प्रयाग राज

प्रयाग राज की पहचान मुख्य रूप से एक लेखक की है लेकिन उन्होंने फ़िल्मों में अभिनय, गायन, लेखन, निर्देशन सभी कुछ किया।

फ़िल्म “जंगली” के टाइटल ट्रेक में जो ‘याहू’ की आवाज़ है या “जब जब फूल खिले” के गाने “तुमको हम पे प्यार आया” में जो ‘आफ्फु ख़ुदा’ सुनाई देता है या “कुली” के गाने “एक्सीडेंट हो गया रब्बा रब्बा” में जो ‘अल्लाह रक्खा’ सुनाई देता है वो प्रयाग राज ने ही गाया है।

कहते हैं वो सिंगर बनने का स्ट्रगल करना नहीं चाहते थे वर्ना शायद सिंगर बन जाते पर उन्होंने अपना शौक़ इसी तरह से पूरा कर लिया। वैसे उन्हें संगीत का ज्ञान था, इसीलिए बाद के दौर में उन्होंने जो एक CD निकाली थी “सांग्स ऑफ़ पृथ्वी थिएटर्स” इसमें उन्होंने राम गांगुली की उन कम्पोज़िशन्स को शामिल किया था जो 1940 के दशक में पृथ्वी थिएटर्स के प्लेज़ के लिए बनाई गई थीं। प्रयाग राज ने इंटरल्यूड्स और नोटेशन्स को सुपरवाइज़ करने के साथ साथ उन धुनों को री-क्रिएट किया था।

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प्रयाग राज वो हस्ती थे जिन्होंने बतौर एक्टर बहुत सी फ़िल्मों में कैमियो किये। बतौर डायरेक्टर शत्रुघ्न सिन्हा को पहली बार हीरो के रूप में इंट्रोडस किया। मगर उन्हें सबसे ज़्यादा जाना जाता है एक स्क्रीनप्ले राइटर के तौर पर। उन्होंने अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, राजेश खन्ना जैसे हीरोज़ की बहुत सी सक्सेसफुल फ़िल्मों का स्क्रीनप्ले लिखा।

प्रयाग राज ने 9 साल की छोटी सी उम्र से काम करना शुरू कर दिया था

प्रयाग राज नाम सुनकर इलाहबाद याद आता है वहीं उनका जन्म हुआ था, और शहर के नाम पर ही उनका नाम प्रयाग राज रखा गया। मशहूर कवि रामदास आज़ाद के बेटे प्रयाग राज के सर से अपने पिता का साया बहुत छोटी  उम्र में ही उठ गया था। अपने पिता की मौत के बाद प्रयाग राज अपनी मां और छोटे भाई के साथ रोज़ी-रोटी की तलाश में मुंबई आ गए।

उस दौर में पृथ्वीराज कपूर के घर के बाहर मदद / काम मांगने वालों की लाइन लगी रहती थी, क्योंकि वो कभी भी किसी की मदद करने से पीछे नहीं हटते थे । प्रयाग राज भी एक दिन उस कतार में शामिल हो गए, 9 साल की छोटी सी उम्र में पृथ्वीराज कपूर की आस्तीन खींची और नौकरी मांगी। इससे पृथ्वीराज कपूर बहुत ख़ुश हुए और उन्होंने कहा कि वो अगली सुबह 9 बजे रॉयल ओपेरा हाउस में काम करने के लिए आ जाए।

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प्रयाग राज को पैसों की ज़रुरत थी तो उन्होंने शुक्रिया अदा करते हुए पूछा कि तनख्वाह कितनी मिलेगी इस पर पृथ्वीराज कपूर हँसे और उनसे कहा – ’25 रुपये।’ इस तरह पृथ्वी थिएटर्स और कपूर ख़ानदान में प्रयाग राज की एंट्री हो गई। वो सिर्फ़ नौ साल के थे जब उन्होंने पृथ्वी थिएटर्स में बतौर बाल कलाकार काम करना शुरु किया था। उसके बाद धीरे-धीरे उन्होंने पृथ्वी थिएटर्स के लगभग सभी डिपार्टमेंट्स में भी काम किया, ऑन-स्टेज, बैक स्टेज की लगभग हर विधा सीखी।

प्रयाग राज

अच्छी बात ये थी कि उनकी पढाई-लिखाई भी साथ-साथ चलती रही, और इसी दौरान उनकी रूचि लेखन और निर्देशन में हुई। पृथ्वी थिएटर्स में उन्होंने क़रीब 16 साल काम किया, शशि कपूर उनके हमउम्र थे इसलिए उनसे गहरी दोस्ती हो गई। प्रयाग राज में सीखने की ललक थी और वो लोगों को चीज़ों को बहुत ऑब्ज़र्व करते थे, इस आदत ने उनकी बहुत मदद की।

