महान गीतकार भरत व्यास ( 6 जनवरी 1918 – 4 जुलाई 1982 ) की पुण्यतिथि पर विशेष।
भरत व्यास का नाम उन कुछेक गीतकारों में शामिल किया जाता है जिन्होंने हिंदी फ़िल्मों में बहुत से यादगार और सुपरहिट गीत शुद्ध हिंदी में लिखे, ऐसे गीत जो आम लोगों की ज़बां तक पहुंचे और सालों साल दोहराए जाते रहे। कुछेक तो अमर रचनायें हैं, जैसे “संत ज्ञानेश्वर” का ये भजन – “ज्योत से ज्योत जलाते चलो प्रेम की गंगा बहाते चलो”, जो आमजन में आज तक लोकप्रिय है या “रानी रुपमती” फ़िल्म का ये सदाबहार दर्द भरा गीत -“आ लौट के आजा मेरे मीत तुझे मेरे गीत बुलाते हैं” या सालों साल स्कूल में गाई जाने वाली ये प्रार्थना, जो शायद आपने भी गाई हो –
ऐ मालिक तेरे बन्दे हम – दो आँखें बारह हाथ (1957) – लता मंगेशकर – वसंत देसाई – भरत व्यास
“दो आँखें बारह हाथ” फ़िल्म की ये प्रार्थना उस समय पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका जैसे देशों में बहुत लोकप्रिय हुई थी। कुछेक देशों के स्कूलों में तो इसे उसी तरह प्रेयर में गाया जाने लगा था जैसे अपने यहाँ गाई जाती रही। और इसकी वजह यही थी कि इसे किसी एक धर्म से नहीं जोड़ा जा सकता। इसकी सिचुएशन बताते हुए वी. शांताराम ने भी भरत व्यास को यही कहा था कि ये प्रार्थना फ़िल्म में कुछ क़ैदियों पर फिल्माई जानी थी जिनका ताल्लुक किसी भी जाति या धर्म से हो सकता है तो प्रार्थना भी ऐसी होनी चाहिए जिसे सब धर्मों के लोग गए सकें और भरत व्यास अगले ही दिन ये प्रार्थना लिख कर ले गए।
भरत व्यास का प्रारंभिक जीवन
मूल रूप से राजस्थान के चुरु के रहने वाले भरत व्यास फ़िल्म निर्देशक बनना चाहते थे पर क़िस्मत ने उन्हें बना दिया गीतकार। 6 जनवरी 1918 को राजस्थान के बीकानेर में जन्मे भरत व्यास के माता-पिता का देहांत उनके बचपन में ही हो गया था तो उनकी परवरिश उनके अंकल ने की थी। कुछ लोग ऐसा भी कहते हैं कि उन्हीं अंकल के रेस्टॉरेंट में वो काम भी किया करते थे। जब उस काम से उनका मन उकता जाता तो गीत लिखने लगते। इस तरह बचपन से ही वो तुकबंदी करने लगे थे, साथ ही नाटक भी लिखने लगे थे।
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करियर
बीकानेर से कॉमर्स विषय में इंटर करने के बाद भरत व्यास नौकरी की तलाश में कोलकाता चले गए, जहाँ वो रंगमंच पर काफ़ी सक्रिय रहे, अभिनय भी किया। राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें पहली कामयाबी तब मिली जब कोलकाता के प्राचीन अल्फ्रेड थिएटर से उनका नाटक रंगीला मारवाड़ दिखाया गया। इस सफलता से भरत व्यास को काफी प्रसिद्धि मिली और यहीं से उनके करियर की शुरुआत हुई और इस नाटक के बाद उन्होंने अपने लिखे कई और नाटकों के कामयाब शोज़ किये। लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भरत व्यास को कोलकाता छोड़ना पड़ा और कुछ समय के लिए वो बीकानेर में रहे थे। उसके बाद वो अपने एक साथी के ज़रिए अपनी किस्मत चमकाने सपनों की नगरी मुंबई पहुंच गए और वहां उन्होंने गीत के जरिए इतिहास बनाना शुरू कर दिया था।
