वर्मा मलिक

वर्मा मलिक – फ़िल्मों में यादगार गीत लिखने वाले गीतकार की सौवीं जयंती पर विशेष

जब-जब शादियों में बैंड पर ये गाना बजता है “आज मेरे यार की शादी है” तो शायद ही कोई इस फ़िल्म या इस गाने से जुड़े लोगों को याद करता होगा! लेकिन इतना मशहूर, यादगार, लोकप्रिय गीत जिस गीतकार ने लिखा वो ही थे  वर्मा मलिक। जिन्होंने ऐसे गाने लिखे जो हमारी ज़िंदगी का हिस्सा बन गए। उन्होंने कई ऐसे कालजयी गीत दिए हैं जो सालों साल हम सब ने गुनगुनाएँ हैं। 1925 में जन्म हुआ था वर्मा मलिक का, ये उनकी 100 वीं जयंती है।

वर्मा मलिक हिट गीतों के उपेक्षित गीतकार

वर्मा मलिक वो गीतकार थे जो 70-80 के दशक में इतने व्यस्त रहते थे कि एक दिन में उनकी तीन तीन सिटिंग्स होती थीं। शादी का ये गाना तो उनके बेटे और रिश्ते के पोते की शादी में भी बजा था। ख़ुद वर्मा मलिक की शादी में भी उन्हीं का लिखा गीत “मेरा मुंडा मोह लिया तमीज़ों वाला सक मल के” बैंड पर बज रहा था जो पंजाबी फ़िल्म छाई से था।

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इतने मशहूर गीत लिखने के बावजूद बड़े बैनर्स आमतौर पर वर्मा मलिक से दूर ही रहे। लेकिन उन्होंने भी इस बात की परवाह नहीं की। वो बस अपना काम करते रहे और जो भी गीत लिखे उनमें जान डाल दी। अगर उनके गीतों पर ग़ौर करेंगे तो एक से बढ़कर एक नगीने मिलेंगे।

वर्मा मलिक ने गुरुद्वारे के लिए पहली बार कविता लिखी

वर्मा मलिक का जन्म 13 अप्रैल 1925 को फ़िरोज़पुर में हुआ था जो अब पाकिस्तान में है। वर्मा मलिक ने उर्दू और ज्ञानी पढ़ी थी पर कभी भी लेखक बनने का ख़्याल नहीं आया था। मगर गुरूद्वारे के फ़ंक्शन में लोगों को कविता पढ़ते देखकर उन्हें एहसास हुआ कि कविता तो वो भी कर सकते हैं। फिर उन्होंने किसी जानने वाले से अपना ये ख़्याल बाँटा, लेकिन उस इंसान ने उन्हें हतोत्साहित किया। पर वो निराश नहीं हुए और जैसा लिख सकते थे लिखा और फिर जब गुरूद्वारे में सबके बीच सुनाया तो बहुत वाह-वाही मिली और यहीं से उनका हौसला बढ़ा।

उस दौर में वो पंजाबी में ही लिखा करते थे, फिर धीरे-धीरे कविता लिखने के साथ-साथ वो गाने भी लगे। जिस समय देश में आज़ादी की लहर चल रही थी, उन्होंने अपनी लेखनी से, अपने गीतों से जन-जन में देशभक्ति की भावना जगाने का काम किया। जिसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा मगर उम्र कम होने के कारण जल्दी छूट गए। फ़िरोज़पुर में वर्मा मलिक का परिवार ख़ानदानी रईस था, पर जब देश का बँटवारा हुआ तो दंगों में किसी तरह जान बचाकर उनका परिवार दिल्ली आ गया।

वर्मा मलिक का असली नाम था बरकत राय

फ़िरोज़पुर में करोड़ों की जायदाद के मालिक यहाँ आकर रेफ्यूजी हो गए थे, तो रोज़ी रोटी की तलाश शुरु हुई। फिर मुलाक़ात हुई हंसराज बहल से जो वर्मा मालिक के भाई के दोस्त थे,और बॉम्बे फ़िल्म इंडस्ट्री में बतौर संगीतकार काम कर रहे थे, फिर वो ही वर्मा मलिक को बम्बई लेकर आए। 1949 की फ़िल्म “चकोरी” में हंसराज बहल ने उनसे पहली बार गाने लिखवाए। “चकोरी” फिल्म के मुख्य गीतकार थे मुल्कराज भाखड़ी, पर कुछ गाने वर्मा मलिक ने लिखे थे।

