आशा भोसले हिंदी सिनेमा की वो खनकती आवाज़ जो अगर आपको थिरकने पर मजबूर करती है तो आपकी तन्हाइयों को मायने भी देती है। जो आपको भावुक कर सकती है तो चेहरे पर हँसी भी खिला सकती है, जिसमें मादकता है, चंचलता है और गंभीरता भी, रोमान्स है, ममता है और भक्ति भी। उनकी आवाज़ में आज भी युवाओं वाली ताज़गी और कशिश है। आशा भोसले हिंदी सिनेमा में अपना एक अलग मुक़ाम रखने वाली versatile singer हैं।
आशा भोसले ने 4 साल की उम्र से संगीत सीखना शुरू कर दिया था
आशा भोसले का जन्म 8 सितम्बर 1933 में महाराष्ट्र के सांगली में हुआ। उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर क्लासिकल सिंगर और थिएटर एक्टर थे और उनके पहले गुरु भी, जिनसे आशाजी ने 4-5 साल की उम्र से ही गाना सीखना शुरू कर दिया था। आशा जी बचपन में अपनी बड़ी बहन लता मंगेशकर के साथ परछाईं की तरह रहती थीं और अक्सर उनके साथ स्कूल भी चली जाया करती थीं। पर एक दिन टीचर ने दोनों बहनो को डाँट कर घर वापस भेज दिया। इस पर उनके पिता ने फ़ैसला किया कि वो अपने बच्चों को पढाने का इंतज़ाम घर पर ही करेंगे और इस तरह उनकी स्कूल की पढाई नहीं हो पाई।
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आशा भोसले के घर में शास्त्रीय संगीत का माहौल था लेकिन आशा जी बचपन से ही इंग्लिश फ़िल्म्स और वेस्टर्न म्यूज़िक भी सुनती थी और फिर उन गानों को गाने की कोशिश भी किया करती थीं। आगे जाकर इसी शौक़ ने उनका अपना एक अलग स्टाइल बनाने में उनकी मदद की। आशा भोसले जब 9 साल की थी तभी उनके पिता का स्वर्गवास हो गया और पूरा परिवार मुम्बई आ गया। मुम्बई आकर लता मंगेशकर और आशा भोसले ने परिवार की ज़िम्मेदारी उठाने के लिए फिल्मों में गाना शुरू कर दिया।
16 साल की उम्र में 31 साल के आदमी से शादी
आशा भोसले ने अपना पहला गाना 1943 में एक मराठी फिल्म के लिए गाया और 1947 से वो हिंदी फिल्मों के लिए भी गाने लगीं। वो तब 16 साल की थीं जब प्यार ने उनकी ज़िन्दगी में दस्तक दी। उन्होंने परिवार की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ 31 साल के गणपतराव भोसले से शादी कर ली। इस शादी से न सिर्फ परिवार से नाता टूटा बल्कि दो बहनों का क़रीबी रिश्ता भी ऐसी नाराज़गी से गुज़रा कि एक ही इंडस्ट्री में काम करते हुए भी लंबे अरसे तक उनकी अपनी बड़ी बहन लता मंगेशकर से बात नहीं हुई। तीन बच्चों की पैदाइश के साथ ये प्रेम-विवाह भी टूट गया।
आशा भोसले को अपने बच्चों की परवरिश के लिए काम करना था। ये वो वक़्त था जब लता मंगेशकर अपनी जगह बना चुकी थीं, गीता दत्त और शमशाद बेगम जैसी गायिकाएँ पहले से स्थापित थी। ऐसे में आशाजी के हिस्से में वो ही गाने आते जिन्हें ये गायिकाएँ ठुकरा देतीं या फिर साइड हीरोइन और खलनायिका पर फिल्माए जाने वाले गाने। पर आशा जी ने कभी इंकार नहीं किया और हर तरह के गाने पूरी मेहनत से गाती रहीं। हाँलाकि उनकी और लता जी की तुलना भी लगातार होती रही पर धीरे-धीरे आशाजी ने अपना एक अलग स्टाइल बनाया और खुद को एक वर्सटाइल सिंगर के रूप में स्थापित किया।