जब पृथ्वी थिएटर बंद हो गया तो प्रयाग राज राज कपूर के साथ काम सीखने लगे, उन्होंने एम सादिक़, और लेख टंडन के साथ भी काम किया। इस दौरान उन्होंने फ़िल्ममेकिंग की बारीकियाँ सीखीं बल्कि कहना चाहिए कि फिल्मों के हर पहलू पर अपनी पकड़ बनाई। इनमें एक्टिंग भी शामिल है, कई फ़िल्मों में उन्होंने छोटे-छोटे केरेक्टर प्ले किये। पहली बार उन्होंने 1948 की फ़िल्म “आग” में अभिनय किया उसके बाद “आवारा”, “माय लव”, “जब जब फूल खिले”, “सच्चा-झूठा” जैसी कई फ़िल्मों में वो नज़र आए। मगर उनकी रूचि थी लेखन और निर्देशन में, फिर जल्दी ही ये सिलसिला भी शुरु हो गया।

शशि कपूर ने उनके करियर को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई

उन्हें 1963 की फ़िल्म “फूल बने अंगारे” में एडिशनल डायलॉग लिखने का मौक़ा मिला, हाँलाकि इस फिल्म में मुख्य संवाद लेखक थे राजिंदर सिंह बेदी। 1968 में आई “झुक गया आसमान” में भी उन्होंने एडिशनल डायलॉग लिखे।1968 में ही आई शशि कपूर की फ़िल्म जुआरी के डायलॉग प्रयाग राज ने लिखे। प्रयागराज के एक इंटरव्यू के मुताबिक़ “जब जब फूल खिले” फ़िल्म में लगभग उन्होंने सभी क्षेत्रों में सहायता की मगर फ़िल्म क्रेडिट्स में उनका नाम नहीं मिलता पर ये सच हो सकता है क्योंकि शशि कपूर उनके दोस्त थे और प्रयाग राज के करियर में उनकी मदद भी कर रहे थे।

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जब शशि कपूर इस्माइल मर्चेंट और जेम्स आइवरी के साथ काम कर रहे थे तो फ़िल्म “द हाउसहोल्डर” के हिंदी वर्ज़न के लिए उन्हें डायलॉग राइटर की ज़रुरत पड़ी तो शशि कपूर के सुझाव पर प्रयाग राज ने वो संवाद लिखे और फिर उनकी अगली फ़िल्म “शेक्सपीयरवाला” के डायलॉग भी प्रयाग राज ने लिखे। “शेक्सपीयरवाला” में उन्होंने एक गाना भी लिखा जिसे उन्होंने ही कंपोज़ भी किया था। “दिल धड़के’ टाइटल वाला ये गाना मुबारक़ बेगम ने गाया था। हाँलाकि फिल्म में म्यूजिक सत्यजीत रे का है पर उस गाने के लिए एल्बम में उन्हें अलग से क्रेडिट दिया गया है।

प्रयाग राज

मर्चेंट आइवरी के साथ उनका एसोसिएशन काफ़ी लम्बा रहा, उन्होंने “कॉटन मेरी” और “इन-कस्टडी” जैसी फ़िल्मों में उनके साथ काम किया। “इन-कस्टडी” में तो वो सेकंड यूनिट डायरेक्टर भी थे। इस तरह देखें तो उन्होंने जिन भी निर्देशकों के साथ काम किया उन सबका स्टाइल एकदम अलग था जिसका फ़ायदा प्रयागराज को मिला, उनमें हर तरह के सिनेमा की समझ विकसित हुई। हर फिल्ममेकर से उन्हें कुछ न कुछ ख़ास सीखने को मिला।

इनमें राज कपूर भी थे, उन्हीं के कहने पर प्रयाग राज ने एक कहानी लिखी जो राज कपूर की “आवारा” से ही प्रेरित थी, पर इसमें आइडियोलॉजी एकदम अलग थी। “आवारा” में बताया गया था कि ग़लत माहौल में रहकर ख़ानदानी इंसान भी ग़लत काम करने लगता है। मगर उन्होंने अपनी कहानी में कहा कि माहौल आदमी को नहीं बनाता, बल्कि किरदार बनाता है। अगर उसका किरदार मज़बूत है तो वो माहौल में ढलेगा नहीं बल्कि माहौल को बदल देगा। ये फ़िल्म थी “धरम-करम” जिसकी कहानी के अलावा स्क्रीनप्ले और डायलॉग भी प्रयागराज ने लिखे थे।

