मुमताज़ जिन्हें लोग उनकी छोटी नाक के लिए ताना देते थे और कहते थे कि वो कभी हेरोइन नहीं बन पाएँगी। लेकिन एकदम नीचे से शुरु करके वो टॉप पर पहुँचीं और टॉप पर रहते हुए ही फ़िल्में छोड़ दीं। 31 जुलाई उनका जन्मदिन है, उन्हें हैप्पी बर्थडे कहते हैं और जानते हैं उनकी ज़िंदगी के कुछ छुए-अनछुए पहलुओं के बारे में।
मासूम चेहरा, गोरा रंग, बेहद हसीन और अपने ज़माने की ग्लैमरस हेरोइन “मुमताज़”, जिन्होंने बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट अपना फ़िल्मी सफ़र शुरू किया और सालों के संघर्ष और मेहनत के बाद वो मक़ाम हासिल किया जिसकी तमन्ना कोई कलाकार कर सकता है।
हार न मानने वाली मुमताज़
मुमताज़ का जन्म 31 जुलाई 1947 को मुंबई में हुआ। पिता अब्दुल सलीम अस्करी का ड्राई फ्रूट बेचने का काम था। जब वो सिर्फ़ तीन साल की थी उनके माता-पिता का तलाक़ हो गया था। वो अपनी माँ सरदार बेगम हबीब आग़ा, नानी और मौसी के साथ रहती थीं। उनकी माँ और आंटी फ़िल्मों में जूनियर आर्टिस्ट थीं, इस तरह घर में फ़िल्मी माहौल था। मुमताज़ ने भी छोटी उम्र से ही बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया था। 60 के दशक में उन्होंने सपोर्टिंग रोल्स करने शुरू कर दिए थे पर हीरोइन बनने का मौक़ा अभी तक नहीं मिला था।
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मुमताज़ को हीरोइन बनने का मौक़ा मिला दारा सिंह के साथ, और इस जोड़ी की क़रीब 16 फ़िल्में आईं। दारा सिंह स्टंट फिल्में किया करते थे, इसलिए मुमताज़ पर भी स्टंट फिल्मों की हेरोइन का लेबल लग गया। हाँलाकि बीच बीच में उन्होंने कई A ग्रैड फिल्मों में कुछ अच्छे सपोर्टिंग और ग्लैमरस रोल्स किए। पर उन फ़िल्मों में मुख्य नायिका के रोल्स उन्हें नहीं मिले क्योंकि कोई हीरो उनके साथ काम नहीं करना चाहता था। लेकिन फिर वो वक़्त भी आया जब न सिर्फ मुमताज़ को हेरोइन बनने का मौक़ा मिला बल्कि तब वही हीरो जो कभी मुमताज़ के साथ काम नहीं करना चाहते थे अब उनके साथ काम करने की मांग करने लगे।
मुमताज़ का स्टारडम
जिस दौर में कोई मुमताज़ के साथ बतौर हीरो फ़िल्म नहीं करना चाहता था, उस वक़्त में महान कलाकार दिलीप कुमार ने उनके साथ काम करना स्वीकार किया। हुआ ये कि मुमताज़ ने “सेहरा’ और “काजल” में महमूद के साथ काम किया था। महमूद ही मुमताज़ की फ़िल्मों के रील्स दिखाने दिलीप कुमार के पास ले गए थे। उन्हीं को देखकर मुमताज़ को फ़िल्म “राम और श्याम” में दिलीप कुमार की हेरोइन बनने का मौक़ा मिला। और इसके बाद मुमताज़ को फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ा, पर असली स्टारडम तब मिला जब 1969 में “दो रास्ते” फ़िल्म आई।
