कुमार

कुमार सरनेम लगाने की परम्परा बॉलीवुड में बहुत है मगर कुमार नाम वाले कलाकार एक ही हैं।

मुग़ल-ए-आज़म में संगतराश यानी मूर्तिकार की भूमिका निभाने वाले कलाकार थे – कुमार। जिनसे बहुत से लोग शायद नावाक़िफ़ हों। लेकिन अपने दौर में ये बेहद मशहूर कलाकार थे। इन्होने सिर्फ़ अभिनय नहीं किया बल्कि फ़िल्मों का निर्माण और निर्देशन भी किया। लेकिन उनकी अदाकारी की तारीफ़ उस समय की मशहूर फ़िल्म मैगज़ीन filmindia में भी की गई।

कुमार रूबी मायर्स की वजह से फ़िल्मों में आए

अभिनेता निर्माता-निर्देशक कुमार का जन्म 23 सितम्बर 1903 में लखनऊ के एक बेहद रईस और प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। उनका असली नाम था सैयद हसन अली ज़ैदी लेकिन उनके दोस्त और परिवार के लोग उन्हें मीर मुज्जन कहकर पुकारते थे। ऊँचा लम्बा क़द, गोरा रंग, आकर्षक व्यक्तित्व यानी हीरो जैसे तो दिखते ही थे, उस पर  लहजे में नफ़ासत और आवाज़ में मिठास, इन सब ख़ूबियों के चलते वो लड़कियों में ख़ासे पॉपुलर थे। फ़िल्में देखना उन्हें बहुत पसंद था और कहते हैं कि रूबी मायर्स उनकी फ़ेवरेट एक्ट्रेस थीं जो सुलोचना के नाम से मशहूर हुईं।

कुमार

रूबी मायर्स की वजह से कुमार के मन में हीरो बनने का ख़याल आया और फिर फ़िल्मों में क़िस्मत आज़माने के लिए वो पहुँच गए मुंबई। मुंबई में कोहिनूर फ़िल्म कंपनी में उन्होंने बतौर एक्स्ट्रा और जूनियर आर्टिस्ट के तौर पर काम किया। रूबी मायर्स से मिले भी मगर उनके साथ कभी काम करने का मौक़ा नहीं मिला। 1930 की मूक फ़िल्म “दुखियारी”, “गैम्बलर”, “पाटन नी पनियारी” में उन्होंने अभिनय किया। 1930  में ही आई “शैडो ऑफ़ द डेड” में वो हीरो के रोल में दिखाई दिए। 1931 की “थ्रोन ऑफ़ देल्ही” उनकी एक और साइलेंट मूवी थी।

और…. अली मीर बन गए कुमार

लेकिन इसी बीच कुमार की मुलाक़ात हुई देबकी बोस से, जो उनकी पर्सनालिटी से काफ़ी इम्प्रेस हुए और उन्हें कोलकाता बुला लिया। कोलकाता पहुँच कर कुमार न्यू थिएटर्स में काम करने लगे, 1932 में “ज़िंदा लाश” और “सुबह का सितारा” में उन्होंने अली मीर के नाम से काम किया। लेकिन कुमार नाम पहली बार जिस फ़िल्म में आया वो थी 1933 में आई “पूरन भगत”, जिसमें कुमार ने “पूरन भगत” का मुख्य किरदार निभाया था। उनका नाम शायद नहीं बदला जाता अगर उस समय लाहौर में सिख-मुस्लिम झगड़े न हुए होते।

कृपया इन्हें भी पढ़ें – सरस्वती देवी को फ़िल्मों से जुड़ने पर भारी विरोध का सामना करना पड़ा

“पूरन भगत” पंजाब से थे और फ़िल्म पंजाब में भी रिलीज़ होनी थी। इसीलिए ये सोचा गया कि कहीं पंजाबी-हिंदु दर्शक एक मुस्लिम कलाकार को पूरन भगत के किरदार में अस्वीकार न कर दें ! फिर ये देबकी बोस के निर्देशन में बनी पहली हिंदी फ़िल्म भी थी, तो वो कोई रिस्क नहीं लेना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने अली मीर का नाम बदल कर कुमार कर दिया। जो एक तरह से अच्छा ही हुआ क्योंकि ये कुमार की पहली सुपरहिट फ़िल्म थी जिसमें उनके अभिनय को भी बहुत पसंद किया गया।

कुमार

हाँलाकि अगली फ़िल्म “यहूदी की लड़की” में फिर से अली मीर को कुमार के साथ जोड़ने की कोशिश की गई – A.M. कुमार के रुप में लेकिन बाद की फ़िल्मों में वो कुमार के नाम से ही जाने गए। पूरन भगत के बाद उन्हें फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ा। धर्म पत्नी (1935), अल हिलाल (1935), हमारी बेटियां (1936), वतन (1938), नदी किनारे (1939), ताज महल (1941), सोहागन (1942) जैसी कितनी ही फ़िल्में आईं जिनमें उन के अभिनय और संवाद अदायगी की प्रशंसा हुई।

