धुनों के जादूगर राहुल देव बर्मन जिन्हें उनके चाहने वाले R D बर्मन और पंचम के नाम से भी पुकारते हैं। उन्होंने फिल्म संगीत में एक अनोखा जोश और उत्साह डाला। 60 के दशक में फिल्म संगीत के फ़लक पर वो एक ऐसा उभरता सितारा बने जिसने हिंदी फिल्म संगीत की तमाम रूढ़ियों और परम्पराओं को तोड़ कर संगीत की एक ऐसी परिपाटी तैयार की जिस पर चलकर आने वाले कितने ही युवा संगीतकारों ने अपनी मंज़िल पाई।
पंचम नाम के बारे में कहा जाता है कि एक बार बचपन में वो कोई गाना गाते हुए “प ” पर बार-बार अटक रहे थे तो अभिनेता अशोक कुमार ने उनका नाम पंचम रख दिया। वैसे ये भी कहा जाता है कि बचपन में वो पांचवें सुर में रोते थे इसलिए उन्हें पंचम कहा जाने लगा। जो भी हो पर ये नाम है बिलकुल सटीक। एक इंसान जिसकी रग-रग में संगीत बहता हो, जिसने संगीत को जिया हो उसका इससे बेहतर नाम और क्या हो सकता है !
R D बर्मन के संगीत के सफ़र की शुरुआत बचपन से ही हो गई थी
कोलकाता में 27 जून 1939 को जन्मे R D बर्मन का सम्बन्ध त्रिपुरा के राजघराने से था। संगीत का माहौल उन्हें बचपन से ही मिला क्यूँकि उनके पिता सचिन देव बर्मन खुद एक महान संगीतकार थे। शायद इसीलिए 9 साल की छोटी सी उम्र में उन्होंने एक धुन बन डाली थी जिसे उनके पिता ने “फंटूश ” फिल्म के गाने “ऐ मेरी टोपी पलट के आ न अपने फंटूश को सता” के लिए इस्तेमाल किया।
बचपनसे ही R D बर्मन को माउथ ऑर्गन (हारमोनिका ) बजाने का बहुत शौक़ था, उनके माउथ ऑर्गन (हारमोनिका ) का कमाल कई फिल्मों में दिखा। फिल्म “सोलहवाँ साल” का एक गाना है “है अपना दिल तो आवारा न जाने किस पे आएगा” इस गाने में R D बर्मन ने ही माउथ ऑर्गन बजाया था। “दोस्ती” फिल्म में उन्होंने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के लिए माउथ ऑर्गन बजाया।
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लेकिन जिस फिल्म ने R D बर्मन को सफलता की ऊँचाइयों पर पहुँचाया वो थी निर्माता निर्देशक नासिर हुसैन की सुपर हिट फिल्म “तीसरी मंज़िल”। फिल्म के हीरो थे शम्मी कपूर जो किसी नए म्यूजिक डायरेक्टर को लेकर अपनी इमेज के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहते थे। पर नासिर हुसैन और गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी के कहने पर जब उन्होंने R D बर्मन की compositions को सुना तो उनके हुनर के क़ायल हो गए।
“तीसरी मंज़िल” फिल्म में R D बर्मन ने ड्रम, सेक्सोफोन, इलेक्ट्रिक ऑर्गन और गिटार जैसे इंस्ट्रूमेंट्स से जिस तरह का प्रयोग किया वो हिंदी फिल्म संगीत में जैसे क्रांति ले आया। इसमें R D बर्मन रॉक एन रोल (rock n roll) भी लेकर आये। इस फिल्म के संगीत की ताज़गी और रवानगी का जादू सबके सर चढ़कर बोला।
तीसरी मंज़िल के बाद निर्माता-निर्देशक नासिर हुसैन ने गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी और संगीतकार R D बर्मन की इस जोड़ी को अगली छः फिल्मों के लिए साइन कर लिया। “बहारों के सपने”, “प्यार का मौसम”, “यादों की बारात”, “कारवाँ” “हम किसी से कम नहीं”, “ज़माने को दिखाना है” इस बीच उन्होंने “पड़ोसन” जैसी कई म्यूज़िकल हिट्स भी दीं। इस दौर में नासिर हुसैन ही नहीं शक्ति सामन्त, राहुल रवैल और राज सिप्पी जैसे कई निर्देशकों की फिल्मों में R D बर्मन का हिट म्यूजिक सुनाई दिया।
