गोप और याकूब

गोप और याकूब (Gope And Yakub) – इंडियन लॉरेल हार्डी

गोप और याकूब भारतीय सिनेमा की पहली मशहूर कॉमिक जोड़ी

लॉरेल और हार्डी की ही डगर पर चल कर घोरी और दीक्षित की परंपरा को आगे बढ़ाया गोप और याकूब की जोड़ी ने। और वो घोरी और दीक्षित से भी ज़्यादा मशहूर हुए इतने कि आज ज़्यादातर लोग उन्हें ही पहले इंडियन लॉरेल और हार्डी मानते हैं और पहली हास्य जोड़ी भी, वो पहले तो नहीं पर हाँ भारतीय सिनेमा के पहले मशहूर कॉमिक पेअर ज़रुर बने।

गोप और याकूब

जोड़ी के तौर पर स्क्रीन पर आने से पहले (गोप और याकूब) गोप बतौर हास्य कलाकार और याकूब नेगेटिव रोल्स में स्थापित हो चुके थे। लेकिन 1949 में जब पतंगा फ़िल्म आई तो दोनों को एक साथ स्क्रीन पर देखकर इन्हें भारतीय लॉरेल हार्डी कहकर पुकारा गया। इस फिल्म में गोप पर फ़िल्माया गाना – ‘मेरे पिया गए रंगून’ तो आइकोनिक है और हमेशा गुनगुनाया जाता है।

गोप और याकूब – गोप विशनदास कमलानी

गोप विशनदास कमलानी जो अपने समय के स्टार कॉमेडियन रहे। कुछ लोग उन्हें पहला स्टार कॉमेडियन मानते हैं पर पहले स्टार कॉमेडियन थे नूर मोहम्मद चार्ली। गोप पहले ऐसे कॉमेडियन थे जिनकी याद आज भी ताज़ा है क्योंकि वो 50 के दशक तक फ़िल्मों में दिखाई देते रहे। राज कपूर की फिल्म “चोरी-चोरी” में उन्होंने नरगिस के ऐसे पिता की भूमिका निभाई थी जो आख़िर में ख़ुद अपनी बेटी को शादी के मंडप से भगा देता है।

कुछ ही दृश्यों में अपनी छाप छोड़ने वाले गोप दिखने में गोल-मटोल थे उस पर उनका बोलने का अंदाज़ ऐसा था कि देखने वालों को तुरंत हँसी आ जाती थी। इसीलिए वो अपने समय में बतौर हास्य कलाकार (गोप और याकूब) काफ़ी मशहूर हुए। गोप का जन्म सिंध के हैदराबाद में 11 अप्रैल 1913 को हुआ था। हर पिता की तरह उनके पिता भी चाहते थे कि वो पढ़-लिख कर कुछ बन जाएँ मगर गोप मेट्रिक भी पास नहीं कर पाए।

गोप और याकूब

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फिर फ़िल्ममेकर के एस दरयानी की मदद से वो मुंबई आये और फ़िल्मों में अभिनय करना शुरू कर दिया। 1933 की ईस्टर्न आर्ट प्रोडक्शंस की फ़िल्म “इंसान या शैतान” में एक छोटे से रोल से उनकी शुरुआत हुई। मोती गिडवानी के निर्देशन में बनी इस फ़िल्म में उन दीक्षित का भी एक छोटा सा रोल था, जो उनसे पहले इंडियन हार्डी कहलाते थे।

गोप ने अपने पूरे करियर में क़रीब 140 फ़िल्मों में अभिनय किया। 50s में उन्होंने गोप प्रोडक्शन की भी शुरुआत की। इस बेनर तले उन्होंने अपने भाई राम कमलानी के साथ मिलकर हंगामा (52), और मालकिन(53) जैसी कुछ फ़िल्मों का निर्माण भी किया। मगर बतौर निर्माता उन्हें बहुत ज़्यादा कामयाबी नहीं मिली पर इस दौर की कुछ फ़िल्मों में वो नेगेटिव शेड्स वाले किरदार निभाते नज़र आये हाँलाकि उनमें भी हास्य का पुट रहा। वो शायद अपने अभिनय के कुछ और रंग दिखाते मगर अचानक ही कुछ ऐसा घट गया कि सब हैरान रह गए।

साल था 1957,  कुंदन कुमार की फ़िल्म “तीसरी गली” की शूटिंग चल रही थी, उस दृश्य में गोप को अभिभट्टाचार्य से कहना था – “मैं ऊपर जाके फिर बात करेगा… इसके तुरंत बाद उन्हें गिरना था और वो गिर पड़े। दरअस्ल ये उस फ़िल्म में उनकी मौत का सीन था, और शॉट बहुत ही बढ़िया गया, सेट पर सभी ने वाह-वाही की लेकिन जब मुबारक़बाद देने पर भी गोप अपनी जगह से नहीं उठे तो पता चला कि वो तो सच में ऊपर चले गए थे। डायलॉग बोलते ही वो बेहोश होकर गिर पड़े और तुरंत ही उनकी मौत हो गई।

