नादिरा

नादिरा हिंदी फ़िल्मों की उन अभिनेत्रियों में से थीं जिन्हें अपने समय से बहुत आगे का माना गया। इसकी वजह शायद ये है कि जो आज के दौर की अभिनेत्रियाँ कर रही हैं वो उन्होंने अपने ज़माने में किया। उस समय ये सब बहुत बोल्ड माना जाता था पर उन्होंने अपने समय की परम्पराओं को तोड़ा और अपनी एक अलग पहचान बनाई। 

कृपया इन्हें भी पढ़ें – कानन देवी-1st लेडी ऑफ़ बंगाली सिनेमा 

नादिरा को हेरोइन की तरह चलना भी महबूब ख़ान की पत्नी ने सिखाया था

नादिरा का जन्म 5 दिसंबर 1932 को एक यहूदी परिवार में हुआ। घर में उनका नाम था फ़रहत ख़ातून ऐज़िकल, स्कूल में वो कहलाईं फ्लोरेंस ऐज़िकल। नादिरा नाम उन्हें दिया मशहूर निर्माता-निर्देशक महबूब ख़ान ने, जिनकी फ़िल्म “आन” से नादिरा ने फ़िल्मों में क़दम रखा और 18 साल की उम्र में ही रातों-रात स्टार बन गईं। जब वो इस रोल के लिए चुनी गईं तो उनकी उम्र काफ़ी कम थी। एक हेरोइन वाली चाल-ढाल, स्टाइल उन्हें कुछ नहीं आता था। ये सब उन्हें सिखाया महबूब ख़ान की दूसरी पत्नी सरदार अख़्तर ने। 

नादिरा

“आन” में नादिरा ने एक राजपूत राजकुमारी का किरदार निभाया था, फ़िल्म में उनके हीरो थे दिलीप कुमार। दिलीप साहब के बारे में ख़ुद नादिरा ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि उन्होंने दिलीप साहब को देख-देख कर ही अभिनय की बारीक़ियाँ सीखीं। हिंदी-उर्दू शब्दों का सही उच्चारण और संवाद अदायगी के गुर भी दिलीप साहब ने ही उन्हें सिखाए। “आन” में उनकी सह-कलाकार थीं अपने ज़माने की स्टार निम्मी, जिनसे नादिरा की ऐसी दोस्ती हुई कि ताउम्र चली। निम्मी के अलावा श्यामा और निरुपा रॉय भी उनकी अच्छी दोस्तों में से थीं।

अपने नैन-नक़्श की वजह से मिली खलनायिका की पहचान

“आन” के बाद नादिरा ने “नग़मा”, “वारिस”, “श्री 420”, “सिपहसालार”, “समुंदरी डाकू”, “पॉकेटमार”, “काला बाज़ार”, “तलाश”, “दिल अपना और प्रीत पराई”, “छोटी-छोटी बातें” जैसी फ़िल्मों में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं। पर उनकी छवि मुख्य रूप से खलनायिका की बनी।  एक उग्र स्वभाव की नकारात्मक स्त्री। इसकी वजह शायद उनका चेहरा-मोहरा, बाहरी व्यक्तित्व और बुलंद आवाज़ रही। पर उन्होंने जो भी किरदार निभाए पूरी शिद्दत से निभाए। उनके कमाल के अभिनय ने ही उन्हें एक अलग पहचान दी।

नादिरा

नादिरा वो पहली अभिनेत्री थीं जिन्होंने एक बड़ी ही महंगे ब्रांड की LUXURY कार खरीदी थी

चार दशकों के अपने करियर में नादिरा ने लगभग 80 फ़िल्मों में काम किया। वो अपने समय की एक महंगी स्टार थीं। वो पहली अभिनेत्री थीं जिन्होंने एक बड़ी ही महंगे ब्रांड की LUXURY कार खरीदी थी। ७० के दशक तक आते-आते वो चरित्र भूमिकाओं की तरफ़ मुड़ गईं। लेकिन इस दौर में भी उन्हें बेहद सशक्त भूमिकाएं मिलीं। “सफ़र”, “पाकीज़ा”, “एक नज़र”, “हँसते ज़ख्म”, “जूली”, “धर्मात्मा”, “अमर अकबर एंथनी”, “स्वयंवर”, “आस-पास” और “सागर” जैसी फ़िल्में इसका सबूत हैं। लेकिन ये भी ग़ौर करने वाली बात है कि उनके ज़्यादातर यादगार किरदार क्रिस्चियन या एंग्लो-इंडियन रहे।

