मधुबाला और दिलीप कुमार की प्रेम कहानी किसी ट्रैजिक फ़िल्म से कम नहीं है। हिंदी सिनेमा के सलीम और अनारकली जब असल ज़िंदगी में मिले तो उनकी मोहब्बत का अंजाम भी जुदाई ही रहा।
एक तरफ हँसती-खिलखिलाती चमकती हुई आँखों वाली मुमताज़ जहाँ बेगम जिनकी मुस्कान ने सारी दुनिया का दिल जीता। दूसरी तरफ़ मोहम्मद यूसुफ़ ख़ान जो अपने बचपन के कुछ वाक़यात की वजह से अपने ही खोल में सिमट कर रह गए थे। उनकी संजीदा तबीयत कब कैसे उस नाज़नीन के साथ से निखारने लगी उन्हें पता ही नहीं चला। सुंदरता की देवी मधुबाला और ट्रेजेडी किंग दिलीप कुमार जब मिले तो उन दोनों की ही दुनिया बदल गई। पर उस वक़्त ये एहसास नहीं था कि उनके आस-पास जो दुनिया है वो भी जल्दी ही बदल जायेगी।
मधुबाला और दिलीप कुमार की मोहब्बत का आग़ाज़ फ़िल्म के सेट पर हुआ
मधुबाला का नाम पहले अभिनेता प्रेमनाथ से जुड़ा था, पर धर्म आड़े आ गया और 6 महीने में ही ये रिश्ता टूट गया। उधर दिलीप कुमार और कामिनी कौशल के रोमांस के भी किस्से बने। मगर जब मधुबाला और दिलीप कुमार ‘तराना’ फ़िल्म के सेट पर मिले तो दोनों एक दूसरे की तरफ़ खिंचते चले गए। कहते हैं कि पहल मधुबाला ने की थी, उन्होंने गुलाब के फूल के साथ एक नोट लिखकर दिलीप कुमार को भिजवाया। उनकी ख़ूबसूरती ने तो पहले ही दिलीप कुमार को मोहित कर दिया था, पर उनकी इस बेबाक़ी पर वो पूरी तरह फ़िदा हो गए।
मधुबाला और दिलीप कुमार के रोमांस के क़िस्से हवा में फैलने लगे। मधुबाला के साथ ने दिलीप कुमार के अंदर के ख़ालीपन को भर दिया। 1951 में “तराना” से जिस रिश्ते की शुरुआत हुई थी वो “संगदिल”, “अमर” जैसी फ़िल्मों के साथ परवान चढ़ा। लेकिन इस जोड़ी की सबसे बड़ी हिट “मुग़ल-ए-आज़म” की शूटिंग ख़त्म होते होते वो रिश्ता भी ख़त्म हो गया।
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कमाल की बात है कि न तो समाज दुश्मन बना, न ही घरवालों ने विरोध किया। मधुबाला और दिलीप कुमार का धर्म एक था, दोनों पठान मुस्लिम थे, दोनों का नाम फ़िल्मी आसमान पर सितारों की तरह चमकता था, दोनों कामयाब थे। दिलीप कुमार की बहन ख़ुद चुन्नी लेकर मधुबाला के घर गईं थीं और रिश्ता पक्का करके आई थीं। अक्सर दिलीप कुमार मधुबाला के घर जाते, दोनों लॉन्ग ड्राइव पर भी जाते। हाँ, ऐसा कहते हैं कि मधुबाला के पिता इस रिश्ते से ख़ुश नहीं थे, पर उन्होंने कोई अड़चन भी नहीं डाली।
मधुबाला और दिलीप कुमार की जुदाई का बीज पड़ा एक कोर्ट केस के दौरान
पर जब कुछ होना होता है तो हज़ार वजह निकल आती हैं, मधुबाला और दिलीप कुमार के इस क़िस्से में वो वजह बना एक कोर्ट केस जिसने इस ख़ूबसूरत रिश्ते को ग्रहण लगा दिया। हुआ ये कि बी आर चोपड़ा की फ़िल्म “नया दौर” के लिए पहले दिलीप कुमार के साथ मधुबाला को साइन किया गया था। शूटिंग ग्वालियर के पास कहीं होनी थी, लेकिन मधुबाला के पिता इस बात पर अड़ गए कि मधुबाला शूटिंग के लिए बाहर नहीं जाएँगी। मधुबाला की बहन ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उसी लोकेशन पर कुछ समय पहले किसी शूटिंग के दौरान हमला हुआ था, इसलिए उनके पिता राज़ी नहीं हुए थे।
