जे ओम प्रकाश ऐसे निर्माता निर्देशक थे जिनकी फ़िल्मों में गंभीर मुद्दे तो उठाए गए मगर इस तरह कि फ़िल्म बोझिल बन कर न रह जाए। फ़िल्म का जो एक ज़रुरी पक्ष होता है “एंटरटेनमेंट” वो उसे कभी नहीं भूलते थे। चार दशकों के अपने करियर में उन्होंने एक से बढ़कर एक रोमेंटिक, सुपरहिट म्यूज़िकल हिट्स दीं, जिनमें सामाजिक और पारिवारिक मुद्दे भी उठाये।
जे ओम प्रकाश का शुरूआती सफ़र
जे ओम प्रकाश का जन्म 24 जनवरी 1927 को सियालकोट पंजाब में हुआ। उनके पिता लाहौर में एक स्कूल टीचर थे, जो कहा करते थे कि कुछ भी करो पर हमेशा एक विद्यार्थी की तरह सीखते रहो। अपनी पढ़ाई के दौरान वो स्टेज पर हारमोनियम बजाया करते थे। क़तील शिफ़ाई और फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ उनके दोस्तों में से थे। कॉलेज के दिनों में ही शायरी के प्रति उनका रुझान बढ़ा और गीत-संगीत की एक समझ पैदा हुई। पर उस समय रोज़ी-रोटी के लिए काम करना ज़रुरी था तो वो लाहौर में फ़िल्म डिस्ट्रीब्यूटर के ऑफिस में क्लेरिकल जॉब करने लगे और फिर तरक्की होने पर मैनेजर बन गए। उन्हीं दिनों देश का विभाजन हुआ और वो मुंबई आ गए। जहाँ संघर्ष का एक नया रास्ता पार करना था।
मुंबई में शुरुआत में रातें लोकल ट्रैन में गुज़रती थीं, फिर एक चॉल में रहने लगे। एकाउंट्स का ज्ञान होने के कारण उन्हें फ़िल्मकार मोहन सहगल के यहाँ काम मिल गया, जो उस समय “न्यू देल्ही” फ़िल्म बना रहे थे। उन्हीं दिनों राजेंद्र कुमार से उनकी दोस्ती हुई और दोनों ने एक साथ काम करने का वादा किया। एक दिन अचानक एक फाइनेंसर ने उन्हें एक फ़िल्म बनाने का ऑफर दिया और उन्होंने ये पेशकश तुरंत मंज़ूर कर ली और इस तरह फिल्मयुग बेनर के तले उनकी पहली फ़िल्म लांच हुई- “आस का पंछी” जिसमें वैजन्तीमाला, राजेंद्र कुमार जैसे बड़े बड़े नाम थे, शंकर जयकिशन का संगीत था।
जे ओम प्रकाश का फ़िल्मी सफ़र
फ़िल्म रिलीज़ होने पर उन्होंने राजेंद्र कुमार से वादा किया था कि अगर ये फ़िल्म 25 हफ्ते चल गई तो वो उन्हें 25000 रुपए देंगे। फ़िल्म सुपरहिट रही और ओमजी ने राजेंद्र कुमार को 25000 का चेक थमाया तो वो भी हैरान रह गए क्योंकि वो ख़ुद ये बात भूल चुके थे। एक निर्माता के तौर पर उन्होंने “आस का पंछी” आई मिलन की बेला”, आये दिन बहार के”, आया सावन झूम के” जैसी सुपरहिट म्यूजिकल फ़िल्में बनाई। गुलज़ार द्वारा निर्देशित फ़िल्म “आँधी” का निर्माण भी उन्होंने ही किया था। उसके बाद वो उतरे निर्देशन के मैदान में।
