नूरजहाँ ने सात दशकों तक अपनी जादुई आवाज से दर्शकों का दिल जीता। विभाजन के बाद जब वो पाकिस्तान चली गईं तो वहाँ उनकी आवाज़ का जादू लोगों के सर चढ़कर बोला। वहीं उन्हें मल्लिका-ए-तरन्नुम का खिताब मिला।
नूरजहाँ का असल नाम था अल्लाह राखी वसाई, इमदाद अली और फ़तेह बीबी की 11 औलादों में से एक अल्लाहराखी का जन्म हुआ 21 सितम्बर 1926 में। छोटी सी उम्र से ही उनकी क़ाबिलियत दिखने लगी थी और उनकी प्रतिभा को जान समझ कर उनके पिता ने उन्हें उस्ताद ग़ुलाम मोहम्मद के सुपुर्द कर दिया और उन्हीं से उन्होंने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली। जब वो नौ साल की थी वो पंजाबी संगीतकार ग़ुलाम अहमद चिश्ती उनकी प्रतिभा से बहुत प्रभावित हुए और वो ही उन्हें लाहौर में स्टेज की दुनिया में लाए। उन्होंने नूरजहाँ के लिए ग़ज़ल, नात और कुछ फोक सांग्स कंपोज़ किए। लेकिन नूरजहाँ का झुकाव प्लेबैक सिंगिंग और एक्टिंग की तरफ़ ज़्यादा था।
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बेबी नूरजहाँ के नाम से सिनेमा में हुई शुरुआत
ट्रैंनिंग ख़त्म होने के बाद नूरजहाँ और उनका परिवार कोलकाता चला गया ताकि सिनेमा में करियर बनाया जा सके। उनकी खूबसूरती और आवाज़ से मुतास्सिर होकर उस समय की प्रसिद्द गायिका मुख़्तार बेगम ने उन्हें ‘नूरजहाँ’ नाम दिया। 1935 में के डी मेहरा के निर्देशन में बनी पंजाबी फ़िल्म “पिंड दी कुड़ी” उर्फ़ शीला में बेबी नूरजहाँ पहली बार फ़िल्मी परदे पर नज़र आईं, इसमें अभिनय के साथ-साथ उन्होंने गाने भी गाए। इसके बाद उन्होंने कोलकाता में क़रीब 11 फ़िल्मों में काम किया, जिनमें “मिसर का सितारा”, “हीर सयाल”, “ससी पुन्नू” जैसी फ़िल्में शामिल हैं।
फिर वो लाहौर लौट गईं वहाँ दलसुख पंचोली की फ़िल्म “गुल बकावली” में उन्होंने कुछ गीत गाए जिसमें संगीत दिया था मास्टर गुलाम हैदर ने। उनके संगीत से सजे गीतों ने नूरजहाँ की लोकप्रियता में काफ़ी इज़ाफ़ा किया। उनकी पहली हिंदी फ़िल्म जिसमें उन्होंने लीड रोल किया था, 1942 में आई थी ‘ख़ानदान’ इसके निर्देशक थे शौकत हुसैन रिज़वी जिनसे क़रीब एक साल बाद उनकी शादी हुई। ख़ानदान अपने समय की सुपरहिट फिल्म थी जिसके गाने बहुत मक़बूल हुए खासकर डी एन मधोक का लिखा गाना “तू कौन सी बदली में मेरे चाँद है आजा” तो आज भी नूरजहाँ के सुपरहिट गानों में शामिल किया जाता है।
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ख़ानदान के बाद नूरजहाँ मुंबई आ गईं और फ़िल्मों में मसरूफ हो गईं। मुंबई में उनकी शोहरत का सितारा बुलंदी पर जा पहुँचा। “बड़ी माँ”, “ज़ीनत”, “विलेज गर्ल”, “अनमोल घड़ी” और “जुगनू” जैसी फ़िल्मों ने उन्हें उस समय ही बड़ी स्टार बना दिया। “अनमोल घड़ी” का तो एक-एक गाना यादगार है। जिन दिनों वो मुंबई में एक बड़ा नाम बन चुकी थीं उसी समय हिंदुस्तान का विभाजन हुआ और नूरजहाँ अपने पति शौकत हुसैन के साथ पाकिस्तान जाकर बस गईं।
पाकिस्तान में मिला मलिका-ए-तरन्नुम का ख़िताब
