मुकेश (22 July 1923 – 27 August 1976) – हिंदी सिनेमा में दर्द भरी आवाज़ के पर्याय माने जाने वाले गायक मुकेश की पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए उनसे जुड़ी कुछ रोचक बातें।
01 – दिल्ली के मुकेश मुंबई कैसे पहुँचे
मुकेश का पूरा नाम था – मुकेश चंद माथुर। उन का जन्म 22 जुलाई 1923 में दिल्ली में हुआ। लाला जोरावर चंद माथुर और चाँद रानी के 10 बच्चों में मुकेश छठी संतान थे। 10 वीं के बाद वो नौकरी करने लगे थे। मुकेश की बहन को एक गुरुजी गाना सिखाने आते थे, मुकेश दूसरे कमरे में सुनते थे और चुपचाप उसकी प्रैक्टिस करते थे। इसी तरह वो गाने में माहिर हो गए। स्कूल के फंशन में पंकज मलिक और के एल सहगल के गाने गाया करते थे।
जब उनकी बहन की शादी हुई तो उसमें उन्होंने एक गाना गाया। उस शादी में उनके दूर के एक रिश्तेदार भी आये थे, वो उनका गाना सुनकर बहुत इम्प्रेस हुए और उन्हें अपने साथ मुंबई ले आये। वो रिश्तेदार थे अभिनेता मोतीलाल जो फ़िल्मों में अपनी मज़बूत जगह बना चुके थे। मुंबई में मुकेश ने पंडित जगन्नाथ प्रसाद से संगीत की ट्रेनिंग ली।
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02 – पहली फिल्म और सिंगिंग स्टाइल
मुकेश की पहली फिल्म थी “निर्दोष’ जिसमें उन्होंने एक्टिंग और सिंगिंग दोनों की। फिर कुछ और फ़िल्में भी आईं पर उनका पहला मशहूर गाना आया फ़िल्म “पहली नज़र” में – दिल जलता है तो जलने दे। के एल सहगल के दीवाने मुकेश ने इस गाने को पूरी तरह उनके स्टाइल में गाया था, resemblance इतना ज़्यादा था कि जब ये गाना के एल सहगल ने सुना तो वो भी confused हो गए थे और बोले – मैंने ये गाना कब गाया !
अनिल बिस्वास के एहसास दिलाने पर मुकेश ने अपने अंदाज़ में गाना शुरू किया। लेकिन कहते हैं कि नौशाद वो संगीतकार थे जिन्होंने उनके स्टाइल को पूरी तरह निखारा। शुरुआत में उन्होंने दिलीप कुमार के लिए अंदाज़, अनोखा प्यार और मेला जैसी फिल्मों में अपनी आवाज़ दी। “मधुमती” में भी उनके लिए गाया मगर राजकपूर के लिए गाए उनके गाने बेहद मशहूर हुए और फिर वो राजकपूर की आवाज़ बन गए।
आवारा और श्री 420 के बाद तो वो दुनिया भर में मशहूर हो गए। उनका और राजकपूर का साथ 3 दशकों तक चला। मुकेश की मौत के वक़्त राजकपूर ने कहा था कि उन्हें लगता है अब बस शरीर रह गया है उनकी आत्मा चली गई।
03 – एक्टिंग के शौक़ ने मुश्किल में डाला
मुकेश ने दो फिल्मों का निर्माण किया एक “अनुराग” और दूसरी “मल्हार” मगर ये फिल्में कामयाब नहीं हुई। फ़िल्मों में उनकी एंट्री बतौर एक्टर-सिंगर हुई थी पहली फ़िल्म थी निर्दोष उसके बाद “दुःख सुख”, “आदाब अर्ज़”, “माशूक़ा” और “अनुराग” में भी उन्होंने एक्टिंग की। उन्हें एक्टिंग का शौक़ था मगर जो बात गायक मुकेश में थी वो बात अभिनेता और निर्माता मुकेश में नहीं रही। बल्कि निर्माता-अभिनेता बनकर उन्होंने नुकसान ही उठाया। वो इतने मुश्किल में आ गए थे कि उनके पास अपने बच्चों की फ़ीस देने के लिए भी पैसे नहीं थे। जिसकी वजह से उनके बच्चों को एग्जाम में नहीं बैठने दिया गया।
