ये ख़बर पढ़ने के बाद सबसे बड़ी राहत मुझे ये लगी कि मैं ऐसी जगह रहती हूँ जहाँ रोज़ सूरज उगता है और रोज़ ढल जाता है। चाँद-तारों के दर्शन भी होते रहते हैं और नींद के लिए एक माहौल भी बनता है। वो अलग बात है कि हर वक़्त रहने वाले शोर ने उस माहौल को ख़राब कर दिया है लेकिन कम से कम इस बात की राहत है कि अभी तक सूरज चाँद की आवाजाही पर इंसान का कण्ट्रोल नही है वर्ना जाने क्या से क्या हो जाता ?
हमारा सारा निज़ाम सूरज के उगने और अस्त होने पर ही तो टिका है। सूरज उगता है तो पता लगता है कि नया दिन शुरु हो गया है, अँधेरा होता है तो महसूस होता है कि अब सोने का समय हो गया है। अंटार्कटिका में सिर्फ़ घड़ी की टिक-टिक ही वक़्त का पता देती होगी और इंटरनेट नए दिन के शुरु होने के बारे में बताता होगा।
ऐसी बहुत सी जगह हैं जहाँ साल में क़रीब 2 से 6 महीने सूरज डूबता ही नहीं है और छः महीने दिखाई ही नहीं देता। अंटार्कटिका ऐसी ही जगह है जहाँ सिर्फ़ दो मौसम होते हैं सर्दी और गर्मी सर्दी के छः महीने सूरज दिखाई ही नहीं देता है और गर्मी के महीनों में वो छुपता नहीं है। रिपोर्ट्स के मुताबिक़ अंटार्कटिका के वैज्ञानिक सूरज अस्त होने की ख़ुशी मनाते हैं क्योंकि वहाँ इन दिनों सबसे ज़्यादा शोध किए जाते हैं।
वहाँ परमानेंट रेजिडेंट तो होते नहीं है, बस रिसर्च सेंटर्स हैं जहाँ साइंटिस्ट और रिसर्चेर्स रहते हैं। जो कुछ मैंने वहाँ के बारे में पढ़ा उसके मुताबिक़ वहाँ वो ही वैज्ञानिक जाते हैं जिन्हें अंतरिक्ष में जाने की ट्रैंनिंग दी जाती है। क्योंकि वहाँ का माहौल अंतरिक्ष के वातावरण से काफ़ी हद तक मिलता जुलता है इसलिए वहाँ छः महीने रहने से उन्हें उस वातावरण में रहने की आदत पड़ जाती है। यानी वहाँ उन्हें अंतरिक्ष में रहने के लिए तैयार किया जाता है।
सूरज के बिना कैसा जीवन !?
वैज्ञानिक ही सही पर हैं तो वो भी इंसान ही, तो कैसे मैनेज करते होंगे वो ? छ महीने अँधेरा ही अँधेरा !!! या फिर आर्टिफिशल लाइट्स।
सूरज अस्त
ज़रा ठिठुरती हुई सर्दियों के दिन याद कीजिए, जब सूरज कई-कई दिनों तक दिखाई नहीं देता तो अक्सर लोग dull फ़ील करने लगते हैं, उदासी हावी हो जाती है। धूप इंसानी शरीर के लिए भी कितनी ज़रुरी है ये हम सब जानते हैं। जॉइंट्स के लिए दिल और दिमाग़ के लिए, पॉसिटिविटी के लिए सूरज की रौशनी एक मरहम की तरह है। ऐसे में सिर्फ़ आर्टिफिशल लाइटिंग ही नज़र आए तो कैसा फील करते होंगे वो साइंटिस्ट ?
