, “अजनबी” जैसी फ़िल्में देकर आलोचकों का मुँह बंद कर दिया।
वो 80 के दशक में भी “थोड़ी सी बेवफ़ाई”, “क़ुदरत”, “दर्द”, “फिफ्टी-फिफ्टी”, “दिल-ए-नादान”, “राजपूत”, “धर्म-काँटा”, “निशान”, “सौतन”, “अवतार”, “अगर तुम न होते”,”आखिर क्यों”, “अलग-अलग” जैसी फ़िल्मों में नायक की भूमिका निभाते रहे। उन्होंने जो चरित्र भूमिकाएं निभाईं उनमें भी उनका दबदबा क़ायम रहा। फिर धीरे धीरे उन्होंने काम करना बंद कर दिया। हाँलाकि आखिर तक गिनी-चुनी फ़िल्मों में वो नज़र आते रहे।
अभिनय के अलावा राजेश खन्ना कई फ़िल्मों के निर्माता और सह-निर्माता भी रहे। इनमें “अलग-अलग”, “पुलिस के पीछे पुलिस”, “जय शिव शंकर”, “महबूब की मेंहदी”, “रोटी” और “बरसात” जैसी फिल्में शामिल हैं। वो कुछ टीवी धारावाहिकों में भी नज़र आए। वो 90 के दशक में संसद सदस्य रहे और काफ़ी समय तक राजनीति से जुड़े रहे। राजेश खन्ना फिल्म और टेलीविज़न से जुड़ी कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के सदस्य भी रहे।
2013 में राजेश खन्ना को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। “सच्चा-झूठा”, “आनंद”, “आविष्कार” जैसी फिल्मों के लिए उन्हें फिल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला। और अनुराग के लिए उन्हें फ़िल्मफ़ेयर का स्पेशल गेस्ट एक्टर अवार्ड दिया गया। जब उन्होंने भारतीय फिल्मों में 25 साल पूरे किये तो उन्हें फ़िल्मफ़ेयर के स्पेशल अवार्ड से नवाज़ा गया और 2005 में उन्हें दिया गया फ़िल्मफ़ेयर का लाइफटाइम अचीवमेन्ट अवार्ड।
“आनंद”, “बावर्ची”, “नमकहराम” और “अमृत” के लिए उन्हें बंगाल फ़िल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन अवार्ड से सम्मानित किया गया। 2008 में उन्हें फाल्के लेजेंड्री गोल्डन एक्टर अवार्ड से नवाज़ा गया और 2009 में दिया गया IIFA का लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड। इनके अलावा अलग-अलग संस्थाओं के ढेरों सम्मान और पुरस्कार हैं उनके नाम। पर असली पुरस्कार जो उन्हें मिला वो था उनके चाहने वालों का बेपनाह प्यार।
उनकी निजी ज़िंदगी की बात करें तो कहा जाता है उनका पहला प्यार रहीं अभिनेत्री अंजू महेंद्रू। राजेश खन्ना उनसे शादी करना चाहते थे मगर अंजू महेन्द्रू अपने करियर पर फ़ोकस करना चाहती थीं इसीलिए उन्होंने राजेश खन्ना के शादी के प्रस्ताव को ठुकरा दिया फिर भी ये रिश्ता 7 साल तक चला। इस दौरान उन्होंने कई बार शादी का प्रपोज़ल दिया मगर हर बार अंजू महेन्द्रू ने उस प्रपोज़ल को ठुकरा दिया। लेकिन जब अंजू महेन्द्रू के अफेयर्स की ख़बरें आने लगीं तो राजेश खन्ना ने ये रिश्ता ख़त्म कर दिया। लेकिन बाद में उनकी और अंजू महेन्द्रू की दोस्ती फिर से क़ायम हो गई थी। वो उनके आख़िरी वक़्त में भी उनके साथ रहीं।
1973 में राजेश खन्ना ने अपने से आधी उम्र की हिरोइन डिम्पल कपाड़िया से शादी कर ली। उनकी दो बेटियाँ हुईं, ट्विंकल और रिंकी। कहते हैं राजेश खन्ना का स्टारडम उनकी निजी ज़िंदगी पर हावी होने लगा था। वो लगातार अपनी रील लाइफ को ही जिए जा रहे थे, जिसका असर उनके रिश्तों पर भी पड़ा। और 1984 में डिंपल कपाड़िया और राजेश खन्ना अलग हो गए। ये भी कहा जाता है कि तन्हाई के इस दौर में कुछ ग़लत लोगों के साथ ने उन्हें हर तरह से नुक्सान पहुँचाया। यहाँ तक कि एक ब्लू फ़िल्म में वो दिखाई दिए।
कभी-कभी ऊँचाई पर खड़े होकर इंसान अपने सच्चे हमदर्द और झूठे चापलूस लोगों में फ़र्क़ नहीं कर पाता। सफ़र और आनंद जैसी फ़िल्मों में कैंसर के मरीज़ की भूमिका निभाने वाले राजेश खन्ना को उनके आख़िरी वक़्त में कैंसर ने सच में जकड़ लिया। और 2012 में 18 जुलाई को उन्होंने हमेशा के लिए आँखें मूँद लीं, और राजेश खन्ना THE SUPERSTAR अपने लाखों प्रशंसकों को छोड़कर इस दुनिया को अलविदा कह गए। उनके अंतिम दर्शन के लिए दुनिया भर से लोग पहुँचे थे। ऐसा प्यार हर कलाकार के नसीब में कहाँ होता हैं! उन्होंने अपना जो मक़ाम बनाया वो हमेशा उन्हीं का रहेगा, उन्हीं के नाम रहेगा।
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