गुरुदत्त ने गीता रॉय से प्यार किया शादी की और फिर वहीदा रहमान उनकी ज़िन्दगी में आईं। ये तीनों एक ऐसे उलझे हुए रिश्ते में बंध गए जिसका अंत गुरुदत्त की मौत के साथ हुआ।

रिश्ते जब शुरूआती स्टेज पर होते हैं बहुत ख़ूबसूरत लगते हैं, होते भी हैं, लेकिन सही तवज्जो न मिले तो खूबसूरती को बदसूरती में बदलते देर नहीं लगती। ज़रा सा शक़, ज़रा सी लापरवाही रिश्तों को इस क़दर बिगाड़ देती है कि इंसान का रिश्तों से तो क्या ज़िंदगी से विश्वास उठ जाता है। ये कहानी है प्यार, अधिकार, शक़ और रिश्तों के बीच पनपती नज़दीकियों और दूरियों की। बेहतरीन सिंगर गीता रॉय, लाजवाब अभिनेत्री वहीदा रहमान और ख़ुद के वजूद को तलाशते क्रिएटिव जीनियस गुरुदत्त।

गुरुदत्त और गीतादत्त की मुलाक़ात, प्रेम और शादी

गुरुदत्त और गीता रॉय “बाज़ी” फ़िल्म के सेट पर मिले। जहाँ गुरुदत्त गीता की आवाज़, गायकी और व्यक्तित्व में बह गए वहीं गीता भी उनके निर्देशन से बहुत ज़्यादा प्रभावित हुईं और जल्दी ही दोनों मोहब्बत के रंग में डूब गए। प्यार परवान चढ़ने लगा, पैग़ाम लाने ले जाने की ज़िम्मेदारी मिली गुरुदत्त की बहन को। मगर गीता रॉय के घरवाले इस रिश्ते के एकदम ख़िलाफ़ थे, तीन साल का वक़्त लगा उन्हें राज़ी करने में और फिर 1953 में दोनों ने शादी कर ली।

गुरुदत्त

 

दोनों तीन बच्चों के माता-पिता बने, दो लड़के और एक लड़की मीना। शादी के बाद गीता दत्त ने करियर की बजाय अपने परिवार पर पूरा ध्यान लगाया, गीत गाए भी तो सिर्फ़ गुरुदत्त की फ़िल्मों के लिए। उधर गुरुदत्त जो अपने आप को स्थापित करने में जुटे थे वो workaholic होने के साथ-साथ परफेक्शनिस्ट भी थे। तो उन्होंने खुद को पूरी तरह काम में डुबो लिया, वो घर-परिवार को काफ़ी कम समय दे पाते थे।

गुरुदत्त

 

शायद ये वजह रही हो या जैसा कि उनके जानने वाले कहते हैं कि गीता दत्त एक शक्की तबीयत की महिला थीं। वो गुरुदत्त के साथ काम करने वाली हर हेरोइन को लेकर शक़ किया करती थीं। उनके शक़ ने इस ख़ूबसूरत रिश्ते में धीमे ज़हर का काम किया, ये ही एक वजह थी जिसने उनके और गुरुदत्त के जीवन पर नेगेटिव असर डाला। यहाँ मैं ये साफ़ कर देना चाहती हूँ कि यहाँ मैं जो भी लिख रही हूँ वो गीता दत्त या वहीदा रहमान या गुरुदत्त के बारे में मेरी निजी राय नहीं है, मैं यहाँ वही लिख रही हूँ जो तथ्य बताते हैं।

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हमें ये मानना होगा कि फ़िल्मी सितारे भी आख़िरकार होते तो इंसान ही हैं उनमें भी कमियाँ और ख़ूबियाँ होती हैं और हमें उन्हें वैसे ही स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। कोई भी महिला अपने हैंडसम और जीनियस पति को लेकर पज़ेसिव हो सकती है, कोई भी पुरुष/स्त्री शादीशुदा होने के बावजूद किसी और की तरफ़ आकर्षित हो सकते हैं। ख़ासतौर पर जब दो लोग सेम प्रोफ़ेशन में हों तो नज़दीकियाँ बढ़ना कोई बड़ी बात नहीं है। ऐसा ही हुआ गुरुदत्त और वहीदा रहमान के साथ।

