धन्ना सेठ के बारे में आपने सुना ही होगा। जब कोई बहुत पैसा लुटाता है तो अक्सर लोग उसे धन्ना सेठ कह देते हैं, जब कोई बच्चा अपने पापा से ज़्यादा पैसों की मांग करता है तो लोग कह देते हैं कि तेरा बाप धन्ना सेठ नहीं है कि तुझे पैसे बांटता रहे। पर ऐसा कहा क्यों जाता है, क्या सच में कोई धन्ना सेठ था या धन्ना सेठ एक प्रतीक है उन लोगों का जो बुरे से बुरे हालात में भी धन कमाने का मौक़ा ढूँढ ही लेते हैं। इसके पीछे एक कहानी बड़ी मशहूर है जो हर युग के लिए सही है, पता नहीं कितनी सच्ची है मगर है बड़ी सटीक।
धन्ना सेठ कहावत कैसे बनी ?
हम सब जानते हैं कि बादशाह अपना साम्राज्य बढ़ाने के लिए ज़्यादातर युद्ध में लगे रहते थे, अब युद्ध होगा तो ख़र्च भी होगा और पैसों की तंगी भी। धन की इस कमी को पूरा करते थे उस समय के व्यापारी मगर युद्ध का बुरा असर व्यापार पर भी तो पड़ता है तो एक बार ऐसा ही हुआ, एक लम्बी लड़ाई के कारण अकबर का शाही ख़ज़ाना ख़त्म हो रहा था। अब उसे चिंता सताने लगी कि शाही ख़ज़ाने को वापस कैसे भरा जाए ? जब अकबर ने बीरबल के सामने अपनी चिंता व्यक्त की तो बीरबल ने कहा – धन्ना सेठ से ले लेते हैं ?
ये सुनकर अकबर को बड़ी हैरानी हुई कि किसी व्यापारी के पास इतना धन कैसे हो सकता है ? और कुछ इसी जिज्ञासा से और अपने ख़ज़ाने की भरपाई की उम्मीद में वो धन्ना सेठ से मिला। बादशाह को देखकर उनकी समस्या सुनकर धन्ना सेठ ने बेफ़िक्री से कहा – मेरे पास बहुत दौलत है आपको जितनी चाहिए उतनी ले जाइए। सुनकर अकबर ख़ुश तो हुआ लेकिन पूछे बिना रह भी नहीं पाया कि धन्ना सेठ ने इतनी दौलत कहाँ से और कैसे इकट्ठी की ?
धन्ना सेठ पहले तो बताने से घबरा रहा था लेकिन जब अकबर ने उसे भरोसा दिलाया तो उसने झिझकते हुए सच बोल दिया कि उसने वो सारा धन अनाज और मसालों में मिलावट करके कमाया है। ये सुनकर अकबर को बहुत ज़्यादा ग़ुस्सा आया और उसने धन्ना सेठ की सारी संपत्ति ज़ब्त कर ली और उसे गिरफ़्तार करने का आदेश दिया। और फिर कुछ सोच-समझ कर धन्ना सेठ को एक ऐसे काम पर लगा दिया जहाँ वो कुछ कमाई न कर सके। अकबर ने उसे शाही अस्तबल में घोड़े की लीद इकठ्ठा करने का काम सौंप दिया। धन्ना और क्या करता उसे राज़ी होना पड़ा, अब धन्ना सेठ अस्तबल का कर्मचारी बन गया।
सालों बीत गए, फिर से एक लम्बा युद्ध छिड़ा, और फिर से शाही ख़ज़ाना ख़ाली होने लगा और फिर से अकबर को चिंता सताई और इस बार फिर से बीरबल ने उसे धन्ना सेठ के पास जाने की सलाह दी। ये सुनकर अकबर को हंसी आ गई और उसने कहा- बीरबल कैसी बातें करते हो, भूल गए धन्ना सेठ को तो मैंने सरकारी अस्तबल में काम पर लगाया था, वहां वो कैसे धन कमायेगा ?