कैरेक्टर रोल्स में काफ़ी पसंद किए गए

कुमार एक मिलनसार व्यक्ति थे, स्टाइलिश थे, उन्हें अपने समय में मोस्ट वेल ड्रेस्ड और polished एक्टर माना जाता था। उन्हें डायरेक्टर का एक्टर भी कहा जाता था। कहते हैं एक बार महबूब खान ने उन्हें ऊँचाई से छलांग लगा कर घोड़े पर बैठने के लिए कहा। उन्होंने बिना किसी ना-नुकर के वैसा ही किया, वो जोखिम तो उन्होंने उठा लिया लेकिन इस के बाद उन्होंने लम्बे समय तक महबूब ख़ान के साथ काम नहीं किया। सिर्फ़ महबूब ख़ान की आख़िरी फ़िल्म “सन ऑफ़ इंडिया” में चरित्र भूमिका में नज़र आए।

कहते हैं कुमार को फ़िल्म मेकिंग की भी काफ़ी समझ थी। 1942 में उन्होंने ‘सिल्वर फ़िल्म्स’ के नाम से एक फ़िल्म प्रोडक्शन हाउस की शुरुआत की, और “झंकार”, “भलाई”, “बड़े नवाब साहब”, “नसीब” और “देवर” जैसी फ़िल्में बनाई। उन्होंने अपने प्रोडक्शन की दो फ़िल्मों का निर्देशन भी किया इनमें एक है, राज कपूर और नरगिस के अभिनय से सजी फ़िल्म “धुन” और दूसरी है मीना कुमारी और सज्जन की “बहाना”।

कृपया इन्हें भी पढ़ें – नजमुल हसन को जानते हैं आप

कुमार ने अपने करियर में 100 से ज़्यादा फ़िल्मों में काम किया। 1940 के दशक के अंत से लेकर 1960 के दशक की शुरुआत तक, उन्होंने महल (1949), तराना (1951), दायरा (1953), श्री 420 (1955), सोहनी महिवाल (1958), दिल अपना और प्रीत पराई (1960) और झुमरू (1961) जैसी कई फ़िल्मों में कुछ बेहद अच्छे और यादगार किरदार निभाए।

यादगार भूमिकाएँ

1946 में आई फ़िल्म “नेक परवीन” में उनका निभाया हाजी साहब का रोल बहुत पसंद किया गया। “तराना” में मधुबाला के पिता की भूमिका में उन्होंने अपनी छाप छोड़ी। 1953 में एक फ़िल्म आई थी “दायरा” उसमें भी उन का दमदार रोल था। उन्होंने एक ऐसे बीमार बूढ़े व्यक्ति का किरदार निभाया था, जिसकी पत्नी उसकी बेटी की उम्र की थी। चरित्र कलाकार के रूप में कुमार ने हर तरह की भूमिकाएँ सफलता से निभाईं, लेकिन उनका सबसे यादगार रोल है, 1960 में आई “मुग़ल-ए-आज़म” में संगतराश का।

कुमार

“मुग़ल-ए-आज़म” में अकबर का रोल पृथ्वीराज कपूर से पहले उन्हें ऑफर किया गया था, मगर उन्हें संगतराश की भूमिका ज़्यादा पसंद आई, उन्हीं पर फ़िल्म का  विद्रोही गीत “ज़िंदाबाद-ज़िंदाबाद, ऐ मोहब्बत ज़िंदाबाद” भी फ़िल्माया गया था। भारत में “मुग़ल-ए-आज़म” ही कुमार की आख़िरी बड़ी और यादगार फ़िल्म रही, क्योंकि 1963 में वो पाकिस्तान चले गए।

कृपया इन्हें भी पढ़ें – प्रमिला – बोल्ड और बिंदास अभिनेत्री जो बनी 1st “मिस इंडिया

कुमार जब लखनऊ में थे तभी उनकी शादी हो गई थी, मगर 1939 में उन्होंने अभिनेत्री प्रमिला से दूसरी शादी की। प्रमिला का असली नाम था एस्थर विक्टोरिया अब्राहम। ये वही प्रमिला हैं जो शादी के बाद 1947 में मिस इंडिया चुनी गई और फर्स्ट मिस इंडिया के तौर पर जानी जाती हैं। प्रमिला पाकिस्तान नहीं जाना चाहती थीं इसलिए वो अपने बच्चों के साथ यहीं रहीं लेकिन कुमार पाकिस्तान चले गए।

कुमार

कुमार ने कई पाकिस्तानी फिल्मों में यादगार भूमिकाएँ निभाईं। इनमें सबसे मशहूर और कामयाब फ़िल्म थी 1964 में आई तौबा। इसे पाकिस्तानी फ़िल्म इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक फ़िल्मों में से एक माना जाता है। इस फ़िल्म में उन्होंने एक शराबी की भूमिका बहुत प्रभावशाली ढंग से निभाई थी। पाकिस्तान जाकर बसने के बाद कुमार एक बार भारत वापस आए थे लेकिन तब तक प्रमिला ने दूसरी शादी कर ली थी। तो कुमार वापस पाकिस्तान चले गए और वहीं 4 जून 1982 में उन्होंने आख़िरी साँस ली।

कुमार जैसे कई कलाकार हैं जो अपने वक़्त में काफ़ी मशहूर हुए लेकिन वक़्त बीतते बीतते उनके नाम और काम पर धुंध छा गई। लेकिन ग़नीमत ये है कि कुछ फ़िल्में बाक़ी हैं जो उनके काम पर रौशनी डालती हैं और याद दिलाती हैं उन जैसे बेहतरीन मगर गुमनाम कलाकारों की।