शशि कपूर अपने वक़्त के hearthrob थे उन पर सैकड़ों लड़कियाँ मरती थीं, मगर उनका दिल आया अपने से 5 साल बड़ी अभिनेत्री पर।
अपने वक़्त के बेहद मशहूर, हैंडसम और चार्मिंग अभिनेता शशि कपूर, उन के क्लीनशेव चेहरे पर पड़ने वाले डिम्पल्स पर सैकड़ों लड़कियाँ मरती थीं, उनकी स्माइल, टूटा हुआ कोने का दाँत, दुनिया भर की लड़कियों को उन तक खींच लाता था। सब उनसे शादी करना चाहती थीं। एक लड़की तो हफ़्तों तक उनकी ईमारत में डेरा डाले बैठी रही, आख़िरकार उसे हटाने के लिए पुलिस बुलानी पड़ी थी। लेकिन उनका दिल आया अपने से 5 साल बड़ी इंग्लिश अभिनेत्री जेनीफ़र कैंडल पर, सच तो ये है कि वो भी उनके चार्म से बच नहीं पाईं।
शशि कपूर को जेनिफ़र से हुआ था पहली नज़र का प्यार
जेनिफर अपने पिता जेफ्री कैंडल की थिएटर कंपनी शेक्सपियराना में मुख्य अभिनेत्री के तौर पर काम करती थीं और शशि कपूर अपने पिता की थिएटर कंपनी पृथ्वी थिएटर में काम कर रहे थे। दोनों के पिता भी एक दूसरे को जानते थे और दोनों ही थिएटर से प्यार करते थे और थिएटर ने ही दोनों को मिलाया। एक दिन अम्पायर थिएटर में पृथ्वी थिएटर्स का एक प्ले हो रहा था, शशि कपूर बैकस्टेज थे और जेनिफर अपने दोस्त के साथ दर्शकों में आगे की लाइन में बैठी थी।
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जब शशि कपूर ने हॉल में बैठे लोगों का रिस्पांस देखने के लिए परदे के पीछे से झाँका तो उनकी नज़र पड़ी रशियन दिखने वाली, पोल्का डॉट की ड्रेस पहने एक ख़ूबसूरत लड़की पर और वो पहली नज़र में ही दिल हार गए। पूछताछ करने पर जेनिफर के बारे में पता चला और अगले दिन फिर उनकी मुलाक़ात हुई। कुछ था जेनिफर में कि वो उनके चेहरे को भुला ही नहीं पा रहे थे।
उस वक़्त उनकी उम्र थी मात्र 18 साल और तब तक वो बहुत शर्मीले थे। परिवार की लड़कियों के अलावा तब तक उनकी किसी लड़की से बातचीत नहीं थी। न ही कभी कोई गर्लफ्रेंड रही थी इसलिए उस लड़की से बात करने के लिए उन्होंने अपने एक कजिन का सहारा लिया। और अगले दिन वो दोनों पहुँच गए उस होटल में जहाँ जेनिफर और उनका ग्रुप ठहरा हुआ था।
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लंच टाइम था सबसे उनका परिचय कराया गया मगर जेनिफर ने उनकी तरफ़ देखा भी नहीं। शशि कपूर बहुत मायूस हो गए उन्हें जेनिफर का ये व्यवहार बिलकुल अच्छा नहीं लगा। मगर अगले दिन थिएटर में जेनिफ़र को देखकर थोड़ी राहत मिली और वो राहत उस वक़्त ख़ुशी में बदल गई जब जेनिफर ने उन्हें अपना नाटक देखने के लिए invite किया। ज़ाहिर है वो ये मौक़ा किसी भी सूरत में गँवाना नहीं चाहते थे, इसीलिए पहुँच गए।
शेक्सपियर को स्टेज पर उन्होंने पहली बार देखा था। उस प्ले में जेनिफ़र ने मिरांडा की भूमिका निभाई थी, उस प्ले में उन्हें देखकर वो उन पर पूरी तरह फ़िदा हो गए लेकिन ज़बान से कुछ नहीं कह पाए। पर उनकी आँखों और हाव-भाव ने काफ़ी कुछ कह दिया था इसीलिए जेनिफ़र ने पहल की और कहा कि मैं बॉम्बे में ही रहती हूँ हम मिल सकते हैं। और दोनों की मुलाक़ातें शुरु हो गईं। शशि कपूर ने इन मुलाकातों के बारे में लिखा है, “रॉयल ओपेरा हाउस के पास एक ढाबा हुआ करता था, मथुरा डेयरी फर्म। हम लोग तब पूरी भाजी की प्लेट खाते थे। तब एक प्लेट चार आने का मिलता था, साथ ही खाते थे।”
शशि कपूर इतने शर्मीले थे कि प्यार का इज़हार भी पहले जेनिफ़र ने ही किया
शशि कपूर उस समय इतने शर्मीले हुआ करते थे कि जेनिफर उन्हें गे समझने लगी थीं। शशि कपूर ने भी एक जगह कहा है कि उन्हें जेनिफर का हाथ पकड़ने में ही महीनों लग गए। क्योंकि ये बात है 50s की और भारतीय समाज में उस समय खुलेआम लड़की का हाथ पकड़ना उतना भी आसान नहीं था। लेकिन क्यूपिड रास्ते बना ही देता है।
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उन दिनों शशि कपूर पृथ्वी थिएटर में नौकरी करते थे और उनकी सेलरी बहुत ज़्यादा नहीं थी इसलिए जब कभी भी वो दोनों कहीं घूमने जाते तो लोकल ट्रैन से जाते। उस दिन उन दोनों ने फ़िल्म देखने जाने के लिए ट्रैन पकड़ी और जब ट्रैन ने ब्रेक लगाए तो जेनिफ़र को गिरने से बचने के लिए शशि कपूर ने उनका हाथ थामा और फिर कभी छोड़ नहीं पाए।
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मगर वो करियर की शुरुआत थी इसलिए घर में किसी से कुछ नहीं कहा मगर शम्मी कपूर जो ख़ुद बेहद रोमांटिक थे उन्होंने शशि कपूर को पकड़ लिया और कहा कि जेनिफर को घरवालों से मिलाएं, घरवालों से तो नहीं पर एक दिन वो जेनिफर को शम्मी कपूर के घर ले गए अपनी भाभी गीता बाली से मिलाने। गीता बाली को जेनिफ़र बहुत पसंद आईं और उन्होंने शशि कपूर को कुछ पैसे और अपनी कार दी ताकि वो दोनों कुछ अच्छा वक़्त साथ में बिता पाएँ।
आपको जानकार हैरानी होगी कि प्यार का इज़हार भी पहले जेनिफ़र ने ही किया। वो इंतज़ार कर-कर के थक गई थीं पर शशि कपूर इतना डरते थे कि सीधे-सीधे उनसे कुछ कह ही नहीं पा रहे थे। लेकिन जब प्यार का इज़हार इक़रार सब हो गया तो दोनों ने अपने अपने घर में बात करने का फैसला किया। शशि कपूर ने शम्मी कपूर के ज़रिए घरवालों तक बात पहुँचाई गई।
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जेनिफ़र एक बहुत अच्छी जीवन साथी साबित हुईं
घरवाले एक ब्रिटिश बहु की कल्पना से ख़ुश तो नहीं थे पर कपूर परिवार इस मामले में ज़्यादा स्ट्रिक्ट भी नहीं रहा इसीलिए पृथ्वीराज कपूर ने शशि कपूर से कहा कि18 साल की उम्र शादी के फैसले के लिए काफ़ी कम होती है इसलिए कुछ अरसा ठहर जाओ अगर तब भी तुम्हारा फैसला नहीं बदला तो शादी कर देंगे। मगर जेनिफर के पिता इस बात से बिलकुल भी ख़ुश नहीं थे। जेनिफर उनकी कंपनी की हेरोइन और मैनेजर के साथ साथ उनकी सबसे लाडली बेटी थीं और वो किसी भी तरह उन्हें ये शादी करने नहीं देना चाहते थे। उन्होंने साफ़ साफ़ कह दिया कि उन्हें दो साल तक वेट करना होगा।
इस बीच शशि कपूर शेक्सपियराना ज्वाइन कर चुके थे क्योंकि उस कंपनी को एक मेल हीरो की ज़रूरत थी और शशि कपूर तो दिखते भी थे रोमन गॉड जैसे। साथ काम करते हुए ज़्यादा समय मिला साथ बिताने के लिए और दोनों का प्यार और मज़बूत हुआ। लेकिन दो साल बाद जब शशि कपूर ने जेनिफ़र के पिता से फिर शादी की बात की तो उन्होंने साफ़ इंकार कर दिया। इस पर जेनिफर ने थिएटर छोड़ने की धमकी दी मगर वो टस से मस नहीं हुए तब जेनिफर ने अपने पिता का साथ छोड़ दिया और शशि कपूर का हाथ थाम लिया।
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उस वक़्त वो लोग एक शो के लिए सिंगापुर में थे ग़ुस्से में जेफ़्री केंडल ने शशि कपूर के पैसे भी नहीं दिए। तब शशि कपूर ने अपने बड़े भाई राज कपूर से मदद माँगी और उन्होंने दोनों के लिए टिकट भिजवाए और वो दोनों मुंबई लौटे। 1958 में दोनों की शादी हुई जिस में जेनिफ़र का परिवार शामिल नहीं हुआ। उस वक़्त शशि कपूर 20 साल के थे और जेनिफ़र 25 साल की। उनके तीन बच्चे हुए – करण, कुणाल, और संजना।
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शादी के बाद शशि कपूर अपने काम में बहुत ज़्यादा व्यस्त हो गए। जिस समय कलाकार दो-दो फिल्में करते थे वो 25 फिल्में कर रहे थे। वो उनका व्यस्ततम समय था वो कई शिफ्टों में काम कर रहे थे। इसीलिए उनके भाई राजकपूर उन्हें टैक्सी बुलाया करते थे। 1978 में शशि कपूर ने पृथ्वी थिएटर को उसी जगह फिर से शुरु किया, जहाँ उनके पिता के समय बंद हुआ था। इसके लिए उन्होंने अपनी कमाई का बहुत सा पैसा लगा दिया मगर जेनिफर ने तब भी उनका साथ दिया।
शशि कपूर और जेनिफ़र का रिश्ता अटूट था
शशि कपूर ने ‘फिल्मवालाज़’ के बेनर तले ‘जुनून’, ’36 चौरंगी लेन’, ‘कलयुग’, विजेता जैसी फिल्में बनाई। इन सब कामों में उनके साथ साथ जेनिफर कपूर की भी मेहनत थी, सपोर्ट था। 1982 – 1983 में जेनिफ़र को कोलोन कैंसर diagnose हुआ, उनकी सर्जरी भी हुई और वो ठीक भी हो रही थीं मगर जब वो लंदन ट्रिप पर थीं तो पता चला उनका कैंसर फैल रहा है और फिर अपनी ज़िंदगी के आख़िरी कुछ महीने उन्होंने अपने ब्रिटेन में अपने माता-पिता के घर में गुज़ारे और वहीं 1984 में उनकी मौत हो गई।
जेनिफ़र का जाना शशि कपूर के लिए किसी सदमे से कम नहीं था, इसके बाद उनकी जीने की इच्छा ही ख़त्म हो गई थी। जेनिफ़र ने उन्हें संभाल रखा था इसीलिए उन का वज़न दूसरे कपूर भाइयों की तरह नहीं बढ़ा था। उनके खाने पर ही नहीं बल्कि उनके पीने पर भी जेनिफर का कण्ट्रोल था, पर जेनिफर की मौत ने उन्हें पूरी तरह तोड़ दिया। जेनिफर की मौत के कुछ वक़्त बाद जब वो लोग गोवा गए हुए थे तो एक दिन शशि कपूर बोट लेकर समन्दर के बीचों बीच पहुँच गए, उस दिन पहली बार शशि कपूर फूट-फूट कर रोये।
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जेनिफ़र जब इस दुनिया से गईं तब शशि कपूर सिर्फ़ 46 साल के थे वो आसानी से दोबारा शादी कर सकते थे पर ये ख़याल ही उन्हें असहज कर देता था क्योंकि जो कनेक्शन उनका जेनिफर के साथ था वो बहुत अलग और मज़बूत था, किसी और के साथ वो ऐसा महसूस नहीं कर पाते। और शशि कपूर के मुताबिक उन्हें लगता था कि जाने के बाद भी जेनिफ़र वहीं थीं, उनकी सूनी दुनिया में उनकी रुह के आस पास।
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