इन्दर राज आनंदइन्दर राज आनंद

इन्दर राज आनंद ने ही अमिताभ बच्चन को बनाया शहंशाह

फ़िल्म इंडस्ट्री और विवादों का चोली दामन का साथ है। पर कुछ विवाद ऐसे हैं जिनसे फ़िल्मी दुनिया की अंदरुनी पॉलिटिक्स, groupism और लॉबी की ताक़त का पता चलता है। वो विवाद जहाँ कई सवाल छोड़ जाते हैं वहीं इंडस्ट्री का एक बेरहम चेहरा भी सामने लाते हैं। ऐसा ही एक विवाद जुड़ा है लेखक इन्दर राज आनंद के साथ, जिनकी ग़ुस्से में की गई एक ग़लती ने उनकी सालों की बनी-बनाई इज़्ज़त एक रात में ख़त्म कर दी। और सबने देखा कि कैसे इंडस्ट्री के एक नामी इंसान का साथ देने के लिए, पूरी इंडस्ट्री एक तरफ़ हो गई, वो भी बिना पूरी बात जाने।

इन्दर राज आनंद के डायलॉग्स पर तालियाँ और सीटियाँ बजती थीं

इन्दर राज आनंद का जन्म मिआनी में हुआ जो अब पाकिस्तान में है। लाहौर, और हैदराबाद से पढ़ाई करने के बाद वो बॉम्बे में इप्टा से जुड़ गए। इप्टा में ‘इन्दर राज आनंद’ की दोस्ती हुई ख़्वाजा अहमद अब्बास के साथ। दोस्ती इतनी अच्छी थी कि K A अब्बास ने ही उन्हें पृथ्वी थिएटर्स में एंट्री भी दिलाई। इन्दर राज आनंद पृथ्वी थिएटर्स के लिए नाटक लिखा करते थे। पृथ्वी थिएटर्स के नाटक ‘दीवार’ और ‘गद्दार’ उन्होंने ही लिखे थे, ये वो दौर था जब पृथ्वी थिएटर्स की शुरुआत ही हुई थी।

इन्दर राज आनंद

इन्दर राज आनंद, ख़्वाजा अहमद अब्बास के अलावा, युवा शंकर, जयकिशन, और रणबीर राज कपूर भी वहाँ काम करते थे। राज कपूर का ख़ुद पर और फ़िल्मों को लेकर अपने विज़न पर जो विश्वास था उसने एक ऐसी टीम बनाई जिसमें ये सब शामिल हुए। राज कपूर के निर्देशन में बनी RK फ़िल्म्स की पहली फ़िल्म थी “आग” जिसकी कहानी, स्क्रीनप्ले और डायलॉग्स इन्दर राज आनंद ने ही लिखे थे। इसके बाद दोनों ने साथ में कई फ़िल्में कीं।

इन्दर राज आनंद

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इन्दर राज आनंद उन लेखकों में से थे जिन्होंने फ़िल्मी लेखन में क्वालिटी के साथ साथ वैरायटी भी दी। उन्होंने जहाँ “नई दिल्ली” जैसी सटायर लिखी वहीं CID जैसी क्राइम और सुस्पेंस मूवी भी लिखी। छोटी बहन जैसी इमोशनल पारिवारिक ड्रामा लिखी तो जवानी-दीवानी जैसी फ्रेश फ़िल्म भी लिखी जो कॉलेज स्टूडेंट्स पर आधारित थी। सफ़र, जैसी सेंसिटिव फ़िल्म लिखी तो नागिन, जानी दुश्मन, राजतिलक जैसी मल्टी स्टारर काल्पनिक कॉस्ट्यूम ड्रामा भी लिखीं और कालिया और शहंशाह जैसी फिल्मों के डायलाग उनकी ही क़लम से निकले थे, जिन पर आज भी तलियाँ और सीटियाँ बजती हैं।

इन्दर राज आनंद ने उर्दू का शेर ठीक से न बोलने पर अमिताभ बच्चन को सबके सामने ताना मार दिया था