वर्मा मलिक

वर्मा मलिक का असली नाम था, बरकतराय मलिक, लेकिन फ़िल्मों के लिए ये नाम कुछ ठीक नहीं लग रहा था तो हंसराज बहल की सलाह पर उन्होंने अपना स्क्रीन नेम बदल कर वर्मा मलिक रख लिया। “चकोरी” में उन्होंने इसी नाम से गीत लिखे। आमतौर पर माना जाता है कि चकोरी में “हाय चंदा गए परदेस” गीत वर्मा मलिक ने लिखा है। लेकिन रिकॉर्ड पर नाम मुल्कराज भाखड़ी का मिलता है। चकोरी के जो गीत वर्मा मलिक ने लिखे वो हैं –  “इक दुखिया जवानी की है”, और “क्यों गरम सर्द होते हो”।

पंजाबी फ़िल्मों के कामयाब गीतकार होने के बावजूद कई साल कोई काम नहीं मिला

“चकोरी” के बाद  वर्मा मलिक ने पंजाबी फ़िल्म “लच्छी” में हंसराज बहल के लिए गीत लिखे, इस फिल्म के सभी गीत सुपरहिट हुए और फिर “पोस्ती”, “छाई”, “कोड़े शाह”, “भांगड़ा”, “दो लछियाँ” जैसी कई हिट पंजाबी फ़िल्मों के गीत लिखकर वर्मा मलिक पंजाबी फिल्मों के हिट गीतकारों में शामिल हो गए। उस दौर की पंजाबी फ़िल्मों में उन्होंने बेहतरीन और यादगार गीत लिखे। 1957 की “मिर्ज़ा सहिबां” जिसका निर्माण संगीतकार सरदुल क्वात्रा ने किया था उसमें प्रेम धवन के साथ-साथ वर्मा मलिक ने भी गीत लिखे थे।

वर्मा मलिक

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लेकिन एक वक़्त आया जब बम्बई में पंजाबी फ़िल्मों का दौर लगभग ख़त्म हो गया, उस समय वर्मा मलिक के पास कोई काम नहीं था। उनकी शादी हो चुकी थी बच्चे भी थे ऐसे में घर चलाने के लिए उन्हें कुछ न कुछ तो करना था। तो उन्होंने बहुत हाथ पैर मारे, कपड़ों का काम भी शुरु किया मगर हालात ख़राब होते गए और घर के बर्तन तक बिकने की नौबत आ गई।

एक लेखक की कितनी एहमियत होती है ये हम सब जानते हैं खुद वर्मा मलिक इस बात को मानते थे कि इंडस्ट्री में राइटर की कोई क़द्र नहीं होती। उस वक़्त तो वो सिर्फ काम करना चाहते थे, जो उन्हें नहीं मिल रहा था। 1961 से 7 साल तक वो फ़िल्मी पटल से ग़ायब रहे। फिर 1968 में आई फ़िल्म “दिल और मोहब्बत” में उनका लिखा एक गीत सुनाई दिया जो जॉनी वॉकर पर फ़िल्माया गया था “आँखों की तलाशी दे दे मेरे दिल की हो गई चोरी” । फिर1969 में “डंका” फ़िल्म आई जिसके सभी गीत वर्मा मलिक ने लिखे थे मगर वो गीत बहुत मशहूर नहीं हुए।

वर्मा मलिक को हिंदी फ़िल्मों में बड़ा ब्रेक मनोज कुमार के कारण मिला

उस लम्बे अंतराल के बाद जो पहला बड़ा मौक़ा उन्हें मिला, वो मिला मनोज कुमार की वजह से और उन्हीं की फ़िल्म में मिला। एक दिन वो फेमस स्टूडियो के सामने से गुज़र रहे थे, वहाँ मोहन सहगल का ऑफिस था जो उनके दोस्त थे। वर्मा मलिक ने सोचा कि उनसे मिला जाए क्या पता कुछ काम बन जाए! मोहन सहगल ने उन्हें संगीतकार जोड़ी कल्याणजी आनंदजी से मिलने को कहा जो उन दिनों “उपकार” फ़िल्म का म्यूजिक बना रहे थे। जब वर्मा मलिक वहाँ पहुंचे तो मनोज कुमार भी वहां बैठे थे। बातों बातों में दोनों की दूर की कोई जान-पहचान निकल आई। मनोज कुमार ने वर्मा मालिक से पूछा कि उन्होंने कुछ नया लिखा है तो सुनाएँ ?

