ललिता पवार (Lalita Pawar) हिंदी फ़िल्मों की क्रूर सास
ललिता पवार का नाम आते ही एक ख़तरनाक सास का चेहरा याद आता है, फ़िल्मों में बहु को सताने वाली सास की छवि लोगों के ज़हन में ऐसी बैठी है कि हम उनकी उन भूमिकाओं को बिलकुल ही इग्नोर कर देते हैं जिनमें उन्होंने ममतामयी माँ, या माँ जैसा प्यार देने वाली बड़ी उम्र की महिला का किरदार निभाया। हाँ ऐसे रोल्स कम रहे मगर उन भूमिकाओं में से कुछ तो ऐसी थीं जो आज तक याद की जाती हैं। जैसे ‘अनाड़ी’ की mrs डीसा, ‘आनंद’ की नर्स, ‘श्री 420’ की केले बेचने वाली महिला।
ललिता पवार की माँ समझीं कि उनके पिता ने उन्हें बेच दिया है
केरेक्टर रोल्स में उतरने से काफ़ी पहले ललिता पवार लीड रोल्स किया करती थीं। हाँलाकि फ़िल्मों में उनकी शुरुआत बतौर बाल कलाकार ही हो गई थी। बहुत से शेड्स हैं उन के अभिनय के। 18 अप्रैल 1916 में जन्मी ललिता पवार का असली नाम था अम्बिका लक्ष्मण सगुन। उनके पिता ने उन्हें लड़कों की तरह पाला-पोसा था पर कमाल की बात ये है कि फ़िल्मों के बारे में उन्हें कुछ पता ही नहीं था, बचपन में बस रामलीला देखा करती थीं।
एक बार जब वो लोग पुणे गए तो वहाँ उन्होंने पहली बार फ़िल्म देखी, और परदे पर चुपचाप चलते-फिरते किरदारों को देखकर उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ। और फिर उनकी वो जिज्ञासा उन्हें फ़िल्म कंपनी के स्टूडियो तक ले गई। जहाँ उन्हें फ़िल्म में काम करने का ऑफर मिला, पिता वहां नहीं थे तो बुआजी से स्वीकृति ली गई और वो आर्यन फ़िल्म कंपनी में 18 रूपए महीने की तनख्वाह पर बतौर बाल कलाकार काम करने लगीं। मगर फिल्म की शूटिंग के दौरान ही उनके पिता लौट आये और घर वापसी की बात होने लगी।
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फिर नाना साहब सरपोतदार ने उनके पिता को सब कुछ समझाया और बच्चों की ज़िम्मेदारी ख़ुद ले ली। मगर इसी बात पर उनके माता-पिता का बहुत झगड़ा हुआ। उनकी माँ को लगा कि उनके पिता ने बच्चों को कहीं बेच दिया है। खैर ! इसके बाद फ़िल्मों का जो सिलसिला शुरू हुआ वो 7 दशकों तक क़ायम रहा। ‘आर्यन महिला’, ‘पतितोद्धार’, ‘चतुर-सुंदरी’, ‘शमशेर बहादुर’, ‘सांग ऑफ़ लाइफ’, ‘रॉयलफ्रेंड’ जैसी क़रीब ७० साइलेंट फ़िल्मों में ललिता पवार ने अभिनय किया। ‘शमशेर बहादुर’ में उन्होंने एक लड़के की भूमिका निभाई थी, ‘कैलाश’ में उन्होंने हेरोइन, खलनायिका, और माँ तीनों किरदार निभाए।
ललिता पवार ने अपने समय में बिकनी पहन कर हलचल मचा दी थी
उनकी पहली टॉकी फ़िल्म आई ‘हिम्मत-ए-मर्दां मदद-ए-ख़ुदा’, और उस ज़माने के चलन के मुताबिक़ उस फ़िल्म में उन्होंने अपने गाने भी ख़ुद ही गाए। इस फ़िल्म में उनका बहुत बोल्ड और ग्लैमरस रोल था, उन्होंने जानवर की खाल की बिकनी पहनी थी। उस ज़माने में ये एक बहुत बड़ा क़दम था। ग्लैमर और एक्टिंग स्किल्स के अद्भुत मेल की वजह से उन दिनों उनका सितारा बुलंदी पर था।
ललिता पवार ने अपनी एक फ़िल्म का निर्माण भी किया जिस का नाम था “दुनिया क्या है”, इस फ़िल्म की शूटिंग के दौरान उनकी मुलाक़ात हुई स्टंट फ़िल्मों के डायरेक्टर गणपत राव पवार से, और दोनों ने शादी कर ली। शादी के बाद उन्हें नाम मिला ललिता पवार। हाँलाकि वो शादी ज़्यादा चली नहीं, लेकिन उनका ये नाम उनकी पहचान बन गया। फिर बाद में उन्होंने फ़िल्म मेकर राजप्रकाश गुप्ता से दूसरी शादी की।