फ़िल्मी सफ़र
मुंबई में भरत व्यास को पहला काम मिला गीत लिखने का, फिल्म थी 1943 में आई “दुहाई” जिसके सभी गाने उन्होंने लिखे थे। फिल्म कामयाब हुई और भरत व्यास के गीतों ने जिन फिल्ममेकर्स का ध्यान खींचा उनमें से एक थे 40 के दशक के मशहूर निर्माता निर्देशक W Z अहमद। उनकी टीम में कृष्ण चन्दर, जोश मलीहाबादी,अख़्तर-उल-ईमान और सागर निज़ामी जैसे उम्दा लेखक – गीतकार थे। ऐसे में ये भरत व्यास के लिए अच्छा मौक़ा था तो वो W Z अहमद के बुलावे पर शालीमार पिक्चर्स में काम करने के लिए पुणे चले गए।
शालीमार पिक्चर्स के साथ भरत व्यास की पहली फ़िल्म आई -“प्रेम संगीत” जिसके सभी 12 गाने उन्होंने ही लिखे थे। फिर 1944 की म्यूज़िकल हिट “मन की जीत” में उन्होंने दो गाने लिखे और एक गाना शांता ठक्कर के साथ उन्होंने गाया भी। फिर दो फिल्में और आईं “पृथ्वीराज शकुंतला” और “मीराबाई” इसी दौरान उन्होंने अपना सपना पूरा करने की कोशिश शुरु कर दी। W Z अहमद के सहयोग से भरत व्यास ने रंगीला राजस्थान नाम से एक फ़िल्म का निर्देशन करना शुरु किया, मगर इसी बीच देश का विभाजन हो गया और W Z अहमद पाकिस्तान चले गए, तब अपनी जमा पूँजी लगा के उन्होंने जैसे-तैसे फिल्म पूरी की और मुंबई चले आये।
मुंबई में संघर्ष का दौर
भरत व्यास मुंबई आ तो गए थे मगर वहाँ कोई जान-पहचान वाला नहीं था, इसलिए संघर्ष भी बहुत कड़ा रहा। उन्होंने 15 रूपए किराय पर एक खोली ली, लेकिन काम कुछ था नहीं। उस दौर में उन्होंने अपनी कविताओं की कुछ किताबें छपवाईं लेकिन वो बिकी नहीं। कवि सम्मेलनों में जाना हो जाता था मगर वहाँ से कुछ ज़्यादा इनकम नहीं हो पाती थी। कुल मिलाकर कहा जाए तो मुंबई में उनकी हालत बहुत ख़राब थी।
एक दिन भरत व्यास की खोली के नीचे एक बड़ी सी गाड़ी आकर खड़ी हो गई, ड्राइवर ऊपर आया और उन्हें कवि सम्मेलन का न्योता दिया। जब वक़्त ख़राब चल रहा हो तो एक हलकी सी किरण भी बड़ी उम्मीद दे देती है। यही भरत व्यास के साथ भी हुआ, उन्हें लगा कि अब उनकी किस्मत पलटने वाली है। वो तैयार होकर गाड़ी में बैठे और उस जगह पहुँच गए जहाँ कवि-सम्मलेन होना था। बड़ा रॉयल इंतज़ाम था उन्हें बहुत दाद मिली। कवि सम्मलेन ख़त्म होने के बाद चाय-नाश्ता हुआ फिर वो वाशरूम चले गए, बाहर आए तो वहाँ कोई नहीं था, न ही वो गाड़ी थी जिसने उन्हें वहाँ पहुँचाया था।
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भरत व्यास के पास वापस घर तक पहुँचने का किराया भी नहीं था। एक अठन्नी थी जिससे वो तांगे में बैठ कर आधे रास्ते तक पहुँचे और बाक़ी का आधा रास्ता उन्होंने पैदल चलकर पूरा किया और उसी रास्ते में उन्होंने ये कविता लिखी जो मुझे बहुत ही पसंद है, जिसे बाद में वी शांताराम ने अपनी फ़िल्म “नवरंग” में शामिल किया जिसे आवाज़ भी भारत व्यास ने ही दी थी।
कविता – “कविराजा”
