अमिताभ बच्चनअमिताभ बच्चन

अमिताभ बच्चन के बारे में शायद ही कोई ऐसी बात हो जो हम न जानते हों, वो अकेले ऐसे स्टार हैं जिनका जादू महिला पुरुष, बच्चों से लेकर बुज़ुर्गों तक पर एक बराबर चला है और आज भी उनका चार्म कहीं से भी कम नहीं हुआ है। उनके जन्मदिन पर शुभकामनाएँ देते हुए एक बार फिर से नज़र डालते हैं उनकी अब तक की यात्रा पर।

इस गंगा किनारे वाले छोरे यानी अमिताभ बच्चन का जन्म 11 अक्टूबर 1942 को डॉ हरिवंश राय बच्चन और तेजी बच्चन के बड़े सुपुत्र के रूप में इलाहबाद में हुआ। वैसे तो उनका जन्म का नाम था इंक़लाब पर अमिताभ नाम उन्हें दिया मशहूर साहित्यकार सुमित्रानंदन पंत ने। अमिताभ का मतलब है ‘अमिट आभ’ यानी न मिटने वाली रोशनी, ये नाम जैसे उन्हीं के लिए बना था, जिसे उन्होंने सार्थक कर दिखाया। फ़िल्म इंडस्ट्री में उनके काम की जो चमक फैली है वो वाक़ई कभी फीकी नहीं पड़ सकती।

अमिताभ बच्चन
अमिताभ बच्चन अपने पिता और माँ के साथ

वैसे उनका सरनेम है श्रीवास्तव लेकिन उनके पिता मशहूर कवि हरिवंशराय बच्चन नहीं चाहते थे कि वो या उनका परिवार किसी जाति विशेष से जाना जाए इसीलिए उन्होंने अपने नाम के बाद अपना सरनेम हटा कर अपना पेन नेम लगाया ‘बच्चन,’ वही उन्होंने बच्चों के स्कूल में लिखाया। इसीलिए वो अमिताभ बच्चन कहलाते हैं, वैसे फिल्मों में जो नाम बहुत मशहूर हुआ वो था विजय। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अमिताभ बच्चन ने कोलकाता की एक फर्म में काम करना शुरू किया और क़रीब 7 साल उन्होंने नौकरी की, पर वो इससे संतुष्ट नहीं थे। आखिरकार 1968 में वो नौकरी छोड़ कर मुंबई आ गए अपने सपनों को पूरा करने के लिए।

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अमिताभ बच्चन बिना थके आगे बढ़ते गए

फ़िल्मों में काम मिलना उनके लिए इतना आसान नहीं था। वो जिससे भी मिलते वो 6 फ़ीट 3 इंच के नौजवान को देखकर कहता कि उनका क़द बहुत ज़्यादा है कोई उनके रंग को निशाना बनाता। इस बीच उन्होंने गुज़ारे के लिए कई तरह के काम किये। जिनमें वॉइस-ओवर्स भी शामिल थे, हाँलाकि आकाशवाणी से उनकी आवाज़ भी रिजेक्ट हो चुकी थी। पर आज भी आप देखे तो उनकी आवाज़ उतनी ही दमदार और अंदाज़ एकदम नायब है ये भी उनके व्यक्तित्व की एक ख़ासियत है। अपनी इसी आवाज़ की वजह से उन्होंने कितनी ही फ़िल्मों में नरेशन किया और अपने गाने भी गाए।

अमिताभ बच्चन की ये ख़ासियत रही है कि चाहे वो नाकामी का दौर रहा हो या संघर्ष का उन्होंने कभी हार नहीं मानी, थक कर नहीं बैठे अपनी तरफ से कोशिश करते रहे और कहते हैं न कोशिश करने वाले की हार नहीं होती। इन्हीं कोशिशों का नतीजा रही फ़िल्म “सात हिंदुस्तानी”, हाँलाकि ये फिल्म नहीं चली पर उन्हें इस फिल्म के लिए बेस्ट न्यूकमर का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।

लेकिन इसके बाद भी मुश्किलें कम नहीं हुईं। कई फिल्में आईं और चली गई पर नाकामी ने जैसे डेरा ही जमा लिया था। और फिर आई “आनंद” उस समय के सुपरस्टार राजेश खन्ना के होते हुए डॉ भास्कर बेनर्जी ने लोगों का ध्यान खींचा और उन्हें मिला फिल्म फेयर का बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर अवार्ड। लेकिन असल कामयाबी अभी भी दूर थी।

