विनोद का नाम शायद बहुत लोगों ने नहीं सुना होगा मगर उनके बनाए एक गाने ने उनके नाम को अमर कर दिया। इसीलिए उन्हें one-song-wonder कहा गया, जो उनकी योग्यता के साथ नाइंसाफी है। उनकी पुण्यतिथि पर उनके जीवन और फ़िल्मी सफ़र को और नज़दीक़ से जानने की कोशिश करते हैं।
40s 50s के कई गाने बहुत मशहूर हुए, इतने कि हम आज भी गुनगुनाते हैं। कुछ ऐसे गाने भी जिनसे कोई बहुत बड़ा नाम नहीं जुड़ा है बस वो गाने आज भी लोगों को याद है। जैसे कि ये गाना “लारा लप्पा लारा लप्पा लाई रखुदा” बहुतों को शायद इस फ़िल्म का नाम भी न याद हो। ये गाना है 1949 में आई फ़िल्म “एक थी लड़की” का, जिसे मीना शोरी और मोतीलाल पर फ़िल्माया गया था। बहुत से लोगों ने इसे छिछोरा गाना कहा और ये भी कहा कि ये गाना लता मंगेशकर के स्तर का नहीं था। सच्चाई ये है कि ये गाना उस वक़्त भी बहुत पॉपुलर हुआ और आज तक लोग इसे भूले नहीं हैं। लेकिन इस गीत के संगीतकार को लोग भूल गए हैं।
विनोद का असली नाम था एरिक रॉबर्ट्स
इस गीत का संगीत दिया था संगीतकार विनोद ने और ये भी मुमकिन है कि बहुत से लोग ये नाम पहली बार सुन रहे हों पर विनोद उन संगीतकारों में से थे जिनके पास टेलेंट तो था पर शायद क़िस्मत के सितारे उतने बुलंद नहीं थे। विनोद का असली नाम था एरिक रॉबर्ट्स, पर फ़िल्मों के लिए उन्होंने विनोद नाम चुना था। उन का जन्म 28 मई 1922 को लाहौर में हुआ। आप जहाँ रहते हैं वहाँ आस-पास के माहौल का असर आप पर भी पड़ता ही है। विनोद भी जब छोटे थे तो लाहौर में होने वाली शादियों को हैरत से देखते थे, उन शादियों में बजने वाला म्यूजिक उन्हें बहुत लुभाता था।
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उन्हें लाहौर के गुरुद्वारों में होने वाला शबद कीर्तन भी बहुत फैसिनेट करता था। इसी माहौल ने उन्हें संगीत की तरफ़ खींचा, बाद में उन्होंने पं अमरनाथ से संगीत सीखा जो लाहौर फिल्म इंडस्ट्री में म्यूजिक डायरेक्टर थे। उनसे विनोद ने संगीत की बेसिक शिक्षा ली और धुनें कंपोज़ करना शुरू कर दिया। 17 साल की उम्र में उनका पहला रिकार्डेड गाना आया “सामने आएगा कोई जलवा दिखाएगा कोई” इसी दौर में लाहौर से बहुत से संगीतकार अच्छे भविष्य की तलाश में मुंबई की तरफ़ रवाना होने लगे थे और लाहौर में बहुत कम फ़िल्मी संगीतकार रह गए थे।
विनोद पियानो बजाने में माहिर थे और फिल्मों में आने से पहले लाहौर के एक बड़े होटल में प्रोफेशनली पियानो बजाया करते थे। उस होटल में फिल्म इंडस्ट्री की हस्तियां भी आया करती थीं वहीं रुप के. शोरी उनके पियानो वादन से काफ़ी प्रभावित हुए और उन्हें अपनी फ़िल्मों में संगीत देने के लिए राज़ी कर लिया, उन्होंने ही एरिक रोबर्ट को विनोद नाम दिया। 1946 में विनोद ने “खामोश निगाहें” फ़िल्म में 11 गाने कंपोज़ किये जिन्हें अज़ीज़ कश्मीरी ने लिखा था उनके साथ बाद में भी विनोद ने कई ख़ूबसूरत गाने बनाए।
कहते हैं कि पं अमरनाथ की मौत होने के बाद जो फिल्में अधूरी रह गई थीं कई फिल्ममेकर्स ने उन्हें पूरा करने की ज़िम्मेदारी विनोद को सौंप दी। उस दौर में आईं “पराए बस में”, “तारा” जैसी फिल्मों का संगीत तो कुछ ख़ास नहीं रहा। लेकिन 1948 में आई “चमन” म्यूज़िकल हिट साबित हुई लता मंगेशकर ने अपने शुरूआती करियर में जिन पंजाबी फ़िल्मों में आवाज़ दी थी “चमन” उनमें से एक है। विभाजन के समय जब बहुत सी हस्तियां लाहौर से मुंबई रवाना हुईं तब विनोद अपनी पत्नी शीला और छोटी सी बेटी वीना के साथ दिल्ली आ गए।
मुंबई में में आया उनका सुपरहिट गीत
