पंडित नरेंद्र शर्मा वो महान लेखक, गीतकार जिनका अतुलनीय योगदान है न सिर्फ़ फ़िल्मों में बल्कि रेडियो और टीवी की दुनिया में भी। उनकी क़ाबिलियत के क़ायल तो ख़ुद नेहरू जी भी थे। फ़रवरी के महीने में उनका जन्मदिन भी आता है और पुण्यतिथि भी तो आइए इस पोस्ट के माधयम से जानते हैं उनसे जुड़े कुछ जाने-अनजाने पहलुओं के बारे में।
जब रेडियो की शुरुआत हुई तो पहला लोकप्रिय चैनल बना विविध भारती जो FM आने से पहले तक नंबर वन चैनल था। आज भी लोग विविध भारती सुनते हैं, मगर बहुत कम लोग ये जानते होंगे कि इस चैनल का आईडिया किसका था, इसे विविध भारती नाम किसने दिया और इसके सबसे मशहूर प्रोग्राम्स हवा महल, और जयमाला का नामकरण किसने किया। ये वो कवि और गीतकार थे जिन्होंने 1982 में भारत में खेले गए एशियाई खेलों के थीम सांग “अथ स्वागतम शुभ स्वागतम” को भी लिखा। और जब बी आर चोपड़ा महाभारत बना रहे थे तो उसमें भी उन्होंने सलाहकार की भूमिका निभाई और कुछ दोहे भी लिखे।
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पंडित नरेंद्र शर्मा ने गाँधी जी के भाषणों का हिंदी में अनुवाद किया
कवि और गीतकार पंडित नरेंद्र शर्मा हिंदी अंग्रेज़ी और संस्कृत के ज्ञाता तो थे ही उर्दू, गुजराती, मराठी और बांग्ला के भी अच्छे जानकार थे। पंडित नरेंद्र शर्मा का जन्म 28 फ़रवरी 1913 में बुलंदशहर के खुर्जा के एक गाँव जहाँगीरपुर में हुआ। उनके पिता जहांगीरपुर गाँव के पटवारी थे मगर कम उम्र में ही उनका देहांत हो गया था। उन दिनों राष्ट्रीय आंदोलन ज़ोर पकड़ने लगा था तो उस माहौल का असर पंडित जी पर भी पड़ा। खुर्जा के एक स्कूल से पूरी करने के बाद उन्होंने इलाहबाद यूनिवर्सिटी से इंग्लिश में MA किया। फिर कुछेक पत्रिकाओं के सम्पादकीय विभाग में काम किया।
ये आज़ादी से पहले की बात है, उन्हीं दिनों अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में गाँधी जी के भाषणों को हिंदी में लाइव ट्रांसलेट करने का ज़िम्मा उन्हें सौंपा गया। उन्होंने 1937 से नेहरू जी के साथ काम करना शुरु किया और ये सिलसिला तीन सालों तक चला। 1940 में उस समय के वॉयसराय के आदेश से उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। जब वो ढाई साल जेल में रहने के बाद वापस लौटे तो कांग्रेस कमेटी का कार्यालय बंद हो चुका था और अब वो किसी काम की तलाश में थे। उन दिनों बॉम्बे टॉकीज़ में भी एक ऐसे गीतकार की ज़रुरत थी जो कवि प्रदीप के स्तर का लेखन कर सके। और इन दो कड़ियों को जोड़ने का काम किया मशहूर साहित्यकार भगवतीचरण वर्मा ने।
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दिलीप कुमार की पहली फिल्म के गीत पंडित नरेंद्र शर्मा ने लिखे थे
भगवती चरण वर्मा बॉम्बे टॉकीज़ में बतौर स्क्रीनप्ले राइटर काम करते थे तो उन्होंने पंडित नरेंद्र शर्मा को मुंबई बुला लिया।लेकिन प्रदीप जी की तरह ही उनके मन में भी संशय था कि फ़िल्मी गीत वो भला कैसे लिखेंगे, और ये भी कि फ़िल्मी गानों में तो ज़्यादातर उर्दू का इस्तेमाल होता है, जबकि वो संस्कृत और हिंदी में लेखन करते आये थे। लेकिन भगवती चरण वर्मा ने उन्हें विश्वास दिलाया कि जितनी उर्दू की ज़रुरत फ़िल्मी गानों में होती है उतनी उर्दू तो उन्हें आती है। लेकिन तब भी उन्होंने ख़ुद को आज़माने के लिए उर्दू में एक गीत लिखा। उन्हें पूरी तसल्ली हो गई तब उन्होंने बॉम्बे टॉकीज़ ज्वाइन कर लिया।
बॉम्बे टॉकीज़ की फ़िल्म “हमारी बात” बतौर गीतकार पंडित नरेंद्र शर्मा की पहली फ़िल्म थी, ये वही फ़िल्म थी जिसमें देविका रानी आख़िरी बार फ़िल्मी परदे पर नज़र आईं थीं। 1943 में आई “हमारी बात” के बाद पं नरेंद्र शर्मा ने दिलीप कुमार की पहली फ़िल्म “ज्वार-भाटा” (44) में भी गीत लिखे। 50 के दशक में वो आकाशवाणी से जुड़े और विविध भारती के रुप में रेडियो प्रसारण में अपना अतुलनीय योगदान दिया। उनके सुपुत्र परितोष शर्मा के अनुसार पंडित जी ने विविध भारती के 24 घंटों के कार्यक्रमों की पूरी योजना भी तैयार की थी मगर उस पर अमल नहीं हो सका। शायद अब भी वो फ़ाइल कहीं दबी धूल फांक रही होगी !