R D बर्मन के फ़िल्मी सफर में जिन फ़िल्मों ने मील के पत्थर की भूमिका निभाई उनमें से एक थी – “हरे रामा हरे कृष्णा” इसका टाइटल सांग “दम मारो दम” एक तरह का रेवोलुशनरी सांग था, और ऑल इंडिया रेडियो पर इसे नहीं चलाया जाता। (ये युवाओं को नशे की ओर प्रेरित करता है ) इंटरेस्टिंग बात ये है कि देवानंद इस rock number को फिल्म में रखना ही नहीं चाहते थे। उन्हें लगता था ये गाना फिल्म पर हावी हो जाएगा। पर यही सबसे यादगार गाना बन गया।
देवानंद चाहते थे कि फिल्म “हरे रामा हरे कृष्णा” में जो गंभीर गाना है उसका संगीत एस डी बर्मन दें और बाक़ी गाने R D बर्मन तैयार करें पर सचिन दा के इंकार के बाद फिल्म का म्यूज़िक कंपोज़ किया R D बर्मन ने। “हरे रामा हरे कृष्णा” का म्यूज़िक रातों रात हिट हो गया इसमें जो एक भाई-बहन वाला गाना है -“फूलों का तारों का सबका कहना है, एक हज़ारों में मेरी बहना है” असल में इसी गाने में फ़िल्म की आत्मा है, उसका पूरा सार है। ये आज भी रक्षाबंधन पर सुनाई दे जाता है।
संगीत में प्रयोग
R D बर्मन वेस्टर्न हार्मनी (western harmony) के साथ-साथ इंडियन मेलोडी और तकनीक की जितनी अच्छी समझ रखते थे उतनी ही अच्छी तरह वो नयी पीढ़ी के मिज़ाज को भी समझते थे। शायद यही वजह है कि युवा भी उनके संगीत से खुद को जोड़ पाता है। वो कई मायनों में ट्रेंड-सेटर थे। जब वो फिल्म म्यूजिक में Latin sounds, कैबरे, retro और funky sounds लेकर आये तो फिल्म संगीत का पूरा परिदृश्य ही बदल गया।
R D बर्मन ने क़ुदरती आवाज़ों (natural sounds) के साथ कई प्रयोग किये और उन्हें अपनी कम्पोज़िशन्स में इस्तेमाल किया। उन्होंने अपने आस-पास की ऐसी sounds का इस्तेमाल अपने गानों में किया जिनके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। ग्लास और चम्मच की आवाज़, bamboo sticks और सैंड पेपर की आवाज़ या कंघे के घिसने की आवाज़। एक बार बारिश की बूँदों की मनचाही आवाज़ रिकॉर्ड करने के लिए वो रात भर अपनी बालकनी में बैठे रहे। ऐसे थे पंचम, अपने समय से बहुत आगे। जहाँ औरों की सोच ख़त्म हो जाती थी वहां से पंचम की creativity शुरू होती थी।
( यादों की बारात के गाने “चुरा लिया है तुमने जो दिल को ” इसमें उन्होंने ग्लास और चम्मच की साउंड डाली
पड़ोसन के गाने “सामने वाली खिड़की” -इस में उन्होंने कंघे को ज़मीन पर घिस कर आवाज़ निकाली )
R D बर्मन ने जहाँ झूमने, नाचने, थिरकने वाले गाने बनाए वहीं अमर प्रेम जैसा soulful म्यूजिक भी उन्हीं की देन है। उनकी कम्पोज़िशन्स में शास्त्रीय संगीत और लोक धुनों का भी भरपूर इस्तेमाल हुआ है। हांलाकि उनके संगीत के इस पक्ष को अक्सर नज़रअंदाज़ किया गया, पर ये एक सच्चाई है कि आज भी उनके सॉफ़्ट रोमेंटिक नंबर्स सबसे ज़्यादा गुनगुनाए जाते हैं।
