सचिन भौमिक को मास्टर ऑफ़ रोमांस कहा जाता था, अगर किसी हीरो को अपनी सॉफ्टर साइड दिखानी हो, अपनी रोमांटिक इमेज को बेहतर बनाना हो तो उनका स्क्रीनप्ले ज़रुरी माना जाता था।
60 का दशक हिंदी फ़िल्मों में एक नयापन लेकर आया था। रोमांटिक फ़िल्में तो 50s से ही बननी शुरु हो गई थीं मगर 60s में उस रोमांस में फ़ैमिली ड्रामा, कॉमेडी ट्रैक के साथ-साथ आया कलर। ईस्टमैन कलर्स में बनी इन फ़िल्मों को रंगदार फ़िल्में कहा जाता था। कलर आने के साथ ही नई नई ख़ूबसूरत लोकेशंस भी फ़िल्मवालों की पहली पसंद बन गईं। उस दौर की कितनी ही फ़िल्मों में कश्मीर की ख़ूबसूरत वादियाँ देखने को मिलती हैं।
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एक बदलाव ये भी था कि देश को आज़ाद हुए 10 साल से ज़्यादा हो गए थे और लोग फ़िल्मों में बेहतर भविष्य के सपने या अपनी परेशानियाँ नहीं देखना चाहते थे। और इसी पलायनवादी सोच का परिणाम रहीं 60s की रोमांटिक मसाला फ़िल्में जो गीत-संगीत से रची बसी होती थीं। पर कहानी के नाम पर उनका एक सेट टेम्पलेट होता था, उसी साँचे में कहानी को ढाल कर अलग-अलग तरह से परोसा जाता था। कुछ वैसे ही जैसे कोई खाने की डिश जिसमें मसाले वही होते हैं पर अलग-अलग जगहों पर उसका स्वाद, रंग-रुप, परोसने का तरीक़ा और क़ीमत बदल जाती है। ऐसी सेट फॉर्मूला फ़िल्मों के कामयाब लेखक थे सचिन भौमिक।
सचिन भौमिक ने हृषिकेश मुखर्जी के साथ बहुत सी फ़िल्में कीं
सचिन भौमिक का जन्म 17 जुलाई 1930 को कलकत्ता में हुआ। उन्हें ट्रैवलिंग का बहुत शौक़ था और एक समय में वो ट्रेवल राइटर भी रहे। बांग्ला पत्रिका उल्टोरथ के लिए भी वो नियमित रूप से लिखते रहे। सचिन भौमिक ऐसे वक़्त में हिंदी सिनेमा से जुड़े जब पंडित मुखराम शर्मा और अख़्तर-उल-ईमान जैसे दिग्गज फ़िल्मी लेखन में जगह बनाये हुए थे। सचिन भौमिक बिमल रॉय के साथ काम करना चाहते थे मगर बहुत कोशिश के बाद भी ऐसा नहीं हो पाया। तब वो हृषिकेश मुखर्जी से मिले जो उस समय अनाड़ी फ़िल्म का निर्देशन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अगर ये फिल्म चलती है तो हम साथ में काम करेंगे।
सचिन भौमिक को उनका पहला मौक़ा मिला और 1958 में आई मोहन सहगल की फ़िल्म “लाजवंती” से जिसका स्क्रीनप्ले उन्होंने लिखा। ये फ़िल्म कामयाब रही और उधर अनाड़ी भी हिट हो गई और फिर सचिन भौमिक ने हृषिकेश मुखर्जी को अपनी एक कहानी सुनाई जिसे उन्होंने एक बांग्ला पत्रिका के लिए लिखा था। वो कहानी हृषिकेश मुखर्जी को बहुत पसंद आई और फिर उस पर फिल्म बनी फ़िल्म “अनुराधा” जिसे बेस्ट फ़ीचर फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। “अनुराधा” फ़िल्म की कहानी गुस्ताव फ्लूबर्ट की कहानी मैडम बोवरी से प्रेरित थी।
