किदार शर्मा – लेखक, निर्माता, निर्देशक, गीतकार और स्टार मेकर, जिन्हें टफ टास्क मास्टर कहा जाता था।
90s में लता मंगेशकर की एक एल्बम आई थी श्रद्धांजलि जिसमें उन्होंने दूसरे गायक गयिकाओं के गाने अपनी आवाज़ में गाये थे। उसी एल्बम में पहली बार मैंने एक गाना सुना – “मैं क्या जानू क्या जादू है” ये गाना मैं कभी नहीं भूली और जब रेडियो पर आई तो सहगल साब की आवाज़ में इस का ओरिजिनल वर्ज़न सुना, मुझे ये भी बहुत अच्छा लगा। लेकिन गीतकार का नाम बहुत बाद में पता चला। और ये गाना… “हम होंगे कामयाब” इसे तो सभी ने कभी न कभी ज़रूर गाया होगा मगर गीतकार के नाम से शायद ही कोई वाक़िफ़ हो!
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ख्यालों में किसी के (बावरे नैन ), एक बांग्ला बने न्यारा ( प्रेसिडेंट), हाल-ए-दिल उनको सुनाना था (फ़रियाद), बालम आये बसो (देवदास) ये सभी गाने लिखे किदार शर्मा ने, जो हिंदी फ़िल्मों में गीतकारों की फर्स्ट जनरेशन के तीन मुख्य गीतकारों में से एक थे। हाँलाकि ज़्यादातर लोग उन्हें एक फ़िल्मकार के रूप में पहचानते हैं। लेकिन उनके व्यक्तित्व को किसी एक परिधि में नहीं बंधा जा सकता। कवि-लेखक-गीतकार तो वो थे ही, निर्माता-निर्देशक-एडिटर और फ़ोटोग्राफ़र भी थे और बहुत ख़ूबसूरत पेंटिंग भी किया करते थे।
ये किदार शर्मा ही थे जिन्होंने राजकपूर को चाँटा मारा था
किदार शर्मा को स्टार-मेकर कहा जाता था, लेकिन उनकी ट्रेनिंग बहुत ही सख़्त होती थी। राज कपूर के करियर की शुरुआत किदार शर्मा के थर्ड असिस्टेंट के तौर पर हुई थी, जहाँ उन्हें क्लैप देना होता था। राज कपूर की आदत थी कि क्लैप देने से पहले वो अपने बालों में कंघा फिराते, कैमरा में देखते और फिर क्लैप देते। ऐसा करते हुए एक बार क्लैप में एक आर्टिस्ट की दाढ़ी फंस गई। ये देखकर किदार शर्मा को इतना ग़ुस्सा आया कि उन्होंने सबके सामने राज कपूर को एक चांटा मार दिया। लेकिन यही किदार शर्मा थे जिन्होंने राज कपूर को बतौर हीरो पहली बार फ़िल्मी परदे पर पेश किया।
पूरन भगत देखने के बाद फ़िल्मों में आने का इरादा किया
12 अप्रैल 1910 को पंजाब के नरोवाल में जन्मे किदार शर्मा का बचपन बहुत ही ग़रीबी में गुज़रा लेकिन उन्होंने अपनी पढाई पर पूरा ध्यान दिया। जब वो अमृतसर के हाई स्कूल में थे तो उनकी रूचि कविता, पेंटिंग और फ़ोटोग्राफ़ी में हुई। कॉलेज में पढ़ते हुए उनका झुकाव लेखन और अभिनय की तरफ़ हुआ। वो कॉलेज की ड्रामेटिक सोसाइटी का हिस्सा भी बने। इंग्लिश लिटरेचर से पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद वो एक लोकल थिएटर ग्रुप से जुड़ गए। इस दौरान एक स्टेज आर्टिस्ट के रूप में उनकी पहचान बनने लगी थी।
1933 में किदार शर्मा ने न्यू थिएटर्स की फ़िल्म “पूरन भगत” देखी और फिर वो फिल्मों में भाग्य आज़माने कोलकाता चले गए। वो देबकी बोस के साथ काम करना चाहते थे। वो दिखने में अच्छे थे शेरो-शायरी कर लेते थे, उन्हें लगा था कि वहाँ जाते ही उन्हें काम मिल जाएगा लेकिन काम तो दूर की बात है देबकी बोस से मुलाक़ात करना भी एक टेढ़ी खीर साबित हुआ। महीनों चप्पलें घिसने के बाद किसी ने उन्हें पृथ्वीराज कपूर और के एल सहगल से मिलने की सलाह दी क्योंकि वो दोनों ही पंजाबी थे।
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लेकिन पृथ्वीराज कपूर पहले ही अपने भाई की सिफ़ारिश कर चुके थे। उस वक़्त तक न्यू थिएटर्स में के एल सहगल ख़ुद अपनी मज़बूत जगह बनाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उन्होंने किदार शर्मा को दुर्गा खोटे से मिलवाया जिन्हें वो उस समय गाना सिखा रहे थे। और फिर दुर्गा खोटे की सिफारिश पर किदार शर्मा को न्यू थिएटर्स में एंट्री मिली।