मनमोहन देसाई के साथ रहा सबसे लम्बा एसोसिएशन

प्रयाग राज का सबसे लम्बा एसोसिएशन रहा मनमोहन देसाई के साथ, दोनों ने साथ में 15 से भी ज़्यादा फिल्में कीं जिसकी शुरुआत हुई थी फ़िल्म “सच्चा-झूठा” से। इस फ़िल्म में उन्होंने संवाद तो लिखे ही, चाय वाले का एक इम्पोर्टेन्ट रोल भी किया। और यहीं से मनमोहन देसाई और उनका साथ ऐसा बना कि सालों साल चला।

मनमोहन देसाई की कितनी ही फिल्में या तो उन्होंने अकेले लिखीं या के के शुक्ला, के बी पाठक, कादर खान और सलीम-जावेद के साथ। इनमें रामपुर का लक्ष्मण (1972), रोटी (1974), आ गले लग जा (1973), परवरिश (1977), अमर अकबर एंथनी (1977), धरम वीर (1977), चाचा भतीजा (1977), सुहाग (1979), नसीब (1981), कुली (1983), मर्द (1985) और यहां तक ​​कि उनकी आखिरी फ़िल्म “गंगा जमुना सरस्वती” भी।

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“सच्चा झूठा” के बाद “आ गले लग जा”, “धर्मवीर”, “अमर अकबर एंथोनी”, “परवरिश” जैसी फ़िल्मों का स्क्रीनप्ले प्रयाग राज ने ही लिखा। मनमोहन देसाई की “चाचा भतीजा”, “सुहाग”, “नसीब”, “देशप्रेमी”, “गंगा जमुना सरस्वती” की कहानी प्रयाग राज ने लिखी, और ये सभी सुपरहिट फिल्में हैं।

हम अक्सर अमिताभ बच्चन और मनमोहन देसाई की टीम का ज़िक्र तो करते हैं मगर देखा जाए तो उस टीम की कामयाबी में प्रयाग राज जैसे स्क्रीन राइटर्स का एक बहुत बड़ा रोल है। प्रयाग राज ने अमिताभ बच्चन के लिए सबसे ज़्यादा फ़िल्में लिखीं, सलीम जावेद से भी ज़्यादा।

सलीम जावेद ने जहाँ अमिताभ बच्चन को एंग्री यंग मैन के अवतार में पेश किया वहीं प्रयाग राज ने अमर अकबर एंथोनी, नसीब, जैसी फ़िल्मों में उनकी एक अलग साइड पेश की। कहानी, कहानीकार, पटकथा और संवाद लेखक सभी के प्रयासों से वो आधारशिला रखी जाती है जिस पर किसी सुपरहिट फ़िल्म की इमारत खड़ी होती है और कोई अभिनेता स्टार बनता है।

निर्देशक के रूप में उनकी सबसे कामयाब फ़िल्म थी कुली

प्रयाग राज ने अपने फ़िल्मी सफ़र में एक ही साथ सभी क्षेत्रों में काम करना शुरू कर दिया था। जहाँ वो अभिनय कर रहे थे, वहीं लेखन भी कर रहे थे और कुछ ही वक़्त बाद उन्होंने निर्देशन में भी क़दम रखा। उनकी पहली डायरेक्टोरियल डेब्यू थी 1972 में आई “कुंदन” जिसमें उन्होंने शत्रुघ्न सिन्हा को बतौर हीरो कास्ट किया था। फ़िल्म ने कमाई अच्छी की मगर इसे कामयाब फ़िल्म नहीं माना जाता।

फिर उन्होंने “पाप और पुण्य (1974)”, “इंसानियत (1974)”, “पोंगा-पंडित (1975)”, “चोर-सिपाही (1977)”, “कुली (1983)”, “गिरफ़्तार (1985)”, “हिफ़ाज़त (1987)” , “ग़ैर क़ानूनी (1989)” जैसी क़रीब 10 फ़िल्मों का निर्देशन किया। इनमें सबसे कामयाब फ़िल्म “कुली” मानी जाती है। “कुली” में बतौर डायरेक्टर मनमोहन देसाई का नाम भी दिखाई देता है पर उसकी वजह पूरी तरह कमर्शियल थी।

प्रयाग राज

“कुली” वही फ़िल्म थी जिसकी शूटिंग के दौरान अमिताभ बच्चन लगभग मौत के मुँह में जाकर वापस आए थे। और आज तक लोग उस एक्सीडेंट को नहीं भूले हैं। MKD प्रोडक्शंस की इस फिल्म का निर्देशन प्रयाग राज ने ही किया था मगर उस वक़्त तक मनमोहन देसाई 10 से ज़्यादा सुपरहिट फिल्में दे चुके थे ऐसे में उनके नाम पर फ़िल्म ज़्यादा चलने और ज़्यादा मुनाफ़े के चांसेस थे।

