खोदा पहाड़ निकली चुहियाखोदा पहाड़ निकली चुहिया

“खोदा पहाड़ निकली चुहिया” एक ऐसी कहावत है जिसके कई मायने है। एक मतलब है – बहुत मेहनत करने के बाद कुछ भी हासिल न होना। और दूसरा बहुत सी उम्मीदें लगाने के बाद उन पर पानी फिर जाना। हाँलाकि दोनों ही एक दूसरे से मिलते-जुलते हैं।

खोदा पहाड़ निकली चुहिया कहावत कैसे बनी

एक घना जंगल था, पेड़ों के अलावा वहां बहुत सी गुफाएँ भी थीं। एक छोटे से पहाड़ पर बनी एक गुफा में चोरों के एक गिरोह ने शरण ली हुई थी। वो सब वहीं इकठ्ठा होते थे और वहीं अपना सारा चोरी का माल छुपाते थे। जब ये गिरोह कहीं डाका डालने जाता तो एक चोर पीछे से उस गुफा में ज़रुर रहता था, रखवाली के लिए। 

एक दिन सारे चोर डाका डालने गए थे और नियम के मुताबिक़ एक चोर वहीं रहकर रखवाली कर रहा था। शाम के बाद का समय था ख़ाली गुफा में से खन-खन, छन-छन की आवाज़ उस चोर को सुनाई दी। जंगल में तो तरह-तरह की आवाज़ें आती ही रहती हैं उसने सोचा ऐसे ही कोई पंछी गाना गा रहा होगा।

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पर थोड़ी देर बाद उसे फिर वही आवाज़ सुनाई दी अबकी बार जब उसने ध्यान दिया तो उसे शक़ हुआ कि ये किसी पंछी की आवाज़ तो नहीं हो सकती। उसने जब टटोलना शुरू किया तो आवाज़ रुक गई लेकिन थोड़ी देर के बाद उसे फिर वही आवाज़ सुनाई दी तो उसे शक़ हुआ कि ज़रुर कोई चुपचाप गुफा में घुस आया है। वो अकेला था इसलिए उसने चुप रहना ठीक समझा लेकिन रात भर उसे वो आवाज़ परेशान करती रही।

जैसे ही उस के बाक़ी साथी चोर आए उसने सबको ये बात बताई। लेकिन उसकी बात सुनकर सबने उसका मज़ाक़ उड़ाया, एक ने कहा – “ज़रुर इसने कोई सपना देखा होगा”, एक बोला – “लगता है इसने भांग पी ली होगी”, एक ने कहा – “अरे ये तो है ही डरपोक, इसीलिए ऐसा कह रहा है” 

उसकी बात पर किसी ने विश्वास नहीं किया। ख़ैर ! अगले दिन पहरेदारी के लिए एक दूसरे चोर को गुफा में छोड़ा गया। शाम गहराते ही उसे भी वैसी ही आवाज़ सुनाई देने लगी, वो अपने साथी का मज़ाक़ बनते हुए देख चुका था इसलिए अपनी पूरी तसल्ली कर लेना चाहता था। तो उसने उस लम्बी-चौड़ी गुफा का कोना-कोना छान मारा मगर वहाँ उसे कोई नहीं मिला और इस दौरान आवाज़ भी नहीं आई। 

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लेकिन जैसे ही वो थक कर बैठा उसे फिर से आवाज़ सुनाई देने लगी, अबकी बार चोर सच में डर गया उसे लगा कि गुफा में कोई भूत प्रेत का साया आ गया है। जब उसके बाक़ी के साथी आए तो इस चोर ने भी वही कहा जो कल वाले चोर ने कहा था। अब चोरों का सरदार सोच में पड़ गया तभी उसे कुछ याद आया। 

उसने कहा दोस्तो ! लगता है क़िस्मत हम पर मेहरबान हो गई है। बाक़ी चोरों ने पूछा – वो कैसे ? तो सरदार बोला – मेरे पिताजी कहते थे कि एक ज़माने में लोग अपना धन सुरक्षित रखने के लिए ज़मीन के नीचे गाड़ दिया करते थे और धन अपनी जगह अपने आप जगह बदलता रहता था। हो न हो ये उसी दौलत की खनखनाहट है, ऐसा करते हैं इस पहाड़ की खुदाई करते हैं। 

खोदा पहाड़ निकली चुहिया
खोदा पहाड़ निकली चुहिया

सारे चोर दौलत छुपे होने की बात से वैसे ही बहुत ख़ुश हुए और सब एकदम तैयार हो गए। और चोरों ने मिलकर उस पहाड़ को खोदना शुरु कर दिया। कई घंटे गुज़र गए, रात से सुबह हो गई लेकिन चोरों को कुछ नहीं मिला। उनके हौसले पस्त होने लगे थे तभी किसी को एक छोटा सा सुराख़ दिखा। 

सबको लगा, यही है ख़ज़ाने तक पहुँचने का रास्ता। और एक चोर ने उसी को खोदना शुरु किया तभी अचानक फिर से उन्हें वही आवाज़ सुनाई दी और देखा एक छोटी सी चुहिया इधर-उधर फ़ुदकती हुई दिखी जिसके पैर में एक छोटा सा घुंघरु अटक रहा था। 

जिसे वो धन-दौलत की खनक समझ रहे थे वो दरअस्ल चुहिया के पैर में अटके घुंघरु की आवाज़ थी। उस चुहिया को फुदकते देखकर चोरों के चेहरे देखने वाले थे, उनकी सारी मेहनत बेकार हो गई थी। तभी उनमें से एक चोर गुस्से में बोला – खोदा पहाड़ निकली चुहिया। बस तभी से ये कहावत बन गई।

खोदा पहाड़ निकली चुहिया

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