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इस पर वर्मा मालिक ने उन्हें कुछ गीत सुना दिए। मनोज कुमार को एक गीत बहुत पसंद आया, उन्होंने “उपकार” के लिए उस गीत को सेलेक्ट कर लिया। मगर “उपकार” में कोई ऐसी सिचुएशन ही नहीं निकल पाई कि उस गीत का इस्तेमाल किया जाता। लेकिन मनोज कुमार को ये गाना बहुत ही पसंद आया था तो जब उन्हें फ़िल्म “यादगार” मिली तो उन्होंने निर्माता-निर्देशक एस राम शर्मा को वर्मा मालिक के बारे में बताया और फ़िल्म में उस गीत के लिए जगह बन गई। वो गीत था “एकतारा बोले”, आज जो version हम सुनते हैं वो व्यवस्था पर, इंसानियत पर कटाक्ष करने वाला है लेकिन ओरिजिनली ये एक रोमांटिक गीत था।

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मनोज कुमार के कहने पर “यादगार” फिल्म  के लिए वर्मा मलिक ने इसे सिचुएशन के हिसाब से री-राइट किया। ये गीत बहुत ही मशहूर हुआ और फिर मनोज कुमार की पहचान, बलिदान, शोर, बेईमान, रोटी कपड़ा और मकान, सन्यासी, कलयुग और रामायण जैसी कई फ़िल्मों में वर्मा मलिक को गीत लिखने का मौक़ा मिला। “बेईमान” के सभी गीत वर्मा मलिक ने लिखे थे, जिसके लिए उन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला। इससे पहले “पहचान” के गीत “सबसे बड़ा नादान वही है जो समझे नादान मुझे’ के लिए भी उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीतकार के फ़िल्मफेयर अवॉर्ड से नवाज़ा गया।

वर्मा मलिक

लेकिन वो पहली मशहूर फ़िल्म जिसके सभी गीत लिखने का मौक़ा वर्मा मलिक को मिला वो थी 1970 में आई “सावन भादो”। हाँलाकि इस फ़िल्म के गीतों को गुणवत्ता के लिहाज़ से बहुत बढ़िया नहीं कहा जा सकता, उनकी भाषा सस्ती कही जा सकती है पर फिल्म के हिसाब से वो एकदम फिट थे और सुपर हिट भी, लोकप्रियता में ये कहीं से भी कम नहीं थे।

वर्मा मलिक

फिर हमें ये भी नहीं भूलना चाहिए कि वर्मा मलिक बहुत बुरा वक़्त देख चुके थे और जब उन्हें काम करने का मौक़ा मिला तो जिस तरह के गीत लिखने को उनसे कहा गया उन्होंने लिखे। इसकी उन्हें कोई शिकायत भी नहीं रही, उन्होंने ख़ुद ही एक इंटरव्यू में कहा था कि काम, नाम, दाम, सब यहीं से कमाया। वो उस दौर को देख चुके थे जब वो चाहते थे और उन्हें कोई काम नहीं मिल रहा था इसीलिए जब उन्हें काम मिला तो वो पीछे नहीं हटे।

काम, नाम और दाम सभी लिहाज़ से 70 का दशक उनके लिए बहुत अच्छा रहा। 1972 में तो 11 ऐसी फ़िल्में आईं जिनमें उनके लिखे गीत सुनाई दिए। वो थीं – आँखों आँखों में, बेईमान, दिल दौलत दुनिया, दो बच्चे दस हाथ, दो यार, कंगन, मेमसाब, रूप तेरा मस्ताना, सज़ा, शोर और विक्टोरिया नंबर 203। इसी दशक में उनके करियर की सबसे मशहूर फ़िल्म आई थी – रोटी कपड़ा और मकान। जिसमें उन्होंने तीन गाने लिखे थे और तीनों हिट थे। “हाय हाय हाय मजबूरी ये मौसम और ये दूरी”, “महंगाई मार गई” और “पंडित जी मेरे मरने के बाद इतना कष्ट उठा देना” ।

वर्मा मलिक कभी डायरी में गीत नहीं लिखते थे

बचपन से वर्मा मलिक पंजाबी में लिखते आये थे, हिंदी थोड़ी बहुत बोल लेते थे मगर ठीक से नहीं आती थी पर फ़िल्मों में एंट्री करने के बाद उन्होंने हिंदी के अख़बार पढ़-पढ़ कर हिंदी सीखी और ऐसी सीखी कि “प्रिय प्राणेश्वरी” जैसा शुद्ध हिंदी का गीत भी लिख डाला। व्यंग्य उनकी ख़ासियत थी, जो उनके गीतों में सुनाई दे जाता है। शायरी और लोकगीत को एक ही तार में पिरोकर ऐसे बेहतरीन गीत लिख देते थे कि वो झट से लोकप्रिय हो जाते थे। उन्होंने हर सिचुएशन पर, हर विधा के गीत लिखे, रोमांटिक, दार्शनिक, कॉमेडी, व्यंग्य, क़व्वाली, शादी के कई गीत उन्होंने लिखे।