कविराजा कविता के मत अब कान मरोड़ो धन्धे की कुछ बात करो कुछ पैसे जोड़ो शेर शायरी कविराजा न काम आयेगी कविता की पोथी को दीमक खा जायेगी भाव चढ़ रहे नाज हो रहा महंगा दिन दिन भूखे मरोगे रात कटेगी तारे गिन गिन इसी लिये कहता हूँ भैय्या ये सब छोड़ो धन्धे की कुछ बात करो कुछ पैसे जोड़ो अरे छोड़ो कलम, चलाओ मत कविता की चाकी घर की रोकड़ देखो कितने पैसे बाकी अरे कितना घर में घी है, कितना गरम मसाला कितने पापड़, बड़ी, मंगोड़ी, मिर्च-मसाला कितना तेल नून, मिरच, हल्दी और धनिया कविराजा चुपके से तुम बन जाओ बनिया अरे पैसे पर रच काव्य भूख पर गीत बनाओ अरे पैसे पर रच काव्य अरे पैसे पर रच काव्य भूख पर गीत बनाओ गेहूँ पर हो ग़ज़ल, धान के शेर सुनाओ नौन मिरच पर चौपाई, चावल पर दोहे सुगल कोयले पर कविता लिखो तो सोहे कम भाड़े की अरे कम भाड़े की खोली पर लिखो क़व्वाली झन-झन करती कहो रुबाई पैसे वाली शब्दों का जंजाल बड़ा लफ़ड़ा होता है शब्दों का जंजाल बड़ा लफ़ड़ा होता है कवि सम्मेलन दोस्त बड़ा झगड़ा होता है मुशायरों के शेरों पर रगड़ा होता है पैसे वाला शेर बड़ा तगड़ा होता है इसी लिये कहता हूँ मत इस से सर फोड़ो धन्धे की कुछ बात करो कुछ पैसे जोड़ो
फिल्मों में कामयाबी का दौर
भरत व्यास ने कुछ समय मद्रास में जैमिनी पिक्चर्स के साथ काम किया। जब एस एस वासन ने 1948 की फ़िल्म “चंद्रलेखा” का हिंदी वर्जन बनाया तो उसमें प० इंद्र के साथ उन्होंने भी उस फ़िल्म में गाने लिखे। लेकिन भरत व्यास का बेहतरीन वक़्त 50s से शुरू हुआ और क़रीब दो दशकों तक उनके लिखे गीत लोगों की ज़बान पर थिरकते रहे।
संगीतकार एस एन त्रिपाठी के साथ भरत व्यास ने काफ़ी काम किया। एस एन त्रिपाठी को शास्त्रीय संगीत की बहुत समझ थी और भरत व्यास उनकी धुनों के साथ इन्साफ कर पाते थे। “जय जगत जननी”, “कवि कालिदास”, “महासती अनुसूया”, “रानी रूपमती” और “जनम-जनम के फेरे” जैसी फिल्मेों के गीत इसी जोड़ी की देन हैं।
कहते हैं “जनम-जनम के फेरे” फिल्म का ये गाना “ज़रा सामने तो आओ छलिए” भरत व्यास ने अपने बिछड़े हुए बेटे की याद में लिखा था। उनके बेटे श्याम सुन्दर व्यास किसी बात पर नाराज़ होकर घर छोड़कर चले गए थे, उन्हें बहुत ढूंढा गया, इश्तिहार भी दिए मगर उनका कुछ पता नहीं चला।
उन दिनों भरत व्यास बहुत दुखी थे जब डायरेक्टर ने फ़िल्म की इस सिचुएशन पर गाना लिखने को कहा तो उस समय वो इतने दुखी थे कि उन्होंने साफ़ इंकार कर दिया था। मगर तब उनके छोटे भाई ‘बी एम व्यास’ जो एक अभिनेता थे और उन्होंने इस फ़िल्म में भी अभिनय किया था, उन्होंने भरत व्यास को समझाया, तब जाकर वो गाना लिखने पर तैयार हुए। दिल की आवाज़ थी इसीलिए हज़ारों दिलों तक पहुंची और उनके ऐसे दर्द भरे गाने अपने दौर में सुपर डुपर हिट हुए।
भरत व्यास ने सामाजिक, धार्मिक, ऐतिहासिक सभी तरह की फ़िल्मों के गीत लिखे लेकिन 60s तक आते आते वो जैसे टाइपकास्ट हो गए या कहें कि इंडस्ट्री ने उन्हें एक तरह की फिल्मों के दायरे में क़ैद कर दिया। लेकिन एक दायरे में रहते हुए भी उन्होंने कमाल के गीत लिखे, ऐसे गाने जो क्लासिक की श्रेणी में आते हैं।
