पेंटल भारतीय फ़िल्मों के वो हास्य अभिनेता जिन्होंने अलग-अलग भूमिकाएँ सफलतापूर्वक निभाकर ये साबित किया कि वो सिर्फ़ एक हास्य अभिनेता नहीं हैं बल्कि एक सम्पूर्ण अभिनेता हैं। उन्होंने न केवल फिल्मों में बल्कि टेलीविजन में भी बड़े पैमाने पर काम किया है। उनके जन्मदिन पर उन्हें बहुत-बहुत बधाई और उनकी ज़िन्दगी और फ़िल्मी सफर पर एक नज़र।
कँवरजीत पेंटल हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में पेंटल के नाम से मशहूर हुए, हास्य कलाकार पेंटल। वो अपने ज़माने में चार्ली चेपलिन कहलाते थे क्योंकि कॉमेडी करते हुए शब्दों से ज़्यादा उनका चेहरा और आँखें बोलती थीं, इसकी एक वजह उनका माइम आर्टिस्ट होना भी है क्योंकि माइम में तो सिर्फ़ चेहरे के हाव-भाव का ही कमाल होता है। इसीलिए उनकी गिनती हिंदुस्तान के बेहतरीन माइम आर्टिस्ट में की जाती थी।
पेंटल को आर्मी या अभिनय में से एक का चुनाव करना था
पेंटल का जन्म 22 अगस्त 1948 को तरनतारन में हुआ। उनके पिता लाहौर के पंचोली आर्ट्स स्टूडियो में कैमरामैन थे। लेकिन देश के विभाजन के बाद वो तरनतारन चले आए जहाँ उनके रिश्तेदार रहते थे। वहीं कंवरजीत पेंटल का जन्म हुआ उनके एक बड़े भाई हैं गूफ़ी पेंटल। उनका पूरा परिवार दिल्ली आ गया, यहीं पेंटल की परवरिश हुई। उनके पिता क्योंकि लाहौर में कैमरामैन थे, इसीलिए वो काम की तलाश में मुंबई चले गए, लेकिन मुंबई फ़िल्म इंडस्ट्री में बहुत संघर्ष के बाद भी नाकामी ही हाथ लगी। तो उनके पिता ने फोटोग्राफी की दूकान खोल ली।
बाद में वो भी बंद करनी पड़ी, फिर उन्होंने नौकरी भी की यानी बहुत जद्दोजहद से उन्होंने अपने परिवार को पाला। लेकिन बच्चों की पढाई लिखाई में कोई कमी नहीं की और इस बात को पेंटल हमेशा महसूस करते थे। उनके पिता उनके आइडियल भी थे, इसीलिए जब वो कुछ बन गए तो उन्होंने फिर कभी अपने पिता को काम नहीं करने दिया। यूँ तो पेंटल के पिता के ख़ानदान में उनके सभी भाई आर्मी से जुड़े थे, और उन दोनों भाइयों से भी ऐसी ही उम्मीद की जा रही थी।
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लेकिन बचपन से ही दोनों भाइयों को अभिनय का शौक़ था। बल्कि घर के आस-पास चादर टांग कर वो लोग शैडो प्ले दिखाया करते थे। जिसे कभी कभी उनके पिता अपने कैमरा से शूट भी करते थे, इस तरह दोनों भाई अभिनय से जुड़े थे। उनके बड़े भाई गूफ़ी पेंटल तो फ़िल्मों में ही जाना चाहते थे पर अपने पिता से ये बात कहने की हिम्मत नहीं थी। वो पढाई में अच्छे थे तो उनके पिता ने उन्हें जमशेदपुर भेज दिया मेकेनिकल इंजिनीयरिंग करने के लिए, उसके बाद वो आर्मी में भर्ती हो गए। लेकिन पेंटल का दिल पढाई में नहीं लगता था पर उन्हें ये भी नहीं पता था कि उन्हें आगे करना क्या है।