कालिया बनाई थी उनके बेटे टीनू आनंद ने, कहानी भी टीनू आनंद की थी और डायलॉग लिखे थे इन्दर राज आनंद ने, जिनकी उर्दू भाषा पर बहुत गहरी पकड़ थी। तो इस यादगार दृश्य के लिए उन्होंने एक शेर लिखा जो प्राण के डायलॉग के जवाब में कालिया यानी अमिताभ बच्चन को बोलना था। इस सीन की शूटिंग चल रही थी पर अमिताभ बच्चन वो शेर उस तरह से नहीं बोल पा रहे थे जैसा वो बोला जाना चाहिए था। टीनू आनंद ने अपने पिता से वो डायलाग बदलने को भी कहा मगर वो नहीं माने, उनका कहना था कि ये वो डायलॉग है जिस पर सिनेमा हॉल में तालियाँ बजेंगी।

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ये उस समय की बात है जब अमिताभ बच्चन कामयाबी की बुलंदी पर थे और उनके हिसाब से फ़िल्म के दृश्यों में फेर बदल हुआ करते थे। ऐसे सुपरस्टार को इन्दर राज आनंद ने सबके सामने ताना मारते हुए कहा कि उन्हें शर्म आनी चाहिए, वो हरिवंश राय बच्चन के बेटे होते हुए भाषा को नहीं समझते हैं। इस पर अमिताभ बच्चन एकदम सन्न रह गए, सेट पर भी ख़ामोशी छा गई। फिर बिग बी ने कुछ देर का ब्रेक लिया और किसी की मदद से उन संवादों की प्रैक्टिस की। लगभग 10  मिनट बाद वो वापस आये और वो उर्दू शेर वाला डायलॉग पूरी पॉवर के साथ बोला। इस पर इन्दर राज आनंद इतने ख़ुश हुए कि कट बोले बिना उन्होंने अमिताभ बच्चन को गले से लगा लिया।

इन्दर राज आनंद

ऐसे ही थे इन्दर राज आनंद, जब ग़ुस्सा आता था तो बिल्कुल परवाह नहीं करते थे कि सामने कौन है। इसीलिए दिलीप कुमार ने कभी उनके साथ काम नहीं किया जबकि दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे और वो दोस्ती दिलीप कुमार के लिए ज़्यादा अहम् थी इसीलिए दिलीप कुमार ने कभी उनके साथ काम न करने का फ़ैसला किया। उन का कहना था कि इन्दर राज आनंद का लिखा कोई डायलॉग उन्होंने ठीक से नहीं बोला तो वो एकदम उखड़ जाएँगे। फिर कभी न कभी दोस्ती पर आंच आ सकती थी। इसलिए वो दोनों दोस्त ही अच्छे थे और हमेशा अच्छे दोस्त रहे।

इन्दर राज आनंद ने मरने से एक दिन पहले तक शहंशाह के संवाद लिखे

वो इन्दर राज आनंद ही थे जिन्होंने अमिताभ बच्चन को इंडस्ट्री का शहंशाह बनाया। और बिग बी कहलाने से पहले वो शहंशाह ही कहलाते थे और आज भी शहंशाह नाम आते ही अमिताभ बच्चन की काले कपड़ों वाली रॉबिनहुड जैसी छवि नज़रो के आगे घूम जाती है। और ये डायलॉग तो अब तक भी बोला जाता है

रिश्ते में तो हम तुम्हारे बाप होते हैं नाम है शहंशाह

“शहंशाह” फ़िल्म का निर्देशन टीनू आनंद ने किया था, कहानी भी उन्हीं की थी। डायलॉग्स इन्दर राज आनंद ने लिखे थे। लेकिन क्लाइमेक्स फ़िल्माए जाने से पहले ही इंदर राज आनंद की मौत हो गई थी लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि 6 मार्च 1987 जिस दिन उनकी मौत हुई उस से ठीक एक दिन पहले उन्होंने अस्पताल में 23 पेज के क्लाइमेक्स वाले डायलॉग्स लिखे थे।