कवि-लेखक-निर्देशक गुलज़ार के साथ R D बर्मन का काफी लम्बा एसोसिएशन रहा। दोनों की जान पहचान तो तब से ही थी जब एस डी बर्मन के लिए गुलज़ार ने बंदिनी का गाना लिखा था, पर साथ काम करने का सिलसिला जो “परिचय” से शुरू हुआ तो वो “खुशबू”, “किनारा”, “आंधी”, “किताब”, “नमकीन”, “लिबास” और “इजाज़त’ तक चला। गुलज़ार की कविताओं को सुरों में पिरोने का काम जिस ख़ूबसूरती से पंचम ने किया वो कोई और नहीं कर पाया। R D बर्मन, गुलज़ार और आशा भोंसले की एक ऐसी टीम थी जिसने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को लाजवाब गाने दिए ।
“दिल पडोसी है” नाम से इनकी एक non-filmi album आई थी जो संगीत, गीत और आवाज़ का एक अनोखा संगम है। इसमें आशा भोंसले ने सेमी क्लासिकल, ग़ज़ल, जैज़ और पॉप तक गाया। एक Versatile Singer के तौर पर आशा भोंसले की जो पहचान बनी उसे बनाने में R D बर्मन का काफी योगदान रहा। R D बर्मन ने उनकी आवाज़ की रेंज को पहचाना और उन्हें अलग-अलग वैरायटी के गाने गाने का मौक़ा दिया।
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किशोर कुमार ने भी सबसे ज़्यादा वैरायटी पंचम के संगीत निर्देशन में ही दी। R D बर्मन ने उन्हें सॉफ़्ट रोमेंटिक गाने, उदासी भरे गीत (sad songs), या दार्शनिक गीत (philosophical songs) यहाँ तक कि शास्त्रीय रागों पर आधारित गीत गाने का मौक़ा भी दिया। पंचम अच्छी तरह जानते थे कि कौन सा गाना किसकी आवाज में बेहतर लगेगा। इसीलिए जहाँ sad या बहुत सॉफ्ट क्लासिकल गीतों की बात होती तो वो लता मंगेशकर की आवाज़ का इस्तेमाल करते। ज़रुरत के मुताबिक़ उन्होंने परवीन सुल्ताना, अमित कुमार, सपन चक्रबर्ती, सुरेश वाडेकर और कुमार सानू जैसे नए गायक गायिकाओं से भी गाने गवाए।
R D बर्मन खुद बहुत अच्छे गायक थे। “शोले”, “किताब”, “ज़माने को दिखाना है”, “महान”, “सनम तेरी क़सम”, जैसी करीब 18 फिल्मों में उन्होंने अपनी आवाज़ दी, लेकिन तभी जब उनके जैसी आवाज़ की ज़रुरत महसूस हुई।
R D बर्मन के गाए कुछ गाने
- धन्नो की आँखों में – किताब
- महबूबा महबूबा – शोले
- ओ मेरी जाँ मैंने कहा – द ट्रैन
- जाना ओ मेरी जाना – सनम तेरी क़सम
- दिल लेना खेल है दिलदार का – ज़माने को दिखाना है
- जाने जिगर दुनिया में तू सबसे हसीं है – पुकार
गीतकार गुलज़ार के अलावा मजरूह सुल्तानपुरी, गुलशन बावरा और आनंद बख्शी, के साथ उन्होंने काफी काम किया। क़रीब 330 फिल्मों में R D बर्मन ने अपने संगीत के साज़ छेड़े, इनमें हिंदी के साथ-साथ बांग्ला, तेलुगु, तमिल और उड़िया फिल्में भी शामिल हैं। हिंदी और मराठी के पाँच टीवी सीरियल्स में भी पंचम ने संगीत दिया। उनकी एक लेटिन रॉक एल्बम आई थी -“PENTERA” जिस में अपनी ही तरह का एक अलग प्रयोग था, ये अंतर्राष्ट्रीय स्तर की एल्बम थी जिसे काफी सराहना मिली। बांग्ला में उन्होंने बहुत से non-filmi songs भी कंपोज़ किये थे जो बाद में हिंदी फिल्मों में भी adapt किये गए।
पंचम का निजी जीवन
