जूनियर महमूद ने 67 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
जूनियर महमूद कुछ समय से लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर थे
जूनियर महमूद कुछ समय से कैंसर से जूझ रहे थे, उन्हें लंग्स और लीवर में कैंसर था, साथ ही आँत में ट्यूमर भी सामने आया था। अचानक ही उन्हें उनकी बीमारी का पता चला, ईलाज चल रहा था मगर हालत दिन ब दिन ख़राब होती जा रही थी, वो लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर थे। कुछ दिन पहले उन्होंने अपने दोस्तों सचिन पिलगांवकर और जितेंद्र से मिलने की इच्छा जताई थी, उसके बाद दोनों कलाकार ख़ास तौर पर उनसे मिलने पहुँचे थे। जूनियर महमूद का रात 2 बजकर 15 मिनट पर निधन हो गया।
60 के दशक में एक छोटा बच्चा हास्य कलाकार महमूद की नक़्ल करता अक्सर दिख जाया करता था। लोग इतने छोटे बच्चे को इतनी अच्छी नक़्ल करते देख बहुत ख़ुश भी होते थे। यही ख़ुशी महमूद साहब को भी हुई जब उन्होंने उस बच्चे को अपनी कॉपी करते देखा और उन्होंने ही नईम सैयद नाम के उस बच्चे को नाम दिया जूनियर महमूद और फिर यही नाम उनकी पहचान बन गया।
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15 नवम्बर 1956 में जन्मे नईम सैयद के पिता रेलवे में इंजिन ड्राइवर थे, इसलिए वो अपने माता-पिता, तीन भाई और दो बहनों के साथ रेलवे क्वाटर्स में रहा करते थे। नईम के बड़े भाई फ़िल्म सेट पर स्टिल फोटोग्राफ़ी किया करते थे और नईम फ़िल्मों से बहुत मुतास्सिर थे। अपने स्कूल में वो पढ़ाई से ज़्यादा कलाकारों की मिमिक्री करने के लिए जाने जाते थे स्कूल के हर फंक्शन में उनका एक शो फ़िक्स होता था। फ़िल्मों के प्रति इसी लगाव के कारण वो सिर्फ़ सातवीं तक ही पढ़ पाए। वो अक्सर अपने भाई के साथ फ़िल्मी सेट्स पर चले जाते थे, एक बार ऐसे ही एक सेट पर वो डायरेक्टर की चेयर के पीछे खड़े थे।
आपको गोविंदा की फ़िल्म का सीन याद है जिसमें हीरो एक डायलॉग नहीं बोल पा रहा था तो गोविंदा सबके सामने कहते हैं कि इतनी सी लाइन नहीं बोल पा रहा….. ऐसा ही हुआ नईम के साथ वो चाइल्ड आर्टिस्ट एक लाइन बोलने में बार-बार ग़लतियाँ कर रहा था वो छोटे तो थे ही बग़ैर सोचे समझे बोल दिया कि इतनी सी लाइन नहीं बोल सकता आ गया एक्टिंग करने” ये सुनते ही डायरेक्टर ने पीछे मुड़कर देखा और उनसे पूछा – बेटा तुम ये लाइन बोल सकते हो ? उन्होंने तुरंत वो लाइन बोल दी। लेकिन वो फ़िल्म पूरी ही नहीं हो पाई मगर नईम सैयद को एक्टिंग का चस्का चढ़ गया।
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महमूद ने उन्हें गंडा बांध कर अपना शिष्य बनाया था
शुरुआत में उन्होंने छोटे-छोटे रोल्स किए ऐसा ही एक रोल था फ़िल्म सुहागरात में महमूद के साथ। शूटिंग के दौरान एक दिन महमूद साब की बेटी जीनी का जन्मदिन पड़ा, सेट पर सभी लोगों को बुलाया गया पर नईम को नहीं बुलाया गया। 8 साल के उस बच्चे को बहुत बुरा लगा और उन्होंने महमूद को इसका उलाहना दिया कि मेरा बाप कोई प्रोडूसर-डायरेक्टर नहीं हैं इसीलिए मैं पार्टी में नहीं आ सकता न ! ख़ैर! महमूद साब को अपनी ग़लती का एहसास हुआ और उन्होंने नईम को पार्टी में बुलाया और वहाँ उस आठ साल के बच्चे ने महमूद के गाने “हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं” पर डांस कर सबका ख़ूब मनोरंजन किया।
उसी समय महमूद को अंदाज़ा हो गया था कि उस बच्चे में कुछ बात है, उन्होंने कहा कि ये बच्चा एक दिन बहुत नाम कमाएगा। उसके बाद महमूद ने गंडा बांधकर उन्हें अपना शिष्य बना लिया और जूनियर महमूद ने उन्हें गुरु दक्षिणा के तौर पर दिए सवा पांच रुपए और महमूद ने उन्हें दिया अपना नाम जूनियर महमूद।
वो जो हमारी मानसिकता है कि बड़े आदमी ने अगर किसी की तारीफ़ कर दी तो फिर पूरी दुनिया उसकी तारीफ़ करने लगती है और उसी बड़े आदमी ने अगर किसी के विषय में कुछ ग़लत बोल दिया तो पूरी दुनिया उस इंसान से कन्नी काट लेती है। यही हुआ नईम सैयद के साथ महमूद का नाम और साथ मिलते ही अचानक सारी इंडस्ट्री उन्हें एक बड़ा कलाकार मानने लगी। इतना ही नहीं वो महमूद की इतनी अच्छी नक़्ल करते थे कि अक्सर लोग उन्हें महमूद का बेटा समझ लेते थे।