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जे ओम प्रकाश ने एक मलयालम फ़िल्म का रिव्यु पढ़ा था, उसकी कहानी उन्हें बहुत पसंद आई वो उस फ़िल्म को हिंदी में बनाना चाहते थे पर तब बतौर निर्माता वो कई फ़िल्मों में उलझे थे। लेकिन बाद में उन्होंने उस कहानी में कुछ फेर बदल के साथ फ़िल्म बनाई “आपकी क़सम” जिसका निर्देशन भी उन्होंने ही किया था। राजेश खन्ना मुमताज़ और संजीव कुमार के अभिनय से सजी “आपकी क़सम” एक सुपरहिट फ़िल्म थी। इसे देखने के बाद बी आर चोपड़ा ने ख़ुद फ़ोन कर ओम जी को बधाई दी और कहा कि ये किसी डायरेक्टर की पहली फ़िल्म नहीं लग रही है। ये एक बड़ा कॉम्पलिमेंट था।
एक निर्देशक के रूप में उनकी कुछ महत्वपूर्ण फिल्में रहीं – “अपनापन”, “आशा”, “अर्पण”, “आख़िर क्यों”, “आपके साथ” और “आदमी खिलौना है” जिनमें उन्होंने पारिवारिक सामाजिक मुद्दे उठाए, ऐसे विषय और किरदार गढ़े जिनसे आम लोग ख़ुद को जोड़ सकें। और इन सब के साथ रोमांस मिलाकर उन्होंने बहुत सी सुपरहिट रोमेंटिक म्यूजिकल फिल्में बनाईं।
अपनी फिल्मों के ज़रिए जे ओम प्रकाश ने कई लोगों को निर्देशन का मौक़ा दिया। आस का पंछी में उन्होंने साइन किया मोहन सहगल के सहायक मोहन कुमार को। बाद में ये दोनों रिश्तेदार बन गए, क्योंकि दोनों ने एक दूसरे की बहन से शादी की। “आए दिन बहार के” में उन्होंने बिमल रॉय के सहायक रह चुके “रघुनाथ झलानी” को निर्देशन का मौक़ा दिया। “आन मिलो सजना” में मुकुल दत्त और “राजा-रानी” में लेखक सचिन भौमिक को फ़िल्म निर्देशित करने का मौक़ा दिया और इन फ़िल्मों से फिल्मयुग पूरी तरह स्थापित हो गया।
जे ओम प्रकाश उन निर्माताओं में से नहीं थे जो सिर्फ़ पैसे और ख़र्च पर ध्यान देते थे बल्कि वो अपनी फ़िल्म के हर पहलू पर नज़र रखते थे। सेट, कैमरावर्क, एडिटिंग, COSTUMES वगैरह। शायद इसीलिए वो अपनी पहली ही फ़िल्म से एक बेहतरीन निर्देशक भी बन पाए। उन्होंने ऐसी कहानियां चुनी जिनमें एक इमोशनल आस्पेक्ट हमेशा रहता था।
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जे ओम प्रकाश ने जब लाहौर छोड़ा था तो क़तील शिफ़ाई ने उन्हें यादगार के तौर पर एक शेर लिखकर दिया था- जिसमें लिखा था “उड़ते-उड़ते आस का पंछी” और कहा था कि इसे कभी कहीं इस्तेमाल कर लेना। जब ओम जी ने अपनी पहली फ़िल्म का निर्माण किया तो उस कहानी और किरदार पर “आस का पंछी” नाम पूरी तरह फिट होता था, तो उन्होंने वही नाम रख लिया। फ़िल्म की रिलीज़ के बाद क़तील शिफ़ाई का ख़त आया जिसमें उन्होंने लिखा था कि मेरी शायरी का एक हिस्सा तो काम आया।
A अक्षर से लगाव या अन्धविश्वास !
जे ओम प्रकाश की फ़िल्म “आस का पंछी” हिट रही थी उसके बाद से ही उन्होंने अपनी फिल्मों के टाइटल A अक्षर से रखने शुरू कर दिए। बस दो फिल्में ऐसी रही जिनके टाइटल अलग थे एक तो “राजा-रानी” जिसे सचिन भौमिक एक पूरे पैकेज के रुप में लाए थे दूसरी “भगवान दादा” जो राकेश रोशन प्रोडक्शन की फ़िल्म थी। अब आप इसे अन्धविश्वास कहें या उनका कन्विक्शन पर उनके लिए इस A अक्षर ने अक्सर काम किया। शायद उन्हीं से प्रेरित होकर उनके दामाद राकेश रोशन ने K अक्षर का सहारा लिया होगा!
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हर फिल्मकार के कुछ पसंदीदा हीरो-हेरोइन गीतकार-संगीतकार होते हैं, जिनके साथ एक ऐसी टीम बन जाती है जिनकी आपसी समझ कमाल की होती है और ज़ाहिर है कि इसका सीधा असर फ़िल्म की कामयाबी पर पड़ता है। जे ओम प्रकाश की भी ऐसी ही टीम रही जिनमें बतौर हीरो राजेंद्र कुमार, धर्मेंद्र, जीतेंद्र, राजेश खन्ना रहे और सबसे उनकी अच्छी दोस्ती भी रही। आशा पारेख और रीना रॉय भी उनकी कई फ़िल्मों में दिखीं।
अपने दामाद राकेश रोशन को लेकर जे ओम प्रकाश ने बनाई थी “बातों-बातों में” लेकिन फ़िल्म नहीं चली। बाद में राकेश रोशन उनकी फ़िल्म “आक्रमण”, और “आख़िर क्यों” में नज़र आए। “भगवान दादा” में जे ओम प्रकाश के नवासे यानी उनकी बेटी के बेटे ऋतिक रोशन ने बतौर बाल कलाकार काम किया इसके अलावा “आशा” और “आस-पास” जैसी फ़िल्मों में भी वो डांस करते नज़र आये। कलाकारों के अलावा उनकी ज़्यादातर फ़िल्मों में लक्ष्मीकांत प्यारेलाल या शंकर जयकिशन ने संगीत दिया। उनकी डायरेक्टोरियल डेब्यू में RD बर्मन का संगीत था, बाद के दौर में कुछ बदलाव आये मगर गीत-संगीत हमेशा उनकी फिल्मों का एक मज़बूत पक्ष रहा।
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जे ओम प्रकाश लगातार 6 साल तक IMPPA और ‘फ़िल्म प्रोडूसर्स गिल्ड’ के प्रेजिडेंट रहे। इनके अलावा ‘फ़िल्म फेडरेशन ऑफ़ इंडिया’ के प्रेजिडेंट भी रहे। ‘आर्टिस्ट्स वेलफेयर फण्ड’ के ट्रस्टी रहे और ‘सेंसर बोर्ड’ के अलावा ‘डायरेक्टरेट ऑफ़ फिल्म फेस्टिवल्स’ के एडवाइजरी पेनल में भी शामिल रहे। 2004 में ‘एशियन गिल्ड ऑफ़ लंदन’ में उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से नवाज़ा गया। कमाल की बात ये रही कि उसी फंक्शन में “कोई मिल गया” फिल्म के लिए उनके जमाई राकेश रोशन को बेस्ट डॉयरेक्टर और नवासे ऋतिक रोशन को बेस्ट एक्टर के अवार्ड से नवाज़ा गया।
निर्माता-निर्देशक के रूप में उनकी आख़िरी फ़िल्म थी “अफ़साना दिलवालों का” जो 2001 में आई थी। इसके बाद उन्होंने फ़िल्मों से संन्यास ले लिया था। 7 अगस्त 2019 को वो इस फ़ानी दुनिया को अलविदा कह गए। उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार उनकी मौत पर किसी शोक सभा का आयोजन नहीं किया गया। जे ओम प्रकाश ने बतौर फ़िल्ममेकर कई नियम तोड़े और कई नए ट्रेंड्स बनाए। उनकी फिल्में लोकप्रियता, गीत-संगीत, कहानी और कई मायनों में हिंदी सिनेमा में बहुत अलग जगह रखती हैं।
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