रामचंद्र पाल स्टूडियो एरा के मशहूर संगीतकार थे, मगर वक़्त की धुंध में उनका नाम भी गुम होकर रह गया।
बॉम्बे टॉकीज़ उस स्टूडियो का नाम है जिससे जुड़े लगभग हर व्यक्ति ने नाम कमाया, हिमांशु राय और देविका रानी तो फाउंडर ही थे। उनके अलावा संगीतकार कलाकार गीतकार सभी मशहूर हुए। पर कुछ नाम ऐसे भी रहे जो उस समय तो प्रसिद्ध हुए पर आज उनका नाम सिर्फ़ फ़िल्म की डीटेल में ही सामने आता है। ऐसे ही संगीतकार थे रामचंद्र पाल जिनका उस समय काफ़ी चर्चा हुआ। मगर बाद के दौर में वो लगभग गुमनाम ही रहे।
इन्हें भी पढ़ें – आर सी बोराल भारतीय फ़िल्म संगीत के पितामह
रामचंद्र पाल के संगीत से प्रभावित होकर हिमांशु राय ने उन्हें बॉम्बे टॉकीज़ से जोड़ा
रामचंद्र पाल का जन्म 1909 में कोलकाता में हुआ, उनके बारे बहुत ज़्यादा जानकारी कहीं भी उपलब्ध नहीं है सिवाय इसके कि उन्होंने बादल ख़ान से संगीत की शिक्षा ली। मगर उनका परिवार कैसा था फ़िल्मों से कैसे जुड़े इस विषय में कोई जानकारी नहीं मिलती। शुरुआत में उन्होंने तमिल फ़िल्म बिल्वामंगल, बांग्ला फिल्म रजनी, और इंदिरा में संगीत दिया, ये दोनों फिल्में 1936 में आई थीं। 1939 की फ़िल्म प्रेम-सागर में भी उनका संगीत था। प्रेम सागर पहली हिंदी फ़िल्म थी जो दक्षिण भारत में बनी। और फिर यही फ़िल्म ज़रिया बनी उनके बॉम्बे टॉकीज़ से जुड़ने का।
उन दिनों हिमांशु राय किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश में थे जो बॉम्बे टॉकीज़ की फ़िल्मों के ऑर्केस्ट्रा को बेहतर बना सके। फ़िल्म प्रेम सागर के निर्देशक नरोत्तम व्यास से उन्हें रामचंद्र पाल के विषय में पता चला और इस तरह रामचंद्र पाल बतौर संगीतकार बॉम्बे टॉकीज़ से जुड़ गए। हाँलाकि बॉम्बे टॉकीज़ में पहले ही सरस्वती देवी म्यूज़िक डिपार्टमेंट संभाल रही थीं। फिर 1939 में ही आई बॉम्बे टॉकीज़ की फ़िल्म कंगन जिसमें रामचंद्र पाल और सरस्वती देवी दोनों ने ही संगीत दिया था। उन्होंने इस फ़िल्म के पांच गानों का म्यूजिक दिया।
इन्हें भी पढ़ें – केशवराव भोले ने मेडिकल की पढ़ाई छोड़कर संगीत की दुनिया को अपनाया
कंगन के गाने “बंद नाव का लंगर छोड़” के संगीत को उन्होंने बंगाल के भटियाली लोकसंगीत के आधार पर रचा। कहा जाता है भटियाली लोक संगीत को फ़िल्मों में लाने वाले वो पहले संगीतकार थे। इसके बाद रामचंद्र पाल ने बॉम्बे टॉकीज़ के लिए बंधन”, “आज़ाद” और “नया संसार” में सरस्वती देवी के साथ मिलकर संगीत दिया और “पुनर्मिलन” में सभी गाने उनके कंपोज़ किये हुए थे। जिनमें सबसे मशहूर रहा – नाचो नाचो प्यारे मन के मोर
बॉम्बे टॉकीज़ के बिखरते ही रामचंद्र पाल का करियर भी बिखर गया
पुनर्मिलन 1940 में आई थी, और इसी साल हिमांशु राय की मौत हुई थी। और 1941 आते-आते बॉम्बे टॉकीज़ दो गुटों में बँट गया था। बॉम्बे टॉकीज़ में जब दरार पड़ी तो कई लोग, उन दो गुटों की लड़ाई में सस्टेन नहीं कर पाए। इन कुछ नामों में सरस्वती देवी और रामचंद्र पाल का नाम भी शामिल रहा। सरस्वती देवी को मिनर्वा मूवीटोन ने अपने यहाँ काम करने का ऑफर दे दिया मगर रामचंद्र पाल किसी बड़े स्टूडियो के साथ नहीं जुड़े।
उन्होंने अलग-अलग फिल्म-प्रोडक्शन कंपनियों के साथ काम किया। आचार्य आर्ट प्रोडक्शन की “कुंवारा बाप”, “उलझन”, “आगे क़दम” में म्यूज़िक दिया। अत्रे पिक्चर्स की “तस्वीर”, जनक पिक्चर्स की “नल-दमयंती”, “घर घर की कहानी”, अयाज़ प्रोडक्शंस की “लाज”, वीनस पिक्चर्स की “फिर भी अपना है” जैसी फ़िल्मों में भी रामचंद्र पाल का संगीत सुनाई दिया। इनमें कुछेक फ़िल्मों को छोड़ दें तो ज़्यादातर के संगीत ने रामचंद्र पाल के म्यूज़िक करियर में कोई ख़ास योगदान नहीं दिया। इसीलिए उनका नाम बहुत बड़े संगीतकारों में शामिल नहीं हो सका।
इन्हें भी पढ़ें – गोविंदराव टेम्बे – मराठी फिल्मों के पहले संगीतकार
बाद के दौर में रामचंद्र पाल का नाम 1962 में सुनने में आया जब राजनंदिनी फिल्म प्रदर्शित हुई। इस फ़िल्म में संगीत देने के अलावा इसका निर्माण और निर्देशन भी उन्होंने ही किया था पर फ़िल्म ठीक से प्रदर्शित नहीं हुई इसलिए इसके आने जाने का किसी को कुछ पता नहीं चला। 21 जनवरी 1993 को रामचंद्र पाल इस दुनिया से रुख़्सत हुए। फ़िल्म संगीत खासतौर पर बॉम्बे टॉकीज़ की फ़िल्मों में वेस्टर्न ऑर्केस्ट्रा के अनूठे प्रयोग के लिए रामचंद्र पाल का योगदान माना जाता है। और जब तक बॉम्बे टॉकीज़ की फ़िल्मों के गाने ज़िंदा हैं तब तक उनका नाम भी बतौर संगीतकार ज़रुर ज़िंदा रहेगा।
[…] […]
[…] […]