स्नेहल भाटकर

स्नेहल भाटकर भले ही जीवन में कोई शाहकार न रच पाए मगर उनका एक गाना काफ़ी है उनकी यादगार के लिए।

हर फ़नकार यही चाहता है कि उसे एक मौक़ा ऐसा मिले जिसमें वो एक शाहकार रच सके। यही चाहत थी संगीतकार स्नेहल भाटकर की, मगर उन्हें ऐसा कोई बड़ा मौक़ा नहीं मिल पाया। वो ऐसे अकेले फनकार नहीं थे जिनकी ज़िन्दगी एक महत्वपूर्ण मौक़े की तलाश में गुज़र गई मगर ऐसा मौक़ा नहीं मिला। स्नेहल भाटकर का नाम आते ही ज़हन में एक ही गाना उभरता है जो मुबारक बेगम का भी सबसे मशहूर गाना है “कभी तन्हाइयों में यूँ हमारी याद आएगी”

ये गाना है फ़िल्म “हमारी याद आएगी” का, जिसमें तनुजा ने अभिनय किया था और फिल्म का निर्माण निर्देशन किया था किदार शर्मा ने। जिन्होंने पहली बार स्नेहल भाटकर को संगीत देने का मौक़ा दिया था। स्नेहल भाटकर की सबसे ज़्यादा फ़िल्में किदार शर्मा के साथ ही आई। इससे पहले वो HMV के साथ काम करते थे मगर वहाँ काम करते हुए वो किसी और के साथ काम नहीं कर सकते थे इसलिए उन्हें अपने असली नाम वासुदेव भाटकर को बदलना पड़ा। उन्होंने बी वासुदेव नाम से संगीत दिया मगर फ़िल्मी परदे पर उनका नाम स्नेहल भाटकर ही रहा।

स्नेहल भाटकर

स्नेहल भाटकर का शुरुआती जीवन

स्नेहल भाटकर का जन्म 17 जुलाई 1919 को मुंबई में हुआ। उन का असली नाम था “वासुदेव गंगाराम भाटकर”। उनकी माँ एक टीचर और गायिका थीं वो अक्सर हारमोनियम पर भजन गाया करती थीं। अपनी माँ से ही उन्होंने संगीत की बारीक़ियाँ सीखीं और बचपन में ही तय कर लिया कि वो एक संगीतकार बनेंगे। उन्होंने हारमोनियम सीखा और थोड़ा बड़े होने पर एक भजन मंडली  बनाई जो अपने इलाक़े में भजन गाया करती थी।

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1939 में स्नेहल भाटकर HMV के संगीत विभाग से जुड़ गए और वहाँ क़रीब 10 साल काम किया। इस दौरान वो बहुत से संगीतकारों से मिले और उनसे बहुत कुछ सीखा। उनके फ़िल्मी सफर की शुरुआत तो हुई थी बतौर गायक, जब जी ए चिश्ती ने उनकी गायन प्रतिभा से प्रभावित होकर उनसे फ़िल्म “कलियाँ” में गीत गवाए। लेकिन बतौर संगीतकार उन्हें पहला मौक़ा दिया किदार शर्मा ने।

संगीतकार के रूप में पहली फ़िल्म

फ़िल्म में संगीत देने के लिए उन्हें 10,000 रुपए ऑफर किए, लेकिन ये बात किसी तरह HMV के ऑफ़िस तक पहुँच गई और उन्हें साफ़ कह दिया गया कि वो इस तरह कॉन्ट्रैक्ट का उलन्घन नहीं कर सकते। तब किदार शर्मा ने इसका तोड़ निकाला और उनके नाम से भाटकर का बी लिया और वासुदेव साथ में जोड़कर फ़िल्म के क्रेडिट्स में नाम दिया बी वासुदेव।

1947 में आई “नीलकमल” असल में रणजीत मूवीटोन का प्रोडक्शन थी जिसका नाम रखा गया था “बेचारा भगवान” उस समय फिल्म में मुख्य भूमिकाओं में थे जयराज और कमला चटर्जी जो किदार शर्मा की पत्नी कमला चटर्जी भी थीं, लेकिन इसी दौरान अचानक कमला चटर्जी की मौत हो गई और जब महीनों बाद किदार शर्मा इस सदमे से उबरे तब दोबारा फ़िल्म पर काम शुरु हुआ।

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अबकी बार उन्होंने नई लड़की मधुबाला को हेरोइन लिया। लेकिन तब हीरो जयराज पीछे हट गए, इस पर किदार शर्मा ने अपने साथ काम कर रहे नए लड़के राजकपूर को बतौर हीरो साइन कर लिया। लेकिन इस बात को लेकर बड़ा बवाल हो गया और फाइनेंसर्स ने नए कलाकारों पर पैसा लगाने से इंकार कर दिया। तब किदार शर्मा ने अपना प्लाट बेचा और अपने पैसे से ये फ़िल्म पूरी की। इस फिल्म का निर्माण और निर्देशन उन्होंने ही किया।