एंग्री यंग मैन का युग

अमिताभ बच्चन

1969 से लेकर 1972 तक अमिताभ बच्चन की क़रीब 17 फिल्में आई जिनमें से 12 फ्लॉप थी। लेकिन 1973 में आई “ज़ंजीर” ने जैसे उन्हें सफलता की ज़ंजीर पहना दी। प्रकाश मेहरा ने उन्हें “बॉम्बे टू गोवा” के एक्शन सीन्स में देखा तो उन्हें लगा कि यही हो सकता है उनकी फिल्म का एंग्री यंग मैन “विजय” और वाक़ई इस फिल्म ने उन्हें न सिर्फ रातों रात स्टार बनाया बल्कि “एंग्री यंग मैन” का ख़िताब भी दिलाया। और यही वो फिल्म थी जिसके सेट पर उनके और जया भादुड़ी के बीच प्रेम पनपा और फिर “अभिमान” फिल्म की रिलीज़ से पहले ही दोनों शादी के बंधन में बंध गए।

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ज़ंजीर के बाद “शोले” और फिर “दीवार” जैसी फिल्मों ने उनकी एंग्री यंग मैन की छवि को पूरी तरह स्थापित कर दिया। प्रकाश मेहरा और मनमोहन देसाई जैसे फिल्म मेकर्स ने अमिताभ बच्चन के लिए ख़ासतौर पर ऐसे रोल्स तैयार किये जो उनकी छवि को लगातार मज़बूत करते गए। अमिताभ बच्चन की हर फिल्म में ऐसे कुछ डायलॉगस ज़रूर होते थे जिनके बाद हॉल में बैठा दर्शक तालियाँ बजाये बगैर रह ही नहीं पाता था। उनके लिए तब भी ख़ासतौर पर रोल लिखे जाते थे और आज भी लिखे जाते हैं।

अमिताभ बच्चन

उस समय प्रकाश मेहरा की “हेरा-फेरी”, “मुक़द्दर का सिकंदर”, “लावारिस”, “नमक हलाल”, “शराबी”,और मनमोहन देसाई की “अमर अकबर अन्थोनी”, “सुहाग”, “नसीब”, “कुली”, “मर्द” जैसी फिल्मों ने अमिताभ बच्चन के लिए वो क्रेज़ पैदा किया जो इससे पहले कभी नहीं देखा गया था। इसी बीच “डॉन” और “त्रिशूल” जैसी फिल्में भी आईं। सब में उन्होंने आम आदमी की भूमिका की। जो हालात से लड़कर जीत हासिल करता है चाहे उसका रास्ता कभी-कभी ग़लत भी रहा हो फिर भी दर्शक उससे एक भावनात्मक रिश्ता बना लेते थे। और ये रिश्ता कितना गहरा था इसका अंदाज़ा तब हुआ जब कुली के सेट पर अमिताभ बच्चन को जानलेवा चोट लगी।

दर्शकों के चहेते महानायक

जब वो अस्पताल में ज़िंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहे थे तो उनके ढ़ेरों प्रशंसक बाहर उनके लिए दुआएँ मांग रहे थे। उस दौरान लोगों को अपने खाने-पीने का भी होश नहीं था, चिंता थी तो बस इतनी कि किसी तरह उनका सुपर स्टार सही सलामत लौट आये और लोगों की दुआएँ काम आईं। उनका पसंदीदा कलाकार जो उनके लिए भगवान का दर्जा रखता था मौत को हराकर वापस लौट आया। एंग्री यंग मैन के इसी दौर में “कभी-कभी”, “सिलसिला” जैसी  फिल्में आईं जिन्होंने अमिताभ बच्चन की रोमेंटिक इमेज को भी पुख्ता किया। और “चुपके-चुपके”, “याराना”, “नमक हलाल” में उनकी हास्य प्रतिभा ने भी सबको क़ायल किया।