लेकिन आपको अचरज होगा ये जानकार कि उन्होंने कभी कोई डायरी मेन्टेन नहीं की। उनके पास हमेशा एक काग़ज़ का टुकड़ा और पेंसिल होती थी, उसी पर वो एक से बढ़कर एक गीत लिख दिया करते थे। एक ही गाने को अलग-अलग सिचुएशन के मुताबिक़ बदलने में भी वो माहिर थे। “कर्मयोगी” फ़िल्म में भी अलग-अलग सिचुएशन में एक ऐसा ही गीत है। एक गीत जिसका ज़िक्र उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में किया है, उसमें उन्होंने तीन अलग-अलग सिचुएशंस को नीचे दी गई पंक्तियों में इस तरह से describe किया।

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मंदिर में पूजा करते हुए जो गाना बैकग्रॉउंड में बजा उसके बोल थे “आज नहीं तो कल मिलता है, हर पूजा का फल मिलता है” खेतों में हल चलाते हुए किसान के लिए लिखा “आज नहीं तो कल मिलता है, हर मेहनत का फल मिलता है” और एक चोर के लिए लिखा “आज नहीं तो कल मिलता है, हर करनी का फल मिलता है” अगर निश्चय हो तो जिस भी नदी को गंगा समझो, उसी में गंगा जल मिलता है।

वर्मा मलिक

वर्मा मलिक ख़ुद तबला, हारमोनियम बजाना जानते थे, रेडियो सिंगर भी रहे थे तो संगीत की नॉलेज उन्हें थी। इसीलिए जब वो गाना लिखते थे तो कई बार उसकी धुन भी बना देते थे। सुनाते समय धुन के साथ सुनाते थे और कई बार वही धुन गाने में इस्तेमाल कर ली जाती, कई बार नहीं भी की जाती। मगर उन्होंने कभी इस बात को ईगो का मसला नहीं बनाया न ही कभी क्रेडिट माँगा। उनका कहना था कि उनका काम गीत लिखना था जिसके उन्हें पैसे मिल गए। इसके आगे क्या होता है ये सोचना उनकी ज़िम्मेदारी नहीं है।

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लेकिन फिर भी अपने गानों में वो एक स्पेशल कनेक्ट ज़रुर रखते थे, एक अलग सा टच जो अक्सर उनके गीतों में सुनने को मिलता है। जैसे एक ही अक्षर पूरी लाइन में सुनाई दे, अनुप्रास अलंकार या उससे मिलता जुलता कुछ जो एकदम हिट करे। जैसे कसौटी फ़िल्म के गीत “हम बोलेगा तो बोलोगे के बोलता है” में सुनाई देता है या “बेईमानी से बनते हैं बँगले बाग़ बाग़ीचे”  ऐसे बोल उनके गीतों को अलग टच देते थे।

वर्मा मलिक का इंडस्ट्री के कई लोगों के साथ लम्बा एसोसिएशन रहा

वर्मा मलिक ने हंसराज बहल, और सार्दुल क्वात्रा से लेकर सोनिक ओमी, शंकर जयकिशन, कल्याणजी आनंदजी, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, रवि, राजेश रोशन, बप्पी लहरी, उत्तम जगदीश जैसे अपने दौर के लगभग सभी संगीतकारों के लिए गीत लिखे। प्राण उनके अच्छे दोस्तों में से थे और जब वर्मा मलिक उनके लिए गीत लिखते थे तो अक्सर प्राण के घर पर सिटिंग होती थी। राज कोहली भी उनके अच्छे दोस्त थे और उनकी कई पंजाबी और हिंदी फ़िल्मों में वर्मा मालिक ने गीत लिखे। कपूर फिल्म्स के S कपूर के साथ उनका अच्छा एसोसिएशन रहा। उनके बैनर की कई फ़िल्मों के गीत उन्होंने लिखे।

