प्रकाश मेहरा वो निर्माता निर्देशक थे जिन्होंने मुंबईया मसाला फिल्मों में इमोशन का तड़का लगाकर सालों तक हिंदी सिनेमा प्रेमियों का मनोरंजन किया।
अमिताभ बच्चन को अमिताभ बच्चन बनाने में जिन दो फ़िल्ममेकर्स का सबसे महत्वपूर्ण रोल रहा उनमें से एक तो थे मनमोहन देसाई और दूसरे वो जिनकी फ़िल्म से अमिताभ बच्चन ने ज़बरदस्त कामयाबी का स्वाद चखा और कहलाए एंग्री यंग मैन। हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री को ये एंग्री यंग मैन देने वाले थे निर्माता-निर्देशक प्रकाश मेहरा।
प्रकाश मेहरा का जन्म 13 जुलाई 1939 को उत्तर प्रदेश के बिजनौर में हुआ। जब वो छोटे थे तभी उनकी माँ का देहांत हो गया था और पिता ने सन्यास ले लिया था। ऐसे में उनकी परवरिश दिल्ली में रहने वाली उनकी एक आंटी ने की। उन्हें स्कूल टाइम से ही गीत, कविताये लिखने का शौक़ था, तो वो फ़िल्मों में गीतकार बनने के इरादे से सिर्फ़ 11 साल की उम्र में घर पर एक चिट्ठी छोड़कर चुपचाप मुंबई आ गए। लेकिन एक बच्चे को गीत लिखने का काम कैसे मिलता, तो वहीं से संघर्ष शुरु हो गया।
प्रकाश मेहरा का फ़िल्मी करियर
प्रकाश मेहरा को पहली नौकरी मिली 30 रूपए महीने की। अपने संघर्ष के क़रीब 16 -17 साल लम्बे दौर में उन्होंने जहाँ कैमरा डिपार्टमेंट में कैमरा और सिनेमेटोग्राफी की बारीक़ियाँ सीखीं, वहीं बतौर प्रोडक्शन कंट्रोलर फिल्म मैकिंग के अलग अलग पहलुओं को जाना। बतौर फ़िल्म निर्देशक उनकी पहली फ़िल्म आई 1968 में – “हसीना मान जाएगी” जिसमें शशि कपूर का डबल रोल था और ये एक मसाला फिल्म थी जो बहुत कामयाब हुई। फिर 1971 में आई मुमताज़, फ़िरोज़ ख़ान और उनके भाई संजय ख़ान के अभिनय से सजी मेला। इसकी कामयाबी ने प्रकाश मेहरा को पूरी तरह स्थापित कर दिया।
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शुरूआती कामयाबी के बाद आई प्रकाश मेहरा की वो फ़िल्म जिसे पाथ ब्रेकिंग कहा जाता है – ज़ंजीर, जिस की कहानी सलीम-जावेद की जोड़ी ने लिखी थी। जब ये कहानी प्रकाश मेहरा तक पहुंची तो उन्होंने इस फ़िल्म के निर्देशन के साथ-साथ इसे प्रोड्यूस करने का भी इरादा किया और इस तरह ये फ़िल्म प्रकाश मेहरा प्रोडक्शंस की पहली फ़िल्म बन गई।
हीरो के लिए पहली पसंद धर्मेंद्र थे मगर उनके पास वक़्त की कमी थी इसलिए वो ये फ़िल्म नहीं कर पाए। उस समय इंडस्ट्री में रोमांस का बोलबाला था और राजेश खन्ना जैसे रोमेंटिक हीरो का दबदबा था, तो कई अभिनेताओं ने हीरो के रोल को ठुकरा दिया। इनमें राज कुमार, दिलीप कुमार और देवानंद जैसे कलाकार भी शामिल थे। तब सलीम-जावेद के कहने पर अमिताभ बच्चन को साइन किया गया। उन्होंने अमिताभ बच्चन की फ़िल्म “बॉम्बे टू गोवा” देखी थी जिसमें उनके कुछ दृश्य सबको बहुत पसंद आये और सब आश्वस्त हो गए कि हीरो के लिए यही सही चुनाव हैं।
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“ज़ंजीर” में एक महत्वपूर्ण रोल प्राण साहब का भी था पठान का किरदार, लेकिन जब उन्हें पता चला कि उन्हें नाचना गाना पड़ेगा तो उन्होंने साफ़ मना कर दिया। उन्होंने कहा वो फ़िल्म छोड़ देंगे मगर नाचेंगे नहीं तब प्रकाश मेहरा ने उन्हें समझाने की कोशिश की और कहा कि अगर वो ये फ़िल्म नहीं करेंगे तो ये फ़िल्म बनेगी ही नहीं। आख़िरकार प्राण साहब ने ज़बरदस्त डांस किया और उन पर फ़िल्माई हुई क़व्वाली “यारी है ईमान मेरा यार मेरी ज़िंदगी” तो लाजवाब है। “ज़ंजीर” जब रिलीज़ हुई तो शुरु में बहुत अच्छा रिस्पांस नहीं आया था लेकिन जब एक बार फ़िल्म ने रफ़्तार पकड़ी तो सब को चौंका दिया।