अमिताभ बच्चन

80 के दशक में एक वक़्त आया जब उनका झुकाव राजनीति की तरफ हुआ पर जल्दी ही इससे उनका मोहभंग हो गया। इस समय में जो फिल्में आईं वो भी बहुत कामयाब नहीं रहीं। वो कहते हैं न जो कोई ऊपर जाता है एक वक़्त के बाद वो नीचे भी आता है। कुछ ऐसा ही हुआ अमिताभ बच्चन के साथ। हाँलाकि इसी दौर में “शहंशाह” और “अग्निपथ” जैसी फिल्में भी आई पर कुल मिलाकर ये उनका सही वक़्त नहीं था। 

उस पर 90 के दशक में उन्होंने एक कंपनी की शुरुआत की। जिसका नाम था ABCL – अमिताभ बच्चन कारपोरेशन लिमिटेड , पर ये कंपनी नहीं चली बल्कि 1996 के मिस वर्ल्ड ब्यूटी कांटेस्ट में अमिताभ बच्चन को इतना घाटा हुआ कि उन्हें उसका क़र्ज़ चुकाने के लिए अपना बांग्ला तक गिरवी रखना पड़ा। पर ये बुरा वक़्त भी जल्दी ही चला गया और फिर जो वापसी हुई तो उन्हें सुपर स्टारडम मिला।

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अमिताभ बच्चन को उनके बुरे समय से उबारने में मदद की यश चोपड़ा ने जिन्होंने “दीवार”, “त्रिशूल”, “कभी कभी”, “काला पत्थर” और “सिलसिला” जैसी फिल्मों में उन्हें बेहतरीन भूमिकाएं दी थीं। यशराज की फिल्म “मोहब्बतें” से अमिताभ बच्चन की दूसरी पारी शुरू हुई। और तब से लेकर आज तक अमिताभ बच्चन ने “कभी ख़ुशी कभी ग़म”, “देव”, “ब्लैक”, “बागबान”, “बंटी और बबली”, “निःशब्द”, “चीनी कम”, “पा”, “पीकू” और “पिंक” जैसी अनगिनत कामयाब फिल्में दी हैं। और मुझे लगता है कि वो ऐसे अभिनेता हैं जिन्होंने शायद सबसे ज़्यादा डबल और ट्रिपल रोल्स किये हैं।

अमिताभ बच्चन

अमिताभ बच्चन वो पहले बड़े फ़िल्म स्टार रहे जिन्होंने छोटे परदे पर आने का रिस्क लिया और आज भी वो छोटे परदे के सबसे लोकप्रिय स्टार हैं। “कौन बनेगा करोड़पति” से उन्होंने टीवी पर जिस तरह अपनी धाक जमाई तो उनकी देखा-देखी दूसरे कई स्टार्स ने टीवी का रुख़ किया।

पद्म श्री, पद्म भूषण, और पद्म विभूषण से सम्मानित अमिताभ बच्चन को “अग्निपथ” “ब्लैक” “पा” और “पीकू” के लिए बेस्ट एक्टर के राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाज़ा गया। 2018 में उन्हें दादा साहब फाल्के अवार्ड से सम्मान के अलावा 15 फिल्मफेयर अवार्ड और अनगिनत दूसरे पुरस्कार हैं उनके नाम, कितनी ही यूनिवर्सिटीज ने उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया। ढेर सारे लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड्स के अलावा “स्टार ऑफ़ द मिलेनियम” की उपाधि के साथ-साथ कई अंतर्राष्ट्रीय सम्मान भी हैं। लोगों का ऐसा प्यार मिला है उन्हें की कोलकाता में एक मंदिर है उनका जहाँ उन्हें पूजते हैं लोग।

अमिताभ बच्चन

80 के दशक में उनके ऊपर एक कॉमिक सीरीज बनी थी “सुप्रीमो”, ऑस्ट्रेलिया में उनके नाम पर स्कोलरशिप दी जाती है। और कितने ही मशहूर और कामयाब कैंपेन्स का वो हिस्सा रहे। 2002 में उन्होंने एक किताब लिखी “सोल करी फॉर यू एंड मी”, सोशल मीडिया पर भी वो बेहद एक्टिव रहते हैं। कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जहाँ वो मौजूद न हों, फिर भी हमेशा एक्टिव एनर्जेटिक नज़र आते हैं और दूसरों को भी प्रोत्साहित करते हैं। उम्मीद है वो हमेशा ऐसे ही उत्साहित बने रहेंगे!

 

2 thoughts on “अमिताभ बच्चन फ़्लॉप हीरो से एंग्री यंगमैन और महानायक तक की यात्रा”

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