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हाँलाकि भरत व्यास ने कई गानों में उर्दू अलफ़ाज़ का भी इस्तेमाल किया पर हिंदी के गीत उनकी पहचान बन गए। ‘हमारा घर’, ‘राजमुकुट’, ‘नखरे’, “श्री चैतन्य महाप्रभु”, “जगतगुरु शंकराचार्य”, “फैशन”, “तूफ़ान और दिया”, “परिणीता”, “रानी रूपमाती”, “नवरंग”, “स्वर्ण-सुंदरी”, “गूँज उठी शहनाई”, “बूँद जो बन गई मोती” और “संत ज्ञानेश्वर” जैसी फ़िल्मों के गाने भला कौन भूल सकता है! उनके लिखे गानों की फ़ेहरिस्त पोस्ट के आख़िर में दी गई है।
4 जुलाई 1982 को भरत व्यास इस दुनिया को अलविदा कह गए। उस समय वो रामायण को कविता के रूप में पेश करने की योजना पर काम कर रहे थे और दो राजस्थानी फ़िल्मों का निर्देशन भी कर रहे थे, पर वक़्त ने साथ नहीं दिया और एक उम्दा गीतकार इस दुनिया से विदा हो गया और पीछे छोड़ गया अपने लिखे गीतों की सौग़ात जिन्हें भुलाना नामुमकिन है।
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भरत व्यास के कुछ मशहूर गीत
- ये कहानी है दिए की और तूफ़ान की – तूफ़ान और दिया (1956) – मन्ना डे – वसंत देसाई – भरत व्यास – राजकमल कलामंदिर
- ऐ मालिक तेरे बन्दे हम – दो आँखें बारह हाथ (1957) – लता मंगेशकर- वसंत देसाई – भरत व्यास – राजकमल कलामंदिर
- ज़रा सामने तो आओ छलिए – जनम जनम के फेरे (1957) – लता मंगेशकर, मौ रफ़ी – एस एन त्रिपाठी – भारत व्यास
- चाहे पास हो चाहे दूर हो – सम्राट चन्द्रगुप्त (1957) – लता मंगेशकर, मौ रफ़ी – कल्याणजी आनंदजी – भरत व्यास
- टिम टिम टिम – मौसी (1958) – तलत महमूद, लता मंगेशकर – वसंत देसाई – भरत व्यास
- अँखियाँ भूल गई हैं सोना – गूँज उठी शहनाई (1959) – गीता दत्त – वसंत देसाई – भरत व्यास – विजय भट्ट
- तेरे सुर और मेरे गीत – गूँज उठी शहनाई (1959) – लता मंगेशकर – वसंत देसाई – भरत व्यास-
- तू छुपी है कहाँ – नवरंग (1959) – आशा भोसले, मन्ना डे – सी रामचंद्र – भरत व्यास – राजकमल कलामंदिर
- आ लौट के आजा मेरे – रानी रुपमती (1959) – मुकेश – एस एन त्रिपाठी – भरत व्यास
- मैं यहाँ तू कहाँ – बेदर्द ज़माना क्या जाने (1959) – लता मंगेशकर – कल्याणजी आनंदजी – भरत व्यास
- सारंगा तेरी याद में – सारंगा (1960) – मुकेश – सरदार मलिक – भरत व्यास
- हाँ दिवाना हूँ मैं – सारंगा (1960) – मुकेश – सरदार मलिक – भरत व्यास
- सावन के झूले पड़े सैंयाजी तुम कैसे – प्यार की प्यास (1961) – लता मंगेशकर- वसंत देसाई – भरत व्यास
- तुम गगन के चन्द्रमा हो – सती-सावित्री (1964) – लता मंगेशकर – लक्ष्मीकांत प्यारेलाल – भरत व्यास
- जीवन डोर तुम्हीं संग लागी – सती सावित्री (1964) – लता मंगेशकर – लक्ष्मीकांत प्यारेलाल – भरत व्यास
- जोत से जोत जलाते चलो – संत ज्ञानेश्वर (1964) – लता मंगेशकर – लक्ष्मीकांत प्यारेलाल – भरत व्यास
- ये कौन चित्रकार है – बूँद जो बन गई मोती (1967) – मुकेश – सतीश भाटिया – भरत व्यास – व्ही शांताराम
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