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दरअस्ल उन दिनों वो काफ़ी बीमार थे, अस्पताल में एडमिट थे और टीनू आनंद को जहाँ अपने पिता की सेहत की फ़िक्र थी वहीं अपनी फ़िल्म के क्लाइमेक्स की चिंता भी थी। जब अस्पताल में इन्दर राज नन्द ने अपने बेटे को देखा तो उसकी परेशानी भांप गए। उन्होंने टीनू आनंद को पास बुलाया और ऑक्सीजन मास्क लगाकर उनसे कहा कि वो चिंता न करें, वो उन्हें निराश नहीं करेंगे और फिर टीनू आनंद के अस्सिस्टेंट के साथ ज़िंदगी के आखिरी दिन तक क्लाइमेक्स के डायलॉग्स पूरे कराए।

वो नहीं चाहते थे कि उनके बच्चे फ़िल्मों में काम करें

लेखन उनके लिए पैशन था और अपने बच्चों की इतनी परवाह थी कि अफोर्ड न कर पाने पर भी उन्होंने अपने दोनों बेटों टीनू आनंद और बिट्टू आनंद को बोर्डिंग स्कूल में डाला ताकि वो फ़िल्म इंडस्ट्री से दूर रहें क्योंकि वो नहीं चाहते थे कि जो संघर्ष उन्होंने देखा, जिस उतार-चढाव से उनकी ज़िंदगी गुज़री वो ही उनके बच्चे भी देखें। या आप कह सकते हैं कि वो फिल्म इंडस्ट्री की सच्चाई से वाक़िफ़ हो चुके थे। जानते थे कि यहाँ आज का चमकता हुआ सितारा रातों रात कब ग़ुरुब हो जाएगा कोई नहीं कह सकता। ये अनुभव तो वो ख़ुद कर चुके थे जब लगभग सारी इंडस्ट्री ने उनसे किनारा कर लिया था।

इन्दर राज आनंद

एक रात में उनके हाथ से 18 फ़िल्में निकल गईं

ये उस समय की बात है जब इन्दर राज आनंद फ़िल्मों में स्थापित हो चुके थे, उन का फ़िल्मी लेखकों में बहुत सम्मान हुआ करता था। 50 के दशक की बहुत सी सुपरहिट फ़िल्मों में उनकी क़लम की छाप थी। जैसा मैंने पहले बताया कि इन्दर राज आनंद ने राज कपूर की फ़िल्म आग से अपने फ़िल्मी सफ़र की शुरुआत की थी और फिर उन के लिए “आह” “अनाड़ी” “छलिया” और “संगम” जैसी फिल्में भी लिखीं।

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फ़िल्म संगम की जब बात होती है तो लोग उसके म्यूजिक की, गीतों की बात करते हैं, कलाकारों की बात करते हैं; डायरेक्शन की बात होती है, इस फ़िल्म ने कैसे-कैसे ट्रेंड शुरू किये, उनकी बात होती है यहाँ तक कि इस फ़िल्म की लम्बाई की भी बात होती है, मगर surprisingly इस फ़िल्म के जानदार-शानदार संवादों की कोई बात नहीं करता। फ़िल्म के बहुत से संवाद ऐसे हैं जो आपको सोचने पर मजबूर करते हैं जिन्हें सुनकर ऐसा लगता है कि उस सिचुएशन के लिए इनसे बेहतर और कोई डायलॉग हो ही नहीं सकता था।

इन्दर राज आनंद

फ़िल्म के क्लाइमेक्स के कुछ मिनट्स याद कीजिए, क्या उन डायलॉग्स के बग़ैर ये फ़िल्म वो असर छोड़ पाती जिन्होंने इसे यादगार बनाया ? संवादों की तो सरसरी तौर पर कोई तारीफ़ कर भी देता है मगर उन्हें लिखने वाले का तो कोई नाम ही नहीं लेता। क्यों ? पता नहीं मगर हाँ इस फ़िल्म के बाद जो कुछ हुआ वो बेहद दुखद था। 1964 में रिलीज़ हुई “संगम” की धमाकेदार ओपनिंग की ख़ुशी में एक पार्टी रखी गई थी, जिसमें  संगम की पूरी स्टार कास्ट, पूरी टीम के साथ वहां कई नामी-गिरामी लोग मौजूद थे।