किदार शर्मा की शुरुआत बतौर स्टिल फ़ोटोग्राफ़र हुई
देबकी बोस ने उन्हें STILL फोटोग्राफर का काम दिया। उनके बहुत से स्टिल फोटोग्राफ उस समय बहुत पसंद किये गए। ख़ास तौर पर K L सहगल का सोलो पोर्ट्रेट जो अलग अलग मैगज़ीन्स में वक़्त वक़्त पर छपता रहा, बहुत पसंद किया गया। अपने संघर्ष के दिनों में किदार शर्मा धार्मिक प्रतिमाओं और फ़िल्मी पर्सनेलिटीज़ के पोर्ट्रेट्स पेंट किया करते थे। उन्होंने उमा शशि, कानन देवी, पहाड़ी सान्याल और रविन्द्रनाथ टैगोर का पोर्ट्रेट भी बनाया था। उनकी पेंटिंग की ये कला भी फिल्मों में उनके काम आई। क्यूँकि इंक़लाब फिल्म में उन्हें सेट पेंट करने का काम सौंपा गया।
इस तरह देखें तो न्यू थिएटर्स में उन्होंने अलग अलग विधाओं में काम किया। जो बड़ा मौक़ा मिला वो था – K L सहगल के अभिनय से सजी फ़िल्म “देवदास” का स्क्रीनप्ले उस के संवाद और गीत लिखने का। “देवदास” एक बड़ी हिट साबित हुई और इसी फिल्म से किदार शर्मा की एक लेखक और गीतकार के रूप में मज़बूत पहचान बन गई। उसके बाद “ज़िंदगी”, “करोड़पति”, “पुजारिन”, “भंवरा” और “प्रेजिडेंट” जैसी फिल्मों में उन्होंने गीत लिखे।
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किदार शर्मा ने कुछ नॉन-फ़िल्मी गीत भी लिखे जो काफी मशहूर हुए थे। उस समय तक डायलॉग्स थिएट्रिकल स्टाइल में लिखे और बोले जाते थे। पर किदार शर्मा ने इस अंदाज़ को बदला और सहज-स्वाभाविक और बातचीत के अंदाज़ में डायलॉग्स लिखने शुरु किये जो आम लोगों को बहुत पसंद आये। उस वक़्त तक फ़िल्मी गीतों में मुख्य रूप से उर्दू का इस्तेमाल होता था। किदार शर्मा की उर्दू के साथ साथ हिंदी पर भी उतनी ही पकड़ थी साथ ही उनके कई गीतों में लोक पुट भी मिलता है। उन्होंने चाँद और पंछी की कल्पना से कई खूबसूरत गीत लिखे। और उनके गीतों की भाषा भी बेहद सरल और सहज रही जो आम आदमी की जुबां पर चढ़ गए।
बतौर निर्देशक किदार शर्मा की पहली मशहूर फ़िल्म थी – चित्रलेखा
चंदूलाल शाह के बुलावे पर किदार शर्मा न्यू थिएटर्स छोड़ कर मुंबई चले आये और रणजीत मूवीटोन के लिए लिखने लगे। वहाँ उन्हें फ़िल्म निर्देशन का मौक़ा मिला जो वो हमेशा से करना चाहते थे। उनके निर्देशन में बनी पहली फिल्म थी “औलाद” जिसका स्क्रीनप्ले भी उन्होंने ही लिखा था। पर निर्देशक के तौर पर उनकी पहचान बनी 1941 की फिल्म “चित्रलेखा” से जिसके गीत भी उन्होंने खुद ही लिखे थे। इसी कहानी को उन्होंने 1964 में फिर से बनाया, मीना कुमारी, प्रदीप कुमार और अशोक कुमार के अभिनय से सजी इस फ़िल्म के गीत बहुत मशहूर हुए थे जिन्हें साहिर लुधियानवी ने लिखा था।
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जिस फ़िल्म से किदार शर्मा ने राज कपूर को लांच किया वो थी “नीलकमल” उसका निर्माण भी उन्होंने ही किया था, दरअस्ल उन्हें करना पड़ा। हुआ ये कि “नीलकमल” रंजीत मूवीटोन का प्रोडक्शन थी और उस वक़्त उसका नाम था “बेचारा भगवान” उस समय जिन कलाकारों का चयन किया गया था वो थे जयराज और कमला चटर्जी जो किदार शर्मा की पत्नी थीं। लेकिन इसी दौरान कमला चटर्जी की मौत हो गई और उनकी मौत के सदमे से किदार शर्मा लम्बे अरसे तक उबर नहीं पाए। जब उबरे तो हेरोइन के रूप में उन्होंने नई लड़की मधुबाला को साइन किया।