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Rise To Fame
शुरुआती दौर की फिल्मों में आशा भोसले को एक आध गाना गाने का ही मौक़ा मिलता था या साइड हेरोइन के लिए फिर उन्हें बिमल रॉय की “परिणीता” और राज कपूर की “बूट पॉलिश” में गाने का मौक़ा मिला। लेकिन असल पहचान और कामयाबी मिली B R चोपड़ा की “नया दौर” से, ये पहली फिल्म थी जिसमें हेरोइन पर फ़िल्माए सभी गाने उन्होंने गाये। “नया दौर” के संगीतकार थे ओ पी नैयर, उन्होंने आशाजी के स्टाइल और हुनर को पहचाना और उनका आत्मविश्वास बढ़ाया। ओ पी नैयर के संगीत निर्देशन में आशाजी की एक अलग पहचान बनी और फिर कभी उन्हें पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ा।
यूँ तो आशा भोसले ने लगभग हर संगीतकार के साथ काम किया पर S D बर्मन, रवि, ख़ैय्याम, R D बर्मन के साथ आशाजी की गायकी का हर पहलू निखर कर सामने आया। S D Burman ने उनसे अपने स्टाइल के हलके फुल्के duets और लोकगीत गवाये वहीं रवि के संगीत निर्देशन में उन्हें भजन गाने का मौक़ा भी मिला। 1966 में जब R D बर्मन के साथ “तीसरी मंज़िल” के गाने गाये तो लोगों ने जाना कि उनकी रेंज कहाँ तक है। R D बर्मनके साथ उन्होंने कैबरे, रॉक, डिस्को, क्लासिकल और सॉफ्ट रोमेंटिक गाने भी गाये लेकिन उन पर कैबरे सिंगर का लेबल लगा दिया गया।
लेकिन जब-जब उन्हें किसी इमेज में क़ैद किया गया तब-तब उन्होंने उस इमेज को तोड़ कर कुछ ऐसा कर दिखाया जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। 1981 में आयी फ़िल्म “उमरावजान” में ग़ज़लें गाकर उन्होंने किसी का मुँह बंद कर दिया। बहुत कम ऐसे फ़नकार हुए हैं जिन्होंने पीढ़ियों के साथ काम किया हो आशा भोसले उनमें से एक हैं। जहाँ उन्होंने शोभना समर्थ के लिए आवाज़ दी वहीं उनकी बेटी नूतन और तनूजा के लिए गाया फिर तनूजा की बेटी काजोल के लिए भी गाया, जहाँ उन्हें हेलेन की आवाज़ कहा गया वहीं हर दौर की मुख्य अभिनेत्रियों को भी उन्होंने अपनी आवाज़ दी।
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एक वक़्त आया जब लोगों ने ये कहना शुरू कर दिया था कि आशा भोसले का वक़्त गया। ठीक उसी समय A R रहमान के संगीत निर्देशन में “रंगीला” के sensual गाने गाकर उन्होंने साबित कर दिया कि 62 साल की उम्र में भी वो 20 साल की लड़कियों के लिए गाने गा सकती हैं। A R रहमान के साथ उन्होंने “तक्षक”, “लगान”, “ताल”, “दौड़”, और “मीनाक्षी” जैसी फ़िल्मों के बेहतरीन गाने गाये। A R रहमान के अलावा भी उन्होंने नए दौर के कई म्यूज़िक डायरेक्टर्स के साथ काम किया।
Awards And Honors
आशा भोसले ने क़रीब 20 भारतीय और विदेशी भाषाओं में लगभग 13,000 गाने गाये हैं। फ़िल्मी गीतों के अलावा आशाजी के कई प्राइवेट एलबम्स भी आये हैं उनमें से कुछ काफ़ी मशहूर हुए हैं। 90 के दशक में उन्होंने R D बर्मन के गानों का रीमिक्स वर्ज़न निकाला – “RAHUL AND I”, इसके बाद लेज़ली लुइस के साथ एक इंडीपॉप एल्बम भी काफ़ी मक़बूल रहा। पाकिस्तानी गायक अदनान सामी के मशहूर एल्बम “कभी तो नज़र मिलाओ” के टाइटल ट्रेक में भी उन्होंने आवाज़ दी। इनके अलावा उन की गाई ग़ज़लों के कई एल्बम आये।
