लाठी/डंडा वाकई कमाल की चीज़ है इस पर कई कहावतें बनी हैं – “जिसकी लाठी उसकी भैंस” “मेरी भैंस को डंडा क्यों मारा”। इस पोस्ट में कहानी है- “सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे” – इस कहावत का मतलब है कि आपका काम भी बन जाए और किसी तरह का कोई नुकसान भी न हो। ये कहावत बनी गांव में रहने वाले किसान को पेश आने वाली मुश्किलों की वजह से।
परेशान किसान
एक गाँव में रामू नाम का एक किसान रहता था उसके खेत में अक्सर आवारा पशु घुस आते थे। वो एक को भागता तो कोई दूसरा घुस आता, वो उन्हें भगाते-भगाते परेशान हो जाता था। एक दिन जब वो बहुत ज़्यादा परेशान दिख रहा था तो उसके पड़ोसी किसान गोपाल ने उससे पूछा – क्या बात है रामू कई दिनों से तुम बहुत परेशान नज़र आ रहे हो।
रामू ने बड़े ही कातर स्वर में कहा – क्या बताऊँ भैया इन जानवरों ने तो मेरा सारा खेत बिगाड़ कर रख दिया है, न जाने कहाँ से आ जाते हैं ?! जब उसने अपने पडोसी को अपनी अपनी सारी रामकहानी सुनाई तो उसने सलाह दी कि थोड़े पैसे जोड़ कर एक अच्छी सी लाठी ले आओ, एक आध बार लाठी दिखाओगे तो जानवर खेत में घुसना बंद कर देंगे। आईडिया उसे भी पसंद आया और फिर वो पैसे जोड़ने में जुट गया।
थोड़ा समय लगा, उसकी जो थोड़ी बहुत जमा पूँजी थी उसने वो निकाली, थोड़े पैसे अपनी पत्नी की बचत से जुटाए। वो अपनी मेहनत की कमाई से एक बहुत मज़बूत लाठी खरीदना चाहता था। लेकिन उसकी जोड़ी हुई पाई पाई थोड़ी कम पड़ गई। पर उसने देखभाल कर एक अच्छी सी लाठी/ डंडा खरीद लिया। अब जब भी कोई जानवर उसके खेत में घुसने की कोशिश करता वो अपने डंडे से उसे बाहर खदेड़ देता। कुछ ही समय में किसान को राहत मिल गई, अब लाठी के डर से जानवर उसके खेत से दूर ही रहने लगे।
लाठी का कमाल
बरसात का मौसम था किसान की पत्नी मायके गई हुई थी और वो घर में बिलकुल अकेला था। किसान अपनी कोठरी में सो रहा था कि अचानक उसने अपनी भैंस के रम्भाने की आवाज़ सुनी। इतनी रात में भैस की आवाज़ सुनकर किसान को अचंभा हुआ पर वो समझ गया ज़रूर कोई तो बात है, वार्ना भैस ऐसे नहीं रम्भाती। वो जल्दी से बिस्तर से उठा, उसने उठकर लालटेन जलाई और अपनी लाठी लेकर बाहर निकला।
बाहर का दृश्य देखकर उसके पसीने छूट गए, देखता क्या है उसकी भैंस से कुछ ही दूरी पर एक बड़ा सा साँप फन फैलाए बैठा है। पहले तो उसके हाथ पैर फूल गए उसे कुछ समझ नहीं आया कि क्या करे !! लेकिन तुरंत ही उसका दिमाग ठिकाने आया और रामू ने सोचा कि इस लाठी से साँप को मार देता हूँ मगर रात का अँधेरा था, उसके एक हाथ में लालटेन तो थी पर उसे मारते हुए रौशनी हिलती और निशाना चूक सकता था। अगर निशाना चूक गया तो हो सकता है साँप भड़क जाए या कहीं भाग कर छुप जाए ! हो सकता था वो भैंस को ही डस ले।
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अगर वो दूर से लाठी फेंक कर मारता तो उसकी मेहनत के पैसों से खरीदी हुई लाठी भी टूट सकती थी। उधर भैस डर के मारे लगातार रम्भा रही थी इधर रामू को कुछ समझ नहीं आ रहा था। तभी उसकी भैस की आवाज़ से उसका पडोसी गोपाल भी जाग गया और बाहर निकल आया। देखते ही उसे सारा माजरा समझ में आ गया। गोपाल को देखकर रामू का भी हौसला बढ़ा और उसे एक युक्ति सूझी।
रामू ने धीरे से गोपाल से कहा कि मैं रौशनी करता हूँ और तुम कुछ ऐसा उपाय करो कि साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। तब गोपाल ने धीरे से रामू के हाथ से लाठी ली और सीधे साँप के फ़न पर वार किया। इस तरह साँप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी।
आज भी जब कोई काम बिना नुकसान के पूरा हो जाता है तो हम यही कहते हैं न कि – सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी।
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