“अनुराधा” फ़िल्म के हीरो थे बलराज साहनी जो एक सुशिक्षित, बेहतरीन अभिनेता थे। हीरोइन थीं अलौकिक दिखने वाली लीला नायडू, जो एक नई कलाकार थीं और सिर्फ़ फ़्रेंच और अंग्रेज़ी बोलती थी। जब भी वो फ़िल्म के डायलॉग बोलने की कोशिश करती तो लोग हँसने लगते। लेकिन वो बहुत मेहनती थीं और उनकी कोशिशों को देखते हुए सचिन भौमिक और ऋषिकेश मुखर्जी ने सभी को सख्ती से आदेश दिया कि कोई उन पर न हँसे। बाद में लीला नायडू ने अपने संवाद भी ख़ुद ही डब किए।
सचिन भौमिक की अगली फ़िल्म फिर हृषिकेश मुखर्जी की ही आई “छाया” जिसका स्क्रीनप्ले सचिन भौमिक ने लिखा। सचिन भौमिक ने हृषिकेश मुखर्जी की लगभग 10 फिल्में की इनमें “बीवी और मकान”, “बेमिसाल” – स्क्रीनप्ले , “किसी से न कहना” – स्क्रीनप्ले, “अच्छा बुरा” (83), “झूठी” – स्क्रीनप्ले, और उनकी आख़िरी फ़िल्म “झूठ बोले कौवा काटे” के साथ साथ क्लासिक कॉमेडी “गोलमाल” भी शामिल है जिसका स्क्रीनप्ले सचिन भौमिक ने ही लिखा था।
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गोलमाल बनने के दौरान कई ऐसे वाक़ए हुए जो बहुत रोचक थे। फ़िल्म में अमोल पालेकर बहुत ऊँचा कुरता पहनते हैं उसकी वजह ये थी कि जब अमोल पालेकर के लिए कुरता बनवाया गया तो दर्ज़ी ने ग़लती से कुर्ते की लम्बाई कम कर दी। मगर हृषिकेश मुखर्जी को बर्बादी, फ़िज़ूलख़र्ची बिल्कुल पसंद नहीं थी, इसलिए उन्होंने अमोल पालेकर को वही कुरता पहनने को कहा और फिर एक सीन में ऐसे संवाद डाले गए जो उस कुर्ते की लम्बाई को जस्टिफाई करते हैं।
सचिन भौमिक रोमांटिक मसाला फ़िल्मों के लेखक
60 के दशक में ही सचिन भौमिक का रुतबा एक स्टार राइटर का बन गया था। उस समय की उनकी फ़िल्मों में “आई मिलन की बेला”, “ज़िद्दी”, ‘जानवर”, “लव इन टोक्यो”, “एन इवनिंग इन पेरिस”, “ब्रह्मचारी”, “आया सावन झूम के”, “आन मिलो सजना” जैसी सुपरहिट फिल्में हैं। अगर आपने ये फिल्में देखी हों तो आप समझ जाएँगे कि इन सभी फ़िल्मों में हीरो-हीरोइन के झगड़े के बाद प्यार, कुछ लोकप्रिय गाने, एकाध कॉमेडी का एंगल, विलेन का क्रिएट किया ड्रामा और क्लामैक्स में हैप्पी एंडिंग है।
इन फ़िल्मों की कहानियाँ इतनी सिमिलर हैं कि कुछ समय बाद दिमाग़ में इन की खिचड़ी सी बन जाती है। मगर उस समय ये फॉर्मूला हिट था, और फॉर्मूला अगर हिट है तो दिक्कत क्या है? सचिन भौमिक के साथ काम करने वाले लोगों के अनुसार उनके पास एक ही दृश्य को करने के दसियों अलग-अलग तरीक़े होते थे। इसीलिए इन फ़िल्मों की कहानी लगभग सेम होते हुए भी पटकथा में फ़र्क़ देखने को मिलता है। लेकिन कभी-कभी उसमें भी समानता निकल आती थी, जैसा आराधना के साथ हुआ।
आराधना की शूटिंग शुरू होने ही वाली थी कि अनिल कपूर के पिता सुरेंद्र कपूर ने शक्ति सामन्त को अपनी फ़िल्म “एक श्रीमान एक श्रीमती” देखने के लिए बुलाया, इस फ़िल्म के लेखक भी सचिन भौमिक थे। फ़िल्म का अंत देखकर शक्ति सामंत हैरान रह गए क्योंकि “आराधना” का अंत ठीक वैसा ही था। वापस आकर शक्ति सामंत ने “आराधना” को ड्राप करने का इरादा कर लिया था लेकिन उसी वक़्त गुलशन नंदा वहाँ पहुंचे और जब उस मुश्किल का पता चला तो उनकी सलाह पर फ़िल्म में राजेश खन्ना को बाप बेटे के डबल रोल में दिखाया गया। जबकि असली कहानी में इंटरवल में राजेश खन्ना की मौत हो जाती है और फ़िल्म में दूसरे हीरो की एंट्री होती है।