ये लगभग तय था कि सभी सेना में हैं तो वो भी वहीं जायेंगे इसलिए उन्होंने पाइलट बनने के लिए NDA का पेपर भी दिया। पेंटल एक मस्तमौला स्वाभाव के थे, पढाई को उन्होंने कभी गंभीरता से नहीं लिया था, लेकिन स्टेज पर अभिनय कमाल का करते थे और उनका ये हुनर उनके पिता ने पहचान लिया था, तो उन्होंने पेंटल से FTII (जो उस समय FII हुआ करता था क्योंकि तब तक टीवी आया ही नहीं था।) पुणे का एग्जाम देने को कहा। पेंटल ने वो एग्जाम दिया और पास भी हो गए उन्हें FTII में दाख़िला मिल गया था। उधर NDA का टेस्ट भी उन्होंने पास कर लिया था।
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अब फ़ैसला लेने की बारी उनकी थी और उन्होंने FTII को चुना। जब वो पुणे की ट्रेन में बैठ रहे थे तो उनके पिता ने उनसे कहा कि ये तुम्हारा चुनाव है, इसमें कुछ कर दिखाना। इस बात ने जैसे पेंटल की ज़िंदगी बदल दी और जब वो इंस्टिट्यूट के गेट पर पहुंचे तो बस भगवान से अपनी कामयाबी की दुआ मांगी। और फिर ऐसी कामयाबी मिली कि बाद में उसी इंस्टिट्यूट में हेड ऑफ़ द डिपार्टमेंट बनकर गए। कितने लोग पाते हैं ऐसी कामयाबी ! पेंटल जिन्होंने कभी ज़िंदगी को गंभीरता से नहीं लिया था, उन्होंने एक्टिंग को बहुत ही गम्भीरता से लिया और फर्स्ट क्लास फर्स्ट आते रहे।
Rise To Fame
पैंटल इंस्टिट्यूट में मन लगा कर सीख रहे थे लेकिन उन्हीं दिनों उनके पिता की नौकरी चली गई और उन्होंने पेंटल को ख़त लिखा कि वो अब उनकी पढ़ाई का ख़र्च नहीं उठा पाएंगे इसलिए वो वापस आ जाएँ उस रात ये पढ़कर पेंटल बहुत रोए पर चारा ही क्या था ? लेकिन तभी एक चमत्कार हुआ उन्हें स्कॉलरशिप मिल गई। उन्हीं दिनों उन्होंने एक माइम शो किया, जिसके बाद उन्हें माइम SHOWS के ऑफर मिलने लगे और हर शो के 50 रुपए मिलते थे, इस तरह उन्होंने अपनी ट्रैनिंग पूरी की। और 1969 में पुणे से मुंबई आ गए अभिनय की दुनिया में कुछ कर दिखाने के लिए।
पेंटल के कुछ और दोस्त भी थे जो मुंबई में थे, सब लोग रोज़ाना अँधेरी स्टेशन पर मिला करते थे और वहाँ से इकट्ठे होकर काम की तलाश में निकल जाया करते थे। एक रोज़ जब सब इकठ्ठा हुए तो किसी ने कहा कि गुरुदत्त के भाई आत्माराम नए लड़कों को लेकर एक फ़िल्म बना रहे हैं तो क्यों न आज वहीं चलें, सब तैयार हो गए पर पेंटल ने कहा कि तुम लोग जाओ मैं कहीं और जाऊंगा और ये कहकर वो ट्रैन में बैठ गए ट्रैन चलने ही लगी थी कि न जाने उनके दिमाग़ में क्या आया कि वो उतर गए और बोले – चलो मैं भी चलता हूँ।
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सब लोग वहाँ पहुँचे, ऑडिशन सबसे पहले पेंटल का ही था और उन्हें डांस करना था। उन्होंने जब ऑडिशन दिया तो आत्माराम जी इतने ख़ुश हो गए कि कुर्सी मँगा कर उन्हें अपने पास बिठाया और कहा कि अब तुम मेरी मदद करो बाक़ी लोगों को चुनने में। सोचिये अगर वो उस दिन वहाँ न जाते तो क्या मालूम आगे कितना संघर्ष करना पड़ता पर यहाँ क़िस्मत ने उनका साथ दिया और सिर्फ़ एक-दो महीने के स्ट्रगल के बाद उन्हें अपनी पहली फ़िल्म मिल गई “उमंग”। और फिर तो लगातार फ़िल्में मिलती चली गईं।
पेंटल ने अभिनय की पारी 70 के दशक में शुरु की और कॉमेडी का अपना एक अलग स्टाइल बनाया। “मेरे अपने”, “जवानी दीवानी”, “बावर्ची”, “पिया का घर”, “परिचय”, “हीरा पन्ना”, “रोटी”, “सत्ते पे सत्ता”, “लैला मजनूं”, “खोटे सिक्के”, “देस परदेस”, “द बर्निंग ट्रैन” और “सदमा” से लेकर “इंसानियत के दुश्मन”, “शहज़ादे” और “थानेदार” जैसी कितनी ही फ़िल्मों का हिस्सा रहे।