ये सब पढ़ सुनकर मुझे फ़िल्मी विलेन के अड्डे याद आ गए। जैसे जेम्स बांड की फ़िल्मों में दिखाई देते थे या जैसा “शान” में ‘शाकाल’ का अड्डा था और “मि. इंडिया” में ‘मोगाम्बो’ का। ऐसी लगभग हर फ़िल्म में विलेन का अड्डा या कहें साइंटिस्ट के रिसर्च सेंटर्स ऐसे ही होते हैं, जहाँ सूरज की रोशनी पहुँच ही नहीं पाती।
लेकिन फ़िल्म और रियल लाइफ में बहुत अंतर होता है।
ज़ाहिर है अंटार्कटिका में साइंटिस्ट का लाइफस्टाइल बहुत अलग होता होगा, पर वो भी मिस तो करते होंगे न एक आम मौसम को, जहाँ रोज़ रात हो और रोज़ सुबह। जहाँ सिर्फ़ गर्मी और सर्दी न हों बल्कि कभी बरसात की बूंदें भी सराबोर कर जाएँ, रंग-बिरंगे फूल भी खिलें और पेड़ों के ठुकराए हुए पत्ते भी ज़मीन पर गिर कर आवारगी करते नज़र आएं। मैं जानती हूँ कि साइंटिस्ट बहुत फ़ोकस्ड होते हैं अपने लक्ष्य को पूरी तरह समर्पित पर कभी-कभी एक आम इंसान की तरह सोचते तो होंगे !
बहुत ज़्यादा न पढ़ने के भी कुछ फ़ायदे होते हैं, curiosity बनी रहती है, और ढेरों सवाल दिमाग़ को मथते रहते हैं। तो मुझे भी सवालों के साथ-साथ कुछ ज्ञानियों की बातें भी याद आ गईं कि “रात कितनी भी लम्बी क्यों न हो सुबह ज़रुर होती है”। ये अलग बात है कि अंटार्कटिका में वो रात छह महीने लम्बी होगी और वहाँ अब सुबह का सूरज अक्टूबर में ही दिखेगा। ये इंतज़ार कुछ ज़्यादा ही लम्बा है नहीं। सोचिए अगर वहाँ परमानेंट रेसिडेंट्स रह रहे होते तो क्या होता !! अगर आप वहाँ रह रहे होते तो क्या होता ?
दिन और रात से जुड़े ढेरों पॉजिटिव कोट्स हैं वो अंटार्कटिका जैसी जगहों पर बोले जाते तो…. । जैसे – “रात सपने देखने के लिए है और दिन उन सपनों को साकार करने के लिए ” तो वहाँ आप छह महीने सपने देखिए और अगले छह महीनों में उन्हें साकार करने की कोशिश कीजिए।
“for every single dark night there is a brighter day” तो वहाँ इस क्वोट को कैसे कहेंगे – for six months dark nights there are another six months brighter days.
पर ये क्वोट वहाँ के लिए फिट बैठता है – The Night is just a part of the day . Exactly……
ज़िंदगी में आने वाला हर पल बस ज़िंदगी का हिस्सा है। सुख दुःख, हँसी-आँसू, सर्दी-गर्मी, दिन-रात सब एक कहानी का हिस्सा हैं और वो कहानी है जीवन। ये कहानी सिर्फ़ किसी इंसान की नहीं है, अलग-अलग जगहों की है, अलग-अलग लोगों की है, अलग-अलग मानसिकता की है। जिसने उसे अपना लिया वो ख़ुश है जो नहीं अपना पाया वो या तो कुछ कर दिखा कर अपना नाम कर लेता है या फिर ज़िंदगी यूँ ही गुज़ार कर चला जाता है।
इससे पहले कि ज़िंदगी यूँ ही गुज़र जाए, जाग जाइए और हर पल को जी भर के जी लीजिए। क्योंकि जिस तरह के हालात हैं और जिस तरह से हम क़ुदरत का दोहन कर रहे हैं, प्रकृति पर अत्याचार कर रहे हैं ; न जाने कब हम भी चार ऋतुओं की जगह दो ऋतुओं में बंध कर रह जाएँ ! हमें भी सूरज के दर्शन लम्बे समय तक दुर्लभ हो जाएँ।
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