शायद यही वजह थी कि वो पैसे की क़द्र जानते थे। वो इतने सिम्पल आदमी थे कि जब उन्हें 5 स्टार होटल में ठहराया जाता तो वो गुज़ारिश करते कि उन्हें एक साधारण होटल में ठहराया जाए। क्योंकि 5 स्टार होटल्स बहुत महँगे होते हैं, इसमें निर्माताओं का बहुत ख़र्चा हो जाता है। आजकल कौन सोचता है इस तरह से।
04 – दिल के बेहद सच्चे और अच्छे इंसान
मुकेश एक अच्छे गायक तो थे ही एक बहुत अच्छे इंसान भी थे बेहद नर्मदिल और इंडस्ट्री की खींचातानी से बहुत अलग सोच रखने वाले।
एक बार मुकेश कहीं बाहर गए हुए थे. उसी दौरान फिल्म ‘विश्वास’ की रिकॉर्डिंग करनी पड़ी। इस फ़िल्म के लिए ‘चांदी की दीवार न तोड़ी’ जैसे कुछ गीत वो पहले ही रिकॉर्ड कराए जा चुके थे। लेकिन एक गीत “आपसे हमको बिछड़े हुए एक जमाना बीत गया” रिकॉर्ड होना बाक़ी था। तब फ़ैसला किया गया कि अभी इस गीत को मनहर उधास की आवाज़ में रिकॉर्ड करा लिया जाये, बाद में जब मुकेश आएंगे तो मनहर की जगह उनके ही स्वर में रिकॉर्ड कर लेंगे। मनहर उधास और सुमन कल्याणपुर की आवाज़ में इस गाने की डमी रिकॉर्डिंग कर ली गई।
जब मुकेश मुंबई वापस आए तो उनको कहा गया कि अब वह इस गीत को रिकॉर्ड करा दें। लेकिन जब उन्होंने वह गीत सुना तो गीत सुनकर बोले – क्या कमी है इस गीत में, मनहर ने इसे इतना अच्छा गाया है तो उस बेचारे को हटाकर मुझसे क्यों गवा रहे हो” और फिर वो गाना मनहर उधास की आवाज़ में ही रख गया।
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05 – मुकेश ने एक बीमार लड़की की इच्छा पूरी की
उनका एक क़िस्सा बहुत मशहूर है कि एक बार एक लड़की बीमार हो गई. उसने अपनी मां से कहा कि अगर मुकेश उन्हें कोई गाना गाकर सुनाएं तो वह ठीक हो सकती है। ज़ाहिर है इतने बड़े सिंगर से कोई कैसे उम्मीद लगा सकता था तो उस लड़की की मां ने कहा कि वह इतने बड़े गायक हैं, भला उनके पास तुम्हारे लिए कहां समय होगा?
मगर जब डॉक्टर ने मुकेश को उस लड़की की बीमारी के बारे में बताया तो वो तुरंत उस लड़की से मिलने अस्पताल गए और उसे गाना गाकर सुनाया। उनका गाना सुनकर लड़की बहुत ख़ुश हुई और उसे ख़ुश देखकर मुकेश ने कहा- यह लड़की जितनी खुश है उससे ज्यादा खुशी मुझे मिली है।
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06 – रोमांस में भी पीछे नहीं थे
हिंदी फ़िल्मों में एक से बढ़कर एक रोमेंटिक गाने हैं और लगातार बनते जा रहे हैं मगर किसी एक पुराने गाने के बारे में पूछे तो ज़्यादातर लोग इस बात से सहमत होंगे कि हिंदी फ़िल्मों का सबसे चर्चित और मशहूर रोमेंटिक गाना ये है कभी कभी फ़िल्म का – “कभी-कभी मेरे दिल में ख़याल आता है” ये गाना गाया था गायक मुकेश ने उन्हें इसके लिए फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड भी दिया गया।
मुकेश असल ज़िंदगी में भी काफ़ी रोमेंटिक थे उन्हें एक गुजराती ब्राह्मण लड़की सरल त्रिवेदी से प्यार हुआ लेकिन एक तो मुकेश फ़िल्मों से जुड़े थे और उस वक़्त तक स्ट्रगल ही कर रहे थे दूसरे वो कायस्थ थे। इसलिए लड़की के परिवार वाले उनके रिश्ते के एकदम ख़िलाफ़ थे। लड़की को घर में बंद करके रखा गया ताकि दोनों मिल न सकें। वो रातभर उनके घर के बहार खड़े रहते।