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इसके बाद राजेश खन्ना के साथ उन्होंने “बंधन”, “सच्चा झूठा”, “दुश्मन”, “आपकी क़सम” और “रोटी” जैसी 10 फिल्में कीं, जिनमें से ज़्यादातर सुपरहिट रहीं। उन दोनों की जोड़ी दर्शकों को बहुत पसंद थी, मुमताज़ ने अपनी आख़िरी तीन फिल्में भी राजेश खन्ना के साथ की थीं। कहते हैं कि जब शादी के बाद मुमताज़ फिल्में और देश छोड़ कर चली गईं तो राजेश खन्ना बहुत रोए थे। उन दोनों के बीच एक अलग क़िस्म का लगाव था। राजेश खन्ना उनके फ़ेवरेट को-स्टार थे और मुमताज़ राजेश खन्ना की फेवरेट थीं। कह सकते हैं कि दोनों एक दूसरे के लकी चार्म थे।
“सच्चा-झूठा” में जब मुमताज़ को बतौर हेरोइन साइन किया गया तो शशि कपूर ने ये फ़िल्म छोड़ दी क्योंकि वो एक स्टंट फ़िल्मों की हेरोइन के साथ काम नहीं करना चाहते थे और तब इसमें राजेश खन्ना को लिया गया। लेकिन कई साल बाद जब शशि कपूर को फ़िल्म “चोर मचाये शोर” में लिया गया तो कहते हैं कि उन्होंने ज़िद की कि वो फिल्म तभी करेंगे जब इसमें उनकी हेरोइन मुमताज़ होंगी। “सच्चा झूठा” 1970 में आई थी उसी साल आई फ़िल्म “खिलौना” जिसमें कोई भी बड़ी हेरोइन काम करने के लिए तैयार नहीं थी। पर मुमताज़ ने इस फ़िल्म में काम करना स्वीकार किया और इतना बेहतरीन काम किया कि उन्हें फिल्मफेयर का बेस्ट एक्ट्रेस अवार्ड से नवाज़ा गया।
ऑरेंज कलर से प्यार
आपने कभी ग़ौर किया कि उनके बहुत से मशहूर गानों में मुमताज़ ने ओरेंज कलर की ड्रेस पहनी है ? चाहे वो “आपकी कसम का गाना “जय जय शिव शंकर हो” या “दो रास्ते” का “बिंदिया चमकेगी चूड़ी खनकेगी”, इन सब में उन्होंने ओरेंज साड़ी पहनी है। वास्तव में ओरेंज उनका पसंदीदा रंग है। मुमताज़ अपनी कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर भानु अथैया के साथ बैठती और सुनिश्चित करती कि गाने और नृत्य में नारंगी रंग दिखाई दे।
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फिल्म “ब्रह्मचारी” का एक गाना है – “आज कल तेरे मेरे प्यार के चर्चे हर जुबान पर” आमतौर पर इस तरह के वेस्टर्न-रिदम वाले गानों में वेस्टर्न आउटफिट पहली पसंद हुआ करते थे। पर इस गाने में प्रोडूसर चाहते थे कि गाउन की जगह साड़ी हो।इसलिए मुमताज़ की ड्रेस डिज़ाइनर भानु अथैया ने उनके लिए एक ओरेंज कलर की एक स्पेशल साड़ी डिज़ाइन की, जो गाने के मूवमेंट में अपनी जगह से हिले न। और इस गाने के बाद ये साड़ी “मुमताज़ साड़ी” के नाम से मशहूर हो गई।
मुमताज़ को फ़िल्म “ब्रह्मचारी” के लिए बंगाल फ़िल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन ने सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के पुरस्कार से सम्मानित किया। 1996 में उन्हें फिल्मफेयर का लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड दिया गया। और सिनेमा में उनके बेहतरीन योगदान के लिए 2008 में IIFA द्वारा उन्हें honorary अवार्ड से नवाज़ा गया।
