“अँधेर नगरी चौपट राजा टके सेर भाजी टके सेर खाजा” (खाजा एक प्रकार की मिठाई को कहते हैं)
तो ऐसी ही एक जगह थी अँधेर नगरी, जहाँ तीर्थ-यात्रा से लौटते हुए एक गुरु-शिष्य पहुँचे। जब वो एक जगह रुके तो गुरुजी आराम करने लगे और शिष्य खाने-पीने का इंतज़ाम करने के लिए बाज़ार चला गया। लोगों से पूछने पर उसे पता चला कि उस नगर का नाम था – अँधेर नगरी, और राजा का नाम था – चौपट। बाज़ार में क्या देखता है कि हर चीज़ का एक ही दाम है – भाजी भी टका सेर और खाजा भी टका सेर।
शिष्य ख़ुशी-ख़ुशी एक सेर खाजा खरीद कर वापस गुरु जी के पास पहुँच गया और बोला – गुरुजी ये नगरी तो बड़ी कमाल की है यहाँ तो हर चीज़ का एक ही भाव है। गुरूजी ने पूछा कौन सी नगरी है ये तो उसने कहा – अँधेर नगरी चौपट राजा टके सेर भाजी टके सेर खाजा- गुरूजी अब कुछ दिन यहीं रुक कर आराम करते हैं, यहाँ हम सुख से रहेंगे।
गुरुजी अनुभवी थे, समझदार थे बोले – बालक तुमने ही बताया था की ये है – अँधेर नगरी चौपट राजा है यहाँ का। यहाँ से जितनी जल्दी निकल चलो उतना अच्छा है। जहाँ कौवे और कोयल में कोई फ़र्क़ नहीं दिखता हो, वो जगह रहने लायक़ नहीं हो सकती, वैसे भी साधु को बहते पानी की तरह होना चाहिए, ज़्यादा दिन एक जगह टिकना हमारे लिए ठीक नहीं होता, ये तो गृहस्थों की प्रकृति है।
शिष्य नौजवान था, और खाने-पीने का शौक़ीन भी, उसका वहाँ से जाने का मन नहीं था, उसने सोचा था कि कुछ दिन यहाँ रुकेंगे तो और भी स्वादिष्ट चीज़ें खाने को मिलेंगी, मगर गुरु की बातें सुनकर उसका चेहरा उतर गया। वो अँधेर नगरी चौपट राजा का मतलब नहीं समझ पा रहा था।
गुरुजी समझ गए कि शिष्य का वहाँ से जाने का मन नहीं है, उसे वो ज़बरदस्ती अपने साथ ले भी गए तो उसका मन यहीं पड़ा रहेगा। वैसे भी जब तक इंसान ख़ुद ठोकर न खाए उसे समझ नहीं आती। इसीलिए उन्होंने शिष्य से कहा कि ठीक है अगर तुम यहीं रुकना चाहते हो तो रुको पर संभल कर रहना और जब कभी कोई मुसीबत पड़े तो पुकार लेना मैं तुम्हारी मदद को आ जाऊँगा। ये कहकर गुरुजी अपने रास्ते चल पड़े।
अँधेर नगरी चौपट राजा , न्याय का बज गया बाजा
शिष्य उस नगरी में चैन से जीने लगा। अब गुरूजी की भी कोई बंदिश नहीं थी इसलिए न तो कोई रूटीन बचा न ही जीभ पर लगाम। जो दिल चाहता वो खाता, खा-खाकर उसका शरीर भी भर गया, वो ख़ूब मोटा हो गया। उधर एक घटना घटी कि एक दीवार गिर जाने से किसी की बकरी मर गई। जिसकी बकरी मरी थी वो न्याय पाने के लिए राज दरबार पहुँचा। जिसके घर की दीवार गिरी थी उसके मालिक को पकड़ कर दरबार में लाया गया और उसे फाँसी का हुक़्म दे दिया गया।
घर के मालिक ने गिड़गिड़ाते हुए कहा हुज़ूर इसमें मेरी क्या ग़लती है, मेरा तो ख़ुद नुक्सान हुआ है, ग़लती तो उस राज मिस्त्री की है जिसने दीवार बनाई, इसलिए उसे पकड़ा जाए। राजा को बात जंची और उसके आदेश पर राज मिस्त्री को पकड़ कर दरबार में लाया गया। मगर राज मिस्त्री ने कहा – मैंने तो दिवार ठीक बनाई थी जिसने प्लास्टर किया उसने लापरवाही की इसलिए दोष उसका है। प्लास्टर करने वाले को बुलाया गया तो उसने कहा कि उसकी मशक बड़ी थे इसलिए उससे ज़्यादा पानी गिर गया तो ग़लती मशक बनाने वाली की है।
सब अपना दोष एक दूसरे पर डाल रहे थे,पर राजा को सबकी बात सही लग रही थी। अँधेर नगरी चौपट राजा न्याय का बज रहा था बाजा।इसलिए अबकी बार मशक बनाने वाले को बुलाया गया। मशक वाले ने कहा – हुज़ूर मुझे तो जो भेड़ बेची गई थी उस से ज़्यादा चमड़ा निकला इसलिए मशक बड़ी बनी तो ग़लती भेड़ बेचने वाले की है। भेड़ बेचने वाले ने कहा कि उस दिन कोतवाल साहब की सवारी इतनी धूमधाम से आ रही थी कि मैंने छोटी की बजाए बड़ी भेड़ बेच दी। यानि दोष कोतवाल का था !