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बी आर चोपड़ा महाभारत का ऑफर लेकर ख़ुद उनके घर गए थे
जब महाभारत पर धारावाहिक बनाने की योजना पर काम चल रहा था तब बी आर चोपड़ा किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश में थे जिसे इस महाकाव्य की गहरी जानकारी और समझ हो तब किसी ने उन्हें पंडित नरेंद्र शर्मा का नाम सुझाया। और एक दिन बी आर चोपड़ा ख़ुद अपनी बड़ी सी गाड़ी में पंडित जी के घर पहुँच गए और उन्हें धारावाहिक महाभारत में बतौर परामर्शदाता साइन कर लिया। इसके बाद सेट पर और सेट से अलग जो भी होता वो पंडित नरेंद्र शर्मा लिए बिना नहीं होता। एक-एक एपिसोड की पटकथा और संवाद पर विचार विमर्श किया जाता और जो पंडित जी कहते वही फाइनल होता।
जब वो महाभारत से जुड़े किसी कालखंड के विषय में बोलना शुरु करते तो टेप रिकॉर्डर ऑन कर दिया जाता था ताकि कोई बात छूट न जाए। ख़ुद राही मासूम रज़ा ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि “महाभारत की भूलभूलैया में मैं पंडित जी की अंगुली थामे आगे बढ़ता गया।” वो जो भी लिखते थे वो पंडित नरेंद्र शर्मा को दिखाया जाता और उसके बाद ही कलाकारों तक पहुँचता।
सिर्फ़ कहानी गीत और संवाद ही नहीं बल्कि कलाकरों के चयन और उनकी पोशाकों तक पर उनकी राय ली गई थी। एक बाद पंडित जी ने कहा कि भीष्म पितामह सफ़ेद पोशाक पहना करते थे तो बी आर चोपड़ा ने उनसे पूछा कि आपको कैसे पता तो संस्कृत के ज्ञाता पंडित जी ने उन्हें महाभारत महाकाव्य से एक श्लोक सुनाया जिसमें पितामह भीष्म नन्हे अर्जुन से कहते हैं कि तुम्हारे धूल भरे कपड़ों से मेरे श्वैत वस्त्र मैले हो रहे हैं। इसी के बाद भीष्म पितामह के लिए श्वेत वस्त्रों का चयन किया गया।
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मशहूर फ़िल्में और गीत
17 कविता संग्रह, एक कहानी-संग्रह और मनोकामिनी, द्रौपदी, उत्तरजय सुवर्णा जैसे प्रबंध-काव्य लिखकर पंडित नरेंद्र शर्मा ने हिंदी साहित्य में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। साथ ही साथ फ़िल्मी में भी लगातार गीत लिखते रहे। “नरसिंह अवतार”, “आँधियाँ”, “अफ़सर”, “मालती-माधव”, “रतनघर(55)”, “भाभी की चूड़ियाँ(61)”, “भाई-बहन(69)”, “सुबह(84)” जैसी बहुत सी फ़िल्मों में उन्होंने कई मशहूर गीत लिखे।
लेकिन 1978 में आई “सत्यम शिवम् सुंदरम” का टाइटल सांग और भजन “यशोमति मैया से बोले नंदलाला” उनके सबसे यादगार फ़िल्मी गीत हैं। 1982 की फ़िल्म “प्रेम रोग” में भी उन्होंने “भँवरे ने खिलाया फूल” जैसा बहुत ही अर्थपूर्ण गीत लिखा जो आज भी पसंद किया जाता है।
पंडित नरेंद्र शर्मा को साहित्य जगत में जो मान-सम्मान प्राप्त था वही मान-सम्मान फ़िल्म जगत में भी हासिल था। वो इतने विनम्र और मिलनसार थे कि जब उनका विवाह सुशीला जी से हुआ तो बड़े-बड़े साहित्यकारों के साथ-साथ दिलीप कुमार, गीता बाली, सुरैया जैसे उस समय के कई बड़े फिल्म स्टार्स भी उनकी शादी में शामिल हुए थे। उनके परिवार में तीन बेटियाँ और एक बेटा है।
11 फ़रवरी 1989 को पंडित नरेंद्र शर्मा को दिल का दौरा पड़ा और उन्होंने हमेशा के लिए आँखें मूँद लीं, और उनकी यादों से दुनिया ने। हम कितनी आसानी से लोगों को भुला देते हैं, वक़्त का पहिया घूमता है और हमारी याददाश्त भी धूमिल कर जाता है या कहें की पुरानी यादों पर नए अनुभव अपनी जगह बनाते जाते हैं और पुराना सब किसी धुंध में खो जाता है।
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