“99 का फेर” कहावत कैसे बनी ?
पुराने ज़माने की बात है एक राजा अपने मंत्री के साथ भेस बदल कर जनता का हाल चाल लेने निकला। एक टूटे-फूटे झोंपड़े के बाहर पहुंचे तो अंदर से खिलखिलाने की आवाज़ें आ रही थीं, चुपचाप झांक कर देखा तो फटे पुराने कपड़ों में एक मज़दूर का परिवार आपस में मिल बैठ कर बातें कर रहा था। सबके चेहरे पर एक अलग सी चमक थी, बच्चे भी बहुत खुश नज़र आ रहे थे। राजा को बड़ी हैरानी हुई उसने अपने मंत्री से कहा कि मैं राजा हूँ मेरे पास सब कुछ है मगर फिर भी मेरे परिवार में ये अपनापन ये ख़ुशी ये संतोष नहीं है। ये लोग कुछ न होते हुए भी इतने खुश कैसे हैं?
मंत्री ने कुछ नहीं कहा बस राजा से 99 सिक्के मांगे और 99 सिक्कों की वो पोटली चुपचाप उस ग़रीब आदमी के घर में डाल दी। राजा ने कहा – अगर देने ही हैं तो पूरे सौ सिक्के देते 99 क्यों। मंत्री ने कहा – राजन ! इसके पीछे एक बड़ा कारण है पर वो मैं अभी आपको नहीं बताऊंगा, अब हम एक महीने बाद फिर इसी घर में आएंगे, तब आपको इस बात का जवाब मिल जाएगा।
99 सिक्कों से भरी थैली
उधर गरीब मज़दूर ने अपने घर में सिक्कों से भरी पोटली देखी तो पहले तो समझ ही नहीं पाया कि इतने सिक्के उसके घर में आए कहाँ से ! उसने घर से बाहर निकल कर देखा उसे कोई नहीं दिखा। तब उसकी बीवी ने कहा कि शायद ऊपरवाले को हम पर रहम आ गया है इसीलिए सिक्कों से भरी ये थैली हमें भेंट की है। आप गिनो तो इसमें हैं कितने सिक्के?
मज़दूर ने गिनना शुरू किया तो वो 99 सिक्के निकले उसे बड़ा बुरा लगा | वो बोला हे भगवान ! अगर देने ही थे तो पूरे सौ ही दे देते, एक कम क्यों दिया? उसकी बीवी बोली कोई बात नहीं हम इसमें एक सिक्का मिला देंगे तो ये पूरे सौ हो जाएंगे। मज़दूर ने कहा हम अगर रोज़ न कमाएं तो एक वक़्त का खाना भी नहीं मिले ऐसे में हम एक रुपया कैसे जोड़ेंगे?
मैं आपको बता दूँ कि ये उस समय की बात है जब एक रुपया कमाना आसान नहीं होता था और उस कमाई में से 1 रुपया बचाना तो और भी मुश्किल था। तो मज़दूर का प्रश्न वाजिब था लेकिन उसकी पत्नी ने कहा कल से मैं भी किसी घर में काम कर लुंगी, थोड़ा-थोड़ा खाकर गुज़ारा कर लेंगे तो बचत हो जाएगी। अब अगर भगवान ने हमें 99 सिक्के दिए हैं तो एक और जोड़ना हमारी ज़िम्मेदारी है।
एक सिक्का जमा करने की कोशिश का नतीजा
अब वो दोनों पति पत्नी 99 को 100 करने के लिए एक सिक्का जमा करने की कोशिश में जुट गए। एक महीना गुज़र गया, राजा और मंत्री फिर से वहां से गुज़रे लेकिन जब वो उस मज़दूर के घर के बाहर पहुंचे तो अंदर से झगड़े की आवाज़ें आ रही थीं दोनों पति पत्नी किसी बात पर एक दूसरे को दोष दे रहे थे, बच्चे डरे सहमे एक कोने में खड़े थे।
अब की उनमें से किसी के भी चेहरे पर कोई रौनक़ नहीं थी। राजा को बड़ा अचरज हुआ उसने अपने मंत्री की तरफ़ देखा। तब मंत्री ने कहा महाराज ये सब “निन्यानवे का फेर” है। इस फेर से आप हम जैसे बड़े लोग नहीं बच पाए तो ये तो सीधा-सादा मज़दूर है।
अब राजा को समझ में आया कि मंत्री ने थैली में 99 सिक्के क्यों डाले थे ? बस तब से ही ये कहावत चल पड़ी।
रूपए पैसे की जमा-घटा में जब एक बार इंसान उलझ जाता है तो बहुत मुश्किल होता है उसे बहार निकलना। आज हम सब इसीलिए तो इतने उलझे हुए हैं। कुछ और थोड़ा और पाने की चाहत ऐसी है की ख़त्म ही नहीं होती। 99 को 100 बनाते बनाते ज़िन्दगी गुज़र जाती है मगर 100 का आंकड़ा अधूरा ही रहता है। सोचें, कहीं आप भी तो नहीं पड़े हैं इस 99 के फेर में !
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