2002 में आये म्यूज़िक विडियो से आशा भोसले कंपोज़र भी बन गयी और 2013 की फिल्म “माई” में वो अभिनय करती नज़र आईं। म्यूज़िक कॉन्सर्ट तो वो 80-90 के दशक से करती आ रही हैं। अंतर्राष्ट्रीय आर्टिस्ट BOY GEORGE, MICHAEL STIPE और CODE RED बैंड के साथ भी उन्होंने गाया है। Nightingale Of Asia, क्वीन ऑफ़ इंडीपॉप के नाम से मशहूर आशा भोसले का नाम 2011 में सबसे ज़्यादा गाने रिकॉर्ड करने वाली गायिका के रूप में Guinness Book of World Record में शामिल हो चुका है। वो पहली भारतीय गायिका हैं जिनका नाम “ग्रैमी अवार्ड ” के लिए नॉमिनेट हुआ।
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साल 2000 में दादा साहब फालके अवार्ड से सम्मानित आशा भोसले को 2008 में पदम विभूषण से सम्मानित किया गया। उमरावजान और इजाज़त के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायिका के राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाज़ा गया। “दस लाख “, “शिकार “, “कारवाँ “, “हरे रामा हरे कृष्णा “, “नैना “,”प्राण जाए पर वचन न जाए ” और “डॉन ” के लिए उन्हें फ़िल्मफ़ेयर का सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायिका का अवार्ड दिया गया। 1979 के बाद उन्होंने नम्रता से अवार्ड लेना बंद कर दिया ताकि नए सिंगर्स को मौक़ा मिले, इसके बाद भी रंगीला के लिए उन्हें फ़िल्मफ़ेयर का स्पेशल अवार्ड दिया गया।
2001 में फ़िल्मफ़ेयर का लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड, 2002 में IIFFA अवार्ड के अलावा ढेर सारे अवार्ड्स और उपाधियाँ हैं उनके नाम। 2005 में उन्हें ‘Most Stylish People In Music’ माना गया। खाना बनाने का शौक़ रखने वाली आशाजी के दुबई कुवैत, अबुधाबी और दोहा में कई रेस्टोरेंट्स है। साथ ही वो music concerts में व्यस्त रहती हैं।
आशा भोसले की निजी ज़िन्दगी बेहद उतार चढाव भरी रही है। पहली असफल शादी के बाद उन्होंने अपना पूरा ध्यान अपने बच्चों की परवरिश और संगीत में लगाया। 1980 में उन्होंने R D बर्मन से शादी की, पर 1994 में R D बर्मन की मौत के बाद वो फिर से अकेली रह गयीं। बेटी की आत्महत्या और फिर बड़े बेटे की कैंसर के कारण मृत्यु का सदमा भी उन्होंने बर्दाश्त किया पर वो कभी कमज़ोर नहीं पड़ीं। ज़िंदादिल, हँसमुख और स्वाभिमानी आशा भोसले अपने नाम की ही तरह आशावान रही हैं।
मेहनत के साथ-साथ चुनोतियों को स्वीकार करना और वक़्त के साथ खुद को बदलते रहना ही आशा जी कामयाबी का राज़ है। लिविंग legend बन चुकी आशा भोसले की आवाज़ और अंदाज़ को लोग सदियों तक याद रखेंगे। जब कभी हिंदी सिनेमा की गायिकाओं की बात होगी तो versatile singer के रूप में सिर्फ एक ही नाम उभर कर आएगा – the one and only Timeless आशा भोसले।
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