लेकिन उनके साथ काम करने से जयराज ने इंकार कर दिया तब उन्होंने अपने साथ काम कर रहे नए लड़के राज कपूर को हीरो बना दिया। मगर फिनेंसर्स ने नए लोगों पर पैसा लगाने से इंकार कर दिया और फ़िल्म रुक गई। तब किदार शर्मा ने अपना प्लॉट बेचकर अपने पैसे से उस फ़िल्म को पूरा किया। इस फ़िल्म में मधुबाला का ये पहला लीड रोल था। किदार शर्मा ने गीता बाली को फ़िल्म “सुहागरात” में, माला सिन्हा को “रंगीन रातें” में पहला मौक़ा दिया। तनूजा भी जिस फिल्म से लाइमलाइट में आईं वो भी किदार शर्मा के निर्देशन में ही बनी थी-“हमारी याद आएगी”
किदार शर्मा ऐसे कलाकारों , गायकों और संगीतकारों के साथ काम करना पसंद करते थे जो या तो नए हो या संघर्ष कर रहे हों। जोगन फ़िल्म के लिए उन्होंने बुलो C रानी को चुना, रोशन और स्नेहल भटकर की पहचान भी उनकी फिल्मों में संगीत देने के बाद बनी। शायद इसीलिए उन्हें star maker कहा जाता था। 50 के दशक में वो चिल्ड्रन फ़िल्म सोसाइटी से जुड़े और उसके लिए कई महत्वपूर्ण फिल्में बनाई। सबसे मशहूर है “जलदीप’ जिसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली। दूरदर्शन के लिए भी उन्होंने कई डॉक्युमेंट्रीज़ बनाईं।
हम होंगे कामयाब….
ये गीत याद है आपको “हम होंगे कामयाब” ये गीत दूरदर्शन के लिए उन्होंने ही लिखा था जिसकी धुन स्नेहल भटकर ने बनाई थी। उन्होंने अपनी ऑटोबायोग्राफी भी लिखी थी ” THE ONE AND LONELY- KIDAR SHARMA” पर ये उनकी मौत के बाद ही प्रकाशित हो पाई। अप्रैल के महीने में ही उनका जन्म हुआ था और इसी महीने की 29 तारीख़ को 1999 में वो इस दुनिया से रुख़्सत हो गए। उनके साथ ही एक STAR-MAKER, एक संवेदनशील गीतकार, एक बेहतरीन निर्माता-निर्देशक और लेखक भी फ़िल्मी दुनिया ने खो दिया।
किदार शर्मा ने “इंक़लाब” “धूप-छांव” “पुजारिन” “विद्यापति” “बड़ी दीदी” जैसी शुरूआती कुछ फिल्मों में अभिनय भी किया था। उनके निर्देशन में बनी फिल्मों में “औलाद”, “चित्रलेखा”, “अरमान”, “गौरी”, “मुमताज़ महल”, “धन्ना भगत”, “चाँद-चकोरी”, “दुनिया एक सराय”, “नीलकमल”, “सोहाग रात”, “नेकी और बदी”, “बावरे नैन”, “जोगन”, “गुनाह”, “हमारी याद आएगी”, “फ़रियाद” और “चित्रलेखा” के नाम ले सकते हैं इसके बाद उन्होंने फिल्मों का निर्देशन नहीं किया। पर 1965 की फ़िल्म “काजल” का स्क्रीन प्ले और संवाद लिखे थे उन्होंने।
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किदार शर्मा को इंडियन फिल्म डिरेसक्टर्स एसोसिएशन की तरफ से लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड दिया गया। 1982 में भारतीय सिनेमा में योगदान के लिए गोल्ड अवार्ड से सम्मानित किया गया। और 1999 में उनकी मौत के बाद महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें राजकपूर अवार्ड दिया। अवार्ड्स और सम्मान तो किदार शर्मा को कई मिले मगर वो मुक़ाम जो मिलना चाहिए था वो शायद नहीं मिला। जब भी हम गीतकारों की बात करते हैं तो अक्सर लगता है कि फिल्म इंडस्ट्री के साथ साथ संगीत के चाहने वालों ने भी उनके साथ न्याय नहीं किया।
पुराने गाने सुनिए तो वो गाने आपको याद होंगे सिंगर या संगीतकार और कलाकार भी याद होंगे पर कितने लोग हैं जिन्हें गीतकार का नाम याद होगा ! कई रिकार्ड्स या CD s पर भी उनका नाम नहीं मिलता। 50-60 के दशक के बाद तो हालात फिर बेहतर हुए मगर उससे पहले गीतकार के फ़न को लगभग नज़रअंदाज़ ही किया गया और फिर उसके नाम को भी भुला दिया गया। और किदार शर्मा तो बहुआयामी व्यक्तित्व के मालिक थे, उन्होंने जो कुछ फिल्म इंडस्ट्री को दिया उसे तो कभी नहीं भुलाया जा सकता।