उस वक़्त राज कपूर और इन्दर राज आनंद के बीच किसी बात को लेकर तीखी बहस शुरू हुई फिर वो बहस इतनी बढ़ गई कि लोगों ने एक चाँटे की आवाज़ सुनी, इन्दर राज आनंद ने राज कपूर को भरी महफ़िल में तमाचा मार दिया था। ज़ाहिर है एक नज़र में कोई भी इन्दर राज नन्द को ग़लत मानेगा। मानना भी चाहिए, गुस्से का मतलब ये तो नहीं होता कि आप किसी को भी बेइज़्ज़त कर दें, आख़िर ग़ुस्सा दूसरे को भी आ सकता है।

इन्दर राज आनंद

ये बात थी दो लोगों के बीच की, वो दो लोग जो सालों से एक दूसरे के साथ काम करते आ रहे थे। जो हुआ वो क्यों हुआ, किन हालात में हुआ उसकी वजह किसी को नहीं पता थी, मगर वहाँ मौजूद हर शख़्स राज कपूर के समर्थन में आ गया और संगम की स्टार कास्ट के साथ-साथ इंडस्ट्री के सभी लोगों ने इन्दर राज आनंद का बहिष्कार करने का फ़ैसला कर लिया, बिना असली कारण जाने।

उस पल से पहले तक इन्दर राज आनंद के हाथ में 18 फ़िल्में थीं मगर उस एक पल में उन्होंने वो सभी फ़िल्में खो दीं। ये सदमा वो बर्दाश्त नहीं कर पाए और उन्हें हार्ट अटैक आ गया। जब वो अस्पताल में थे तो वो सभी लोग जिन्होंने उन्हें ग़लत मानकर, उनका पक्ष जाने बिना उन्हें सज़ा सुना दी थी। उन सबको पछतावा हुआ, बहुत से लोग उनसे मिलने अस्पताल भी पहुँचे जिनमें संगम के कलाकारों के अलावा राज कपूर की पत्नी कृष्णा भी थीं, क्योंकि उस वक़्त राज कपूर भारत में नहीं थे।

लाइफ वापस अपने रूटीन पर आ गई मगर ऐसे वाक़ए किसी को भी अंदर तक हिला सकते हैं। शायद राज कपूर ने भी वैसा ही महसूस किया होगा! कौन जाने– क्योंकि उस घटना का कारण तो आज भी कोई नहीं जानता।

इन्दर राज आनंद ने क़रीब 125 फ़िल्मों की कहानी, स्क्रीनप्ले और डायलॉग लिखे

इन्दर राज आनंद ने इसके बाद भी राज कपूर के लिए सपनो का सौदागर जैसी फ़िल्म लिखी। 60s में उन्होंने जो फ़िल्में उन्होंने लिखीं वो ज़्यादातर दक्षिण भारतीय निर्माताओं की थीं। इनमें ससुराल, छोटी बहन, चार दिल चार राहें, हमराही, बहुरानी, बेटी-बेटे, वासना जैसी कई फ़िल्में शामिल हैं। क़रीब 125 फ़िल्मों की कहानी, पटकथा और संवाद लिखने वाले इन्दर राज आनंद ने 70 के दशक में ज़्यादातर फ़िल्मों के संवाद ही लिखे। इनमें सफ़र, घर-घर की कहानी, हाथी मेरे साथी, उपासना, अपना देश, जूली, नागिन, जानी दुश्मन, एक दूजे के लिए, कालिया, वकील बाबू, मर्द और उनकी आख़िरी फ़िल्म शहंशाह भी शामिल है।

इन्दर राज आनंद

 

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इतनी कामयाब फ़िल्में देने के बावजूद इन्दर राज आनंद का नाम भी दूसरे कई फ़िल्मी लेखकों की तरह अनजाना ही रह गया है। मगर जब भी उनके लिखे डायलॉग्स सुनकर ये सवाल उठे कि ऐसे संवाद आख़िर लिखे किसने? तो यही उनके लेखन की कामयाबी है। जब जब उनके लिखे संवादों को दोहराया जाए और फिर भी उन पर तालियाँ बजें तो यही उनकी सफलता है। जो आज इस दुनिया में नहीं हैं, उन्हें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है कि कोई उन्हें याद कर रहा है या नहीं मगर क्या हमारा ये फ़र्ज़ नहीं है कि हम उन लोगों के कंट्रीब्यूशन को समझें जिनके कारण चाहें कुछ पलों के लिए ही सही हम ख़ुश हो पाए, विचारशील बन पाए !