वर्मा मलिक कभी बड़े बैनर या बड़ी सफलता के पीछे नहीं भागे, बस अपना काम करते रहे और जब काम करने की हालत में नहीं रहे तो रिटायर हो गए। घर पर रहकर अगर कोई उनसे गीत लिखवाना चाहता तो ज़रूर लिख दिया करते थे, पर बाहर जाना उन्होंने बंद कर दिया था। सेहत पहले ही बिगड़ रही थी उस पर जब उनकी ​पत्नी का निधन हो गया तो वो उस सदमे से उबर नहीं पाए और पूरी तरह दुनिया से कट गए। उनकी दो बेटियाँ हुई और एक बेटा राजेश। 15 मार्च 2009 को वर्मा मालिक ख़ामोशी से इस दुनिया से विदा हो गए और पीछे छोड़ गए अपने उन गीतों की सौग़ात जो आज भी स्पेशल मौक़ों पर उनकी याद दिला देते हैं।

वर्मा मलिक की कुछ मशहूर फ़िल्में और गीत

  • गूँज(52) – चले जा रहे हो नज़रें चुराए
  • दोस्त (54) – आए भी अकेला – हंसराज बहल
  • मिर्ज़ा साहिबाँ (57) – तबीयत ठीक थी
  • यादगार (70) – इकतारा बोले
  • पहचान (70) – सबसे बड़ा नादान
  • सावन भादो (70) – सभी गीत
  • हम तुम और वो (71) – प्रिय प्राणेश्वरी
  • बेईमान (72) – सभी गीत
  • शोर (72) – शहनाई बजे न बजे
  • विक्टोरिया नंबर 203 (72) – दो बेचारे बिना सहारे
  • आँखों आँखों में (72) – टाइटल सांग छोड़कर सभी गीत
  • धर्मा (73) – सभी गीत
  • रोटी कपड़ा और मकान (74) – हाय हाय ये मजबूरी, पंडितजी मेरे मरने के बाद, मँहगाई मार गई
  • कर्मयोगी (74) – सभी गीत
  • पैसे की गुड़िया (74) – सभी गीत
  • कसौटी(74) – हम बोलेगा तो बोलोगे
  • संयासी (75) – सुन बाल ब्रह्मचारी मैं हूँ कन्या कुँवारी
  • ज़िंदादिल (75) – सभी गीत
  • नागिन (76) – सभी गीत
  • दो अनजाने (76) – कहीं दूर मुझे जाना है
  • आदमी सड़क का (77) – सभी गीत
  • जानी दुश्मन (79) – सभी गीत
  • ज़ुल्म की पुकार (79) – सभी गीत
  • कर्तव्य (79) -चंदा मामा से प्यारा
  • वारिस (88) – मेरे प्यार की उम्र हो,  घटा छा रही है
  • देश के दुश्मन (89) – सभी गीत

वर्मा मलिक की पंजाबी फ़िल्में – 1949 से 1985 तक 45 फ़िल्में

  • 1949 – लच्छी
  • 1950 – छाई
  • 1951 – पोस्ती
  • 1953 – जुगनी
  • 1953 – कोडे शाह
  • 1954 – अष्टल्ली
  • 1954 – शाह जी
  • 1954 – वंजारा
  • 1957 – हुलारे
  • 1959 – भांगड़ा
  • 1960 – दो लछियां
  • 1960 – पगड़ी संभाल जट्टा
  • 1960 – हीर स्याल
  • 1960 – यमला जाट
  • 1961 – गुड्डी
  • 1961 – जत्ती
  • 1962 – ढोल जानी
  • 1962 – खेडन दे दिन चार
  • 1962 – परदेसी ढोला
  • 1963 – लाजो
  • 1963 – पिंड दी कुड़ी
  • 1964 – मैं जट्टी पंजाब दी
  • 1964 – मामा जी
  • 1965 – चंबे दी काली
  • 1965 – सपनी
  • 1965 – सस्सी पुन्नू
  • 1966 – लाइये तोड़ निभाइये
  • 1967 – कदे धूप कदे छाँव
  • 1967 – खेड प्रीतन दे
  • 1967 – नीम हकीम
  • 1968 – शहर दी कुड़ी
  • 1969 – नानक नाम जहाज है
  • 1969 – परदेसन
  • 1970 – दुपट्टा
  • 1973 – शेरनी
  • 1974 – दो शेर
  • 1975 – डाकू शमशेर सिंह
  • 1975 – मोरनी
  • 1976 – मैं पापी तू बक्शनहार
  • 1977 – प्रेमी गंगाराम
  • 1979 – सहती मुराद
  • 1981 – दो पोस्ती
  • 1983 – वोहटी हाथ सोटी
  • 1985 – कुंवारा जीजा
  • 1985 – मौजां दुबई दियां