सचिन भौमिक शर्मीला टैगोर को हिंदी फ़िल्मों में लाए
पर यहाँ कहानी में बदलाव का फ़ायदा ही हुआ क्योंकि 1969 में आई “आराधना” ने बहुतों को जीवनदान दिया। इसी फ़िल्म से किशोर कुमार की एक पार्श्वगायक के रुप में नई पारी शुरु हुई। राजेश खन्ना को स्टारडम मिलने की शुरुआत भी इसी फ़िल्म से हुई, वो रातोंरात सेंसेशन बन गए थे। फिल्म की हेरोइन शर्मीला टैगोर को बेस्ट एक्ट्रेस के अवार्ड से नवाज़ा गया था, हाँलाकि वो इस फ़िल्म के लिए शक्ति सामंत की पहली पसंद नहीं थीं। शक्ति सामंत हेमा मालिनी को फ़िल्म में लेना चाहते थे मगर सचिन भौमिक के कहने पर उन्होंने शर्मीला टैगोर को हेरोइन चुना।
वैसे शर्मीला टैगोर को हिंदी फ़िल्मों में लाने का श्रेय भी सचिन भौमिक को ही जाता है। शर्मीला टैगोर की माँ और सचिन भौमिक बहुत अच्छे दोस्त थे। उन्होंने ही शर्मीला टैगोर की माँ को राज़ी किया जिसके कारण शर्मिला टैगोर हिंदी फ़िल्मों में आ सकीं। 1973 में सचिन भौमिक ने शर्मिला टैगोर को हेरोइन लेकर एक फ़िल्म का निर्देशन भी किया जिसमें हीरो थे राजेश खन्ना। “राजा रानी” नाम की ये फ़िल्म कोई ख़ास चली नहीं और फिर दोबारा सचिन भौमिक ने किसी फ़िल्म का निर्देशन नहीं किया।
सचिन भौमिक को मास्टर ऑफ़ रोमांस कहा जाता था। अगर किसी हीरो को अपनी सॉफ्टर साइड दिखानी हो, अपनी रोमांटिक इमेज को बेहतर बनाना हो तो उनका स्क्रीनप्ले ज़रुरी माना जाता था। ऋषि कपूर की “खेल-खेल में”, “हम किसी से कम नहीं”, “ज़माने को दिखाना है”,”क़र्ज़”, जैसी रोमांटिक फ़िल्में उन्होंने ही लिखीं। हाँ ये ज़रुर है कि उन्होंने बहुत ही स्मार्टली वेस्टर्न फ़िल्मी मसालों को भारतीय परिवेश में ढालकर भारतीय फ़िल्मों के स्क्रीनप्ले में पेश किया। मगर ये तो बहुतों ने किया है, शोले जैसी कल्ट फ़िल्म के कुछ दृश्य तो पूरे के पूरे कॉपी किए गए हैं।
हमेशा A-लिस्ट फ़िल्मकारों के साथ काम किया
शम्मी कपूर की फ़िल्म “ब्रह्मचारी” के लिए बेस्ट स्टोरी का फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड पाने वाले सचिन भौमिक ने 80s में “दो और दो पाँच”, “साहिब”, “कर्मा”, 90s में “मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी”, “करण अर्जुन”, “कोयला”, “सोल्जर”, और “ताल” जैसी ब्लॉकबस्टर्स दीं, और फिर “कोई मिल गया” और “कृष” जैसी फ़िल्में। ये फ़िल्में शुद्ध रोमांटिक नहीं हैं इनमें सस्पेंस भी है, थ्रिल भी और एक्शन भी और सभी हिट। सचिन भौमिक ने नरगिस से लेकर ऐश्वर्या राय तक और सुनील दत्त से लेकर ऋतिक रोशन तक के लिए ब्लॉकबस्टर फिल्में लिखीं।