धन्ना सेठ की चालाकी
बीरबल ने कहा जहाँपनाह एक बार चल कर पूछ लेते हैं, अगर नहीं होगा तो वापस आ जाएँगे। लेकिन मेरे हिसाब से सिर्फ़ वही आपको इस मुश्किल से बाहर निकाल सकता है। अकबर को यक़ीन नहीं था लेकिन ख़ुद को सही साबित करने के लिए वो बीरबल के साथ वहाँ चला गया। धन्ना ने इस बार भी अकबर को बहुत बड़ी रक़म दी, अकबर हैरानी से देखता रह गया और सोच में पड़ गया कि आखिर घोड़े की लीद को इकट्ठा करके कोई इतना धन कैसे जमा कर सकता है !
अकबर के पूछने और आश्वस्त करने पर धन्ना ने कहा – अस्तबल के प्रभारी और अश्व सेवक से। वो घोड़ों को दूध पिलाते थे। मैंने उन्हें धमकी दी कि मैं बादशाह से शिकायत करूंगा कि उन्होंने घोड़ों को भरपूर चारा नहीं खिलाया, इसलिए घोड़े की लीद की मात्रा कम थी। वो लोग डर गए और उन्होंने मुझे चुप रहने के लिए रिश्वत दी उसी से मैंने इतना पैसा कमाया।
ये सुनकर जहाँ अकबर को आश्चर्य हुआ वहीं बहुत ग़ुस्सा भी आया और उसने इस बार धन्ना को सज़ा के तौर पर समंदर की लहरों को गिनने के काम पर लगा दिया। ये सोचकर कि भला वहां धन्ना कैसे किसी से रिश्वत ले पाएगा, लेकिन अकबर भूल गया था कि वो धन्ना सेठ था ।
इसी तरह समय बीत गया, एक और भयानक युद्ध लड़ा गया, एक बार फिर से अकबर का ख़ज़ाना ख़ाली हुआ और इस बार फिर से बीरबल ने उसे धन्ना के पास जाने की सलाह दी। अब की बार अकबर को ग़ुस्सा आ गया उसने कहा बीरबल कैसी बातें कर रहे हो, इतने अरसे से वो समंदर की लहरें गिन रहा है, उसके पास कहाँ से आएगा इतना धन ? बीरबल ने कहा – बात तो आपकी ठीक है जहांपनाह मगर एक बार चलकर पूछने में हर्ज क्या है, चलिए चल कर पूछ लेते हैं। अकबर इस बार बीरबल को ग़लत साबित करना चाहता था इसलिए धन्ना के पास चला गया।
अकबर जब वहां पहुंचा तो फिर से धन्ना के पास इतना धन देख कर उसे बेहद हैरानी हुई और उसने फिर धन्ना से पूछा कि – कैसे ? धन्ना ने कहा बहुत ही आसानी से, मैं व्यापारी के जहाजों और नावों को समंदर के किनारे से बहुत दूर रोक देता था। मैं उन्हें आपका आदेश दिखाता था कि मैं लहरों की गिनती कर रहा हूं और उनके जहाज और नाव लहरों को तोड़ देंगी इसलिए वो किनारे से दूर रहे। लेकिन इससे व्यापारियों का नुकसान होता था और उससे बचने के लिए व्यापारी मुझे रिश्वत देते थे ताकि उन्हें किनारे तक पहुँचाया जा सके और उनका माल उतार दिया जाए।
अब बादशाह को समझ आ गया कि धन्ना सेठ जैसे लोगों को किसी भी पेशे में डाल दो, वो जोड़-तोड़ और रिश्वतखोरी में शामिल होकर ढेर सा धन कमा ही लेंगे। आज भी ऐसे धन्ना सेठों की कोई कमी नहीं है।
Read Also
ईश्वर जो करता है अच्छा ही करता है
“अभी दिल्ली दूर है” कैसे बनी ये कहावत ?