गोप और याकूब – याकूब

शायद ही कोई ऐसा हो जिसने ये गाना न सुना हो, “चुनचुन करती आई चिड़िया” इन कलाकारों को लोग न पहचानते हों पर इस गाने को आज के बच्चे भी दोहराते हैं और ये गाना फ़िल्माया गया है याकूब पर। वो याकूब जिन्होंने फ़िल्मों में बतौर एक्स्ट्रा शुरुआत की फिर नेगेटिव रोल्स में अपनी धाक जमाई और फिर कॉमेडी में भी छा गए। (गोप और याकूब) गोप अगर अपने ज़माने के हार्डी कहलाये तो याकूब बने उनके पार्टनर-इन-क्राइम लॉरेल, लेकिन फ़िल्मों में आने से पहले उन्होंने बड़े पापड़ बेले।

याकूब का पूरा नाम था याकूब ख़ान, उन का जन्म 3 अप्रैल 1903 को जबलपुर के एक पठान परिवार में हुआ। उनके पिता जबलपुर में लकड़ी के ठेकेदार थे और वो चाहते थे कि उनका बेटा उनके काम को आगे बढ़ाए लेकिन याकूब को उनके काम में कोई दिलचस्पी नहीं थी, बल्कि वो मोटर मैकेनिक बनना चाहते थे। इसलिए वो बहुत कम उम्र में ही घर से भाग कर लखनऊ पहुँच गए। वहाँ वो अलेक्सेंड्रा थिएटर कंपनी से जुड़ गए और क़रीब दो साल वहां काम किया।

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1921 में वो मुंबई आए और मोटर मैकेनिक का काम सीखा और फिर उन्हें एक शिप पर काम मिल गया। इसी बहाने उन्होंने दुनिया के कई देश भी देख लिए। क़रीब एक साल बाद उन्होंने ये नौकरी भी छोड़ दी और एक टूरिस्ट गाइड के तौर पर काम करने लगे। 1924 में वो एक बार फिर मुंबई पहुंचे और फिर से एक थिएटर कंपनी में काम करने लगे, और अबकी बार उन्हें लगा कि यही वो काम है जो शायद वो हमेशा से करना चाहते थे और फिर उन्होंने ‘शारदा फ़िल्म कंपनी’ ज्वाइन कर ली।

गोप और याकूब

इसके बाद अलग-अलग फिल्म कंपनियों के साथ उन्होंने कई साइलेंट फ़िल्मों में काम किया। टॉकीज़ आने के बाद भी याकूब लगातार फ़िल्मों में बेहतरीन अदाकारी करते रहे। सागर मूवीटोन में काम करते हुए याकूब की दोस्ती महबूब ख़ान से हो गई थी तो महबूब ख़ान के निर्देशन में बनी कई महत्वपूर्ण फ़िल्मों में उन्होंने अभिनय किया। उस समय तक उन्होंने बहुत से नेगेटिव किरदार बड़ी ख़ूबी से निभाए। महबूब ख़ान की फ़िल्म “औरत” जिसकी कहानी पर उन्होंने बाद में “मदर इंडिया” बनाई थी।

“औरत” में याकूब ने सुनील दत्त वाला ‘बिरजू’ का किरदार निभाया था, आक्रोश से भरा युवक—  उनकी बाद के दौर की फ़िल्मों को देखकर यक़ीन नहीं होता कि वो कभी खलनायक रहे होंगे। यही एक अभिनेता की ख़ूबी होती है कि वो हर रंग में आसानी से ढल जाता है। और उन्होंने सर अभिनय ही नहीं किया बल्कि कुछ फ़िल्मों का निर्देशन भी किया मगर वो फ़िल्में चली नहीं जिससे याकूब को बहुत नुकसान भी उठाना पड़ा।

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बाद के दौर में याकूब चरित्र भूमिकाएँ करते दिखाई दिए। अपने पूरे करियर में याकूब ने 130 से ज़्यादा फ़िल्में कीं और यादगार भूमिकाएं निभाईं और (गोप और याकूब ) गोप की मौत के अगले ही साल 24 अगस्त 1958 को वो भी इस दुनिया से कूच कर गए।

गोप और याकूब उन शुरूआती कलाकारों में से थे जिन्होंने हास्य की एक परिपाटी सेट की। जब गोप और याकूब की जोड़ी ‘पतंगा’ फ़िल्म में स्क्रीन पर नज़र आई तो दर्शक हँस-हंस कर लोट-पोट हो गए। फिर एक साथ बाज़ार, सगाई, बेक़सूर, मेहरबानी जैसी कई फ़िल्मों में नज़र आये। हाँलाकि दोनों की अपनी-अपनी एक अलग पहचान थी लेकिन बतौर कॉमिक जोड़ी गोप और याकूब इतने मशहूर हुए कि इन्हें आज भी याद किया जाता है और फ़िल्म इतिहास में उनके योगदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकेगा।