शम्मी कपूर

शम्मी कपूर एक ऐसा नाम जिसे सुनते ही आपके क़दम उन्हीं के अंदाज़ में थिरकने लगते हैं, आपके चेहरे पे स्माइल आ जाती है और आप उनकी गहरी नीली आँखों में खो जाते हैं। लेकिन ये स्टाइल और अंदाज़ आने से पहले शम्मी कपूर की क़रीब 20 फ़िल्में ऐसी आ चुकी थीं जिनसे उन्हें कोई पहचान नहीं मिली। लेकिन जब शोहरत मिली तो उस फिल्म से जो एक हेरोइन को री-लांच करने के लिए बनाई गई थी। इस पोस्ट में शम्मी कपूर से जुड़ी ऐसी ही कुछ ख़ास बातें आपसे शेयर करुँगी।

01 – फर्स्ट इंडियन इंटरनेट गुरु 

शम्मी कपूर शायद पहली फिल्मी हस्ती थे जिन्होंने कंप्यूटर और इंटरनेट का भरपूर इस्तेमाल किया। और शायद पहले भारतीय जिन्होंने अपनी वेबसाइट बनाई। उन्होंने अपनी भतीजी ऋतू नन्दा के पास पहली बार कंप्यूटर देखा था और उनके शब्दों में कहें तो उन्हें उस मशीन से प्यार हो गया और फिर 1988 में उन्होंने अपना पहला कंप्यूटर ख़रीदा। जिन दिनों भारत में इंटरनेट आया भी नहीं था, लोग वेबसाइट के नाम से भी वाक़िफ़ नहीं थे, उन्होंने तब अपनी वेबसाइट बनाई थी।

शम्मी कपूर

 

उनके पास एप्पल का कंप्यूटर था जिसमें फ़ोन लाइन के ज़रिये इंटरनेट की सुविधा मिलती थी। जब भारत में इंटरनेट आया उससे पहले ही वो पूरी तरह कंप्यूटर एक्सपर्ट हो चुके थे। कंप्यूटर ने स्मोकिंग छोड़ने में उनकी बहुत मदद की उन्होंने ख़ुद बताया था कि जब तक माउस पर उनका हाथ रहता था वो सब भूल जाते थे सिगरेट पीना भी। वो ‘इंटरनेट यूज़र्स कम्युनिटी ऑफ़ इंडिया’ के फाउंडर और चेयरमैन भी थे। 

02 – शम्मी कपूर का बचपन 

21 अक्टूबर 1931 को जन्मे शम्मी कपूर का पूरा नाम था शमशेर राज कपूर और वो पृथ्वीराज कपूर के दूसरे बेटे थे, राजकपूर उनके बड़े भाई थे और शशि कपूर छोटे भाई। शम्मी कपूर का जन्म तो मुंबई में हुआ था मगर उनका बचपन गुज़रा कोलकाता में जहाँ उनके पिता न्यू थिएटर्स में बतौर कलाकार काम करते थे। जब उनके पिता मुंबई आये तो बाक़ी की स्कूलिंग मुंबई में हुई। अपनी स्कूली पढाई पूरी करने के बाद शम्मी कपूर ने जब कॉलेज ज्वाइन किया तभी अपने पिता की थिएटर कंपनी पृथ्वी थिएटर्स में बतौर जूनियर आर्टिस्ट भी काम करने लगे थे, जहाँ उन्हें 50 रुपए महीने की तनख़्वाह मिलती थी। 

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03 – क्या आपने लम्बे बाल और मूछों वाले शम्मी कपूर को देखा है ?

शम्मी कपूर

नहीं देखा तो उनकी शुरूआती फिल्में देख लें। शम्मी कपूर की पहली फ़िल्म आई थी 1953 में जीवन ज्योति, इसके बाद रेल का डिब्बा, लैला मजनू, ठोकर, शमा परवाना, चोर बाज़ार, तांगेवाली, मिस कोकाकोला, नक़ाब, हम सब चोर हैं, मिर्ज़ा साहिबां ये फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर नाकाम रही। और इन फ़िल्मों में उनके लुक को देखें तो कोई कह ही नहीं सकता कि ये वही शम्मी कपूर हैं जिन्होंने अपने अंदाज़ से हज़ारों का दिल जीता। इनमें से ज़्यादातर फ़िल्मों में उनके बाल लम्बे थे और चेहरे पर मूंछें थीं।

इसी वजह से कई बड़े निर्देशक उन्हें फिल्म में लेने से कतराते थे। इनमें से एक वो नासिर हुसैन भी थे जिनकी फ़िल्म से उन्हें पहली बार शोहरत मिली। लेकिन शोहरत मिलने से पहले का संघर्ष इतना लम्बा हो गया था कि शम्मी कपूर लगभग गिव अप करने ही वाले थे उन्होंने सोच लिया था कि शायद उनकी क़िस्मत में हीरो बनना नहीं लिखा है। वो तो टी एस्टेट के मैनेजर बनने की सोचने लगे थे। लेकिन फिर एक चमत्कार हुआ और सब कुछ बदल गया। 

04 – फर्स्ट सुपरहिट मूवी 

“तुमसा नहीं देखा” शम्मी कपूर की पहली सुपरहिट फ़िल्म थी जिसका निर्देशन नासिर हुसैन ने किया था। इस फिल्म से पहले नासिर हुसैन ने देवानंद की फिल्म पेइंग गेस्ट की स्क्रिप्ट लिखी थी और वो दोनों अच्छे दोस्त थे इसलिए ये लगभग तय था कि “तुमसा नहीं देखा” में भी वही हीरो होंगे। लेकिन जब उन्हें ये पता चला कि वो फ़िल्म अमिता को स्टार बनाने के लिए बन रही है तो उन्होंने फिल्म छोड़ दी। तब शशधर मुखर्जी ने शम्मी कपूर का नाम सुझाया और उन्हीं की सलाह पर शम्मी कपूर की मूछें उड़ाई गईं और उनका हेयर स्टाइल भी चेंज किया गया। इस चेंज ने ग़ज़ब का कमाल दिखाया।

 

जो फ़िल्म अमिता को रीलॉन्च करने के लिए, स्टार बनाने के लिए बनाई गई थी उसने शम्मी कपूर को स्टार बना दिया। फिल्म सुपरहिट रही और इसके बाद नासिर हुसैन और शम्मी कपूर की एक और फ़िल्म आई दिल देके देखो। नासिर हुसैन की फ़िल्म तीसरी मंज़िल भी शम्मी कपूर को देवानंद की वजह से ही मिली। तीसरी मंज़िल में पहले देवानंद काम करने वाले थे मगर किसी वजह से उन्होंने ये फिल्म छोड़ दी तब शम्मी कपूर को साइन किया गया।

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05 – जंगली या मि हिटलर ???

शम्मी कपूर और नासिर हुसैन दो हिट फिल्में दे चुके थे। लेकिन जब नासिर हुसैन ने अपना प्रोडक्शन शुरू किया तो उन्होंने अपनी पहली फ़िल्म “जब प्यार किसी से होता है” में देवानंद को लिया उस समय तक देवानंद सुबोध मुखर्जी के कैंप के हीरो थे तो जब नासिर हुसैन ने देवानंद को साइन किया तो सुबोध मुखर्जी ने अपनी फ़िल्म मि हिटलर के लिए शम्मी कपूर को साइन कर लिया। बाद में मि हिटलर का नाम बदल कर जंगली रखा गया और ये शम्मी कपूर की पहली कलर फिल्म थी जिसकी शूटिंग कश्मीर और शिमला में हुई थी।

शम्मी कपूर

जंगली इस क़दर हिट हुई कि शम्मी कपूर का नाम ही जंगली पड़ गया “बॉलीवुड का ओरिजिनल जंगली”। जब वो स्क्रीन पर याहू बोलते दिखते तो सिनेमा हॉल में इतना शोर मचता था कि इमेजिन करना मुश्किल है। लेकिन ये जो “याहू” बोला गया वो आवाज़ शम्मी कपूर की नहीं थी न ही रफ़ी साहब की। वो आवाज़ थी प्रयाग राज की जो पृथ्वी थिएटर्स में काम करते थे, और बहुत अच्छे लेखक थे। मगर ये रफ़ी साहब की ख़ूबी थी कि उन्होंने याहू के उस जोश को उस पिच को पूरे गाने में बरक़रार रखा। और वो शम्मी कपूर की एनर्जी का कमाल था जिसने स्क्रीन पर इस गाने को इतना जानदार बनाया। 

जंगली से लेकर पूरे एक दशक तक शम्मी कपूर का जादू लगातार चलता रहा। प्रोफ़ेसर, चाइना टाउन, राजकुमार, कश्मीर की कली, जानवर, तीसरी मंज़िल, एन इवनिंग इन पेरिस, ब्रह्मचारी, पगला कहीं का जैसी फ़िल्मों ने हिंदी सिनेमा में हीरो की परिभाषा ही बदल दी। एक हीरो जो उछलता है, कूदता है, नाचता है।  उन्होंने हीरो को एक कलरफुल इमेज दी जिसके रंग आज भी वैसे ही हैं।

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06 – संगीत के प्रति दीवानगी  

पता है शम्मी कपूर के गाने इतने हिट क्यों हैं क्यों उनके साथ साथ देखने वाला भी उनमें डूब जाता है क्योंकि वो अपने गानों से पहले दिन से ही जुड़ जाते थे, उन गानों को शूटिंग से पहले ही ख़ुद में उतार लेते थे। ख़ुद पर फ़िल्माए जाने वाले गानों को लेकर वो बहुत सतर्क रहते थे। ये तो सभी जानते हैं कि कोई डांस डायरेक्टर उन्हें स्टेप्स नहीं बताता था। गाना शुरु होता था और वो थिरकना शुरु कर देते थे स्पॉनटेनियसली मगर वो गाना उससे पहले उनके दिमाग में चलता रहता था वो इमेजिन करते रहते थे कि उस गाने को वो कैसे फाइनल टच देंगे। इसीलिए उनके गाने आज भी उसी तरह ताज़ा लगते हैं।

शम्मी कपूर

इसके पीछे एक क़िस्सा भी है। एक बार जब वो स्कूल में पढ़ते थे तो वो एक दिन R K स्टूडियो पहुँचे वहां वहाँ नरगिस मेकअप रूम में बैठी थीं और रो रही थीं। शम्मी कपूर ने उनसे पूछा क्या हुआ ? उन्होंने कहा मुझे आवारा की कहानी बहुत पसंद आई है और मैं उसमें काम करना चाहती हूँ मगर मेरी फ़ैमिली नहीं चाहती। तुम मेरे लिए प्रार्थना करो। और फिर जैसे लोग बच्चों से बोल देते हैं कि अगर मैंने ये फिल्म की तो मई तुम्हें किस दूंगी। शम्मी कपूर ने कहा मैं प्रार्थना करूँगा। ये बरसात फिल्म की शूटिंग की बात थी वक़्त बीता किसी को वो बात याद नहीं रही। 

शम्मी कपूर कॉलेज में आ गये और फिर एक दिन स्टूडियो पहुँचे तो देखा आवारा फ़िल्म की शूटिंग चल रही थी। नरगिस भी वहाँ थी, जब शम्मी कपूर ने शरारती नज़रों से उन्हें देखा तो वो समझ गईं और बोलीं बिल्कुल नहीं किस के बारे में सोचना भी मत। पर शम्मी कपूर बहुत शरारती थे वो उनके पीछे पीछे अपना ईनाम पाने के लिए भागे। नरगिस ने कहा किस के अलावा जो कहोगे मैं दुँगी और शम्मी कपूर ने माँगा ग्रामोफ़ोन प्लेयर। नरगिस उसी वक़्त उन्हें एक बड़ी सी शॉप पर ले गईं और उन्हें कहा जो चाहिए चुन लो। शम्मी कपूर ने लाल रंग का ग्रामोफ़ोन प्लेयर चुना।

उसके बाद नरगिस उन्हें एक म्यूजिकल स्टोर में ले गईं जहाँ से शम्मी कपूर ने 20 अपनी पसंद के रेकॉर्ड्स चुने। इस तरह शम्मी कपूर की ज़िंदगी में म्यूजिक की एंट्री हुई। और वो जब भी घर लौटते तो सभी काम निपटाकर वो अपने रिकार्ड्स प्ले करते और उन पर उस तरह डांस करते जैसा वो अपनी फ़िल्मों में करना चाहते थे, वो सोचते रहते कि अपनी फ़िल्मों में इस तरह के म्यूजिक पर ऐसा एक्सप्रेशन देंगे इस तरह मूवमेंट करेंगे मगर उन्हें अपनी शुरूआती फ़िल्मों में वो मौक़ा ही नहीं मिला। लेकिन जब मौक़े आये तो वो अपने एक्सप्रेशंस और डांस स्टेप्स से सब पर छा गए। 

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07 – शम्मी कपूर की आवाज़ मोहम्मद रफ़ी

शम्मी कपूर की कामयाबी में जितना हाथ उनके मेकओवर, उनके स्टाइल का था, उतना ही योगदान गीत-संगीत का भी था लेकिन वो मानते थे कि उनके स्टाइल को बरक़रार रखने में सबसे बड़ा हाथ मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ का था। शम्मी कपूर किसी पर्टिकुलर गाने के बारे में जैसा सोचते थे कि वो उसे परदे पर कैसे उतारेंगे, अपनी वही इमेजिनेशन वो रफ़ी साहब को बता देते थे साथ ही उसी ख़ास स्टाइल में गाने की गुज़ारिश करते और रफ़ी साहब ठीक उसी तरह उस गाने को गाते।

एक बार ऐसा हुआ कि गाना रिकॉर्ड हो गया, उस दिन रिकॉर्डिंग के टाइम पर शम्मी कपूर मौजूद नहीं थे, इसलिए रफ़ी साहब से डिसकस नहीं कर पाए। मगर जब उन्होंने वो गाना सुना तो हैरान रह गए क्योंकि रफ़ी साहब से उस गाने को ठीक उसी तरह गाया था जैसा उन्होंने सोचा था। इतनी अच्छी ट्यूनिंग थी दोनों में इसीलिए शम्मी कपूर मोहम्मद रफ़ी को अपनी आवाज़ कहते थे। हाँलाकि किशोर कुमार ने भी 1982 की फिल्म विधाता में शम्मी कपूर के लिए अपनी आवाज़ दी पर ऐसा कम ही हुआ।

शम्मी कपूर

रफ़ी साहब को शम्मी कपूर ने पहली बार जबलपुर में देखा, उन दिनों वो कॉलेज में थे। वो अपने भाई के साथ अपनी भाभी के घर गए थे जबलपुर में। वहाँ एक कॉन्सर्ट था जिसमें रफ़ी साहब ने 1951 की फ़िल्म जादू का गाना गाया था। पर उनसे मुलाक़ात नहीं हुई थी। जब शम्मी कपूर ने फ़िल्मों में काम करना शुरु किया तो रफ़ी साहब ने भी उनके लिए गाने गाए (रेल का डिब्बा, लैला मजनू, शमा परवाना,  कई मशहूर गाने गाए मगर तब भी दोनों की मुलाक़ात नहीं हुई थी। उनकी पहली मुलाक़ात तब हुई जब वो “हम सब चोर हैं” में काम कर रहे थे।

वो जब रिकॉर्डिंग रूम में गए तब वहाँ गानों की रिहर्सल चल रही थी और तब शम्मी कपूर ने सोचा कि अगर रफ़ी साहब इस तरह गायें तो शायद वो परदे पर ज़्यादा बेहतर कर पाएंगे। लेकिन उस वक़्त उन्हें ये सब कहने का मौक़ा नहीं मिला। लेकिन जब तुमसा नहीं देखा के गाने रिकॉर्ड हो रहे थे तो शम्मी कपूर ने रफ़ी साहब से अपना ओपिनियन शेयर किया कि वो उस पर्टिकुलर गाने को किस तरह गाना चाहते थे। और रफ़ी साहब ने उनके सुझावों को माना, बिना किसी न नुकर के। वो गाना था “सर पर टोपी लाल हाथ में रेशम का रुमाल” और यहीं से उन दोनों के सुपरहिट गानों की शुरुआत हुई।

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08 – प्यार और शादी 

शम्मी कपूर लिब्रा थे लिब्रा को होपलेस रोमेंटिक कहा जाता है। वो भी बचपन से रोमेंटिक थे, बचपन में फुटबॉल मैच इसलिए हारे क्योंकि उनके आस पास बहुत ख़ूबसूरत लड़कियाँ मौजूद थीं और उनका ध्यान गोल रोकने से ज़्यादा उन लड़कियों पर था। एक बार शूट करते हुए उनकी दो पसलियाँ टूट गई थीं क्योंकि उन्हें ऊपर से नीचे पानी में कूदना था और वो होटल रूम में खड़ी एक ख़ूबसूरत लड़की को देखते हुए आगे बढ़ रहे थे। इसी चक्कर में बड़ी तेज़ी से पानी में गिरे और पसलियों में क्रैक आ गया। 

शम्मी कपूर

Firts Serious Love

लेकिन उन्हें प्यार भी हुआ 1953 में उन्हें एक कैबरे डांसर से प्यार हुआ। उस वक़्त वो क़रीब 22 साल के थे और वो डांसर 17 साल की। वो सीलोन में थे और उन्होंने पहली बार लाइव कैबरे डांस परफॉरमेंस देखा और उस लड़की पर फ़िदा हो गए। रोज़ उसका बेले डांस देखने पहुँच जाते उससे दोस्ती भी बढ़ा ली और तीन दिन के बाद उसे शादी के लिए प्रोपोज़ कर दिया। उस वक़्त उस लड़की ने कहा – देखते हैं।

ये सब लोग मुंबई लौट आये और वो लड़की काइरो वापस जाते समय मुंबई आई, शम्मी कपूर इतने सीरियस थे कि उन्होंने अपने पूरे परिवार से उस लड़की को मिलवाया। अपने दादा दादी से भी और ये बताया भी कि हो सकता है वो उनकी बहु बन जाए। जाते समय उस लड़की ने कहा कि अभी हम दोनों बहुत यंग हैं हमें एक दूसरे को थोड़ा वक़्त देना चाहिए। पाँच साल बाद भी अगर हम दोनों का प्यार ज़िंदा रहता है तो हम शादी कर लेंगे। लेकिन उसके बाद वो दोनों कभी नहीं मिले।

शम्मी कपूर

First Wife Geeta Bali

लेकिन इस बीच शम्मी कपूर की ज़िन्दगी में आईं गीता बाली दोनों में बहुत सी बातें कॉमन थीं। दोनों को म्यूजिक से प्यार था दोनों क़ुदरत का साथ पसंद करते थे। दोनों को हिल स्टेशन, पहाड़ी धुनें पसंद थीं। और दोनों एक दूसरे को पसंद भी करते थे। और ये वो वक़्त था जब गीता बाली ख़ासी लोकप्रिय स्टार थीं और शम्मी कपूर स्ट्रगल कर रहे थे। लेकिन शम्मी कपूर ने गीता बाली को शादी का प्रस्ताव दे दिया पर उन्होंने मना कर दिया। वो उनसे प्यार करती थीं मगर शादी की ज़िम्मेदारी निभाने के लिए उस वक़्त तैयार नहीं थीं। लेकिन शम्मी कपूर भी ज़िद्दी थे और वक़्त-वक़्त पर शादी की बात छेड़ देते थे।

ऐसे ही कुछ महीनों बाद जब उन्होंने फिर से शादी करने को कहा तो गीता बाली तैयार हो गईं लेकिन इस शर्त पर कि उसी वक़्त शादी करनी होगी। रात हो चुकी थी मंदिर बंद हो गए थे तो दोनों ने सुबह तक इंतज़ार किया और भगवन के जागने से पहले मंदिर पहुँच गए। और तब उनकी शादी हुई, तैयारी कुछ थी नहीं तो सिन्दूर की जगह गीता बाली की लिपस्टिक का इस्तेमाल किया गया।  शादी के बाद शम्मी कपूर अपने दादाजी के घर गए और सबसे पहले उन्हें बताया कि उन्होंने शादी कर ली फिर उन्होंने ही सबको ख़बर दी। गीता बाली और शम्मी कपूर के दो बच्चे हुए लड़का आदित्य राज कपूर और बेटी कंचन।

मुमताज़ की तरफ़ खिंचाव

शम्मी कपूर

शम्मी कपूर और गीता बाली का दस साल का ये साथ तब छूट गया जब 1965 में गीता बाली की मौत हो गई। उनकी मौत के बाद शम्मी कपूर अभिनेत्री मुमताज़ के क़रीब आए वो उनसे शादी करना चाहते थे मगर मुमताज़ का करियर तभी उड़ान भरना शुरु हुआ था इसलिए उन्होंने उनके प्रपोज़ल को ठुकरा दिया।

दूसरी शादी

इसके बाद 1969 में उनकी शादी हुई नीला देवी से, नीला देवी राज कपूर की बेटी ऋतू की दोस्त थीं घरवाले चाहते थे कि दोनों की शादी हो जाए इसलिए शम्मी कपूर को उनसे मिलने के लिए कहा गया। लेकिन वो दिन भर शूटिंग में बिजी थे, इसलिए रात के डेढ़ बजे नीला देवी से मिलने पहुँचे और फिर सुबह तक दोनों में बातें होती रहीं।

नीला देवी ने एक इंटरव्यू में बताया था कि शम्मी कपूर ने उन्हें अपने बारे में सब कुछ बताया, रोमांस, शादी अफेयर, अपनी आदतें वगैरह और अगले दिन पृथ्वीराज कपूर ने उनके पिता से उनका हाथ माँगा और उसी दिन दोनों की शादी हो गई। शम्मी कपूर ने अपनी ज़िंदगी में आने वाली हर औरत को उन्होंने इज़्ज़त दी मगर जो प्यार उन्होंने गीता बाली से किया वो किसी से नहीं किया। उनके घर में एक मंदिर था जिसमें गीता बाली की फ़ोटो लगी थी। 

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09 – आध्यात्मिकता 

70 का दशक आते-आते शम्मी कपूर का वज़न बढ़ने लगा था। 1974 की फ़िल्म छोटे सरकार में वो आख़िरी बार हीरो के तौर पर नज़र आये थे। उन्होंने 1974 की फ़िल्म मनोरंजन का निर्देशन किया था जो ठीक ठाक चली फिर इसके बाद उन्होंने बंडलबाज़ का निर्देशन किया जो फ़्लॉप हो गई। इसके बाद वो फ़िल्मों में चरित्र भूमिकाओं में ही नज़र आये।

शम्मी कपूर

लगभग इसी दौर में उनका एक अलग रुप लोगों के सामने आया। एक समय का लवरब्यॉय अब माथे पर तिलक गले में रुद्राक्ष की माला पहने दिखाई दिया। उनकी पत्नी नीला देवी के मायके वाले एक बाबाजी को मानते थे। और एक चमत्कारिक घटना के बाद से वो भी उन बाबाजी के मुरीद हो गए थे। वो अक्सर वृन्दावन भी जाया करते थे। इस दौर में उनका रुझान अध्यात्म की तरफ़ हो गया था।   

10 – बुरी आदतें और बीमारी 

शम्मी कपूर चेन स्मोकर थे और कपूर परिवार के दूसरे मर्दों की तरह पीने का भी बहुत शौक़ था। बाद के दौर में उन्हें डाइबिटीज़ भी हो गई थी। वो इतनी सिगरेट पीने लगे थे कि उसका असर उनकी किडनी पर पड़ा और आख़िर में वो हालत हो गई थी कि उन्हें हफ्ते में तीन बार डायलिसिस कराना पड़ता था। मौत के क़रीब आते-आते हालत ये हो गई थी कि उन्हें साँस लेने के लिए भी ऑक्सीजन सिलेंडर की ज़रुरत पड़ने लगी थी।

शम्मी कपूर

6 अगस्त को वो अपनी बेटी कंचन की बर्थडे पार्टी में गए और वहाँ सभी परिवार वालों और दोस्तों को गुडबाय कह कर लौटे। 7 अगस्त को उन्हें अस्पताल में दाख़िल कराया गया और 14 अगस्त को उन्होंने दुनिया छोड़ दी। उस हालत में भी उनका ऐटिटूड बहुत ग़ज़ब था। वो कहते थे कि तीन दिन हॉस्पिटल को देता हूँ पर चार दिन तो मेरे हैं और उन चार दिनों को वो भरपूर जीते थे। ड्राइविंग उनका पैशन था।  

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बहुत से लोग शायद न जानते हों या भूल गए हों कि एक टाइम पर शम्मी कपूर पान पराग के एड में दिखाई दिए थे। वो एड बहुत मशहूर हुआ था, इतना मशहूर हुआ था कि लोग उन्हें पान पराग के नाम से ही पुकारने लगे थे। मगर राजकपूर को ये बात बिलकुल पसंद नहीं आई। शम्मी कपूर के वजह पूछने पर उन्होंने कहा कि इस एड की वजह से सुपरहिट फ़िल्मों से जो तुम्हारी पहचान बनी थी वो एक पल में मिट गई तो तुम फ्यूचर में उन फ़िल्मों की वजह से जाने जाना चाहोगे या या इस एक एड की वजह से ?

बात उनकी समझ में आ गई और उन्होंने फिर कभी किसी एड में काम नहीं किया। ये एड भी उन्होंने इसलिए किया क्योंकि इस एड में उन्हें अशोक कुमार के साथ काम करने का मौक़ा मिल रहा था और वो इस मौके को हाथ से जाने नहीं देना चाहते थे। शम्मी कपूर जितने स्टाइलिश और लोकप्रिय थे, असल ज़िंदगी में उतने ही संवेदनशील और अच्छे इंसान थे, साथ ही समय के साथ चलने वाले व्यक्ति भी थे। लेकिन बतौर याहू स्टार उनकी जो पहचान बनी वो अमिट है और हमेशा रहेगी।

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