स्टार चाइल्ड आर्टिस्ट
सुहागरात फ़िल्म एक तरह से जूनियर महमूद की ज़िंदगी का टर्निंग पॉइंट साबित हुई। उसी के सेट पर महमूद से मुलाक़ात हुई, उनका नाम मिला और उसी की शूटिंग के दौरान उन्हें ब्रह्मचारी फ़िल्म के बारे में पता चला। G P सिप्पी को 10-12 बच्चों की ज़रुरत थी जो अलग-अलग उम्र, चेहरे और मैनरिज़्म रखते हों। उनका स्टाइल आम बच्चों से अलग था ही तो उन्हें ब्रह्मचारी में तुरंत काम मिल गया। इस फ़िल्म में उन्होंने जिस तरह डायलॉग्स बोले उसके पीछे भी एक अलग क़िस्सा है।
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जूनियर महमूद उन दिनों भी स्टेज पर परफॉर्म किया करते थे, एक मिमिक्री का प्रोग्राम उन्होंने देखा और उन्हें इतना पसंद आया कि उन्होने उसे ज्यों का त्यों याद कर लिया। और जब ब्रह्मचारी की शूटिंग पर पहुंचे तो लंच ब्रेक में उन्होंने बच्चों को इम्प्रेस करने के लिए वही करके दिखाया। सारे बच्चे है-हंस कर लोटपोट हो गए, और फिर किसी बच्चे ने निर्देशक सचिन भौमिक को बताया और उन्होंने वो पूरा एक्ट डायरेक्टर के सामने दोहराया। और बस ये तय हो गया कि जूनियर महमूद पूरी फ़िल्म में इसी तरह से बोलेंगे।
इसी फिल्म में सबने स्क्रीन पर उनका वो डांस देखा जो उन्होंने महमूद के मशहूर गाने “हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं” पर किया था। दरअस्ल फिल्म के निर्देशक बप्पी सोनी जूनियर महमूद को बहुत पसंद करते थे। एक दिन उन्होंने एक फ़ंक्शन में जूनियर महमूद को इस गाने पर डांस करते हुए देखा और फ़िल्म शूट के लंच ब्रेक में उनका वो डांस पूरे फ़िल्म क्रू को दिखाया। सबको इतना पसंद आया कि उस डांस के लिए राइटर सचिन भौमिक ने ख़ासतौर पर एक सिचुएशन बनाई गई। और 45 मिनट में उस गाने की शूटिंग पूरी हुई बिना किसी कोरिओग्राफर के, फ़िल्म रिलीज़ होते ही जूनियर महमूद स्टार बन गए।
उनके लिए फ़िल्मों में रोल्स लिखे जाने लगे, सिचुएशन बनाई जाने लगी, यानी ब्रह्मचारी के बाद उनके दिन फिर गए। जब उन्होंने फ़िल्मों में शुरुआत की थी तो 60 रुपए दिन के मिलते थे और कुछ ही सालों में उन्हें एक फ़िल्म का क़रीब एक लाख रुपए तक मिलने लगा था। कहा जाता है कि उन दिनों शहर में सिर्फ़ 12 इम्पोर्टेड गाड़ियाँ थीं जिनमें से एक इम्पाला जूनियर महमूद के पास थी उस समय उनकी उम्र सिर्फ़ 11 साल थी। उन्होंने राज कपूर को छोड़कर अपने समय के सभी बड़े स्टार्स के साथ काम किया जिनमें राजेश खन्ना के साथ उन्होंने सबसे ज़्यादा काम किया।
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बचपन के साथ ही स्टारडम भी चला गया
बतौर बाल कलाकार जूनियर महमूद ने अनजाना, दो रास्ते, यादगार, कटी पतंग, घर घर की कहानी, बचपन, आन मिलो सजना, कारवाँ, हाथी मेरे साथी, छोटी बहु, गीत गाता चल जैसी क़रीब 264 फ़िल्मों में काम किया। पर जैसा हर बाल कलाकार के साथ होता है हर बच्चा एक दिन बड़ा हो जाता है और उसका स्टारडम ख़त्म हो जाता है, ऐसा ही जूनियर महमूद के साथ भी हुआ। फिल्में तो नहीं थीं लेकिन वो गाते बहुत अच्छा थे और उन्होंने अपना एक ग्रुप बनाया था ‘जूनियर महमूद म्यूजिकल नाइट्स’, अपने ग्रुप के साथ वो स्टेज पर परफॉर्म किया करते थे।
90s में जूनियर महमूद ने मराठी फ़िल्में करना शुरू किया उन्होंने क़रीब 7 मराठी फ़िल्मों का निर्माण और निर्देशन किया। इसके बारे में उनका कहना है कि हिंदी फ़िल्में बनाने में बहुत ज़्यादा पैसा लगता है इसीलिए उन्होंने मराठी सिनेमा में किस्मत आज़माई। हाँलाकि जूनियर महमूद हिंदी सिनेमा में छोटे-छोटे किरदार निभाते रहे और लगातार स्टेज शो भी करते रहे, इनके अलावा उन्हें कई टीवी धारावाहिकों में भी काम मिला। लेकिन ये बहुत ही दुख की बात है कि फिल्म इंडस्ट्री में बाल कलाकार अपने वक्त में कितने बड़े स्टार क्यों ना रहे, बड़े होते ही वो गुमनामी के अँधेरों में खो जाते हैं।और जूनियर महमूद तो अब हमेशा के लिए खो गए हैं।