आख़िरकार 1946 में मुकेश के जन्मदिन पर दोनों ने भागकर शादी कर ली। बहुत सी मुश्किलें आईं मगर ये साथ हमेशा बना रहा। उनके पाँच बच्चे हुए – तीन लड़कियाँ और दो लड़के पर ज़्यादातर लोग उनके एक ही बेटे को जानते हैं जिन्होंने फ़िल्मों में बतौर प्लेबैक सिंगर अपनी पहचान बनाई – नितिन मुकेश।
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07 – अनोखी आदत
मुकेश ने अपने 35 साल के फ़िल्मी सफ़र में 525 फ़िल्मों में क़रीब 900 गीत गाये। और लगभग सभी गीत यादगार हैं। और जैसे हर कलाकार की अपनी एक आदत होती है, उनकी भी एक आदत थी। यूँ तो उन्हें खाने-पीने का बेहद शौक़ था मगर जिस दिन उनकी रिकॉर्डिंग होती थी उस दिन वो रिकॉर्डिंग होने तक सिर्फ़ पानी और गर्म दूध पिया करते थे।
08 – फिल्म पुरस्कार
मुकेश को चार बार फ़िल्मफ़ेयर के बेस्ट प्लेबैक सिंगर अवार्ड से नवाज़ा गया। मगर कमाल की बात ये हैं कि कोई भी अवॉर्ड RK की फ़िल्म के लिए नहीं मिला। हाँ जो पहला फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला वो उसी फिल्म के गाने के लिए मिला जिसके हीरो राजकपूर थे – अनाड़ी – सब कुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी,
दूसरी बार फ़िल्म “पहचान” के गाने – “सबसे बड़ा नादान वही है” के लिए, तीसरी बार “बेईमान” फ़िल्म के गाने – “जय बोलो बेईमान की” के लिए और चौथी बार “कभी-कभी” के टाइटल सांग के लिए। 1974 में उन्हें रजनीगंधा के गाने “कई बार यूँ भी देखा है ये जो मन की सीमा रेखा है मन तोड़ने लगता है ” के लिए बेस्ट प्लेबैक सिंगर के नेशनल अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।
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09 – आख़िरी वक़्त
1976 में राजकपूर की फिल्म ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ के गाने ‘चंचल निर्मल शीतल’ की रिकॉर्डंग पूरी करने के बाद मुकेश अमेरिका में एक कंसर्ट में भाग लेने के लिए चले गए. 27 तारीख़ को उन्हें लता मंगेशकर के साथ गाना था। 26 तारीख़ को उनकी तबियत ख़राब हुई और उन्हें हस्पताल ले जाया गया, जहाँ पता चला कि उन्हें पाँचवी बार दिल का दौरा पड़ा था। हस्पताल में ही 27 अगस्त 1976 को उनका निधन हो गया। लता मंगेशकर उनके शव को भारत लेकर आई थीं।
वो रोज़ सुबह रामचरित मानस का पाठ किया करते थे, रामचरित मानस हमेशा उनके साथ रहती थी। जब उनकी तबियत बिगड़नी शुरू हुई तो उन्होंने अपने बेटे से रामचरित मानस लाने को कहा और जब तक वो होश में रहे, वो उनके पास ही रही।
10 – अधूरा सपना
हर इंसान अपने दिल की बात किसी न किसी से करता ही है और बहुत से लोग डायरी भी लिखते हैं। मुकेश भी शुरुआत में डायरी लिखा करते थे, उनका सपना था कि वो अपनी आत्मकथा लिखें जिसमें वो अपने सभी अच्छे बुरे पलों को संजो कर रखें। लेकिन उनका ये सपना पूरा नहीं हो सका।
मुकेश को राजकपूर की आवाज़ कहा जाता है। मगर उन्होंने राजकपूर के अलावा भी बहुत से गायकों को अपनी आवाज़ दी और वो गाने भी उतने ही फेमस हुए जितने राजकपूर के गाने। आज मुकेश की सिर्फ़ यादें बाक़ी हैं, उनके गीतों के ज़रिए उनकी आवाज़ हमेशा हमारे इर्द गिर्द गूँजती रहती है और हमेशा गूँजती रहेगी।
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