कृपया इन्हें भी पढ़ें – कामिनी कौशल का नाम फ़िल्म क्रेडिट्स में हीरो के नाम से पहले आता था

फ़िल्म “जूली” में उन्होंने जूली की माँ मिसेज़ मार्गरेट का किरदार परदे पर इतनी ख़ूबसूरती और परिपक्वता से पेश किया कि इसके लिए उन्हें फ़िल्मफ़ेयर के सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के पुरस्कार से नवाज़ा गया। 90 के दशक में बढ़ती उम्र और बिगड़ती सेहत के कारण नादिरा ने बहुत कम काम किया और फिर फ़िल्मों से अलग हो गईं। हाँलाकि उसके बाद उन्होंने गिने-चुने टीवी धारावाहिकों में अभिनय किया। जिनमें “मार्ग्रेटा” और दीप्ति नवल का सीरियल “थोड़ा सा आसमान” शामिल हैं। दीप्ति नवल से उनके सम्बन्ध दोस्तों जैसे थे वो उन्हें आपा कहकर बुलाया करती थीं। उनका मानना है कि नादिरा की शख़्सियत ही ऐसी थी कि जो उनसे मिलता प्रभावित हुए बिना नहीं रहता।

नादिरा

फ़िल्मों से संन्यास लेने के बाद अकेले घर में नादिरा के साथी थे- अख़बार, किताबें, रेडियो और आस-पड़ोस के बच्चे जिन्हें वो बहुत प्यार करती थीं। उनके पास एक अच्छी-खासी लाइब्रेरी थी जिसका फ़ायदा वो बच्चे भी उठाया करते थे। फ़िल्मी दुनिया के कुछ दोस्त और जानने वाले उनसे मिलने कभी-कभी आ जाया करते थे पर चौबीस घंटे अगर कोई उनके साथ था तो उनकी देखभाल करने वाली नौकरानी।

कृपया इन्हें भी पढ़ें – वैजयंतीमाला ने अपने कड़वे अनुभवों के चलते फ़िल्मों से सन्यास लिया

नहीं मिला गृहस्थी का सुख

निजी ज़िंदगी में परिवार का सुख उन्हें नसीब नहीं हुआ जबकि उन्होंने दो बार शादी की। नादिरा ने पहली शादी की लेखक-निर्माता “नक्शब” से। वही नक़्शब जिन्होंने “महल” फ़िल्म का मशहूर गीत “आएगा आने वाला” लिखा था। उन्होंने ही “नग़मा” फ़िल्म का निर्माण किया था, उसी दौरान दोनों की शादी हुई थी। पर नक़्शब काफी रसिक क़िस्म के व्यक्ति थे, और जब नादिरा की बर्दाश्त ख़त्म हो गई तो एक रात वो उस घर से ख़ाली हाथ निकल आईं। उनकी ये शादी बमुश्किल दो साल चली, बाद में नक़्शब पाकिस्तान चले गए।

नादिरा

नादिरा ने दूसरी शादी की अरब मूल के एक व्यक्ति से, पर इस बार भी उन्हें निराश होना पड़ा। दरअस्ल वो एक आम औरत की तरह घर संभालना चाहती थीं, पर उनके पति चाहते थे कि वो काम करें और फिर ये शादी भी टूट गई। उन के बाक़ी रिश्तेदार हिंदुस्तान से बाहर जाकर बस गए थे इसीलिए नादिरा मुंबई में अकेले रह गई थीं।

नादिरा अपने आख़िरी दिनों में साइटिका और रीढ़ की लाइलाज बीमारी के कारण लगभग तीन साल तक बिस्तर पर रहीं। वो बीमार थीं, लाचार थीं, अकेली थीं पर ऐसे में भी उनकी आवाज़ और हँसी-मज़ाक़ की आदत वैसी ही थी। शायद इसी को स्वाभिमान से जीना कहते हैं। 9 फरवरी 2006 को नादिरा ने आँखें मूँद लीं और अपनी तन्हा ज़िंदगी को अलविदा कह दिया।

3 thoughts on “नादिरा – अपने समय की बोल्ड अभिनेत्री”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *