C H आत्मा एक ऐसी आवाज़ जिसमें बुलंदी है, गहराई है, इमोशन हैं, फिर क्या वजह रही कि वो आवाज़ दूर तक नहीं जा सकी ?
शायद आप इस बात से इत्तेफ़ाक़ रखते हों कि सर्दियों के मौसम में गानों की पसंद काफ़ी हद तक बदल जाती है। पुराने ज़माने की आवाज़ें ज़्यादा आकर्षित करती हैं, रिच बेस वॉइस को चुपचाप पड़े-पड़े सुनना एक अलग ही कम्फर्ट देता है। ऐसी बहुत सी आवाज़ें हैं जिनके बारे में अक्सर बात भी होती है पर कुछ लोगों पर ज़्यादा बात नहीं होती उन्हीं में से एक नाम है C H आत्मा का।
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C H आत्मा की आवाज़ बहुत हद तक उनके आइडल के एल सहगल से मिलती थी और उस समय उसी स्टाइल की सिंगिंग हुआ करती थी तो पहली बार में उनके गाए गाने को सुनकर कोई भी सोच सकता है कि ये के एल सहगल ने गाया है पर आप जब ध्यान से सुनेंगे तो फ़र्क़ समझ में आ जाएगा।
C H आत्मा क़िस्मत से बन गए गायक
C H आत्मा का पूरा नाम था आत्मा हशमतराय चैनानी, उनका जन्म 3 दिसंबर1923 में सिंध के हैदराबाद में हुआ। उनके पिता हशमतराय चैनानी कराची में एक जाने-माने वक़ील थे, मगर उन्हें म्यूजिक का शौक़ था वही शौक़ उनके दोनों बेटों आत्मा और चंद्रू में आया। उन दिनों के एल सहगल की दीवानगी उरुज पर थी इसलिए C H आत्मा शौक़िया उन्हीं के गाने गाया करते थे, और गायकी शायद शौक़ तक ही सीमित रह जाती। मगर ज़िन्दगी को जिस रास्ते पर जाना होता है वो हाथ पकड़ कर आपको उस राह पर खींच लेती है, उनके साथ भी वही हुआ।
C H आत्मा एक बार छुट्टियों में अपनी मौसी के घर लाहौर गए हुए थे, वहाँ लोग उनकी गायकी से इतने प्रभावित हुए कि उन्हें एक स्टेज शो में सहगल साब के गाने गाने के लिए उन्हें बुलाया गया। उस शो के बाद और शोज़ मिलते गए और उनके ज़रिए उनकी लोकप्रियता लाहौर में बढ़ती ही गई, और इतनी बढ़ी कि HMV ने उनकी आवाज़ में एक गाना रिकॉर्ड किया। इस गीत को कंपोज़ किया था संगीतकार OP नैयर ने लिखा था उनकी पत्नी सरोज मोहिनी नैयर ने।
C H आत्मा का गाया वो गाना जिसने सालों तक फ़िल्मकारों को प्रेरित किया
आज तक ये गाना C H आत्मा का सबसे प्रसिद्ध गीत है। आपने भी ज़रुर सुना होगा, उसके बोल हैं “प्रीतम आन मिलो दुखिया जिया पुकारे प्रीतम आन मिलो” इसी गीत को बाद में फ़िल्म ‘मि एंड मिसेज़ 55’ में गीता दत्त ने गाया। फ़िल्म “अंगूर” में यही गाना सपन चक्रबर्ती ने गाया है, जो देवेन वर्मा पर फ़िल्माया गया है। फिल्म की सिचुएशन के हिसाब से उसे थोड़ा फनी वर्शन कह सकते हैं बोल भी थोड़े अलग हैं।
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मगर सोचने वाली बात ये है कि इस गाने का इम्पैक्ट कितना ज़्यादा रहा होगा कि सालों बाद भी फ़िल्म मेकर्स इससे इंस्पायर हुए। इंस्पायर तो उस वक़्त के फ़िल्ममेकर्स भी हुए C H आत्मा की डीप, रिफाइंड वॉइस से क्योंकि इस गाने के बाद उन्हें मिला फ़िल्मों में गाने का प्रस्ताव।
ये पार्टीशन के आस पास की बात है, जब उनका परिवार पुणे आकर बस गया था। घर में किसी को अंदाज़ा नहीं था कि उनका गाया गाना इतना लोकप्रिय हो गया है। उसी दौरान C H आत्मा हिमालयन एयरवेज में बतौर को-पाइलट नौकरी करने लगे थे और कोलकाता में थे। उधर मशहूर फ़िल्ममेकर दलसुख पंचोली भी विभाजन के बाद लाहौर छोड़कर मुंबई आकर बस गए थे।
दलसुख पंचोली ने जब ये गाना सुना “प्रीतम आन मिलो” तो इस गाने ने उन्हें इस क़दर छुआ कि उन्होंने इसके सिंगर की तलाश शुरू की और फिर C H आत्मा को ढूंढ कर मुंबई बुलाया गया। और इस तरह C H आत्मा को मिली उनकी पहली फ़िल्म “नगीना”। इसी दौरान उन्होंने अपना नाम आत्मा हशमतराय चैनानी से बदल कर C H आत्मा रख लिया। 1951 में आई नगीना फ़िल्म में हीरो नासिर ख़ान पर picturized तीन गाने C H आत्मा ने गाए थे।
“नगीना” वही फ़िल्म थी जिससे जुड़ा ये क़िस्सा बहुत मशहूर है कि जब फ़िल्म की हीरोइन नूतन थिएटर में अपनी ही फ़िल्म देखने गईं तो उन्हें एंट्री नहीं दी गई क्योंकि वो उस वक़्त सिर्फ़ 15 साल की थीं और फिल्म को A सर्टिफिकेट दिया गया था। लेकिन इस फ़िल्म में नूतन के अभिनय को बहुत सराहन मिली, उन्हें एक उभरता हुआ सितारा कहा गया।
1952 में आई फ़िल्म “आसमान” जो बतौर संगीतकार O P नैयर की पहली फिल्म थी। पंचोली प्रोडक्शंस की इस फ़िल्म में भी C H आत्मा ने तीन गाने गाए, गाने अच्छे थे मगर ये फ़िल्म शुरुआत से ही कुछ विवादों का हिस्सा रही, O P नैयर और लता मंगेशकर के बीच जो कोल्ड वॉर थी उसकी शुरुआत इसी फ़िल्म से हुई थी। वैसे भी “आसमान” फ़िल्म का फ़िल्म इतिहास में कोई बहुत बड़ा कंट्रीब्यूशन नहीं माना जाता, सिवाय इसके कि ये संगीतकार O P नैयर की पहली फ़िल्म थी और आशा पारेख ने इसमें बतौर बाल कलाकार काम किया था।
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C H आत्मा की अभिनय की पारी
1954 की पंचोली प्रोडक्शंस की फ़िल्म “भाईसाहब” में C H आत्मा बतौर हीरो नज़र आए। उन की पर्सनालिटी काफ़ी अच्छी थी, हैंडसम इंसान थे, गाते भी अच्छा थे, शायद इसीलिए दलसुख पंचोली ने उन्हें अभिनय का मौक़ा दिया। इस फ़िल्म में C H आत्मा ने 8 गाने गाये। इसके अलावा डी एन मधोक के निर्देशन में बनी 1954 में ही आई “बिल्वामंगल” में C H आत्मा सुरैया के साथ स्क्रीन शेयर करते नज़र आए, साथ ही 6 गाने भी गाये। मगर इन दोनों ही फ़िल्मों को कोई ख़ास कामयाबी हासिल नहीं हुई।
पर उनका एक रोल काफ़ी पसंद किया गया था, जो उन्होंने निभाया था व्ही शांताराम की 1964 में आई फ़िल्म “गीत गाया पत्थरों ने” में। इसमें उन्होंने दो गाने भी गाये थे एक गीत था “मंडवे तले गरीब के दो फूल खिल रहे हैं” और दूसरा था “इक पल जो मिला है तुझको”
पर C H आत्मा की अभिनय की पारी ज़्यादा उल्लेखनीय नहीं रही। अभिनय उनका मज़बूत पक्ष था भी नहीं गायन था मगर उसके बहुत ज़्यादा मौक़े उन्हें मिले नहीं। उसकी वजह वही थी उनका के एल सहगल वाला स्टाइल, हाँलाकि उन्होंने अपनी गायकी की अलग पहचान ज़रुर बनाई मगर 50s का दौर बदलाव का दौर था उस समय फ़िल्मी गीत-संगीत, अभिनय, पार्श्वगायन सब में तेज़ी से बदलाव आ रहा था। ऐसे में उनके जैसी गायकी के लिए शायद स्कोप नहीं था।
1954 की “महात्मा कबीर”, 1956 की “ढाके की मलमल”, और 1957 की “जहाज़ी लुटेरा” जैसी कुछ फ़िल्मों में उन्होंने गीत गाए। (जहाज़ी लुटेरा के बारे में कहा जाता है कि ये फ़िल्म संजय लीला भंसाली के पिता नवीन भंसाली का प्रोडक्शन थी जिसका पोस्टर उन्होंने अपनी फ़िल्म “गंगूबाई काठियावाड़ी” में भी दिखाया।) इन कुछ फ़िल्मों के बाद C H आत्मा धीरे-धीरे स्टेज शोज़ में बिजी हो गए जहाँ उन्हें अपने प्रशंसकों का बहुत प्यार मिला। क्योंकि उनकी आवाज़ में वो कशिश थी कि जो सुनता बस सुनता ही रह जाता।
C H आत्मा की गायकी की धूम विदेशों में ज़्यादा रही
C H आत्मा पहले भारतीय गायक थे जिन्होंने भारत से बाहर जाकर नैरोबी में शो किया। 1957 में हुआ उनका वो शो बहुत ही सक्सेसफुल रहा। उन्हें स्टेज शोज से काफ़ी प्रसिद्धी मिली, देश-विदेश में उनकी काफ़ी फ़ैन फॉलोइंग थी। जब वो स्टेज पर अपनी गहरी सोलफुल आवाज़ में गीत, ग़ज़ल और भजन गाते थे तो सुनने वाले बस मग्न हो जाते थे। 1975 में वो ऐसे ही लंदन के ट्रिप पर गए हुए थे जब उनकी तबीयत ख़राब हुई, वापस आकर भी कई महीने वो बीमार रहे और फिर 6 दिसम्बर 1975 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
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C H आत्मा के भाई चंद्रू आत्मा भी उनके नक़्शे क़दम पर चले
चंद्रू आत्मा, C H आत्मा के छोटे भाई थे और दोनों की उम्र में क़रीब 15 साल का अंतर था मगर दोनों की आवाज़ काफ़ी हद तक मिलती जुलती है। चंद्रू आत्मा का जन्म हुआ 17 सितम्बर 1938 को कराची में। जब C H आत्मा बम्बई आये तो वो भी अपने भाई के पास चले गए। वो अक्सर संगीत की महफ़िलों में, स्टेज शोज़ में अपने भाई के साथ जाते थे। उनकी दिलचस्पी देखकर C H आत्मा ने उन्हें संगीत सिखाया। और फिर वो भी निजी महफ़िलों और स्टेज पर गाने लगे।
उनका असल नाम तो चंद्रू हशमतराय चैनानी था मगर उनके भाई के नाम को देखते हुए लोगों ने उन्हें चंद्रू आत्मा कहना शुरु कर दिया। HMV और T – सीरीज़ ने चंद्रू आत्मा के गाए गीतों, ग़ज़लों और भजनों के कई रिकार्ड्स, कैसेट्स और CDs निकाले। उन्होंने भी 1977 की “भूमिका”, 1977 की ही “साहिब बहादुर”, 1978 की “प्रेम-बंधन”, 1982 की “कामचोर” और 1988 की “मारधाड़” जैसी कुछ फ़िल्मों के लिए गाने गाये। “प्रेम बंधन” में वो एक सीन में परदे पर भी दिखाई दिए।
चंद्रू आत्मा के फ़िल्मी गीतों की बात करें तो उनका सबसे मशहूर गीत फ़िल्म कामचोर का ही कहा जा सकता है – तुमसे बढ़कर दुनिया में न देखा कोई और ज़ुबाँ पर आज दिल की बात आ गई”। 12 अप्रैल 2009 को चंद्रू आत्मा भी इस दुनिया से रुख़सत हो गए।
इन दोनों भाइयों की आवाज़ ही इनकी ख़ासियत थी और वही एक तरह से उनकी कमी भी बन गई जो कभी के एल सहगल की छाया से बाहर नहीं निकल पाई। इसीलिए वो कामयाबी की उस बुलंदी को नहीं छू पाए जिसकी उम्मीद उन्होंने की थी। मगर कहीं न कहीं उन्होंने लोगों के दिलों पर अपनी छाप छोड़ी है तभी तो आज भी हम उन्हें याद कर रहे हैं। ये याद ही तो है जो लोगों के जाने के बाद उनकी अहमियत का एहसास कराती है।
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