इसे भी आप उनकी ख़ुशक़िस्मती कह सकते हैं कि उन्होंने हमेशा A-लिस्ट फ़िल्ममेकर्स के साथ काम किया और उन सभी के साथ उनका एक लम्बा एसोसिएशन रहा। हृषिकेश मुखर्जी से लेकर प्रमोद चक्रबर्ती (12 से ज़्यादा फ़िल्में लिखीं), J ओम प्रकाश, नासिर हुसैन, बप्पी सोनी, सुभाष घई, राकेश रोशन जैसे कितने ही फ़िल्ममेकर्स के वो पसंदीदा लेखक रहे। इंडस्ट्री के ट्रेंड पर और दर्शकों की नब्ज़ पर उनकी गहरी पकड़ थी, शायद इसीलिए हर बड़े बैनर और हर बड़े निर्देशक का साथ उन्हें मिलता रहा।
50 साल तक ख़ुद को इंडस्ट्री में बनाए रखना किसी चमत्कार से कम नहीं है, ख़ासकर एक लेखक के लिए। इतने सालों में पीढ़ियाँ बदल जाती हैं, उनकी सोच, शौक़, और पसंद बदल जाती है। सचिन भौमिक के बाद ही कितने लेखक आए, कुछ तो आँधी की तरह छाए भी मगर उनके जैसी लम्बी पारी कोई नहीं खेल पाया। इतने सालों में उनकी कमर्शियल वैल्यू भी कम नहीं हुई, ये अपने आप में एक अचीवमेंट है। क्योंकि फ़िल्मों में मनोरंजन की परिभाषा लगातार बदलती रहती है, उस बदलाव के साँचे में ख़ुद को ढालते जाना ही शायद सचिन भौमिक की सबसे बड़ी ख़ूबी थी।
फ़िल्मों में रंगे नॉन-फ़िल्मी व्यक्ति
सचिन भौमिक को फ़िल्मों से प्यार था, और देश-विदेश की हर फ़िल्म की जानकारी भी उन्हें थी। इतनी कि आप उन्हें कोई सीन बताएं वो तुरंत आपको फिल्म का नाम और कलाकार का नाम बता सकते थे। इसीलिए उन्हें फ़िल्मी इनसाइक्लोपीडिया भी कहा जाता था। उनकी ज़्यादातर फ़िल्मों का स्क्रीनप्ले भी टोटल फ़िल्मी ही है मगर फ़िल्मों में इतना डूबे होने के बावजूद वो निजी तौर पर फ़िल्मी इंसान नहीं थे, फिल्मवालों जैसा कोई दिखावा नहीं था उनमें।
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सचिन भौमिक के विषय में किसी तरह के ईगो क्लैशेस की बातें कभी नहीं सुनी गईं। नए डायरेक्टर्स के साथ काम करते हुए भी कभी उन्होंने अपनी सीनियोरिटी को बीच में नहीं आने दिया। हमेशा डायरेक्टर की बात सुनी और उसकी डिमांड के मुताबिक़ काम किया। उनके साथ काम करने वालों के अनुसार वो बहुत इजी गोइंग थे, बहुत ही सादा और विनम्र इंसान, उन्हें कभी किसी ने ग़ुस्से में नहीं देखा, वो हमेशा हँसते-हँसाते रहते थे। उनका सेंस ऑफ़ ह्यूमर बहुत कमाल का था।
पुराने ज़माने की एक हीरोइन थीं कल्पना जिन्होंने तीन देवियाँ, प्रोफ़ेसर जैसी कुछ फ़िल्मों में काम किया था। सचिन भौमिक ने उनसे शादी की थी, लेकिन जल्दी ही पता चल गया कि ये एक बेमेल शादी थी, जिसका नतीजा ये हुआ कि कुछ ही समय में उनका तलाक़ हो गया । उन्होंने दूसरी शादी की एक बंगाली लड़की बाँसुरी से, उनका एक बेटा है, संदीप भौमिक।
सचिन भौमिक जैसी कामयाबी कम लोगों को मिलती है क्योंकि कम ही लोग ऐसे होते हैं जो समय के साथ ख़ुद को बदलने की क्षमता रखते हैं। सचिन भौमिक लगातार ख़ुद को उपडेट करते रहे, अपने लेखन को इंडस्ट्री के ट्रेंड्स के मुताबिक़ ढालते रहे, इसीलिए कामयाब रहे। और इसीलिए जब भी फ़िल्मी लेखकों का ज़िक्र होगा तो सचिन भौमिक का नाम टॉप राइटर में शामिल किया जायेगा।