उनके निजी जीवन की बात करें तो R D बर्मन की पहली शादी हुई थी रीता पटेल से पर ये लव मैरिज ज़्यादा दिन चल नहीं पाई और 1971 में दोनों अलग हो गए। इसके बाद पंचम की जीवन संगिनी बनी आशा भोंसले। अपनी बीट्स पर दुनिया को थिरकाने वाले पंचम की ज़िंदगी में एक वक़्त ऐसा भी आया जब उनकी फिल्में लगातार फ्लॉप हो रही थी ऐसे में इंडस्ट्री के उन लोगों ने भी उनसे किनारा करना शुरू कर दिया जिन्हें पंचम ने कई म्यूज़िकल हिट्स दी थीं। लोगों के इस रवैये से पंचम का दिल टूट गया।
1988 में R D बर्मन को पहला हार्ट अटैक आया बाद में उनकी बायपास सर्जरी भी हुयी। लेकिन बीमारी के इस दौर में भी उन्होंने संगीत से नाता नहीं तोड़ा। पंचम की आख़िरी फिल्म थी विधु विनोद चोपड़ा की “1942: A Love Story” हाँलाकि म्यूज़िक कंपनी वाले चाहते थे कि फिल्म का म्यूज़िक कोई नया कंपोजर दे पर विधु विनोद चोपड़ा R D बर्मन को ही ये ज़िम्मेदारी देना चाहते थे क्योंकि उनकी फिल्म “परिंदा” में भी पंचम का ही म्यूज़िक था। इस तरह ये फ़िल्म उन्हें सिर्फ़ और सिर्फ़ विधु विनोद चोपड़ा की वजह से मिली। और सब जानते हैं कि फ़िल्म का संगीत कितना लोकप्रिय हुआ। लेकिन अफ़सोस के पंचम इस दौर को नहीं देख पाये।
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फ़िल्म रिलीज़ होने से पहले ही 4 जनवरी 1994 को पंचम इस दुनिया को अलविदा कह गए। उनकी मौत के बाद उन्हें इस फ़िल्म के लिए बेस्ट म्यूज़िक डायरेक्टर का फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड दिया गया। इसे विडम्बना ही कहेंगे कि अनगिनत सुपरहिट गानों का म्यूज़िक देने वाले R D बर्मन को ये अवार्ड सिर्फ 3 बार मिला। पहली बार 1983 में फिल्म “सनम तेरी क़सम” के लिए, दूसरी बार 1984 में फिल्म “मासूम” के लिए और तीसरी बार उनकी मौत के बाद फिल्म “1942: A Love Story” के लिए। पंचम की याद में फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड्स में एक नए अवार्ड को शामिल किया गया – “Filmfare R D Burman Award for New Music Talent “.
R D बर्मन के जाने के बाद लोगों ने उनके फ़न को पहचाना। सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि UK और North America में भी उनके गानों के रीमिक्स बने। उनकी मौत के सालों बाद भी उनके बनाए ओरिजिनल गानों को लेकर या उन्हीं के रीमिक्स वर्ज़न के साथ कई फिल्में बनी। 2003 की “झंकार बीट्स” तो उन्हीं को समर्पित की गयी थी। “पंचम अनमिक्स्ड : मुझे चलते जाना है ” ये उनकी ज़िंदगी पर बनी डॉक्युमेंट्री का नाम है जिसे दो नेशनल अवार्ड मिले।
इंसान के चले जाने के बाद सम्मान दिए जाने का मतलब ? जीते जी किसी की क़द्र न करके मरने के बाद उसे फूलों से लाद दें तो मुझे लगता है वो उस व्यक्ति का सम्मान नहीं है बल्कि ऐसा करके लोग सिर्फ़ अपना गिल्ट दूर करने की कोशिश करते हैं। वैसे भी R D बर्मन जैसे फ़नकार किसी अवॉर्ड के मोहताज नहीं होते। उनका असली अवॉर्ड है लोगों का प्यार और जब तक लोग उनके गीत गुनगुनाएंगे, उन पर थिरकते रहेंगे तब तक पंचम हर पल सम्मानित होते रहेंगे।
R D बर्मन की कुछ चुनिंदा फ़िल्में और गाने
- छोटे नवाब (1961) – घर आजा घिर आए बदरा साँवरिया / मतवाली आँखों वाले
- भूत बंगला (1965) – आओ ट्विस्ट करें
- तीसरी मंज़िल (1966 ) – आजा आजा मैं हूँ प्यार तेरा
- बहारों के सपने (1967) – आजा पिया तोहे प्यार दूँ