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“ज़ंजीर” समेत प्रकाश मेहरा और अमिताभ बच्चन की साथ में सात फिल्में आईं जिनमे “हेरा-फेरी”, “मुक़द्दर का सिकंदर”, “लावारिस”, “नमक हलाल”, ‘शराबी” और “जादूगर” भी शामिल है। एक “जादूगर” को छोड़कर सभी फिल्में सुपरहिट रहीं और उन पर प्रकाश मेहरा का स्टाइल साफ़-साफ़ दिखता है। प्रकाश मेहरा “जादूगर” को अन्धविश्वास पर व्यंग्य (satire) के तौर पर बना रहे थे मगर कुछ दखलंदाज़ी की वजह से उनका मनचाहा नहीं हो पाया और फ़िल्म कुछ का कुछ हो गई। हाँलाकि बनने से पहले ही इस फ़िल्म का इतना ख़ौफ़ था कि एक स्वामी जी ने उन्हें जादूगर न बनाने के लिए उन्हें 50 लाख ऑफर किये थे।
“जादूगर” के साथ ही मनमोहन देसाई की “तूफ़ान” भी रिलीज़ हुई थी और दोनों में ही अमिताभ बच्चन ने जादूगर का रोल किया था। एक वक़्त में रिलीज़ का नुकसान दोनों ही फिल्मों को उठाना पड़ा और इसी फिल्म के साथ अमिताभ और प्रकाश मेहरा का साथ भी टूट गया। प्रकाश मेहरा ने विनोद खन्ना के साथ भी “हेरा-फेरी”, “मुक़द्दर का सिकंदर” के अलावा “हाथ की सफ़ाई”, “ख़लीफ़ा”, जैसी कई फिल्में की। धर्मेंद्र के साथ यूँ तो उनकी काफ़ी कम फ़िल्में हैं मगर वो धर्मेंद्र को अपना बहुत अच्छा दोस्त मानते थे।
प्रकाश मेहरा ने 1992 में “ज़िंदगी एक जुआ” और 1996 में “बाल ब्रह्मचारी” का निर्माण और निर्देशन किया। “बाल-ब्रह्मचारी” में उन्होंने राजकुमार के बेटे पुरु राजकुमार को लांच किया और यही उनकी आख़िरी फिल्म भी रही। बीच-बीच में उन्होंने कुछ फ़िल्मों का निर्माण भी किया जिनमें “चमेली की शादी” PMP प्रोडक्शन के बेनर तले बनी और 1993 की कामयाब फिल्म “दलाल” का निर्माण भी उन्होंने किया।
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प्रकाश मेहरा की फ़िल्मों का फ्लेवर शुरुआत से ही अलग था। मुम्बइया मसाला फिल्म्स जिनमें एक्शन इमोशन के साथ-साथ प्रेम कहानी का एंगल भी होता था। हाँ बाद की कई फ़िल्मों में बचपन खो देने का उनका अपना दुःख उनकी फ़िल्मों में खुलकर दिखाई दिया। “मुक़द्दर का सिकंदर” हो या “लावारिस” या “शराबी” सबमें एक सच्चा इमोशन दिखाई देता है। India Motion Picture Directors Association की तरफ से प्रकाश मेहरा को 2006 में लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से नवाज़ा गया। यही अवार्ड उन्हें 2008 में IMPPA यानी India Motion Picture Producers Association की तरफ से भी दिया गया। 17 मई 2009 को प्रकाश मेहरा इस दुनिया को अलविदा कह गए।
प्रकाश मेहरा के लिखे कुछ गीत
प्रकाश मेहरा ने बीच बीच में अपनी ही कुछ फ़िल्मों के गीत भी लिखे कभी गीतकार अनजान के साथ मिलकर कभी अकेले –
- ओ दिलबर जानिए तेरे हैं हम तेरे – हसीना मान जाएगी
- अपनी तो जैसे तैसे थोड़ी ऐसे या वैसे कट जाएगी – लावारिस
- सलाम-ए-इश्क़ मेरी जाँ – मुक़द्दर का सिकंदर
- जहाँ चार जाएँ वहीं रात हो गुलज़ार – शराबी
- मंज़िलें अपनी जगह हैं रास्ते अपनी जगह – शराबी
- नाच मेरी राधा – जादूगर
नमक हलाल का गाना “पग घुँघरु बाँध मीरा नाची थी” प्रकाश मेहरा और अनजान ने मिलकर लिखा था। और भी कई फ़िल्मों में प्रकाश मेहरा और अनजान ने कुछेक गाने मिलकर लिखे थे। बाल ब्रह्मचारी के सभी गाने प्रकाश मेहरा ने ही लिखे थे।
प्रकाश मेहरा के निर्देशन में बनी कुछ फ़िल्में
- पूर्णिमा – 1965
- हसीना मान जाएगी – 1968
- मेला – 1971
- समाधि – 1972
- ज़ंजीर – 1973
- हाथ की सफ़ाई – 1974
- हेरा फेरी – 1976
- मुक़द्दर का सिकंदर – 1978
- लावारिस – 1981
- नमक हलाल – 1982
- शराबी – 1984
- ज़िंदगी एक जुआ – 1992
- बाल ब्रह्मचारी – 1994
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