मुमताज़ ने अपने फ़िल्मी सफ़र में 100 से ज़्यादा फ़िल्मों में काम किया जिनमें “मेला”, “उपासना”, “तेरे मेरे सपने”, “हरे रामा हरे कृष्णा”, “दुश्मन”, “अपराध”, “लोफ़र”, “चोर मचाये शोर”, “आपकी कसम” और “रोटी” जैसी कई सुपर हिट फिल्में शामिल हैं। बतौर हेरोइन मुमताज़ की आख़िरी फ़िल्म थी 1977 में रिलीज़ हुई “आईना” उसके बाद मुमताज़ अपने घर परिवार में व्यस्त हो गईं। फिर एक लम्बे आरसे बाद वो फ़िल्म “आँधियाँ” में माँ के किरदार में नज़र आईं पर ये फ़िल्म कामयाब नहीं रही।
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मुमताज़ ने धर्मेंद्र के साथ भी दो सुपरहिट फिल्में दीं और फ़िरोज़ खान के साथ भी कई फिल्मों में काम किया। शम्मी कपूर के साथ उनके काफी अच्छे सम्बन्ध रहे, शम्मी कपूर उनसे शादी करना चाहते थे, पर मुमताज़ उस वक़्त 17 साल की थीं, और शम्मी कपूर उनसे 18 साल बड़े थे। मुमताज़ फ़िल्मों में अपना मक़ाम बनाना चाहती थीं और कपूर परिवार में बहु बनकर जातीं तो उनका ये सपना कभी पूरा नहीं होता। इसीलिए दोनों के बीच गहरा प्यार होते हुए भी ये रिश्ता आगे नहीं बढ़ पाया।
मुमताज़ का निजी जीवन
मुमताज़ मयूर माधवानी को वो बचपन से जानती थीं, अपने करियर के पीक पर रहते हुए 1974 में मुमताज़ ने उनसे शादी की और फ़िल्मों के साथ-साथ देश भी छोड़ दिया और अपने पति के साथ लंदन में बस गईं। हालाँकि, एक वक़्त ऐसा आया जब उनके पति के अफेयर के कारण लगा सब बिखर जाएगा। पर मुमताज़ का कहना है कि “मैं उनका सम्मान करती हूं क्योंकि उन्होंने खुद मुझे इसके बारे में बताया था। उन्होंने स्वीकार किया कि वो एक लड़की को पसंद करते हैं। लेकिन ये भी कहा कि, ‘मुमताज़, तुम मेरी पत्नी हो। मैं तुमसे प्यार करता हूँ और हमेशा तुमसे प्यार करूँगा। मैं तुम्हें कभी नहीं छोडूँगा।’
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उस वक़्त मुमताज़ गुस्से और दुःख की हालत में वापस भारत लौट आईं थीं, और उन्हें भी किसी की तरफ़ आकर्षण हुआ। लेकिन ये दोनों ही चैप्टर अब ख़त्म हो चुके हैं। बीच में कैंसर जैसी बीमारी ने उन्हें घेर लिया था पर अपनी इच्छाशक्ति और हौसले के बल पर उन्होंने कैंसर जैसी बीमारी को मात दे दी। मुमताज़ के लंदन नैरोबी और मुंबई में घर हैं तो कभी वो लंदन में होती हैं कभी कहीं और। पर उम्र के इस पड़ाव पर अपने जीवन में सुखी हैं।
मुमताज़ की दो बेटियां हैं नताशा और तान्या। नताशा की शादी फ़िरोज़ खान के बेटे फरदीन खान से हुई है। और मुमताज़ भी सुखी और स्वस्थ जीवन बिता रही हैं, 75 साल की होने के बावजूद वो अपनी उम्र के दूसरे लोगों के मुक़ाबले बेहतर दिखती हैं।वो ख़ुदा को अपना बॉयफ्रेंड कहती हैं और मानती हैं कि ऊपर वाले ने उन्हें जितना चाहा उससे ज़्यादा दिया है। ईश्वर से कामना है कि वो हमेशा ख़ुश रहें!
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