उधर रूप के शोरी जब मुंबई पहुंचे और उन्होंने फिल्म निर्माण शुरू किया तो विनोद को भी वहाँ बुला लिया। उस समय जो फ़िल्म वो बना रहे थे उसका निर्देशन भी रूप के शोरी ही कर रहे थे। उस फ़िल्म से विनोद ने कामयाबी की उड़ान भरी यही फ़िल्म थी “एक थी लड़की” इसी फ़िल्म का गाना है “लारा लप्पा लारा लप्पा” जो उस समय इतना मशहूर हुआ था कि फिल्म की हेरोइन मीना शोरी इस गाने के कारण रातों रात मशहूर हो गई थीं। लता मंगेशकर, सतीश बत्रा, और मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ों से सजा ये गाना तब गली गली में गूंजता था।
आज भी बहुत लोग ये मानते हैं कि इस गाने में जी एम दुर्रानी की आवाज़ है क्योंकि HMV ने LP रिकार्ड्स और 78 RPM पर ग़लती से जी एम दुर्रानी का नाम छाप दिया था। मगर ख़ुद जी एम दुर्रानी ने एक फ़िल्म हिस्टोरियन को बताया था कि इसमें उनकी आवाज़ नहीं है। उसके बाद HMV ने भी सतीश बत्रा का नाम देना शुरु कर दिया। इसी फिल्म के एक गाने “दिल्ली से आया भाई पिंगू” में ख़ुद विनोद भी स्क्रीन पर दिखाई देते हैं।
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इसके बाद आईं “कामिनी” और “नागिन” फ़िल्म वो तो ठीक थक रहीं मगर उनके बाद 1950 में आई “अनमोल रतन” का म्यूज़िक लाजवाब रहा। इस फ़िल्म के दो गाने “याद आने वाले फिर याद आ रहे हैं” “शिकवा तेरा मैं गाऊँ” आज भी पुराने गीतों के शौक़ीनों को पसंद आते हैं। 1948 से लेकर 1953 तक संगीतकार विनोद ने क़रीब 36 फ़िल्मों में संगीत दिया। यूँ तो विनोद अलग अलग बैनर्स के साथ काम कर रहे थे पर “एक थी लड़की” के बाद जैसे वो शोरी फिल्म्स के परमानेन्ट संगीतकार बन गए थे। मुखड़ा (51), आग का दरिया (53), एक दो तीन (53), और जलवा (55) जैसी कई फ़िल्मों में विनोद ने संगीत दिया।
आख़िरी दौर में विनोद को बी ग्रेड फ़िल्मों में संगीत देना पड़ा
सही समय पर सही लोगों का साथ मिल जाए तो आपके टैलेंट को दुनिया देखती है,और शायद इसी को क़िस्मत कहते है। विनोद के साथ विडम्बना यही रही, उन्हें सही फ़िल्में नहीं मिलीं। एक वक़्त के बाद उनका म्यूजिक ज़्यादातर हास्य फ़िल्मों में ज़ाया हो गया। “लाडला”, “ऊटपटाँग”, “नकदनारायण”, “मक्खीचूस”, “शेख चिल्ली” जैसी फ़िल्मों के गानों ने वक़्ती लोकप्रियता तो पाई पर वो गाने यादगार नहीं बन पाए। ऐसी फ़िल्मों में ज़्यादा गुंजाइश भी नहीं होती, इसीलिए विनोद का संगीत ज़्यादातर अनसुना ही रह गया।
हाँलाकि उन्होंने कुछेक सामाजिक-ऐतिहासिक फ़िल्में भी कीं जिनमें कुछेक गाने अच्छे भी बन पड़े पर उनसे विनोद के करियर को कोई फ़ायदा नहीं पहुंचा। उसके बाद तो उन्होंने “मिस हंटरवाली” जैसी स्टंट फिल्में भी कीं। पर इस वक़्त तक उन्हें मिलने वाली फिल्में कम होती गईं। और फिर वक़्त ने इजाज़त नहीं दी। विनोद को शेव करते हुए ब्लेड लगने से इन्फेक्शन हुआ था लेकिन जब तक वो हॉस्पिटल गए वो इन्फेक्शन लाइलाज हो चुका था, वो कोमा में चले गए। और फिर 25 दिसंबर 1959 को सिर्फ़ 37 साल की उम्र में वो इस दुनिया से रुख़सत हो गए।
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करियर का सीधा सीधा असर व्यक्ति की आर्थिक स्थिति पर पड़ता है। और ज़ाहिर है विनोद की आर्थिक स्थति भी बहुत ज़्यादा अच्छी नहीं रही, इसीलिए उनकी मौत के बाद उनकी पत्नी को अपनी दोनों बेटियों वीना और वीरा की परवरिश के लिए काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। कुछ लोग भले ही विनोद को One-Song-Wonder कहें, मगर उन्होंने बहुत से अच्छे गाने दिए बस वो लोगों तक पहुँचे नहीं। हाँ एक सच ये भी है कि विनोद का नाम “लारा लप्पा” गीत से फिल्म इतिहास में अमर हो गया।
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