और जिस तरह फ़िल्म के दौरान अमिताभ बच्चन के साथ दुर्घटना हुई थी उसे देखते हुए भी शायद ये फैसला सही लगा होगा। इसीलिए मनमोहन देसाई का नाम को-डायरेक्टर के तौर पर दिया गया। इस फ़िल्म में बतौर निर्माता मनमोहन देसाई के बेटे केतन देसाई का नाम है। जिनके लिए प्रयाग राज ने 1997 की फ़िल्म “दिवाना-मस्ताना” के एडिशनल डायलॉग्स लिखे थे।

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शशि कपूर से लेकर, अमिताभ बच्चन, रजनीकांत, अनिल कपूर तक ने प्रयाग राज के निर्देशन में काम किया मगर जो पहचान एक स्क्रीन राइटर के तौर पर उन्हें मिली वो एक निर्देशक के रूप में नहीं मिली। और ये ज़रुरी भी नहीं है कि आप हर क्षेत्र में कामयाब हों, एक मज़बूत पहचान बनना ज़रुरी है जो प्रयागराज ने अपनी क़लम के माध्यम से बनाई। जो भी उन्हें मिला उसके लिए वो हमेशा शुक्रगुज़ार रहे, उन फ़िल्मकारों के भी जिनके साथ उन्होंने काम किया और उनसे बहुत कुछ सीखा। अपने आख़िरी एक दशक में प्रयाग राज काफ़ी बीमार रहे और 23 सितम्बर 2023 को इस दुनिया को अलविदा कह गए।

एक लेखक फ़िल्म निर्माण से जुड़े उन महत्वपूर्ण लोगों में से होता है जिस के बिना फ़िल्म तो छोड़िए कोई नाटक, कोई किताब नहीं रची जा सकती। फिर भी ज़्यादातर लेखकों को कभी वो मान-सम्मान नहीं दिया गया जिसके वो हक़दार थे। शायद इसीलिए साहित्य जगत के मशहूर नामों को फ़िल्मों की ये दुनिया रास नहीं आई और वो वापस साहित्य की तरफ़ मुड़ गए। कुछ जो जुड़े रहे उन्हें या तो उनकी कला को परखने वाले क़द्रदान मिल गए या उनकी अपनी मजबूरियाँ थीं।

फ़िल्मोग्राफ़ी

फूल बने अंगारे (1963 )

झुक गया आसमान (1968)

सच्चा झूठा (1970 ) – एक्टर

my Love (1970) – स्क्रीनप्ले, डायलॉग

कुंदन (1972) – डायरेक्टर

भाई हो तो ऐसा(1972) – संवाद

रामपुर का लक्ष्मण (1972) –  स्क्रिप्ट में सहयोग

आ गले लग जा (1973) – स्क्रीनप्ले

पाप और पुण्य (1974) –

इंसानियत (1974) –

रोटी (1974)

धरम करम (1975) – स्टोरी, स्क्रीनप्ले, डायलॉग

पोंगा पंडित (1975)

अमर अकबर एंथोनी (1977) – स्क्रीनप्ले

धर्मवीर (1977) – स्क्रीनप्ले

परवरिश (1977) – स्क्रीनप्ले

चाचा भतीजा (1977) – स्टोरी

चोर-सिपाही (1977) – डायरेक्टर, संवाद

नामी चोर (1977) – स्टोरी, स्क्रीनप्ले

ढोंगी (1979) – स्टोरी

सुहाग (1979) – स्टोरी

नसीब (1981) – स्टोरी

देश प्रेमी(1982) – स्टोरी

कुली (1983) – डायरेक्टर

गिरफ़्तार (1985) – स्टोरी, डायरेक्टर

मर्द (1985) – स्टोरी

अल्लाह रक्खा (1986) – स्टोरी

हिफ़ाज़त (1987) – स्टोरी, डायरेक्शन

गंगा जमुना सरस्वती (1988) – स्टोरी

ग़ैर क़ानूनी (1989) – गीत – इंदीवर, प्रयाग राज / स्टोरी-डायरेक्शन – प्रयाग राज

अजूबा (1991) – लेखन टीम का हिस्सा

इंस्पेक्टर धनुष (1991) – स्क्रीनप्ले प्रयाग राज

अनमोल (1993) – स्टोरी

गुरुदेव(1993) – स्टोरी / स्क्रीनप्ले विथ KK शुक्ला

दीवाना मस्ताना(1997) – एडिशनल स्क्रीनप्ले