गुरुदत्त

गुरुदत्त के जीवन में वहीदा रहमान का प्रवेश

वहीदा रहमान को तो हिंदी फ़िल्मों में लाए ही थे गुरुदत्त। 1956 की फ़िल्म CID से गुरुदत्त कैंप में वहीदा रहमान की एंट्री हुई जिनके साथ उन्होंने चार फ़िल्मों का कॉन्ट्रैक्ट किया था। CID के बाद प्यासा में उनका अहम् रोल रहा। यहीं से फ़िल्मी गलियारों में दोनों की चर्चा होने लगी। अबरार अल्वी जो गुरुदत्त के अच्छे दोस्त भी थे उनके हिसाब से गुरुदत्त वहीदा रहमान के बिना अपनी किसी फ़िल्म की कल्पना ही नहीं कर पाते थे। वो उनके लिए बहुत अहम् होती जा रही थीं। ऐसे में जिस रफ़्तार से अफ़वाह फैली उस से दुगुनी रफ़्तार से गीता दत्त का शक़ बढ़ता गया।

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एक बार तो गुरुदत्त के हाथ एक खत लगा जो वहीदा रहमान की तरफ़ से उनके नाम लिखा गया था। जिसमें उन्हें कहीं मिलने के लिए बुलाया गया था मगर गुरुदत्त और अबरार अल्वी दोनों को ही यक़ीन था कि वो ख़त वहीदा रहमान ने नहीं लिखा। सच जानने के लिए दोनों उस जगह पहुंचे और छुप कर इंतज़ार करने लगे, कुछ ही देर बाद उन्हें गीता दत्त अपनी एक सहेली के साथ वहाँ दिखीं। साफ़ था कि गीता दत्त ने वहीदा रहमान के नाम से वो प्रेम भरा पत्र गुरुदत्त को लिखा था। कहते हैं कि गीता दत्त का शक़ इस हद तक बढ़ गया था कि वो हर समय गुरुदत्त पर नज़र रखा करती थीं।

गुरुदत्त

गुरुदत्त वहीदा रहमान के बीच क्या था इसके बारे में कोई भी दावे से कुछ नहीं कह सकता। लेकिन ज़ाहिर है कि बिना आग के धुँआ नहीं उठता, इसलिए नज़दीक़ियाँ तो थीं मगर किस हद तक ये कहना मुश्किल है। वहीदा रहमान गुरुदत्त को अपना मेंटोर, गाइड मानती रहीं, मगर वहीदा रहमान ने इस विषय में कभी कुछ नहीं कहा। अबरार अल्वी के मुताबिक़ गुरुदत्त उनसे प्रेम करने लगे थे पर उस प्रेम में सबसे बड़ी बाधा थी धर्म की और वहीदा रहमान ये बात अच्छी तरह जानती थीं।

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पर प्यार धर्म या जाति देख कर तो नहीं होता। ये तो एक फीलिंग है जो कब कैसे किसके लिए आ जाए कोई नहीं कह सकता। मगर जब इस तरह के रिश्ते बनने लगते हैं तो कॉम्प्लीकेशन्स तो होते ही हैं। रिश्ते यूँ भी बहुत उलझे हुए होते हैं अगर उनमें शक़, लापरवाही, उपेक्षा-उदासीनता आ जाये तो उन रिश्तों का न वर्तमान बचता है न भविष्य। हो सकता है उस शुरुआत में गुरुदत्त सिर्फ़ वहीदा रहमान के टैलेंट और उनकी खूबसूरती से ही प्रभावित रहे हों। हो सकता है वो उनमें एक ऐसे अच्छे कलाकार को देखते हों जिसके साथ काम करते हुए एक कम्फर्ट वाली फीलिंग आती है।

वहीदा रहमान गुरुदत्त की टीम का एक अहम् हिस्सा थीं

जिस तरह का रेपो राइटर डायरेक्टर अबरार अल्वी, सिनेमेटोग्राफ़र वी के मूर्ति, और कॉमेडियन जॉनी वॉकर के साथ था, वैसा ही वहीदा रहमान के साथ रहा हो। लेकिन जब गीता दत्त का शक़ बढ़ता गया तो शायद वो भी वहीदा रहमान की तरफ़ खिंचते चले गए। आखिर प्यार रातों-रात तो नहीं हो जाता उसे पनपने में, उसकी शिद्दत के बढ़ने में वक़्त तो लगता है और बहुत से बाहरी कारण भी होते हैं जो आपको किसी एक इंसान की तरफ़ आकर्षित करते हैं। शायद वहीदा रहमान और गुरुदत्त का रिश्ता भी ऐसे ही हालात की देन रहा !

गुरुदत्त

इसकी एक झलक फ़िल्म “काग़ज़ के फूल” में देखी जा सकती है, कहते हैं कि इसकी कहानी गुरुदत्त की अपनी ज़िंदगी पर आधारित थी। ये फ़िल्म आज भले ही क्लासिक की श्रेणी में आती हो मगर उस वक़्त ये इतनी बड़ी फ्लॉप थी कि इसके बाद उन्होंने फिर कभी अपना नाम बतौर निर्देशक इस्तेमाल नहीं किया। इसके बाद से उनकी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ दोनों बदल गईं। फिल्म के कारण इतना नुकसान हुआ था कि उन्हें अपना बंगला बेचना पड़ा और फिर वो किराए के घर में रहने लगे। इसकी असफलता से उबरने के लिए उन्होंने शराब का सहारा लिया।

गुरुदत्त का ख़ुद ही हर रिश्ते से अलगाव

डिप्रेशन, ईगो, ट्रस्ट इश्यूज, Pain….. घर में अक्सर लड़ाई झगडे का माहौल रहने लगा। “काग़ज़ के फूल” के बाद गुरुदत्त ने वहीदा रहमान के साथ “चौदहवीं का चाँद” और “साहिब बीबी और ग़ुलाम”, ये दो फ़िल्में बनाई। यहाँ तक आते-आते गुरुदत्त का निजी जीवन और भी ज़्यादा हिचकोले खाने लगा था। और जो मोहब्बत उन के दिल में वहीदा रहमान के लिए उभर आई थी वो भी अपने अंतिम पड़ाव पर पहुँच गई। कहते हैं कि अपनी गृहस्थी बचाने के लिए गुरुदत्त ने इस बेनाम और किसी अंजाम तक न पहुँचने वाले रिश्ते को ख़ुद ही तोड़ दिया।

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हुआ ये कि वहीदा रहमान “गुरुदत्त फ़िल्म्स” के सेट पर अपने मेकअप रुम में जा रही थीं, किसी और फ़िल्म की शूटिंग हो तब भी वो उसी मेकअप रूम का इस्तेमाल करती थीं मगर उस दिन गुरुदत्त के असिस्टेंट ने उन्हें वहाँ जाने से रोक दिया। अगले दिन फिर ऐसा ही हुआ तो उन्हें बहुत चोट पहुंची इसके बाद वहीदा रहमान सिर्फ़ दो बार गुरुदत्त से मिलीं। एक बार “साहब बीबी और ग़ुलाम” के आख़िरी सीन की शूटिंग के वक़्त वो भी अबरार अल्वी की बहुत कोशिशों और मिन्नतों के बाद और फिर क़रीब दो साल बाद बर्लिन फ़िल्म फ़ेस्टिवल में।

अलविदा अगर ठीक से कहा जाए तो शायद उतनी तकलीफ़ नहीं होती मगर गुरुदत्त ने जो किया उससे वहीदा रहमान के स्वाभिमान को गहरी ठेस पहुँची और फिर प्रोफेशनली और पर्सनली दोनों अलग-अलग रास्तों पर निकल पड़े। मगर गुरुदत्त की शादीशुदा ज़िंदगी में जो उलझनें थीं वो नहीं सुलझीं। वो एंग्जायटी और डिप्रेशन से गुज़र रहे थे, पहले ही दो बार आत्महत्या की कोशिश कर चुके थे, सोने के लिए नींद की गोलियाँ लेनी पड़ती थीं, उस पर शराब की लत।

गुरुदत्त

गीता दत्त उनसे दूर बच्चों के साथ मायके में रह रही थीं, गुरुदत्त बच्चों से मिलना चाहते थे। जिस रात उन्होंने सुसाइड किया उस रात गीता दत्त से उनकी बात हुई, उन्होंने कहा कि वीकेंड के लिए बच्चों को भेज दें मगर गीता दत्त ने मना कर दिया। और उस रात शराब के साथ नींद की गोलियाँ खाकर गुरुदत्त ऐसे सोए कि फिर कभी नहीं उठे। रिश्तों की डोर सचमुच बहुत नाज़ुक होती है अगर ठीक से संभाला न जाए तो टूटते देर नहीं लगती।

गुरुदत्त

गुरुदत्त और गीता दत्त दोनों महान फ़नकार थे, दोनों ही सेंसिटिव इंसान थे, अपनी-अपनी जगह दोनों बेहतरीन इंसान भी थे और दोनों एक दूसरे से प्यार भी करते थे। मगर वक़्त के साथ वो प्यार जाने कहाँ खो गया। होता ये है कि जब तक कोई चीज़ या इंसान नहीं मिलता लोग उसे पाने के लिए जी-जान लगा देते हैं और मिल जाने पर रिलेक्स हो जाते हैं। जबकि रिश्तों की ख़ूबसूरती को बरक़रार रखने के लिए भी efforts की ज़रुरत होती है।