गोविंदराव टेम्बे मुख्य रूप से एक हारमोनियम प्लेयर थे, शास्त्रीय संगीत के उस्ताद, मगर जब उन्होंने सिनेमा में क़दम रखा तो म्यूज़िक कंपोज़ करने के साथ-साथ उन्होंने कई फ़िल्मों में डायलॉग्स और सांग्स भी लिखे। अभिनय किया और बाद में ख़ुद की एक प्रोडक्शन कंपनी बनाकर वहाँ फ़िल्मों का निर्माण भी किया। तो आज गोविंद सदाशिव टेम्बे को याद करेंगे जो पहली मराठी टॉकी के अभिनेता, गीतकार और संगीतकार थे।
गोविंदराव टेम्बे ने बिना ट्रेनिंग के हारमोनियम में महारत हासिल की
कोल्हापुर के एक मराठी मध्यमवर्गीय परिवार में 5 जून 1881 को जन्मे गोविंदराव टेम्बे का सम्बन्ध म्यूज़िक, थिएटर, साहित्य और सिनेमा से एक समान ही रहा। मगर एक हारमोनियम प्लेयर के तौर पर उन्हें जो ख्याति मिली वो सबसे ख़ास थी। बिना किसी फॉर्मल ट्रैंनिंग के भी वो एक एक्स्ट्राऑर्डिनरी हारमोनियम प्लेयर थे और इसकी असल शुरुआत तब हुई जब वो थिएटर से जुड़े। मराठी थिएटर में गीत-संगीत लाज़मी था,वहां से दिलचस्पी बढ़ी और फिर बड़े-बड़े उस्तादों की संगत ने उस हुनर को और निखारा।
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हारमोनियम मुख्य रूप से वेस्टर्न म्यूजिक के साथ बजाया जाता था। गोविंदराव टेम्बे ने उसका प्रयोग भारतीय शास्त्रीय संगीत के साथ करना शुरु किया और लगभग 40 साल उन्होंने इस साज़ के साथ तरह- तरह के ऐसे प्रयोग किए कि महाराष्ट्र और उससे बाहर भी गोविंदराव टेम्बे को इस साज़ की वजह से सम्मान मिलता रहा। उन्होंने उस समय के मशहूर क्लासिकल सिंगर्स भास्करबुआ भाखले, मोज्जुदीन ख़ान, अलादिया ख़ान साहब को सुन सुन कर संगीत के गुर सीखे और इन सब का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा। मराठी नाटकों की संगीतमय प्रस्तुतियों में भी उनका बहुत योगदान रहा।
उस समय तक मराठी नाटकों में शुद्ध शास्त्रीय संगीत सुनाई देता था पर गोविंदराव टेम्बे ने “मानापमान” और “विद्याहरण” जैसे नाटकों में शास्त्रीय संगीत के साथ साथ सेमी क्लासिकल म्यूजिक भी इस्तेमाल किया, जो मराठी नाटकों में एक रेवोलुशनरी क़दम था। उन्होंने कई स्टेज नाटक लिखे और उनका मंचन भी किया। गोविंदराव टेम्बे ने बाल गन्धर्व की नाटक मंडली से शुरुआत की थी फिर उन्होंने अपनी नाटक मण्डली बनाई – शिवराज नाटक मण्डली।
पहली मराठी फिल्म के अभिनेता, गायक, संगीतकार और लेखक
जब प्रभात फ़िल्म कंपनी ने पहली मराठी टॉकी बनाने की तैयारी शुरु की तो गोविंदराव टेम्बे भी प्रभात से जुड़ गए। फ़िल्म में उन्होंने सिर्फ़ म्यूज़िक ही नहीं दिया बल्कि एक्टिंग भी की और गीत भी लिखे। फिल्म बहुत कामयाब रही। शुद्ध शास्त्रीय संगीत का प्रभाव होते हुए भी इसके गाने बहुत मशहूर हुए और उस समय उनकी सैकड़ों डिस्क बिकीं थीं। इसके बाद गोविंदराव टेम्बे ने प्रभात के लिए “अग्निकंकण”, “माया मछिन्दर”, “सिंघगढ़” और “सैरंध्री” जैसी चार और फ़िल्मों में अलग-अलग काम किए फिर उन्होंने प्रभात छोड़ दिया।
गोविंदराव टेम्बे का उठना बैठना शुरू से ही राजाओं राजकुमारों में था। मैसूर के युवराज तो उनके घनिष्ठ मित्र थे और एक तरह से उनकी कला के संरक्षक भी। प्रभात फिल्म कंपनी छोड़ने के बाद उन्होंने अक्का साहेब महाराज और बाबूराव पेंटर की मदद से शालिनी सिनेटोन नाम की अपनी फ़िल्म कंपनी शुरु की जिसकी फिल्मों का निर्देशन बाबूराव पेंटर ने किया। शालिनी सिनेटोन की पहली फ़िल्म थी “उषा” जो कामयाब रही। फ़िल्म की कहानी और गीत, गोविंदराव टेम्बे ने ही लिखे संगीत देने के साथ-साथ फ़िल्म में श्रीकृष्ण की भूमिका भी उन्होंने ही निभाई।
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“उषा” के बाद आई “सावकारी पाश” जो बाबूराव पेंटर की ही मूक फ़िल्म का रीमेक थी और इसे बाबूराव पेंटर की फ़िल्म के तौर पर ही ज़्यादा जाना जाता है हाँलाकि इसका मधुर और सादा संगीत सभी ने पसंद किया था। इसके बाद आई फ़िल्म “प्रतिभा” तो कामयाब नहीं रही मगर इसमें हीराबाई बरोड़कर के गाए गाने बहुत लोकप्रिय हुए। इसके बाद उन्होंने दूसरे बैनर्स की भी कुछेक फ़िल्मों में संगीत दिया पर वो फिल्में उनके करियर में कोई ख़ास रोल अदा नहीं करतीं।
कहते हैं कि बदलते वक़्त के साथ फ़िल्म संगीत की बदलती ज़रुरत को गोविंदराव टेम्बे समझ नहीं पाए इसलिए फ़िल्मी सफ़र ज़्यादा लम्बा नहीं रह सका। लेकिन उन्होंने कई किताबें लिखीं जिनमें संगीत की व्याख्या करती कई महत्त्वपूर्ण किताबों के अलावा अलादिया ख़ाँ साहब की जीवनी और उनकी अपनी आत्मकथा भी शामिल है। उन्होंने आल इंडिया रेडियो के लिए कई ओपेरा यानी स्वर नाटिकाएँ लिखीं जो काफ़ी पसंद की गईं।
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अभिनेता, गायक, संगीतकार, गीतकार, डायलॉग राइटर, स्टेज एक्टर, लेखक और शिक्षक गोविंदराव टेम्बे का निधन 9 अक्टूबर 1955 को दिल्ली में हुआ। उन्होंने अपने हर रोल के साथ पूरा-पूरा न्याय किया। क्लासिकल म्यूज़िक, मराठी थिएटर और फ़िल्म म्यूजिक में उनका जो योगदान है उसे भुलाया नहीं जा सकता।
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