राजा ने कोतवाल को भी दरबार में बुला लिया, कोतवाल आया तो उसने कहा कि वो नगर के इंतज़ाम के लिए निकला था, जो उसका काम है। लेकिन उसकी एक नहीं सुनी गई और उसे सीधे फाँसी की सज़ा सुना दी गई। इसीलिए तो कहा गया था – अँधेर नगरी चौपट राजा। फाँसी का फंदा तैयार करने वाला ज़रा नया था उसने नाप से थोड़ा बड़ा फन्दा तैयार कर दिया। उस फंदे में कोतवाल की गर्दन फिट ही नहीं हो रही थी। ये बात जब राजा तक पहुँची तो उसने कहा जिसकी गर्दन इस फंदे में फिट हो जाए उसे पकड़ कर लाओ और उसे फाँसी दे दो, ये फन्दा वेस्ट नहीं होना चाहिए।
राजा का आदेश था इसलिए मानना ही था तो सैनिक फन्दा लेकर निकल पड़े। फंदे के नाप की गर्दन तलाशते हुए सैनिक उस शिष्य तक पहुँच गए जो खा पीकर तंदरुस्त हो चुका था और उसे पकड़ कर राजमहल ले गए। शिष्य को समझ में नहीं आ रहा था कि उसने किया क्या है। और जब उसे पता चला तो वो बहुत रोया-गिड़गिड़ाया मगर वो थी – अँधेर नगरी चौपट राजा वहां कौन उसकी सुनता तब उसे अपने गुरु की बहुत याद आई।
उसने मन ही मन उस पल को कोसा जब वो – अँधेर नगरी चौपट राजा टके सेर भाजी टके सेर खाजा – ये बात जानकर भी वो लालच में आ गया था। अब कोई और चारा नहीं था, उसने मन ही मन गुरूजी को सहायता के लिए पुकारा। सिपाही शिष्य को फाँसी देने की तैयारी कर ही रहे थे, तभी अचानक गुरूजी वहाँ पहुँच गए, उन्हें सारी बात का पता चल चुका था। उन्होंने सिपाहियों से कहा कि वो अपने शिष्य को आख़िरी उपदेश देना चाहते हैं, सिपाही मान गए। गुरुजी ने अपने शिष्य के कान में कुछ कहा – उसे सुनकर अचानक रोता-कलपता हुआ शिष्य ख़ुश हो गया। वहां खड़े सभी लोग ये बदलाव देखकर हैरान थे।
शिष्य बोला – तब तो गुरूजी हम ही फाँसी चढ़ेंगे लेकिन गुरुजी बोले – नहीं बच्चा हम बूढ़े हैं हमें जाने दे, तो शिष्य बोला – स्वर्ग जाने में कौन बूढ़ा कौन जवान ! आप तो ज्ञानी हैं आप तो इस संसार सागर से तर ही जाएँगे, मुश्किल तो मुझे होगी इसलिए अब तो फाँसी मैं ही चढूँगा। दोनों को इस तरह लड़ते देख कर सिपाही अचरज में पड़ गए। कहाँ तो वो शिष्य रो रहा था गिड़गिड़ा रहा था और कहाँ अब ख़ुद फाँसी चढ़ना चाहता है।
तभी राजा, मंत्री और कोतवाल भी वहाँ पहुँच गए। उन दोनों को यूँ लड़ते देख कर राजा ने गुरुजी से पूछा कि आप क्यों फाँसी चढ़ना चाहते हैं ? तो गुरूजी ने पहले तो गुरूजी ने थोड़ी आनाकानी की फिर मजबूरी दिखाते हुए बोले कि – महाराज ! ये इतनी शुभ घड़ी है कि जो भी इस घड़ी में फाँसी चढ़ेगा वो सीधे स्वर्ग जाएगा। ये सुनते ही वहां खड़े सभी खुद को फाँसी चढ़ाने की बात करने लगे। इसीलिए तो वहां कहा जाता था – अँधेर नगरी चौपट राजा टके सेर भाजी टके सेर खाजा।
कोतवाल ने खुद को फाँसी पर चढ़ाने को कहा, तभी मंत्री भी आगे आया अब ये दोनों स्वर्ग जाने के लिए लड़ने लगे। तब राजा ने दोनों को डाँटा और कहा राजा के होते हुए तुम दोनों कैसे स्वर्ग जा सकते हो ? स्वर्ग तो मैं ही जाऊँगा चलो जल्दी से मुझे फाँसी पर चढ़ा दो, आख़िरकार राजा को फाँसी दे दी गई। और गुरूजी अपने शिष्य को लेकर जल्दी से वहाँ से निकल लिए।
इसीलिए कहा गया – अँधेर नगरी चौपट राजा टके सेर भाजी टके सेर खाजा।
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