- पड़ोसन (1968) – मेरे सामने वाली खिड़की में
- प्यार का मौसम (1969) – तुम बिन जाऊँ कहाँ
- कटी पतंग (1970) – ये शाम मस्तानी मदहोश किए जाए
- कारवाँ (1971) – कितना प्यारा वादा है/पिया तू अब तो आजा
- हरे रामा हरे कृष्णा (1971) – फूलों का तारों का सबका कहना है / दम मारो दम मिट जाए ग़म
- अमर प्रेम (1971) – कुछ तो लोग कहेंगे /चिंगारी कोई भड़के /ये क्या हुआ
- अपना देश (1972) – दुनिया में लोगों को धोखा कभी हो जाता है
- जवानी दिवानी (1972) – सामने ये कौन आया दिल हुई हलचल / जाने जाँ ढूँढता फिर रहा
- यादों की बारात (1973) – चुरा लिया है तुमने जो दिल को / लेकर हम दीवाना दिल
- अनामिका (1973) – मेरी भीगी-भीगी सी पलकों पे रह गए /बाहों में चले आओ
- आपकी क़सम (1974) – जय जय शिव शंकर / करवटें बदलते रहे
- खेल-खेल में (1975) – एक मैं और एक तू /खुल्लम खुल्ला प्यार करेंगे /हमने तुमको देखा
- आँधी (1975) – तेरे बिना ज़िन्दगी से कोई शिकवा /तुम आ गए हो नूर आ गया है
- हम किसी से कम नहीं (1977) – क्या हुआ तेरा वादा /बचना ऐ हसीनों
- घर (1978) – आपकी आँखों में कुछ महके हुए से राज़ हैं /आजकल पाँव ज़मीं पर नहीं पड़ते मेरे
- गोलमाल (1979) – आने वाला पल जाने वाला है
- द ग्रेट गैम्बलर (1979) – दो लफ़्ज़ों की है दिल की कहानी
- अब्दुल्लाह (1980) – मैंने पूछा चाँद से
- शान (1980) – यम्मा यम्मा / प्यार करने वाले प्यार करते हैं शान से
- लव स्टोरी (1981) – याद आ रही है / देखो मैंने देखा है ये एक सपना
- क़ुदरत (1981) – हमें तुमसे प्यार कितना / तूने ओ रंगीले कैसा जादू किया
- रॉकी (1981) – क्या यही प्यार है / आ देखें ज़रा किस्में कितना है दम
- हरजाई (1981) – कभी पलकों पे आंसू हैं / तेरे लिए पलकों की झालर बुनूँ
- ज़माने को दिखाना है (1981) – पूछो न यार क्या हुआ / होगा तुमसे प्यारा कौन
- सत्ते पे सत्ता (1982) – प्यार हमें किस मोड़ पे ले आया / ज़िन्दगी मिलके बिताएँगे
- ये वादा रहा (1982) – तू तू है वही दिल ने जिसे अपना कहा
- सनम तेरी क़सम (1982) – कितने भी तू करले सितम
- शक्ति (1982) – जाने कैसे कब कहाँ इक़रार हो गया / हमने सनम को ख़त लिखा
- मासूम (1983) – तुझसे नाराज़ नहीं ज़िंदगी हैरान हूँ मैं / हुज़ूर इस क़दर भी न इतरा के चलिए
- बेताब (1983) – जब हम जवाँ होंगे / बदल यूँ गरजता है
- अगर तुम न होते (1983) – हमें और जीने की चाहत न होती
- सनी (1984) – जाने क्या बात है नींद नहीं आती / और क्या अहद-ए-वफ़ा
- सागर (1985) – चेहरा है या चाँद खिला है /सच मेरे यार है / जाने दो ना
- अलग-अलग (1985) – कभी बेकसी ने मारा कभी बेबसी ने मारा / दिल में आग लगाए सावन का महीना / तेरे नाम के सिवा कुछ याद नहीं
- इजाज़त (1987) – मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है / ख़ाली हाथ शाम आई है
- परिंदा (1989) – तुमसे मिलके / प्यार के मोड़ पर
- 1942 A Love Story (1994) – एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा / कुछ न कहो / प्यार हुआ चुपके से
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