“चला मुरारी हीरो बनने” और “बावर्ची” फ़िल्म के लिए उन्हें फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड से भी नवाज़ा गया। इस फिल्म में उन्होंने कथक गुरु की भूमिका निभाई थी और और वो इतने रियल शायद इसीलिए लगे क्योंकि असल में भी उन्होंने कथक की बाक़ायदा ट्रैंनिंग ली है। दरअसल वो हर तरह का डांस में माहिर हैं। पेंटल शुरुआत में हीरो के दोस्त की भूमिकाओं में दिखे या मल्टी स्टारर कॉमिक और एक्शन फ़िल्मों में दिखे, बीच-बीच में पंडित जी, हेडमास्टर, डांस मास्टर जैसे छोटे-छोटे लेकिन यादगार रोल्स किए।
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पर एक यादगार भूमिका जिसमें उन्होंने किसी और ही रुप में हँसाया वो थी “रफूचक्कर”, जिसमें उन्होंने सलीम की भूमिका निभाई जो फ़िल्म के ज़्यादातर हिस्से में सलमा के भेस में दिखाई दिया। ऋषि कपूर और पेंटल लड़की के भेस में इतने रियल दिख रहे थे कि एक दिन फ़िल्म की शूटिंग के दौरान लंच ब्रेक में दोनों बाथरूम इस्तेमाल करने गए। कपड़े लड़कियों के थे पर गए लड़कों के वॉशरुम में, वहां दो विदेशी थे जो बाद में पूरे होटल में इन दो लड़कियों को ढूंढते रहे।
पेंटल जब इंस्टिट्यूट में थे, तो ट्रेंनिंग के दौरान उनकी ख़ुद को लेकर एक समझ बढ़ गई थी। कहते हैं अगर इंसान अपने आप को जान जाए, ये पहचान जाए कि उसकी क़ाबिलियत क्या है, तो कामयाबी का आधा रास्ता तो यूँ ही तय हो जाता है। बाक़ी आधा मेहनत और सही दिशा तय कर देती है। पेंटल ने भी जब ख़ुद को पहचाना तो रास्ते खुलते चले गए। उन्होंने समझ लिया था कि उनकी शक़्ल, क़द, टाइमिंग सब सिर्फ़ कॉमेडी में ही फिट होता है इसीलिए वो इसी तरह की भूमिकाओं को तरजीह देते थे।
दरअस्ल कॉमेडी में उनके रोल मॉडल रहे ओम प्रकाश। जिन्होंने एक वक़्त के बाद चरित्र भूमिकाएं भी कामयाबी से निभाईं पर शुरुआत हास्य से की। पेंटल ने भी अपने लिए ऐसा ही सोचा था। बाद के दौर में पेंटल चरित्र किरदारों की तरफ़ मुड़ गए और उन्होंने बड़े परदे के साथ-साथ छोटे परदे पर भी काम करना शुरु कर दिया। दरअस्ल काम उनके लिए पूजा है वो मरते दम तक काम करते रहना चाहते हैं फिर माध्यम कोई भी हो।
शिखंडी से लोगों ने पेंटल के टैलेंट को पहचाना
पेंटल के बेटे हितेन पेंटल भी अभिनय और निर्देशन से जुड़े हुए हैं। उन्होंने कसौटी ज़िंदगी की धारावाहिक से शुरुआत की थी उसके बाद कई टीवी सेरिअल्स में दिखाई दिए। एक धारावाहिक में दोनों साथ में भी दिखे। पेंटल की एक बेटी भी है मिताशा जो फ़ैशन डिज़ाइनर हैं। पेंटल को बेज़ुबान जानवरों से भी बहुत प्यार है उन्होंने एक वक़्त में 55 आवारा कुत्तों की देख रेख का ज़िम्मा लिया हुआ था। आज पेंटल के जन्मदिन के मौक़े पर हम यही दुआ करेंगे कि वो अपने मनपसंद किरदार निभाते रहें और भरपूर ज़िंदगी जिएं।
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