पाकिस्तान में नूरजहाँ ने अपने पति के साथ मिलकर अपनी पहली फिल्म का निर्देशन किया जिसमें उन्होंने बतौर अभिनेत्री और सिंगर भी काम किया वो फिल्म थी 1951 में आई “चन वे” जो उस समय पाकिस्तान की बहुत ही कामयाब फिल्म रही इसके बाद आई “दुपट्टा” उससे भी ज़्यादा कामयाब हुई। फिर “गुलनार”, “पाटे ख़ाँ”, “अनारकली”, “नींद” जैसी कुछ और फिल्में आईं। इसी दौरान नूरजहाँ और शौकत रिज़वी का तलाक़ हो गया, उनके तीन बच्चों की कस्टडी नूरजहाँ को मिली। जल्दी ही उन्होंने दूसरी शादी की पाकिस्तानी अभिनेता एजाज़ दुर्रानी के साथ।
लेकिन इस शादी की वजह से उन्हें अभिनय छोड़ना पड़ा क्योंकि उनके दूसरे पति एजाज़ दुर्रानी जो उनसे क़रीब नौ साल छोटे थे और नहीं चाहते थे कि वो फ़िल्मों में एक्टिंग जारी रखें। इसके बाद उन्होंने अपने 33 साल के फ़िल्मी करियर को तिलांजलि दे दी लेकिन गाना जारी रखा। नूरजहाँ ने अपने अभिनय से सजी हर फ़िल्म में प्लेबैक खुद ही किया था मगर एक्टिंग छोड़ने के बाद वो पूरी तरह गायकी में डूब गईं और एक ऐसी आवाज़ बनी जो नई पीढ़ी की हेरोइन पर भी फिट बैठती थी इसी लिए उन्हें सदाबहार गायिका भी कहा गया। उस समय उनके बहुत से गीत लोकप्रिय हुए। लेकिन उनके गाये देशभाक्ति गीतों के कारण पाकिस्तानी सरकार ने उन्हें “मलिका-ए-तरन्नुम” का ख़िताब अता किया गया।
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1970 में नूरजहाँ की दूसरी शादी भी टूट गई और उन्होंने अभिनेता युसूफ़ ख़ान से तीसरी शादी की। उनकी गायकी के अलावा उनके रोमांस और आशिक़-मिज़ाजी के क़िस्से भी काफ़ी मशहूर रहे हैं। जहाँ जवान लड़के उनके दीवाने थे वहीं उनका दिल भी जवान लड़कों को देखकर धड़कने लगता था। फ़रीदा ख़ानम जो कि नूरजहाँ की दोस्त थीं। उन्होंने कहा था कि नूरजहाँ की कार जब लड़कों के सामने से गुज़रती थी तो थोड़ी धीमी हो जाया करती थी। ताकि वो उन नौजवान लड़कों को जी भर के देख सकें।
नूरजहाँ और पाकिस्तान के टेस्ट क्रिकेटर नज़र मोहम्मद के क़िस्से आज भी मशहूर हैं। कहा जाता है नज़र मोहम्मद का टेस्ट करियर वक्त से पहले ही नूरजहाँ की वजह से ख़त्म हो गया। एक बार नूरजहाँ के पति ने उन्हें और नज़र मोहम्मद को एक कमरे में रंगे हाथ पकड़ लिया था। तब नज़र मोहम्मद ने पहली मंजिल की खिड़की से नीचे छलांग लगा दी थी, जिसकी वजह से उनका हाथ टूट गया। ऐसे में उन्हें वक्त से पहले ही टेस्ट क्रिकेट से रिटायर होना पड़ा।
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ये ठीक है कि नूरजहाँ ने ज़िंदगी अपनी शर्तों पर जी, अपने तरीक़े से जी और दुनिया की परवाह कभी नहीं की। पर ये भी उतना ही सही है कि उनके निजी जीवन शादियाँ, तलाक़, प्रेम सम्बंधों से ऊपर रहा उनका स्टेटस, एक गायिका-अभिनेत्री का उनका रुतबा जो उनकी सालों की मेहनत का नतीजा था।
अपने आख़िरी दिनों में वो किडनी की बीमारी से परेशान रहीं और काफी वक़्त डायलिसिस पर रहने के बाद 23 दिसंबर 2000 में वो इस दुनिया से रुख़्सत हो गईं। नूरजहाँ जहाँ एक बेहतरीन अभिनेत्री थीं वहीं बेमिसाल गायिका भी थी, जिनसे प्रेरणा लेकर कितने ही युवा गायकी के मैदान में उतरे। उनकी गायकी की गूँज सारी दुनिया में हुई जो हमेशा उनकी यादों को ताज़ा रखेगी।