काटो मत फुँफकारो ज़रूर ये कहावत भी अन्य कहावतें मुहावरों की तरह आम जन के बीच हुई घटनाओं से ही बनी है। ये कहानी है एक नाग, एक साधु और एक गाँव में रहने वाले लोगों की।
पुराने ज़माने की बात है एक गाँव तक जाने वाले रास्ते में झाड़ियों के झुरमुट के बीच एक बाम्बी थी। बाम्बी यानी साँप/नाग का घर, उस घर में एक काला नाग रहता था जो आते जाते गाँव के कई लोगों को डस चुका था। गाँव के लोगों ने डर के मारे वहाँ से गुज़ारना ही बंद कर दिया, अब उन्हें आने जाने के लिए लम्बा रास्ता तय करना पड़ता था मगर अपनी जान सबकी प्यारी होती है।
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एक दिन एक ज्ञानी साधु बाबा अपनी यात्रा के दौरान उस गाँव तक पहुंचे, सभी गाँव वालों ने उनकी बहुत आवभगत की। जब साधु बाबा के जाने का वक़्त आया तो वो उसी रास्ते की तरफ़ जाने लगे ये देख कर सभी गाँव वाले घबरा गए और साधु बाबा को उस काले भयानक नाग के बारे में बताया और उनसे प्रार्थना की कि वो उस रास्ते से न जाएँ। मगर साधु बाबा ने कहा मैंने तो उस नाग का कुछ नहीं बिगाड़ा है फिर वो मुझे क्यों डसेगा ? मैं तो इसी रास्ते से जाऊँगा और इतना कहकर वो उस रास्ते पर चल पड़े। गाँव वाले भी उनके पीछे पीछे गाँव की सीमा तक पहुंचे।
लोगों को आते देखकर वो नाग अपनी बाम्बी से बाहर निकल आया साधु बाबा जैसे जैसे नाग के क़रीब पहुँच रहे थे लोगों की धड़कन बढ़ रही थी। पर साधु बाबा के पास पहुँचने पर नाग ने उन्हें नहीं डसा बल्कि साधु बाबा ने नीचे बैठ कर उस नाग से पूछा कि नाग देवता आप इन बेक़सूर लोगों को बिना कारण क्यों मारते हो ? पिछले जन्म के पापों के कारण तो इस जन्म में आपको ये योनि मिली है अगर इस जन्म में भी मासूम लोगों को डसते रहेंगे तो तो अपने पाप कर्मों को बढ़ावा ही देंगे।
नाग ने कहा – महाराज मैं तो सिर्फ़ अपनी रक्षा करने के लिए ऐसा करता हूँ, लेकिन आप इसे पाप कर्म कहते हैं तो मैं अब से किसी को नहीं डसूंगा। मेरी ग़लतियों के लिए मुझे क्षमा करें। साधु बाबा नाग को आशीर्वाद देकर आगे बढ़ गए, मगर दूर खड़े गांव वाले ये सारी बातचीत सुनकर हैरान रह गए और वापस लौट गए लेकिन अब भी गांव वाले उधर से गुजरने की हिम्मत नहीं कर पा रहे थे।
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कुछ समय के बाद जब कोई ग़लती से वहां से निकला और नाग ने उसे कुछ नहीं किया तो धीरे-धीरे लोगों की हिम्मत बढ़ी और लोग फिर से उस रास्ते का इस्तेमाल करने लगे। कभी कभी नाग उन्हें दिख जाता मगर अब वो लोगों को आते देखकर अपनी बाम्बी में चला जाता था। लेकिन गाँव के कुछ शरारती बच्चे और युवा अब उस नाग के पीछे पड़ गए। जब कभी वो नाग को बाहर बैठे देखते तो उस पर दूर से पत्थर फेंकते, मिटटी के ढेले से उसे मारते, कभी तो नाग बचकर वापस बाम्बी में चला जाता कभी कभी उसे चोट भी लग जाती। मगर वो पलट कर कभी वार नहीं करता था।
क्यों कहा – काटो मत फुँफकारो ज़रूर ?
कुछ समय के बाद वही साधु बाबा फिर उसी रस्ते से गुज़रे उन्हें वो नाग भी दिखा लेकिन वो थोड़ा कमज़ोर और ज़ख़्मी था। साधु बाबा ने उस नाग से पूछा कि हे नाग देवता आपकी ये दशा कैसे हो गई तब नाग ने कहा- महाराज मैंने आपकी आज्ञा मान कर लोगों को काटना बंद कर दिया लेकिन उन्हीं लोगों ने पत्थर मार मार कर मेरी ये दशा बना दी।
साधु बाबा ने कहा हे नाग देवता मैंने आपको लोगों की जान लेने से, उन्हें काटने से मना किया था मगर अपने बचाव के लिए फुफकारने से थोड़े ही रोका था। अपना बचाव करना तो हर प्राणी का धर्म है। इसलिए काटो मत फुँफकारो ज़रूर।
ताक़त और डर एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। ताक़तवर से सभी डरते हैं लेकिन अगर आप अपनी ताक़त का इस्तेमाल नहीं करते हैं तो लोग आपको कमज़ोर समझने लगते हैं। लेकिन हमेशा ताक़त का इस्तेमाल करना भी घातक हो सकता है इसलिए ताक़त के भ्रम को हमेशा बनाये रखना चाहिए। क्योंकि अक्सर ताक़त का डर ही सामने वाले को झुका देता है। इसीलिए कहा गया – काटो मत फुँफकारो ज़रूर।
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