“अभी दिल्ली दूर है” ये एक पुरानी कहावत है जिसका इस्तेमाल हम ऐसे काम के लिए करते हैं जो अभी पूरा नहीं हुआ या जब लक्ष्य प्राप्त करने में देरी हो। ये बात फ़ारसी ज़बान में कई सौ साल पहले एक सूफ़ी संत ने कही थी। ये सूफ़ी संत थे – हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया जिनकी दरगाह दिल्ली में है।
गयासुद्दीन तुग़लक़ कौन था ?
उस समय सुल्तान गयासुद्दीन तुग़लक़ का राज था। गयासुद्दीन तुग़लक़ ने तुग़लक़ राजवंश की स्थापना की और 1320 से 1325 तक दिल्ली की सल्तनत पर शासन किया। अपने दूसरे अभियान में गयासुद्दीन तुग़लक़ ने शाहज़ादे ‘जौना ख़ाँ’ (मोहम्मद बिन तुगलक) को दक्षिण भारत में सल्तनत के प्रभुत्व की पुन:स्थापना के लिए भेजा।
मोहम्मद बिन तुगलक ने वारंगल के पाण्ड्य राज्यों को विजित कर सल्तनत में शामिल कर लिया। इस प्रकार सबसे पहले गयासुद्दीन के समय में ही दक्षिण के राज्यों को दिल्ली सल्तनत में मिलाया गया। गयासुद्दीन तुग़लक़ पूरी तरह साम्राज्यवादी था और अलग अलग राज्यों को अपनी सल्तनत का हिस्सा बनाने के लिए युद्ध करता रहता था। हिन्दू जनता के प्रति ग़यासुद्दीन तुग़लक़ की नीति कठोर थी और वो संगीत का घोर विरोधी था।
निजामुद्दीन औलिया को दिल्ली छोड़ने का हुक्म क्यों दिया
एक दिन गयासुद्दीन को सूचना मिली कि ज़ौना ख़ाँ (मुहम्मद बिन तुग़लक़) निज़ामुद्दीन औलिया का शिष्य बन गया है और हज़रत निज़ामुद्दीन उस के राजा होने की भविष्यवाणी कर रहे हैं। वो निजामुद्दीन औलिया से यूँ ही खार खाता था, बार-बार उनकी राह में रोड़ा अटकाता था, लेकिन हर बार ख़ुद ही मात खा जाता था। ये बात सुनकर उसे बहुत गुस्सा आ गया और उसने हज़रत निज़ामुद्दीन को दिल्ली छोड़ कर जाने का हुक़्म दे दिया और उसे भी तभी बंगाल जाना पड़ा।
बादशाह का हुक़्म जब तक हज़रत निज़ामुद्दीन को मिला, वो बंगाल के लिए निकल चुका था। हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया ने बादशाह को जवाब भिजवाया – ‘हनोज़ दिल्ली दूरस्त’ यानी ‘दिल्ली अभी दूर है’। बादशाह ने वापसी में बिहार पहुँच कर फिर से फ़रमान भिजवाया कि दिल्ली छोड़ दो। हज़रत की ओर से फिर वही जवाब दिया गया – ‘हनोज़ दिल्ली दूरस्त’।
अंजाम
जब गयासुद्दीन तुग़लक़ बंगाल अभियान से लौट रहा था, तब दिल्ली से चार मील दूर एक गाँव में पहुँचा तो सुल्तान के बेटे मौहम्मद बिन तुग़लक़ ने उसकी बड़ी आवभगत की, और उसे लकड़ी से बने एक महल में ठहराया। उस महल को उसके बेटे मौहम्मद बिन तुग़लक़ के निर्देश पर अहमद अयाज ने लकड़ियों से बनवाया था। बादशाह जैसे ही अपने लाव-लश्कर के साथ महल में पहुँचा तो एक धमाके के साथ महल गिर पड़ा, और सुल्तान उसी के अंदर दबकर मर गया। अरब यात्री “इब्नबतूता” के अनुसार गयासुद्दीन की हत्या उसके बेटे मुहम्मद बिन तुग़लक़ द्वारा रचे गए षड्यंत्र के माध्यम से की गई।
वजह जो भी रही हो उसका हुक्म पूरा नहीं हुआ। गयासुद्दीन तुग़लक़ जिसने हज़रत निज़ामुद्दीन को दिल्ली छोड़ने का हुक़्म दिया था, उन्हें निकाल पाता, उस से पहले ही उसे ख़ुद दुनिया छोड़ कर जाना पड़ा। तभी से ये मुहावरा चल पड़ा – “अभी दिल्ली दूर है”
इंग्लिश में एक कहावत है – “Man Proposes God Disposes” इंसान बहुत कुछ सोचता है मगर जो ऊपर वाले ने सोचा होता है वो ज़रूरी नहीं है इंसान के सोचे हुए से मेल खाए। दोनों कहावतों का मतलब अलग-अलग होते हुए भी एक सा है। हम प्लानिंग बहुत करते हैं उसके हिसाब से क़दम भी उठाते हैं मगर कामयाबी से पहले ये पूरे विश्वास के साथ नहीं कह सकते कि सफ़लता मिलेगी ही और जब तक किसी काम में सफलता न मिल जाए तब तक दिल्ली दूर ही होती है।
आज के दौर में हम कहावतों मुहावरों या लोकोक्तियों का बहुत कम प्रयोग करने लगे हैं। बच्चे कहावतें बोलते भी हैं तो इंग्लिश में लेकिन हिंदी की बहुत सी ऐसी कहावतें हैं जिनके बहुत गहरे मायने हैं। और उनके पीछे की कहानियां भी बहुत रोचक हैं।इसी कड़ी में है आज की कहानी “अभी दिल्ली दूर है”
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