हनी ईरानी को आज की जनरेशन एक स्क्रीन राइटर के तौर पर पहचानती है, कुछ लोग फ़रहान अख़्तर और ज़ोया अख़्तर की माँ और जावेद अख़्तर की पहली पत्नी के तौर पर जानते हैं मगर हनी ईरानी का इंट्रोडक्शन इससे कहीं ज़्यादा है। एक टैलेंटेड राइटर और 50s 60s की मशहूर चाइल्ड आर्टिस्ट तो वो रही हीं इन सबसे बढ़कर वो एक ऐसी इंसान हैं जिन्होंने ताउम्र संघर्ष किया लेकिन कभी अपने चेहरे पर एक शिकन नहीं आने दी, न ही लोगों के सामने अपनी ज़िंदगी का तमाशा बनाया जो जैसे आया उसे वैसे ही एक्सेप्ट करके आगे बढ़ती रहीं।
हनी ईरानी और उनकी बहन अपने समय की सबसे ज़्यादा फ़ीस लेने वाली बाल कलाकार थीं
हनी ईरानी अपनी बड़ी बहन डेज़ी की तरह लगभग तीन चार साल की उम्र से ही फ़िल्मों में काम करने लगी थीं। ईरानी सिस्टर्स के नाम से मशहूर ये बहनें अपने वक़्त की सबसे मशहूर बाल कलाकार थीं जिन्हें हर फ़िल्ममेकर अपनी फ़िल्म में लेना चाहता था। 1960 में आई फ़िल्म “मासूम” का गाना “नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए” तो आपने सुना ही होगा! ये गाना हनी ईरानी पर ही फ़िल्माया गया है, जिनकी मासूमियत ने सभी का दिल जीता।
हनी ईरानी के मुताबिक मीना कुमारी ने उन्हें सचमुच माँ का प्यार दिया। वो नन्हीं हनी को अपने घर ले जाती उन्हें नहलाती, प्यार से खाना खिलातीं और सुलाती। मीना कुमारी ख़ुद बचपन से फ़िल्मों में काम करती रही थीं और वो उन बच्चों का दर्द बहुत अच्छी तरह समझती थीं जिन्हें उनके माँ बाप अपना सपना पूरा करने या परिवार पालने के लिए फ़िल्मों में भेज देते थे, शायद इसीलिए बच्चों से उन्हें बहुत लगाव था।
लाजवाब एक्टिंग के लिए हनी ईरानी ने नेशनल अवॉर्ड पाया
“प्यार की प्यास” के लिए तो हनी ईरानी को राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। ये फ़िल्म एक ऐसी अनाथ लड़की पर आधारित थी जिसे एक पति-पत्नी गोद ले लेते हैं लेकिन जब उनकी अपनी औलाद हो जाती है तो वो अपना सारा ध्यान अपनी औलाद पर देते हैं।उस समय उस गोद ली हुई बच्ची पर क्या गुज़रती है, इसे बड़ी ही ख़ूबी से हनी ईरानी ने परदे पर उतारा तब उनकी उम्र कोई चार या पाँच साल की रही होगी। कहते हैं फ़िल्म के निर्देशक महेश कौल छोटी सी हनी को अपने घर ले गए थे ताकि वो शूटिंग के समय कम्फ़र्टेबल फील करें।
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फिल्म “ज़मीन के तारे” में हनी अपनी बहन डेज़ी के साथ नज़र आईं दोनों ही लड़कों की भूमिका में थीं। इन दोनों बहनों ने ज़्यादातर फ़िल्मों में लड़कों की ही भूमिकाएं निभाईं। ये ऐसे चाइल्ड आर्टिस्ट थे जिनके लिए ख़ासतौर पर कहानियाँ लिखी गईं और इन दोनों ने जो कामयाबी पाई वो शायद ही किसी और बाल कलाकार को मिली हो। लेकिन हनी ईरानी अक्सर डेज़ी ईरानी की पॉपुलर इमेज की छाया ही बनी रहीं।
सलीम ख़ान गए थे जावेद अख़्तर का रिश्ता लेकर
उम्र बढ़ते-बढ़ते हनी ईरानी “कटी पतंग”, “अमर प्रेम”, “सीता और गीता” जैसी फ़िल्मों में साइड रोल्स में दिखीं। उस समय वो सिर्फ़ 16 साल की थीं। “सीता और गीता” की कहानी सलीम ख़ान और जावेद अख़्तर की जोड़ी ने लिखी थी जो उस वक़्त तक हिंदी फ़िल्मों में बतौर लेखक अपने क़दम जमाने की कोशिश कर रहे थे। उसी फिल्म की शूटिंग के वक़्त की बात है जब जावेद अख़्तर, सलीम ख़ान वग़ैरह ताश खेल रहे थे। हनी भी वहीं बैठी थीं उन्होंने जावेद अख़्तर से कहा कि अबकी बार तुम्हारे लिए पत्ता मैं निकालुँगी, जावेद अख्तर ने मज़ाक़ में कहा कि अगर बढ़िया पत्ता आया तो मैं तुमसे शादी कर लुँगा।
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पत्ता वाक़ई बढ़िया निकला और तब जावेद अख़्तर ने हँसते हुए कहा चलो अब शादी कर लेते हैं। इस तरह मज़ाक़-मज़ाक़ में शादी की बात निकली और दोस्त होने के नाते सलीम ख़ान जावेद अख़्तर का रिश्ता लेकर हनी की माँ के पास गए और उनसे कुछ उसी अंदाज़ में शादी की बात की जिस तरह “शोले” में अमिताभ बच्चन ने बसंती की मौसी से की थी। हनी की माँ ने कहा – “कर लेने दो शादी सबक़ सीख कर वापस आ जाएगी”। और फिर 1972 में जावेद अख़्तर और हनी ईरानी की शादी हो गई।
उस समय तक जावेद अख़्तर एक struggling राइटर थे और उनके पास रहने का कोई ठिकाना भी नहीं था तब उन दोनों को अपने घर में पनाह दी हनी की सबसे बड़ी बहन मेनका और उनके फ़िल्ममेकर पति कामरान ख़ान ने। फराह ख़ान और साजिद ख़ान उन्हीं के बच्चे हैं। उनके घर के स्टोर रूम में वो क़रीब एक साल रहे इसी बीच “ज़ंजीर” फ़िल्म रिलीज़ हुई और जावेद अख़्तर की क़िस्मत रातों रात बदल गई और वो लोग अपने घर में शिफ़्ट हो गए। इधर जावेद अख़्तर तरक़्क़ी की सीढ़ियाँ चढ़ रहे थे, उधर हनी दो बच्चों फ़रहान और ज़ोया की माँ बन गई।
छः साल में ही टूट गई हनी ईरानी की शादी
इसी दौरान जावेद अख़्तर की ज़िंदगी में शबाना आज़मी की आमद हुई और फिर 6 साल की शादी अलगाव में बदल गई। 1984 में बाक़ायदा तलाक़ के बाद जावेद अख़्तर ने शबाना आज़मी से शादी कर ली। अक्सर इन हालात में बच्चे दो पाटों के बीच पिस कर रह जाते हैं और उनका व्यक्तित्व बिखर कर रह जाता है मगर हनी ईरानी की समझदारी के कारण बच्चों के सम्बन्ध अपने पिता के साथ सहज बने रहे। जावेद अख़्तर बच्चों की परवरिश के लिए हर महीने एक रक़म देते थे मगर वो काफ़ी नहीं थी इसीलिए हनी ईरानी ने साड़ियों पर एम्ब्रॉइडरी करके फ़िल्म स्टार्स को बेचना शुरु किया। बड़ी-बड़ी हीरोइन्स उनकी साड़ियां खरीदती थीं।
बतौर राइटर शुरु हुई करियर की दूसरी पारी
हनी ईरानी पहले से ही शॉर्ट स्टोरीज़ लिखा करती थीं, लेकिन कभी किसी को अपनी कहानियाों के बारे में बताया नहीं था। एक दिन यश चोपड़ा की पत्नी पामेला चोपड़ा के सामने उन्होंने अपनी एक कहानी पढ़ी जो किसी टीवी सीरीज़ के लिए चाहिए थी लेकिन वो कहानी यश चोपड़ा को इतनी पसंद आई कि बाद में उस कहानी पर उन्होंने फ़िल्म बनाई “आईना”। ये कहानी सुनने के बाद यश चोपड़ा के कहने पर उन्होंने “लम्हे” लिखी, फिर “परंपरा”, “डर” जैसी फिल्मों के साथ ये सिलसिला आगे बढ़ता ही गया।
हनी ईरानी ने कई फ़िल्मों का स्क्रीनप्ले और डायलॉग्स भी लिखे। उन्हें “लम्हे” और “क्या कहना” के लिए बेस्ट स्टोरी का और “कहो न प्यार है” के लिए बेस्ट स्क्रीनप्ले का फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड दिया गया। “अरमान” फिल्म से हनी ईरानी ने डायरेक्शन में क़दम रखा और अपना एक और सपना पूरा किया। कुछ लोग टैलंटेड होने के बावजूद हमेशा दूसरों के साए में छिपे रह जाते हैं। हनी ईरानी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ पहले बड़ी बहन, फिर पति और फिर बच्चों की शोहरत के बीच में हनी ईरानी का नाम आम दर्शकों के लिए थोड़ा अंजाना ही रह जाता है। लेकिन उनका काम ही उनकी पहचान है और उसे किसी भी तरह नाकारा नहीं जा सकता।
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