G S नेपाली ने, जिनका असली नाम था गोपाल बहादुर सिंह लेकिन बाद में उनके नाम से बहादुर हट गया और वो गोपाल सिंह नेपाली यानी G S नेपाली के नाम से ही जाने गए। आपने पुराने फ़िल्मी गानों में साँवरिया, गुजरिया बावरिया, डगरिया जैसे देशज शब्द ज़रुर सुने होंगे माना जाता है कि इन शब्दों को पहली बार हिंदी फ़िल्मी गीतों में इस्तेमाल G S नेपाली ने ही किया था।
भूले बिसरे गीतकारों में शायद वो सब से ज़्यादा बिसराए हुए गीतकार हैं जिनके नाम से बहुत से सिनेमा प्रेमी भी वाक़िफ़ नहीं हैं। हाँ, हिंदी साहित्य में घोर रूचि रखने वाले शायद उनका नाम जानते हों वर्ना वहाँ भी वो लगभग बिसराये हुए ही हैं। लेकिन उनका लिखा एक भजन “दर्शन दो घनश्याम” आज भी लोग गुनगुनाते हैं।
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G S नेपाली की साहित्यिक यात्रा
कवि, पत्रकार, गीतकार G S नेपाली का जन्म 11 अगस्त 1911 में हुआ, बिहार के बेतिया में। पिता फ़ौजी थे इसलिए बहुत सी जगहों पर जाना होता रहा मगर इसी वजह से पढ़ाई ठीक से नहीं हो पाई। पर जन्म से कविता का गुण मिल गया था इसलिए बचपन से ही कविताएँ लिखने लगे थे। उनकी पहली कविता 1930 में बच्चों की एक मंथली मैगज़ीन में छपी थी। 1931 में वो अखिल भारतीय हिंदी कवि सम्मलेन में शामिल होने कोलकाता गए, जहाँ सूर्य कांत त्रिपाठी निराला, रामवृक्ष बेनीपुरी और रामधारी सिंह दिनकर जैसे बड़े साहित्यकारों ने उनकी कविताओं को बहुत सराहा।
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1932 में आचार्य हज़ारी प्रसंद द्विवेदी के अभिनन्दन समारोह में जिन 15 कवियों को मंच पर कविता पाठ के लिए चुना गया था उनमें से एक G S नेपाली भी थे, वहाँ उनकी लेखन प्रतिभा से प्रभावित होकर सुधा पत्रिका के संपादक ने उन्हें लखनऊ में अपनी पत्रिका के सम्पादकीय विभाग में काम करने का न्योता दिया। इसके बाद वो दिल्ली की वीकली मैगज़ीन चित्रपट में को-एडिटर रहे, फिर रतलाम टाइम्स के एडिटर रहे पटना गए काफ़ी सालों तक वो अलग अलग शहरों में अलग अलग प्रकाशन में काम करते रहे। इसी बीच 1933 में G S नेपाली का पहला काव्य-संग्रह आया “उमंग” उसके बाद तो एक-एक करके कई काव्य संग्रह आये जिनमें प्रमुख हैं-पंछी, रागिनी, पंचमी, नवीन, नीलिमा और हिमालय ने पुकारा।
सिनेमा में प्रवेश
G S नेपाली को मुंबई बतौर गीतकार बुलाया गया था पर इस पर दो राय हैं कि उन्हें पी एल संतोषी ने मुंबई बुलाया था या तोलाराम जालान ने। पर ये तय है कि 1944 में वो मुंबई आये और बतौर गीतकार 200 रूपए महीने की तनख्वाह पर फिल्मिस्तान में काम करने लगे। मज़दूर फ़िल्म में उनके लिखे गीत बहुत मशहूर हुए। 1945 में बंगाल फ़िल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीतकार के पुरस्कार से सम्मानित भी किया। उसके बाद “बेगम”, “सफ़र”, “अहिंसा”, “लीला”, “आप बीती”, “शिकारी”, “चंपा”, “तिलोत्तमा”, “नरसी भगत”, “कमल”, “नाग पंचमी”, “दुर्गा पूजा”, “शिव भक्ति”, “तुलसीदास”, “जय भवानी” जैसी बहुत सी फ़िल्मों में G S नेपाली ने क़रीब 400 गीत लिखे, जो अपने समय में काफ़ी लोकप्रिय हुए।
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G S नेपाली ने नेपाल के राणा के सहयोग से अपनी एक फिल्म कंपनी भी बनाई – हिमालय फिल्म्स । इस बेनर तले उन्होंने तीन फिल्मों का निर्माण और निर्देशन किया था – “नज़राना”, “सनसनी” और “ख़ुशबू”। उनकी कविताओं और गीतों में एक तरफ़ प्रकृति प्रेम, और रोमांस मिलता है वहीं दूसरी तरफ़ देश प्रेम की उनकी कवितायेँ रगों में जोश भर देती थीं। 1962 में भारत-चीन युद्ध के समय GS नेपाली ही एइकलौते ऐसे कवि थे जो फ़िल्मों की कामयाब ज़िंदगी को त्याग कर पूरे भारत में घूमे और अपने राष्ट्रीय गीतों के माध्यम से जन-जन में राष्ट्र-चेतना की भावना भरते रहे। यहाँ तक कि वो जवानों का उत्साह बढ़ाने के लिए बॉर्डर पर भी गए।
17 अप्रैल 1963 को G S नेपाली एक कवि-सम्मेलन से लौट रहे थे, रेलवे स्टेशन पर उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उन्होंने हमेशा के लिए आँखें मूँद लीं। कहते हैं उनकी शवयात्रा में काफ़ी जनसैलाब उमड़ पड़ा था। मगर विडम्बना देखिए कि आज उनकी बस एक दो-तस्वीरें ही मिलती हैं और मुझे कोई ऐसी एल्बम नहीं मिली जिसमें उनके लिखे फ़िल्मी या नॉन-फ़िल्मी गीतों का संग्रह हो।
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कुछ पुराने फ़नकार वक़्त की धुंध में यूँ खो गए हैं कि अब सिर्फ़ उनके कुछ निशान ही बाक़ी हैं, गोपाल सिंह नेपाली ऐसे ही फ़नकार थे जिनकी अब सिर्फ़ कुछ यादें ही बची हैं।
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