पर फ़िल्म की डिमांड थी कि शूटिंग वैसी ही किसी जगह हो तो बी आर चोपड़ा ने मधुबाला की जगह वैजन्तीमाला को साइन कर लिया लेकिन फिर बात इस हद तक बढ़ गई कि मामला कोर्ट में चला गया। वहां दिलीप कुमार ने मधुबाला की बजाय बी. आर. चोपड़ा का पक्ष लिया, इतना ही नहीं उन्होंने मधुबाला के पिता को “डिक्टेटर” तक कह डाला, बस यहीं से बात बिगड़ती चली गई। कोर्ट केस तो एक वक़्त के बाद ख़त्म हो गया पर शादी की बात आगे नहीं बढ़ी। मधुबाला चाहती थीं कि दिलीप कुमार उनके पिता से माफ़ी मांग लें और दिलीप कुमार का कहना था कि वो अपने पिता को छोड़ दें।
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लेकिन ये सिर्फ़ वन साइडेड स्टोरी है, कभी-कभी किसी की इंटेंशन्स, किसी का अनचाहा दबाव भी रिश्तों में कड़वाहट भर देता है। मधुबाला के पिता अताउल्लाह ख़ान की एक प्रोडक्शन कंपनी थी और वो चाहते थे कि मधुबाला और दिलीप कुमार की वो सुपरहिट जोड़ी हमेशा उनके लिए ही काम करे पर हर इंसान की तरह दिलीप कुमार के अपने कुछ प्लान्स थे। उन्होंने ये बात समझाने की कोशिश की पर…… जब प्यार में व्यापार आ जाए तो रिश्तों में कड़वाहटें आना स्वाभाविक है।
मधुबाला और दिलीप कुमार का ईगो प्यार से बड़ा हो गया था
आख़िरकार दिलीप कुमार को ये महसूस हुआ कि कभी-कभी किसी रिश्ते में बने रहने से बेहतर होता है अलग-अलग रास्तों को चुन लेना, शायद यही उन दो लोगों के लिए अच्छा हो ! दोनों अपनी-अपनी जगह अकेले थे, दुखी थे, परेशान थे, पर दोनों ने ही मोहब्बत को दाव पर लगा दिया मगर अपना अहम् नहीं छोड़ा। आप इसे डेस्टिनी का नाम दे सकते हैं, कह सकते हैं कि ऊपर वाले ने दोनों (मधुबाला और दिलीप कुमार) को एक दूसरे की किस्मत में नहीं लिखा था।
इस सारे क़िस्से के बीच मुग़ल-ए-आज़म की शूटिंग चलती रही और आख़िर तक आते-आते ये नौबत आ गई कि अपने-अपने डायलॉग्स के अलावा दोनों (मधुबाला और दिलीप कुमार) एक दूसरे से कोई बात नहीं करते थे। फ़िल्म के एक सीन में जब शहज़ादा सलीम को अनारकली को थप्पड़ मारना था तो कहते हैं कि दिलीप कुमार ने सच में मधुबाला को चांटा मार दिया था और मधुबाला की आँखों से सच्चे मोती टपके थे। 1960 में मुग़ल-ए-आज़म रिलीज़ हुई और उसी साल मधुबाला ने किशोर कुमार से शादी कर ली।
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1966 में दिलीप कुमार ने भी सायरा बानो से शादी कर ली। वो कहते हैं न कि शादी उससे करनी चाहिए जो आपको चाहे, न कि उससे जिसे आप चाहो, शायद दोनों ने यही सोचा हो। मधुबाला के दिल में छेद था, किशोर कुमार से शादी के तुरंत बाद उनकी तबियत और भी बिगड़ गई। कहते हैं कि अपनी बीमारी के आख़िरी दौर में उन्होंने दिलीप कुमार से मिलने की ख़्वाहिश की। दिलीप कुमार से मिलीं तो कहा – “हमारे शहज़ादे को उनकी शहज़ादी मिल गई, मैं बहुत ख़ुश हूँ”।
कितना अच्छा होता अगर दोनों (मधुबाला और दिलीप कुमार) अपनी-अपनी ज़िद और ग़ुरूर की बजाय मोहब्बत को तरजीह देते। पर दो लोगों के बीच क्या हुआ कैसे हुआ क्यों हुआ उसकी हम सिर्फ़ अटकलें लगा सकते हैं या जो हुआ उस पर अफ़सोस ज़ाहिर कर सकते हैं, पर उसे बदल नहीं सकते। 14 फ़रवरी 1933 को जन्मी मधुबाला 23 फरवरी 1969 को इस दुनिया से चली गईं। वो सिर्फ़ 36 साल की थीं, उस छोटी सी उम्र में उन्होंने बड़ी-बड़ी ऊँचाइयों को छुआ, शोहरत और स्टारडम को पाया लेकिन उनके दिल की दुनिया में सिर्फ़ तन्हाई थी। इंसान को उसी का मलाल ताउम्र सताता है, जो उसे हासिल नहीं हो पाता।