एक दुर्घटना ने उन्हें ग्लैमरस हेरोइन से चरित्र कलाकार बना दिया
दुर्घटनाएँ जैसे ललिता पवार की ज़िंदगी का हिस्सा बनी रहीं, एक फ़िल्म की शूटिंग के दौरान उनके पेट में तलवार घुस गई थी। शूटिंग करते हुए एक बार वो घोड़े से गिर गईं, तो एक बार डूबते-डूबते बचीं। लेकिन एक दुर्घटना ऐसी हुई जिसने उनके करियर की दिशा ही बदल दी और फ्यूचर की एक स्टार हीरोइन को केरेक्टर रोल्स करने पड़े।
“जंग-ए-आज़ादी” नाम की एक फ़िल्म की शूटिंग हो रही थी, जिसमें सीन था कि भगवान दादा उन्हें एक थप्पड़ मारेंगे, वो बेहोश हो जाएँगी और वो लोग उन्हें उठा कर ले जाएंगे । सीन शूट हुआ थप्पड़ भी पड़ा, ललिता पवार बेहोश भी हुई और वो लोग उन्हें उठा कर भी ले गए मगर वो थप्पड़ इतने ज़ोर से पड़ा कि वो सच में बेहोश हो गईं, उनके कान से खून बहने लगा और उनके चेहरे के लेफ़्ट साइड को लकवा मार गया।
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इधर ललिता पवार बीमार थीं, ठीक होने की जद्दोजहद चल रही थी उधर फ़िल्म के निर्माता ने उन्हें नोटिस भेज दिया कि आपकी बीमारी के कारण नुक्सान हो रहा है इसलिए हम दूसरी हेरोइन ले रहे हैं। ये ख़बर न्यूज़ पेपर्स में भी अलग-अलग तरह से छपी जिसके कारण उनके सभी कॉन्ट्रैक्ट कैंसिल हो गए। ललिता पवार को लगभग ढाई तीन साल लगे, लकवा तो ठीक हो गया मगर उनकी आँख पर अपना असर छोड़ गया। जिसके कारण गुस्से या इमोशनल सीन्स में वो आँख थोड़ी छोटी हो जाती थी।
अपनी कमज़ोरी को ललिता पवार ने ताक़त बना लिया
अब बतौर हेरोइन उनका करियर ख़त्म हो चूका था, लेकिन अपनी इसी कमी को उन्होंने अपनी ताक़त बना लिया। ललिता पवार ने मराठी, हिंदी, गुजराती की क़रीब 700 से भी ज़्यादा फ़िल्मों में काम किया, costume ड्रामा, रोमेंस, कॉमेडी, यहाँ तक की स्टंट फ़िल्में भी कीं। इमोशनल रोल्स करने में वो माहिर थीं मगर उन्हें सबसे ज़्यादा एक कड़क, सख़्त, तुनक मिज़ाज सास के तौर पर याद किया जाता है या कहें हीरो की ऐसी माँ जो अपने ही बेटे की गृहस्थी में आग लगाती थी। अपने घर और अपने बेटे पर अपना राज क़ायम रखना चाहती थी। सब कुछ अपने कंट्रोल में रखने वाली महिला।
दहेज़, घराना, जंगली, प्रोफ़ेसर, नीलकमल, सौ दिन सास के ऐसी ही फ़िल्मों ने उनकी इस इमेज को पुख़्ता किया। और रही सही कसर पूरी कर दी रामानंद सागर के टीवी धारावाहिक रामायण ने जिसने उन्हें मंथरा के रूप में अमर कर दिया। उन्होंने अपनी तरफ़ से उस भूमिका में कुछ ऐसे improvisation किया कि लोग सच में उन्हें मंथरा जैसा ही समझने लगे। जबकि वो असल ज़िंदगी में बहुत ही नर्मदिल और इमोशनल महिला थीं और फ़िल्मों में उन्हें अवार्ड्स भी ऐसी ही भूमिकाओं के लिए मिले। जिनमें ‘गृहस्थी’ और ‘अनाड़ी’ जैसी फ़िल्में शामिल हैं।
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24 फरवरी 1998 को ललिता पवार इस दुनिया को छोड़ गईं। मौत के वक़्त वो पुणे में अपने घर पर अकेली थीं उनके पति मुंबई में अपना इलाज करा रहे थे। पति के बार-बार फ़ोन करने पर भी जब किसी ने फोन नहीं उठाया तो उन्होंने एक जानकार को घर भेजा तब पता चला कि दो दिन पहले ही ललिता पवार इस दुनिया से जा चुकी थीं। उनके जैसी अदाकारा न कोई थी न है न होगी। उनके इमोशनल केरेक्टर्स को लोग भले ही भूल जाएं पर हिंदी सिनेमा की एक सख़्त सास के तौर पर उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।