स्नेहल भाटकर

“नीलकमल” फिल्म तो बहुत कामयाब नहीं हुई मगर इसके कुछ गाने उस वक़्त मशहूर हुए थे। इस फ़िल्म के क्रेडिट्स में स्नेहल भाटकर का नाम बी वासुदेव दिया गया था।इसी नाम से उन्होंने एक और फ़िल्म में भी संगीत दिया। “नीलकमल” के बाद स्नेहल भाटकर ने 1948 की सुहागरात, संत तुकाराम, 1949 की सती अहिल्या और ठेस जैसी फिल्में कीं। इनमें ठेस के गाने काफ़ी मक़बूल हुए।

वासुदेव गंगाराम भाटकर कैसे बने स्नेहल भाटकर

स्नेहल भाटकर ने तीन फ़िल्मों में V G भाटकर के नाम से, और तीन फ़िल्मों में स्नेहल नाम से भी संगीत दिया। स्नेहल नाम आया उनकी बेटी स्नेहलता के नाम से। स्नेहल के साथ अपना सरनेम जोड़ने के वो बने स्नेहल भाटकर, जिससे वो मशहूर हुए। स्नेहल भाटकर नाम से उनकी पहली फ़िल्म आई 1950 में “हमारी बेटी”, जिसे शोभना समर्थ ने अपनी बेटी नूतन को लांच करने के लिए बनाया था। इसके बाद उन्होंने स्नेहल भाटकर नाम को पूरी तरह अपना लिया।

फ़िल्म “हमारी बेटी” में नूतन ने एक गाना भी गाया था। इसके बाद के दौर में पगले(50), भोला शंकर (51), नंदकिशोर(51), गुनाह(53), आज की बात(55), बिंदिया(55), डाकू(55) जैसी फ़िल्में आईं मगर इनमें सबसे कामयाब रही 1956 में आई “दिवाली की रात”, जिसमें महेंद्र कपूर ने अपना पहला सोलो सांग गाया “तेरे दर की भीख मांगी है दाता”। जब किदार शर्मा चिल्ड्रन्स फ़िल्म सोसाइटी के लिए फिल्में बनाने लगे तो उनमें भी संगीत स्नेहल भाटकर ने ही दिया। जलदीप, हरिया, स्काउट कैंप जैसी फ़िल्मों में संगीत का बहुत ज़्यादा स्कोप नहीं था।

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एक बार फिर स्नेहल भाटकर का संगीत सुनाई दिया हिंदी फ़िल्म “छबीली” में, ये फ़िल्म शोभना समर्थ ने अपनी छोटी बेटी तनूजा को लांच करने के लिए बनाई थी। इसके भी कुछ गाने बहुत प्यारे हैं जैसे “लहरों पे लहर” और “ऐ मेरे हमसफ़र ले रोक अपनी नज़र”, मगर जिस गीत और फिल्म के लिए स्नेहल भाटकर को सबसे ज़्यादा याद किया जाता है वो है किदार शर्मा की “हमारी याद आएगी” का ये नग़मा – ” कभी तन्हाइयों में यूँ हमारी याद आएगी”, जिसे मुबारक बेगम ने गाया था।

स्नेहल भाटकर

इसके बाद आई “फ़रियाद” के भी कुछ गीत बहुत अच्छे थे मशहूर भी हुए पर स्नेहल भटकर हमेशा हाशिए पर ही रहे। उनके संगीत से सजी कई मराठी फिल्में भी आईं मगर एक संगीतमय अतुलनीय शाहकार देने की उनकी इच्छा पूरी नहीं हो सकी। बाद के दौर में हिंदी फ़िल्म संगीत का स्वरुप काफ़ी हद तक बदल चुका था, उसके अनुसार स्नेहल भाटकर ख़ुद को बदल नहीं पाए पर वो मराठी सिनेमा में सक्रिय रहे।

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स्नेहल भाटकर ने 25 फ़िल्मों में 170 से ज़्यादा गाने कंपोज़ किए। 2004 में उन्हें लता मंगेशकर अवॉर्ड से नवाज़ा गया पर उसके अलावा वो संगीत प्रेमियों के लिए गुमनाम ही रहे और 29 मई 2007 को गुमनामी में ही इस दुनिया से चले गए। भले ही स्नेहल भाटकर कोई संगीत प्रधान फ़िल्म न दे पाए हों मगर उनकी बनाई यादगार धुनों के कारण उनका नाम हमेशा फ़िल्म संगीत के आकाश पर चमकता रहेगा।